Saturday, March 20, 2010

शमशान में घ्रर


शमशान मनुष्य का अन्तिम स्थान होता है,यहाँ तक जीवित मनुष्य का साथ होता है और यहीं तक साथ चलती है वह देह जिसके लिये संसार में चोरी बेईमानी डकैती और जाने कौन कौन से दुष्कर्म किये जाते है,इस देह के लिये जिन्दा मार डाले जाते है और मरे हुओं को भी मारने का काम किया जाता है। अक्सर लोग इस बात को भूल जाते है कि वे जिस स्थान पर कदम रखने जा रहे है वह अन्तिम प्रयाण का रास्ता है,यहां से कोई पाप पुण्य का वास्ता नही रहता है,इसके बाद केवल जीवन में किये गये अच्छे और बुरे कर्मो का हिसाब किताब करना बाकी रह जाता है,कुछ हिसाब किताब तो जिन्दा लोग कर गये होते है और कुछ हिसाब किताब धर्मराज की डायरी में लिखे कर्म और कुकर्म अपना हिसाब किताब बताने के लिये तैयार रहते है। हम जानते हुये भी गल्ती क्यों करते है इसका एक उदाहरण आपके सामने रखते है। जब हम भीड में चलते है और भीड के द्वारा अपने कर्मों को करने का प्रयोग भीड के अनुसार करने की सोचते है तो यह सोच लेते है कि सामने वाले का होगा वह मेरा भी होगा,अगर सामने वाला ठीक रहता है तो मैं भी ठीक रहूंगा,इस प्रकार से अपने पीछे के कर्मों को भूल कर आगे के और बुरे कर्मों को बढा लेते है। आज एक प्रश्न इन्दौर से भेजा गया है,उसके अन्दर जो लिखा है वह इस प्रकार से है :- "meri birth date nahi hai isliye putr ki ditail de raha hU maine 02.04.2008 ko kacche shmshaan par bani hui colony me makan kharida hai, tatha 08.05.2008 ko makan me grah pravesh kiyaa hai tab se mai kaphi parshan hu is makan ka karja nahi utar raha, ghar ke sadsy aksar bimaar rhate hai, krpya upaay bataane ka kast kare".
इनकी बात में लिखा है कि इन्होने एक मकान कच्चे शमशान में बनी कालोनी में ले लिया है,और जब से उन्होने उस मकान में प्रवेश किया है तभी से उस घर मे कोई ना कोई बीमार रहता है,और मकान का कर्जा भी नही चुकाया जा रहा है,इस बच्चे की जन्म तारीख के द्वारा जब देखा तो कुन्डली कन्या लगन की है और लगनेश बुध के साथ मंगल शुक्र विराजमान है,यह बच्चे की कुन्डली है और मकान को पिता ने लिया है,इसलिये इस कुंडली में सूर्य को देखना है कि वह कहां है,कुंडली में सूर्य का स्थान लगन से बारहवें स्थान में शनि के साथ सिंह राशि में है,जब कुंडली में सूर्य और शनि आपस में मिल जाते है,या बुध के साथ मंगल विराजमान हो जाता है तो मंगल बद हो जाता है। नेक मंगल के स्वामी हनुमान जी होते है और बद मंगल के देवता भूत प्रेत पिशाच होते है। लेकिन मरी हुयी आत्मा का कारक राहु होता है,अगर बद मंगल से राहु की युति किसी प्रकार से मिल जाती है तो वह वास्तव में एक खतरनाक भूत का स्थान बन जाता है। जिस स्थान पर मकान बनाया गया है,उस स्थान पर गुरु जो इशारा कर रहा है वह बक्री का है,और बक्री गुरु जो भी फ़ल देता है वह जल्दी से देता है,राहु का इशारा मकर राशि का पंचम में है। इस मकान का दरवाजा दक्षिण की तरफ़ है,और दक्षिण के दरवाजे ही कितनी ही मुशीबतें एक बढिया जमीन में आती है लेकिन जब शमशान का मकान भी हो और दक्षिण का दरवाजा भी हो तो मुशीबतों का जोर कितना हो सकता है इसका अन्दाजा तो भुक्त भोगी ही लगा सकता है। इस मकान का पानी पश्चिम में है,इस मकान की रसोई उत्तर में है,इस मकान में एक बरामदा या बालकनी या खिडकी उत्तर में भी है,पूर्व वाली जमीन खाली पडी है। उत्तर से दक्षिण की एक सीमा रेखा बनी है,उस सीमा रेखा से हटकर कोई सरकारी शेड आदि बना है। इस मकान में रहने वाला कैसे सुखी रह सकता है,इसका जबाब अगर आपके पास हो तो आप भी लिखें,हम आपके जबाबों का इन्तजार करेंगे। किसी जिन्दा व्यक्ति को आराम से समझाकर घर से बाहर निकाला जा सकता है ,लेकिन जब कोई मृत्यु के बाद की आत्मा उस स्थान पर अपना वास बना गयी हो तो उसे निकालने के लिये क्या किया जा सकता है। इसका एक उपाय किया जा सकता है,जो वहां रहने वाला है उसे आदर से वहीं पर स्थापित कर दिया जाये,और साथ साथ आराम से रहा जाये। घर के उत्तर-पश्चिम कोने में एक सरकारी जगह है,उस स्थान पर कोई स्थान घर से सटाकर बना दिया जाये,जो भी घर में खाना बनता है उसे सबसे पहले एक पत्तल में निकाल कर उस स्थान पर पहुंचा दिया जाये। किसी तरह की गंदगी वहां पर नही की जाये,तीज त्यौहार को विशेष ध्यान रखा जाये। तो रहने वाली आत्मायें कुछ हद तक परेशान न करके सहारा देने की कोशिश करने लगेंगी।

Friday, March 19, 2010

यक्षिणी साधना


यक्षिणी सिद्ध होने पर कार्य बडी सुगमता से हो जाता है,बुद्धि भी सही रहती है,और कठिन से कठिन समस्या को तुरत हल किया जा सकता है। इसका एक फ़ल और मिलता है,कि कोई भी अपने मन की बात को अगर छुपाने की कोशिश करता है तो उसके हाव भाव से पहिचाना भी जा सकता है कि वह अपने मन के अन्दर क्या भेद छुपाकर रख रहा है। यक्षिणी चौदह प्रकार की बताई गयीं हैं:-
  1. महायक्षिणी
  2. सुन्दरी
  3. मनोहरी
  4. कनक यक्षिणी
  5. कामेश्वरी
  6. रतिप्रिया
  7. पद्मिनी
  8. नटी
  9. रागिनी
  10. विशाला
  11. चन्द्रिका
  12. लक्ष्मी
  13. शोभना 
  14. मर्दना
यक्षिणी सिद्ध करने का समय
महर्षि दत्तात्रेय का मत है कि आषाढ शुदी पूर्णमासी शुक्रवार के दिन पडे तो गुरुवार को ही नहा धोकर एकान्त स्थान का चुनाव कर लेना चाहिये,और पहले से ही पूजा पाठ का सभी सामान इकट्ठा करलेना चाहिये,अथवा श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन चन्द्र में बल तब साधना का उत्तम फ़ल कहा गया है।
साधना में सबसे पहले शिव जी की आराधना
साधना काल में सबसे पहले भगवान भोले नाथ की साधना करनी चाहिये,यह साधना किसी केले के अथवा बील के पेड के नीचे की जाती है। शिवजी का आराधना मंत्र इस प्रकार से है:-
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा
ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा

क्रिया

अपने चित्त को एकाग्र कर लें,और उपरोक्त मंत्रों को पांच पांच हजार मालाओं का जाप करलें। यह जाप किसी निर्जन स्थान में होना चाहिये,उसके बाद घर आकर कुंआरी कन्याओं को खीर का भोजन करवायें.दूसरी क्रिया है कि किसी वट या पीपल के पेड की जड में शिवजी की स्थापना करके जल चढाते रहें,और प्रत्येक मंत्र की पांच हजार मालायें जपें।

कस्तूरी


तंत्र प्रयोगों में कस्तूरी का एक विशेष स्थान है,और ऐसा कोई भी व्यक्ति नही होगा जो कि इसके विषय में जानता न हो,परन्तु अह असली मिलती ही नही। इसी कारण से तन्त्र प्रयोग करने पर इससे मिलने वाले लाभ प्रश्न ही बने रहते हैं। कस्तूरी प्राय: सर्वत्र उपलब्ध है और कस्तूरी कहने मात्र से पंसारी दे देता है। यह असली है या नकली यह प्रश्न बना ही रहता है,क्योकि इसके विषय में बहुत अधिक किसी को मालुम नही होता है,और कोई बताता भी नही है। कस्तूरी एक प्रकार के हिरन के कांटा आदि लगने के बाद बनने वाली गांठ के रूप में होती है,उस हिरन का खून उस गांठ में जम जाता है,और उसके अन्दर ही सूखता रहता है,जिस प्रकार से किसी सडे हुये मांस की बदबू आती है उसी प्रकार से उस हिरन के खून की बदबू इस प्रकार की होती है कि वह मनुष्यजाति को खुशबू के रूप में प्रतीत होती है। जिस हिरन से कस्तूरी मिलती है वह समुद्र तल से आठ हजार फ़ुट की ऊंचाई पर मिलता है,मुख्यत: इस प्रकार के हिरन हिमालय दार्जिलिंग नेपाल असम चीन तथा सोवियत रूस मे अधिकतर पाया जाता है,कस्तूरी केवल पुरुष जाति के हिरन में ही बनती है जो कि खुशबू देती है,मादा हिरन की कस्तूरी कुछ समय तो खुशबू देती है लेकिन शरीर से अलग होने के बाद सडने लग जाती है। दूसरे कस्तूरी प्राप्त करने के लिये कभी भी हिरन को मारना नहीं पडता है,वह गांठ जब सूख जाती है,तो पेडों के साथ हिरन के खुजलाने और चट्टानों के साथ अपने शरीर को रगडने के दौरान अपने आप गिर जाती है। इस गिरी हुई गांठ पर वन्य जीव भी अपनी नजर रखते है,और जब उनसे बच पाती है तो ही मनुष्य को मिलती है। अक्सर जो कंजर जाति के लोग कस्तूरी को बेचते है वे गीधड या सूअर के अंडकोष को सिल कर सुखा लेते है,और उनके सूखने पर उसके ऊपर कस्तूरी का नकली सेंट छिडकर बेचना शुरु कर देते है,भोले भाले लोग उनके चंगुल में आकर एक मरे हुये जानवर का अंग अपने घरों में संभाल कर रखते है और उसे बहुत ही पवित्र और उपयोगी वस्तु मानकर उसका प्रयोग करते है। नकली कस्तूरी को प्राप्त करने के और भी साधन होते है जैसे कि एक ओबीबस मस्केटस नामका सांड होता है जिसके शरीर से कस्तूरी जैसी ही सुगंध आती है,एक बत्तख भी होती है जिसे अनास मस्काटा कहते है,एक बकरा भी होता है जिसे कपरा आइनेक्स कहा जाता है,इसके खून में भी कस्तूरी जैसी सुगंध आती है,एक मगरमच्छ होता है जिसे क्रोकोवेल्गेरिस कहा जाता है,जिसके शरीर से भी कस्तूरी की तीव्र खुशबू आती है,आदि जीवों से भी कस्तूरी को विभिन्न तरीके से प्राप्त किया जाता है। बाजार में तीन प्रकार की कस्तूरी आती है,एक रूस की कस्तूरी,दूसरी कामरूप की कस्तूरी और तीसरी चीन की कस्तूरी,आप समझ गये होंगे कि किस जानवर का खून सुखाकर उसे कस्तूरी की कीमत में लोग बेच सकते होंगे।

कस्तूरी की पहिचान करने के तरीके

कस्तूरी का दाना लेकर एक कांच के गिलास में डाल दें,दाना सीधा जाकर गिलास के तल में बैठ जायेगा,वह न तो गलेगा और न ही ढीला होगा। एक अंगीठी में कोयले दहकायें उस पर कस्तूरी का दाना डालें अगर नकली होगी तो वह जल कर धुंआ बन कर खत्म हो जायेगी,और असली होगी तो काफ़ी समय तक बुलबुले पैदा करने के बाद जलती रहेगी। एक सूती धागे को हींग के पानी में भिगोकर गीला कर लें और सुई में डालकर कस्तूरी के अन्दर से निकालें,अगर असली कस्तूरी होगी तो हींग अपनी खुशबू को छोड कर धागे में कस्तूरी की खुशबू भर जायेगी,वरना हींग की महक को मारने वाला और कोई पदार्थ नही है। एक पदार्थ होता है जिसे ट्रिनीट्रोब्यूटिल टोलबल कहते है इसकी महक भी कस्तूरी की तरह से होती है और काफ़ी समय तक टिकती है,कस्तूरी भारी होती है,कस्तूरी छूने में चिकनी होती है,कस्तूरी सफ़ेद कपडे में रखने के बाद पीला हो जाता है,कस्तूरी की नाप मटर के दाने के बराबर होती है,कहीं कहीं पर यह इलायची के दाने के बराबर भी पायी जाती है। इससे बडी कस्तूरी नही मिलती है।

Wednesday, March 17, 2010

कामाख्या पहाड और तंत्र

कामाख्या (गोहाटी) जाने पर सबसे पहले कामाख्या पहाड के बारे में आप अच्छी तरह से जान लें। इस पहाड के लिये वाणासुर,नरकासुर,जयन्तिया राज के शासक और असम के शासक तथा कितनी ही जनता इस पहाड के चमत्कारिक प्रभावों को देख चुकी है,साथ अक्सर चींटियां वही पैदा होती हैं जहाँ मिठाई होती है। नमक में कभी चीटिंयां नही लगती है। इस पहाड के मामले में सुबह के सवा सात बजे का एक चित्र जो नवरात्रा के दूसरे दिन मैने अपने मोबाइल से लिया था उसे आप अपनी पारखी नजर से देखिये:-
यह चित्र आरिजनल है और इसके अन्दर किसी प्रकार का कोई बदलाव नही किया गया है,और कामाख्या पहाड के अग्नि कोण से चलने वाली अदावरी रोड से मैने खींचा है,इस चित्र में आप दाहिनी तरफ़ लाल रंग और बायीं तरफ़ नीला रंग साफ़ तरीके से देख सकते है,और वातावरण में साफ़ समझ में आता है जैसे कि पूरे वातावरण में लाल रंग घोल दिया गया हो। देखने के लिये तो लोग कहेंगे कि यह बादल होने से या किसी अन्य प्रकार की मौसमी हवा होने से हो सकता है लेकिन आप जब आसमान की तरफ़ देखें गे तो आपको साफ़ समझ में आयेगा कि आसमान कभी भी एक सीधी रेखा में साफ़ और मैला नही होता है,कहीं ना कहीं तो आडा तिरछा हो ही जाता है,यह मैया का चमत्कार ही माना जाता है,और यह तभी सम्भव है जब वहाँ पर माँ अर्धनारीश्वर के रूप में उपस्थिति है। मै भी पहले सभी पूजा पाठों के प्रति और तंत्र मंत्र के प्रति इतनी आस्था नही रखता था,मै भी राजपूत कुल में पैदा हुआ हूँ,और सभी बाते जो राजपूतों में होती है वह मेरे अन्दर भी है लेकिन अक्समात यह सब कारण देखकर ही मैने माता और ईश्वर के अन्दर आस्तित्व देखा है,तभी इनके ऊपर आस्था की जानी सम्भव हुयी है।
इस स्थान से माता कामाख्या के पहाड के पूरे दर्शन होते है,और ऊपर से नीचे आने के लिये नरकासुर का बनाया गया सिंह द्वार है जो दक्षिण की तरफ़ को खुलता है,इस द्वार से कोई भी आता जाता नही है इसका कारण एक ही बताया गया है कि इस द्वार से आने जाने वाले मौत के मुंह में चले जाते है,इस द्वार के नीचे एक बस की बाडी बनाने वाले ने अपना कारखाना बना रखा है,और ऊपर की तरफ़ जाने के बाद एक महात्मा जी का आश्रम है,इस आश्रम के अन्दर केवल वही लोग रहते है जो संसार में अपने को अकेला समझते है,लेकिन उन लोगों से भी बात करने के बाद पता चला कि वे कभी भी किसी के दरवाजे पर मांगने नही गये,पता नही कहाँ से कौन आकर उनको खाना दे जाता है,सर्दी के कपडे दे जाता है,नहाने के लिये उनको पता नही है कि उन्होने कब नहाया है,लेकिन भक्ति और ज्ञान की बातें करने पर उनके अन्दर से विद्या की वह लहर दौडती है जैसे मानो सरस्वती उन्ही के अन्दर विराजमान हो। उन्ही में एक साधु जैसे व्यक्ति ने बताया कि वह बचपन से यहीं माता की शरण में रहता आया है,उसे कभी किसी से मांग कर खाने की जरूरत नही पडी,लेकिन धीरज रखकर माता की शरण में पडा रहा। कितना ही जाडा गर्मी बरसात हो लेकिन माता उन्हे खाना किसके द्वारा कहाँ से भिजवाती है किसी को पता नही है। जिस समय मै उनसे बात कर रहा था उसी समय एक अब्दुल करीम नामका व्यक्ति साइकिल पर एक एल्म्यूनियम का भगोना रख कर आया और पत्तों की पत्तलों में रखकर दाल चावल को सभी बैठे लोगों को देने लगा,सभी ने उससे दाल चावल लिये मैने भी दाल चावल लिये और उन्हे खाया भी लेकिन जो स्वाद उन दाल चावल में मिला वह मैने जीवन में कभी पाया ही नही। जब इन मियां जी से पूंछा कि आप इनके लिये खाना कहाँ से लाये है तो वे बोले कि एक सेठ नीचे आया था वह खाना मुझे देकर गया और बोला कि सभी साधुओं को बांट देना। इसके आगे वह कुछ नही बता पाया।
यह द्वार माता कामाख्या के दर्शन करने को जाने के लिये पूर्वी द्वार है और इसी द्वार को माता के दर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है,राज्य सरकार ने अब माता के भवन तक और आगे भुवनेश्वरी तक सडक का निर्माण करवा दिया है। आराम से लोग अपने वाहन ले जासकते है,और किराये के वाहन भी चला करते है जो प्रति सवारी दस रुपया एक तरफ़ का किराया ऊपर या नीचे आने का लेते है। इस दरवाजे से जाने के बाद अगर पैदल भी जाया जाये तो कोई थकान नही मालुम होती है,मै तो माता कामाख्या तक जीप से गया था और वहां से भुवनेश्वरी तक पैदल ही गया था,बहुत से चित्र विचित्र स्थान देखने को मिले,वही अगर कार से जाते तो देखने को नही मिलते। रास्ते में किसी प्रकार का कोई भय नही मालुम चला,एक तरफ़ ब्रह्मपुत्र नदी और दूसरी तरफ़ माता का दरवार,बहुत ही मन को लुभाने वाला द्रश्य था,और इस द्रश्य को अगर सही रूप से मन के अन्दर धारण करना है तो माता कामाख्या के प्रति लालसा तो पैदा करनी ही पडेगी।

Monday, March 15, 2010

गोहाटी का नवग्रह मंदिर

नवग्रह की भावना ज्योतिष में अधिक जानी जाती है। लेकिन जब गोहाटी में नवग्रह मंदिरके बारे में सुना तो बहुत ही जिज्ञासा उसे देखने की हुयी,दिनांक १४ मार्च २०१० को वह सुनहरा अवसर आ ही गया और उस मन्दिर में स्थापित नवग्रह दर्शन करने का सौभाग्य मिल ही गया। मन्दिर ऊंची पहाडी पर बनाया गया है,इसके आलेखों और इतिहास के बारे में आपको बहुत जगह पढने को मिल जायेगा,और इसके अन्दर स्थापित किये ग्रहों के बारे में जो जानकारी एक ज्योतिषी होने के नाते मुझे मिली वह इस प्रकार से है। पूर्व मुखी इस मन्दिर के लिये पहले पूर्व से पश्चिम के लिये सीढियां बनायी गयी है,और इन सीढियों के नीचे वाहनो के आने जाने और प्रसाद आदि की दुकाने बनी है। मन्दिर में सुबह के सूर्योदय की किरणें सव प्रथम प्रवेश करती है,और जहां सूर्योदय होता है,और पहाडी से जैसे ही उसकी किरणें मन्दिर के अन्दर जाती है,पुजारी इस मंदिर के कपाट खोल देता है। मन्दिर की बनावट भी कामाख्या मन्दिर की तरह की बनी है,यानी विपरीत शिवलिंग जैसी,केवल वायु निर्मित शिवलिंग,जिसके अन्दर मानो प्रवेश करने के बाद संसार की बडी से बडी शक्ति का आभास होने लगता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर सबसे पहले दाहिने तरफ़ राहु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है,इसी प्रतिमा के नीचे रखे अगरबत्ती कुंड में लोग धूप बत्ती और अपने अपने अनुसार प्रयोग की जाने वाली धूप को जलाते है,बायीं तरफ़ केतु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। यहाँ राहु केतु की प्रतिमा को स्थापित करने का उद्देश्य केवल इतना है कि जो भी ग्रह इस मन्दिर के अन्दर स्थापित है उनकी राहु सकारात्मक और केतु नकारात्मक वृत्ति को ही मनुष्य और जीव जन्तु ग्रहण करते है। मतलब हर ग्रह की दो ही प्रकृति होती है एक अच्छा फ़ल देना और एक बुरा फ़ल देना। अच्छा और बुरा फ़ल जीव या मनुष्य की पिछले कर्मों की धारणा के अनुसार माना जाता है। मन्दिर की पहली दहलीज पार करने के बाद बायें हाथ पर गजानन गणेशजी की प्रतिमा के साथ भगवान भोले नाथ और माता पार्वती की प्रतिमा है साथ में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा है,सबसे पहले इन्ही प्रतिमाओं की पूजा करनी पडती है,और सभी ग्रहों से मंगल कामना प्राप्त करने के लिये इन्ही शक्तिओं से आज्ञा लेनी अनिवार्य मानी जाती है,यहां पर तीन दीपक जलाये जाते है,और तीनो शक्तियों से प्रार्थना करने के बाद मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार किया जाता है,जैसे ही मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार करते है,केवल एक अन्धेरी गुफ़ा जैसा द्रश्य सामने आता है,गोलाकार मन्दिर के धरातल पर नौ शिव लिंग बने है और प्रत्येक शिवलिंग की जल लहरी का मुख विभिन्न दिशाओं की तरफ़ रखा गया है। एक मुख्य शिवलिंग बीच में बना है और बाकी के आठ शिवलिंग आठों दिशाओं में बनाये गये है। बीच के शिवलिंग को सूर्य की मान्यता है और जललहरी का मुख उत्तर की तरह है,भगवान सूर्य का कल्याण कारी होना तभी सम्भव है जब वह उत्तरायण की तरफ़ अग्रेसित होते है। अन्दर जाते ही बायें हाथ की तरफ़ पहले चन्द्रमा की स्थापना है,फ़िर मंगल की उसके बाद राहु की फ़िर शनि की फ़िर केतु उसके बाद गुरु और फ़िर बुध तथा मन्दिर के अन्दर जाने के दाहिनी तरफ़ शुक्र की स्थापना है। पूजा की कामना से जाने वाले व्यक्ति को सबसे पहले बायें चन्द्रमा और दाहिने शुक्र को लेकर जाना पडता है,लेकिन पूजा करने के बाद या दर्शन करने के बाद दाहिने चन्द्रमा होता है और बायें शुक्र की स्थिति होती है इसलिये ही मन्दिर में पूजा करने के बाद पुजारी का कहना होता है कि बाहर जाते समय पीछे घूम कर नही देखना होता है,अन्यथा पूजा का उद्देश्य नही रहता है। ग्रहों की पूजा करते समय पहले भगवान सूर्य पर दीपक को अर्पित किया जाता है,फ़िर चन्द्रमा पर उसके बाद मंगल फ़िर बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु पर दीप दान किया जाता है,उसके बाद ग्रहों को वस्त्रदान करते वक्त इसी क्रम से अलग अलग रंगों के जो रंग ग्रह के होते है उसी रंग के वस्त्र दान ग्रहो के रूप में शिवलिंग पर दिये जाते है। पुजारी से पूजा करवाने पर अलग अलग ग्रह की पूजा का अलग अलग दक्षिणा है,एक ग्रह की ग्यारह सौ रुपया और सभी ग्रहों की साढे पांच हजार रुपया दक्षिणा ली जाती है,यह दक्षिणा मन्दिर के विकास और देखरेख में खर्च की जाते है।
मन्दिर के अन्दर ग्रह का मन्त्र उच्चारण करने पर जो ध्वनि भूपुर में टकराकर वापस आती है वह दिमाग को झन्झनाने वाली होती है,व्यक्ति अपने आप भी पूजा कर सकता है लेकिन पूजा का क्रम याद रखना पडता है,सभी ग्रहों की पूजा के लिये पुजारी राहु के सामने या गुरु के सामने बैठता है,किसी उद्देश्य की पूजा के लिये राहु के सामने ही बैठ कर पूजा की जाती है और पारिवारिक तथा जनकल्याण के लिये की जाने वाली पूजा गुरु के सामने बैठ कर की जाती है,सन्कल्प और पूजा की पद्धति से पूजा करवाने के बाद मन्दिर से बाहर आकर मन्दिर की परिक्रमा की जाती है,परिक्रमा मार्ग में भी विभिन्न ग्रहों के रूप में देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है,आसाम में इस मन्दिर को भविष्य मन्दिर के नाम से जाना जाता है,इस मन्दिर में एक बात और देखने को मिली कि बकरी और बन्दर एक साथ मौज से लोगों के द्वारा दिये गये प्रसात को खाते है। प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से सम्बन्धित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।

माँ कामाख्या और तंत्र

माँ कामाख्या के मंदिर के तंत्र को जानने के लिये पहले शिवलिंग को सकारात्मक और माता के मंदिर की बनावट को नकारात्मक रूप से देखना पडेगा। माता के मंदिर के अन्दर जाने पर जो द्रश्य सामने होता है वह इस प्रकार का होता है जैसे हम शिवलिंग के अन्दर प्रवेश कर गये हों।मंदिर की बनावट को वास्तु अनुसार बनाकर अन्दर कोई सफ़ेदी या रंग का प्रयोग नही किया गया है,अक्सर लोगों के मन में भ्रम होगा कि अन्दर कोई रंग या सफ़ेदी नही करने का उद्देश्य मन्दिर के प्रबन्धकों का यह रहा होगा कि कोई मन्दिर के अन्दर माँ की फ़ोटो नही ले ले,और अक्सर फ़ोटो उन्ही स्थानों की मिलती है,जहां कोई रूप सकारात्मक रूप से दिखाई देता है,लेकिन जो नकारात्मक रूप में शक्ति होती है उसे सकारात्मक रूप में देखने के लिये किसी भौतिक चीज को देखने की जरूरत नही पडती है,जैसे ही मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते है अचानक दीपक की धीमी लौ के द्वारा जो रूप सामने आता है वह माता का साक्षात रूप ही माना जा सकता है। घनघोर अन्धेरा और उस अन्धेरे के अन्दर जो द्रश्य सामने होता है वह अगर आंखों को बन्द करने के बाद देखा जाये तो वही द्रश्य सामने होता है,इसे अंजवाने के लिये मन्दिर में जब सबसे नीचे जाकर माता के स्थान पर केवल बहते हुये पानी को हाथ से स्पर्श किया जाये तो उस समय आंखों को बन्द करते ही एक विचित्र सुनहली आभा लिये द्रश्यमान भगवती का चित्र एक क्षण के लिये आता है और गायब हो जाता है,वही दश्य मन में बसाने वाला होता है। अक्सर इस मन्दिर को तांत्रिक साधना का स्थान बताया गया है और कहा जाता है कि यहाँ पर मनोवांछित साधनायें पूरी होती है,लेकिन माता की साधना के लिये षोडाक्षरी मंत्र को ह्रदयंगम करने के बाद ही सम्भव है। षोशाक्षरी के लिये भी कहा गया है कि "राज्यं देहि,सिरं देहि,ना देहि षोडाक्षरी",राजपाट देदो,सिर दे दो लेकिन षोडाक्षरी मत दो,षोडाक्षरी के रहने पर राज्य और जीवन वापस मिल जायेगा लेकिन षोडाक्षरी जाने के बाद कुछ नही मिलेगा।
माता के दर्शन और स्पर्श के लिये अन्दर जाने से पहले दरवाजे के ठीक सामने बलि स्थान है,इस बलि स्थान पर कहा जाता है कि भूतकाल में यहां मनुष्यों की बलि दी जाती थी,आजकल यहाँ इस बलि स्थान के ठीक पीछे बकरों की बलि दी जाती है,तंत्र में जो बलि देने का रिवाज भूतडामर तंत्र में कहा गया है उसके अनुसार किसी जीव की बलि देना प्रकृति के अनुसार नही है। तंत्र शास्त्रों में लिखे गये बलि कारकों में उन कारकों का वर्णन किया गया है जो मानसिक धारणा से जुडॆ है। इस बलि स्थान का जो मन्दिर में स्थान बनाया गया है वह प्राचीन भवन निर्माण पद्धति से बिलकुल दक्षिण-पश्चिम कोने में बनाया गया है। प्रवेश का स्थान दक्षिण से होने के कारण जो सकारात्मक इनर्जी का मुख्य स्तोत्र है वह उत्तर की तरफ़ नीचे उतरने के लिये माना जाता है,बलि देने का मतलब यह नही होता है कि कोई मान्यता से बलि दी जाती है,यह एक कुप्रथा है और इसके पीछे जो भेद छुपा है उसके अनुसार मनुष्य के अन्दर जो लोभ मोह लालच कपट कष्ट देने की आदतें है उनकी बलि देने का रिवाज है,जैसे बकरे की बलि देने का जो कारण बताया गया है वह केवल अहम "मैं" को मारने का कारण है,लेकिन लोगों ने अपने निजी स्वार्थ को समझा नही और मैं (अहम) को न काटकर मैं मैं कहने वाले जानवर को ही काट डाला,धर्म स्थान का महत्व अघोर सिद्धि के लिये कई नही माना जाना चाहिये,जीव जीव का आहार है जरूर लेकिन बर्बरता और बिना किसी जीव को कष्ट दिये जब भोजन को धरती माता उपलब्ध करवाती है तो क्या जरूरी है कि अपने स्वार्थ और जीभ के स्वाद के लिये बलि दी जाये। मैं को काटने के लिये पहले अहम को काट दिया तो सभी सिद्धियां अपने आप सामने प्रस्तुत हो जायेंगी। माँ के दर्शन करने से पहले इसी मैं को काटने का ध्येय बताया था।
इस मन्दिर को बनाकर शैव और शक्ति के उपासकों का मुख्य उद्देश्य विपरीत कारकों से सिद्धियों को प्राप्त करना और माना जा सकता है,वास्तु का मुख्य रूप जो इस मन्दिर से मिलता है उसके अनुसार आसुरी शक्तियां जिनका निवास दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य) के कोने से मिलता है उसको भी दर्शाने का है,मुख्य मंदिर जिसके नीचे भौतिक तत्व विहीन शिव लिंग  (केवल वायु निर्मित शिवलिंग) है,को समझने के लिये यह भी जाना जाता है कि जिन मकानों में उत्तर की तरफ़ अधिक ऊंचा और दक्षिण की तरफ़ अधिक नीचा होता है,अथवा उत्तर से दक्षिण की तरफ़ ढलान बनाया जाता है उन घरों के लोग केवल अघोर साधना की तरफ़ ही उन्मुक्त भाव से चले जाते है,व्यभिचार जुआ शराब मारकाट आदि बातें उन्ही घरों में मिलती है,लेकिन जब यह बात धार्मिक स्थानों में आती है तो जो भी धार्मिक स्थान दक्षिण मुखी होते है अथवा उनका उत्तर का भाग ऊंचा होता है वहां पर जो व्यक्ति के दिमाग में आसुरी वृत्तियां भरी होती है,उनका निराकरण भी इसी प्रकार के स्थानों में होता है। जैसे कि किसी भी अस्पताल को देखिये,जो दक्षिण मुखी होगा उसकी प्रसिद्धि और इलाज बहुत अच्छा होगा,और जो अन्य दिशाओं में अपनी मुखाकृति बनायें होंगे वहां अन्य प्रकार के तत्वों का विकास मिलता होगा,यही बात भोजन और इन्जीनियरिंग वाले मामलों में जानी जाती है। माता कामाख्या के और ऊपर भुवनेश्वरी माता का मन्दिर है,उस मंदिर का निर्माण भी इसी तरीके से किया जाता है लेकिन यह प्रकृति की कल्पना ही कही जाये कि जितनी भीड इस कामाख्या के मंदिर में होती है उतनी भुवनेश्वरी माता के मन्दिर में नही होती है। जो व्यक्ति अपनी कामना की सिद्धि के लिये आता है वह केवल कामाख्या को ही जानता है लेकिन जो कामनाओं की सिद्धि से भी ऊपर चला गया है वह ही भुवनेश्वरी माता के दर्शन और परसन कर पाता है। यही बात मैने खुद देखी जहां कामाख्या में पुजारी धन की मांग करते है वहीं मैने अपने आप पूजा करने के बाद भुवनेश्वरी माता के मंदिर में पुजारी को दक्षिणा देनी चाही तो उस पुजारी ने यह कह कर मना कर दिया कि "जब मैनें आपकी कोई पूजा ही नही की है तो मै दक्षिणा लेने का अधिकारी नही होता",जब मैने अधिक हठ की तो उसने कोई तर्क नही करके अपने निवास के कपाट बंद कर लिये।

Thursday, March 11, 2010

महिलायें और तंत्र

ज्योतिष में पुरुष को हवा और स्त्री को धरती का रूप दिया गया है। पुरुष की प्रवृत्ति होती है कि वह किसी भी दिशा में गर्मी की तरफ़ बढ लेता है और स्त्री का कार्य किसी भी वस्तु को सहेज कर रख लेने का होता है। स्त्री के अन्दर सहेज कर रखने की प्रवृत्ति अक्सर पुरुषों को समय पर काम भी देती है और जो समझदार नही होते है वे स्त्री के द्वारा सहेज कर रखने वाली वस्तु को नकारते है या बिना समझे उसका दुरुपयोग करते है। सभी स्त्रियों की प्रकृति एक समान होती है,लेकिन जिस प्रकार से एक ही तरह की मिट्टी से कई तरह के मीठे खट्टे चरपरे नमकीन स्वाद अन्य वस्तुओं के सहयोग से निकाल लिये जाते है उसी प्रकार से स्त्री भी अपने स्वभाव से सभी तरह के विषय अपने पास जमा करने के बाद समय पर उन सभी का प्रभाव अपने परिवार को देने का काम करती है। धन की कामना भी स्त्री को इसीलिये अधिक होती है कि वह सभी तरह के विषयों को अपने पास इकट्ठा कर सके। वैसे स्त्री को प्रकृति के अनुसार सोलह जगह से बांधा गया है,और जो स्त्रियां अपने बंधनो से मुक्त है तो वे किसी भी दिशा में अपने विषयों की प्राप्ति के लिये गलत या सही जैसा भी मार्ग अपना सकती हैं। स्त्री का दिमाग कभी भी एक जैसा नही होता है,वह अपने दिमाग को लाखों तरीके से प्रयोग करने की कोशिश करती है। महिलायें किस प्रकार से अपने तंत्र को प्रयोग करती है जो उन्होने प्राचीन या किसी के द्वारा प्रयोग करने के लिये दिये गये तंत्रों से समाधान मिलता है।
स्वप्न तंत्र की प्रक्रिया
सबसे पहले इस तंत्र का बखान करना इसलिये मुख्य समझा है कि यह हर किसी महिला के साथ अक्सर देखा जाता है,सुबह की चाय का स्वाद अगर अधिक मीठा या चाय में शक्कर नही है तो पहिचान लेना चाहिये कि रात को श्रीमती के द्वारा स्वप्न देखा गया है और उसी स्वप्न की उधेड बुन में चाय का स्वाद अधिक मीठा या फ़ीका रह गया है। स्वप्न की बातों का सीधा असर महिलाओं में इसलिये और अधिक जाता है कि वे केवल अपने आसपास के माहौल से काफ़ी सशंकित रहती हैं। पडौसी के घर पर क्या हो रहा है,पडौसिन ने किस से क्या बात की है,पडौसी के घर पर कौन सा नया काम हुआ है,आदि बातें केवल महिलाओं के द्वारा जल्दी से जानी जा सकती है,यह केवल प्रकृति के द्वारा दिया गया एक तोहफ़ा ही माना जायेगा जिनके प्रति हम कभी जागरूक नही होते है वह बातें महिलाओं को जल्दी पता चल जाती है। पति के प्रति अगर उन्हे संदेह होता है तो वे फ़ौरन अपने स्वप्न का अर्थ पता नही किन किन बातों से लगाना शुरु कर देती है और जब स्वप्न में उन्हे कोई अप्रिय बात देखने को मिलती है तो वे किसी ना किसी बहाने से पूंछना शुरु कर देतीं है और अगर पति उन बातों का सही उत्तर देता है तो वे अक्सर समय पर आश्वस्त नही होती है,और इन्तजार भी करती है कि आखिर में यह बात उन्होने देखी क्यों? एक महिला ने स्वप्न में देखा कि उसकी मरी हुई सास उसके आभूषणों को अन्य किसी महिला को पहिना रही है,महिला ने सुबह से ही उन आभूषणों के बारे में सोचना चालू कर दिया,पति से कई सवाल किये गये कि लाकर में जो आभूषण रखे है वे सही सलामत तो है,उन्हे निकाल कर कहीं गिरवी आदि तो नही रखा गया है,अथवा आज चल कर अपने लाकर के आभूषण चैक करने है। पति को कोई जरूरी काम है और उसने ना नुकर की तो बस घर के अन्दर क्लेश चालू हो गया,आखिर में पति महोदय उन्हे लेकर लाकर में रखे आभूषणों को दिखाने के लिये गये,सभी आभूषणों को चैक किया गया तो हार गायब था। पत्नी को शक सबसे पहले अपने पति पर गया और उनसे पूंछा कि उसकी अनुपस्थिति में लाकर को खोला था,बैंक के मैनेजर से जानकारी मांगी कि कब कब लाकर खुला है,लेकिन पता लगा कि लाकर उसकी अनुपस्थिति में खोला ही नही गया है। बहुत सोचने के बाद कि आखिर हार लाकर से कहाँ गया। पति तो अपने कामों में व्यस्त हो गये लेकिन श्रीमती जी का खाना पीना सब हराम हो गया। वे तरह से तरह से सोचने लगीं कि आखिर में हार गया कहाँ ? आखिरी बार उसे पहिना था और पहिन कर फ़लां की शादी में गये थे,उसके बाद उसे पहिना था तो दूसरे दिन ही लाकर में रख कर आ गये थे। उस हार की चिन्ता में शहर के जाने माने ज्योतिषी जी के पास वे गयीं और उनसे पूंछा,ज्योतिषी जी ने अपनी ज्योतिष से बताया कि हार उन्ही की घर की महिला के पास है। लेकिन यह पता कैसे लगे कि महिला घर की कौन है? वे चिन्ता में घर आयीं,और पलंग पर पडकर सोचने लगीं। रात को पति काम से वापस आये,अनमने ढंग से भोजन आदि दिया गया,और फ़िर पति की खोपडी खाने का समय मिला था,अचानक पति को ध्यान आया कि एक बार उनकी भाभी ने कहीं जाने के लिये गहने मांगे थे,और वे वापस भी कर गयीं थी,लेकिन यह नही देखा था कि हार उन गहनों में है या नही। उन्होने अपनी भाभी से पूंछने के लिये फ़ोन उठाया और पूंछा,-"भाभी आपने जो गहने लिये थे,उस समय हार तो आपके पास नही रह गया था,आज जब लाकर चैक किया तो हार उसके अन्दर नही मिला है",भाभी ने सीधे से उत्तर दिया कि हार वे इसलिये वापस नही कर पायीं थी कि उनकी बडी वाली लडकी पहिन कर अपने ससुराल चली गयी थी और तब से अभी तक आयी नही है,उन्होने सोचा था कि आयेगी तभी जाकर दे आयेंगी। पूरा भेद खुल गया,कि हार जो उस महिला की सास दूसरी औरत को पहिना रही थी,वह बात सही थी,इससे उन श्रीमती का विश्वास स्वप्न के प्रति पक्का हो गया था। इस प्रकार से महिलायें अपने स्वप्नो का अर्थ  विभिन्न तरीकों से लगाया करती है,अक्सर उनके स्वप्नों का फ़ल भी सही ही निकलता है।
अंग फ़डकने का फ़ल
महिलाओं में रोजाना यही बात और की जाती है कि आज उनकी दाहिनी आंख फ़डक रही है,दाहिनी आंख महिलाओं की फ़डकने के से अक्सर खराब असर ही मिलते हैं। बेकार की आशंका से पीडित होने पर या घर में किसी के बीमार होने पर अथवा किसी नये किये जाने वाले काम के प्रति आशंकायें की जाती है,घर का कोई सदस्य बाहर होता है तो उसके बारे में अच्छे बुरे विचार किये जाते है,और जब कोई आसपास के लोगों में या परिवार में कोई दुर्घटना घट जाती है तो वह आंख भी फ़डकना बंद हो जाता है,और इस प्रकार से अंग फ़डकने की क्रिया को भी अक्सर महिलाओं में सत्य माना जाने लगता है।

Wednesday, March 10, 2010

तंत्र में अपरजिता

अपराजिता बंगाल या पानी वाले इलाकों में एक बेल की शक्ल में पायी जाती है,इसका पत्ता आगे से चौडा और पीछे से सिकुडा रहता है,इसके अन्दर आने वाले फ़ूल स्त्री की योनि की तरह से होते है,इसलिये इसे ’भगपुष्पी’और ’योनिपुष्पी’ का नाम दिया गया है। इसका उपयोग काली पूजा और नवदुर्गा पूजा में विशेषरूप में किया जाता है,तथा बंगाल में यह नीले और सफ़ेद दो रंगों मिलती है जहां काली का स्थान बनाया जाता है वहां पर इसकी बेल को जरूर लगाया जाता है। गर्मी के कुछ समय के अलावा हर समय इसकी बेल फ़ूलों से सुसज्जित रहती है। वेदों में इसके नाम ’विष्णुकान्ता" सफ़ेद फ़ूलों वाली बेल के लिये और ’कृष्णकान्ता’ नीले फ़ूलों वाली बेल को कहा जाता है,इस बेल के विभिन्न प्रयोग तंत्र-शास्त्रों में बताये गये है,जैसे किसी स्त्री को प्रसव में बहुत वेदना है तो इसकी बेल को प्रसविणी की कमर में लपेट दिया जाये तो बिना बेदना के आसानी से प्रसव हो जाता है। इसी का प्रयोग जहरीले डंस देने वाले कीटों और पतंगो के लिये भी किया जाता है,जैसे बर्र ततैया मधुमक्खी शरीर के किसी अंग में काट ले तो शरीर के दूसरी तरफ़ उसी अंग में अपराजिता के पत्ते डाल कर पानी से धोने पर कुछ ही देर में आराम हो जाता है,उसी प्रकार से अगर किसी को बिच्छू ने काट लिया हो तो इसके पत्ते काटे हुये स्थान से ऊपर से नीचे की तरफ़ रगडे जायें और जिस अंग में काटा है उसी तरफ़ के हाथ में अपराजिता के पत्ते दबा दिये जायें तो पांच से दस मिनट में पीडा समाप्त हो जाती है। भूत बाधा या शरीर में भारीपन आजाने के बाद अगर नीली वाली अपराजिता की जड को नीले रंग के कपडे में बांध कर रोगी के गले में बांध दिया जाये तो भूत बाधा या शरीर का भारीपन समाप्त हो जाता है।  जल्दी लाभ के लिये इसके पत्तों का रस निकाल कर उसे साफ़ करके नाक में डाला जाये तो भी फ़ायदा होता है,नीम के पत्तों के साथ इसके पत्ते जलाकर घर में धुंआ दिया जाये तो घर की बाधा से शांति आती है। इसका प्रयोग पुराने जमाने की दाइयां भी करती थी,वे नीली अपराजिता की जड को मासिक धर्म के बाद सन्तान हीन स्त्रियों को दूध में पीसकर एक तोला के आसपास पिलाती थीं और दो या तीन महिने पिलाने के बाद ही स्त्री गर्भ धारण कर लेती थी। सफ़ेद अपराजिता को पत्ती जड सहित बकरी के मूत्र में पीस कर और गोली बनाकर सुखाकर पुराने जमाने में पशुओं के गले में बांध दी जाती थी,जिससे मान्यता थी कि पशुओं को बीमारी नही होती थी और उन्हे कोई चुराता भी नही था। इसका प्रयोग वशीकरण में भी किया जाता है।

तंत्र के प्रति कौन कितना दोषी ?

तंत्र का उपयोग मानव कल्याण के लिये किया जाता है,लेकिन मानव ही मानव को तंत्र के तरीके से लूटे तो वह तंत्र कदापि भला नही हो सकता है,जैसे एक डाक्टर का काम मरीज को बचाकर उसकी जिन्दगी देना होता है,कारण उसे शरीर के तंत्र के बारे में सभी बातें ज्ञात होती है,लेकिन वही डाक्टर अगर अपनी विद्या का उल्टा प्रयोग करना चालू कर दे,और बजाय मरीज को बचाने के मरीज के अन्दर अपने धन का भंडार देखना चालू कर दे,अच्छे भले मरीज को जिसे केवल कुछ समय के लिये पेट का दर्द है और उसे अपनी जान पहिचान की लेब्रोटरी से कुछ टेस्ट करवा कर किडनी का मरीज घोषित कर दे,और किडनी को निकाल कर बेच दे तथा मरीज के रिस्तेदार की किडनी को निकाल कर मरीज के लगा दे,तो इसके अन्दर तंत्र दोषी नही माना जा सकता है,तंत्र को प्रयोग करने वाले दोषी माने जा सकते है।भौतिक तथा आजकी उठापटक के अन्दर अपने अन्दर हर व्यक्ति एक भावना पाल कर चल रहा है कि किस प्रकार से वह अधिक से अधिक धन को कमा सकने में समर्थ हो सकता है और उस कमाये हुये धन को मन चाहे तरीके से दूसरों को नीचा दिखाने केलिये प्रयोग करना चालू कर सकता है,उसे जो करना है वह उन बातों को पूरा करने के लिये मानसिक रूप से सोचा करता है कि कब उसकी चाहत वाली बातें पूरी हो सकती है। उन मानसिक बातों को पूरा करने केलिये वह तरह तरह की बातें करना तरह तरह के प्रयोग करना और तरह तरह के साधन बनाकर इन्सान के दिमाग को इन्सान की बुराइयों और इन्सान को ही खत्म करने वाली वस्तुओं को पैदा करना आदि यह सब एक जानवर से अधिक कुछ नही हो सकता है जैसे एक कुत्ते के सामने कोई मांस का टुकडा डाल दिया तो वह अन्य कुत्तों को पास नही फ़टकने देना चाहता है वह चाहता है कि कोई उसके मांस के टुकडे को कोई ले नही जाये।
शिक्षा का अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ विकास होता है,वह शिक्षा चाहे शरीर की हो,धन की हो,व्यक्ति या समाज की हो या फ़िर राजनीति की हो,या फ़िर तकनीक से सम्बन्ध रखती हो,शिक्षा का मूल उद्देश्य विकास ही होता है,अगर शिक्षा से विकास का रास्ता खुलता है तो बेकार का दिमाग जिसके अन्दर कचडा बचपन से भरा होता है उसके समाज और परिवार में जो शुरु से होता रहा है उसके प्रति वह जो शिक्षा को प्राप्त करने वाला है तो उसका दुरुपयोग करने की सोचता है। बहुत ही मुश्किल और कई दसक लगातार काम करने के बाद पहले गणना के यन्त्र बनाये गये फ़िर कम्पयूटर का निर्माण हुआ,यह केवल इसलिये हुआ कि आदमी जल्दी से काम करना सीखे,उसे जो एक साल मे काम करना है उसे वह एक दिन में कर ले,बडी बडी फ़ाइलों को सम्भालने के लिये बडे बडे स्टोर और उनकी देखभाल रख रखाव और प्राकृतिक आपदा के कारण खराब होने से बचाया जा सके,लेकिन उसी जगह कचडा रखने वाले दिमागी लोगों ने पूरा सिस्टम खराब करने के लिये वाइरस का निर्माण ही कर डाला जो दस साल मेहनत की गयी उसे एक सेकेण्ड में बरबाद करने लग गया। शिक्षा का मतलब यह नही होता कि व्यक्ति अपने नैतिक मूल्यों से ही गिर जाये,और प्राचीन महाऋषियों और ज्ञानियों को ही गालियां देने लगे,वह भूल जाये कि जिस विद्या को समझदार समाज खोज रहा है उसे लेने के लिये मारा मारा घूम रहा है,वह सर्वप्रथम हमारे भारत में ही प्राप्त हुयी थी। और उसी शिक्षा की बदौलत हमारा नाम विश्व के कौने में प्रसिद्ध है। जिन्हे हम गंवार जाहिल और बेवकूफ़ की संज्ञा देते है उनके परिवार आज भी सही सलामत और बंधे हुये चल रहे है लेकिन जो आज अलग थलग है और अपनी ही सभ्यता को भूल कर घूम रहे है उन्हे जवानी में तो भोग मिल सकते है लेकिन बुढापे के लिये उन्हे वृद्धाश्रम की ही खोज करनी पडती है।
कौन है तंत्र को बदनाम करने वाला
कहा जाता है कि जब लोमडी को अंगूर नही मिले तो वह कहने लगी कि खट्टे अंगूर है,वही हाल मध्यम परिवारों का है,पुराने जमाने की शिक्षा की बदौलत उनके परिवार कुछ अमीर बन गये,उनकी शिक्षा को जब पूरा किया गया तो वे अपने को शहंशाह समझने लगे और खुद के ही बाप को जब गाली दी जा सकती है,पूर्वजों की बात ही कौन कहे,जब घर के अन्दर आते ही अपने घर वालों की बात का उल्टा जबाब दिया जाये,घर के बडे बूढों के अन्दर जनरेशन गेप बता कर उन्हे बातचीत से दूर किया जाये,एक कोने में कुछ साधन देकर लिटा दिया जाये,पत्नी को काम और बच्चों से फ़ुर्सत नही हो,घर का बुजुर्ग अपने हाल में पडा पडा कराहता रहता हो,और वे ही अगर तंत्र को बेकार बतायें तो वह किस मायने में सही कहा जा सकता है। 

Monday, March 8, 2010

तंत्र प्रयोग

आज जबकि तंत्र या तांत्रिक को पढे लिखे लोग धोखा,पाखण्ड तथा अन्धविश्वास कहते है तो तन्त्र प्रयोग लिखने का औचित्य क्या है? आप किसी भी चीज को दिखाना चाहते है या उसे समझाना चाहते है,यति वह व्यक्ति उस विषय की गहराई या उस चीज की विशेषता को नहीं  जानता इसलिये वह आपका आपकी चीज का तथा आपकी बात का मजाक उडाता है,व्यंग बाण छोडता है तथा अन्धविश्वास कहता है,यही स्थिति पढे लिखे लोगों की हो गयी है,वे अपने अपने विषय के अलावा और कुछ समझने की कोशिश ही नही करते है,उन्हे यह भी पता नही होता है कि वे जब अपनी माँ के पेट में आये होते है उस समय भी दाई ने या डाक्टर ने कोई तंत्र ही किया होता है,अगर दाई या डाक्टर नही होगा तो घर की किसी बढी बूढी महिला के द्वारा तंत्र बताया गया होगा कि इस प्रकार से इतने दिन के पीरियड के समय में बच्चा गर्भ मे आ सकता है,और इतने दिन के पीरियेड के बाद कन्या गर्भ में आ सकती है,इतने दिन के पहले या इतने दिन के बाद गर्भ धारण किया तो बच्चा या तो गर्भपात से गिर जायेगा या पैदा होते ही मर जायेगा,जो लोग तंत्र को नही जानते है वे या तो बच्चों के लिये जीवन भर पछताते रहते है या फ़िर किसी का बच्चा गोद लेकर अपना काम चलाते है,इसके लिये भी अस्पतालों एक फ़र्टिलिटी सेंटर खुल गये है वे आसानी से किसी के वीर्य को किसी के गर्भ में स्थापित कर देते है और एक की जगह दो दो बच्चे जुडवां तक दे देते है। यह सब तंत्र नही है तो क्या है,डाक्टर को दवाई और शरीर विज्ञान का तंत्र आता है उसे आता है कि किस स्थान की कमी है और उस कमी को पूरा करने के लिये कौन सी नश को काट कर या नकली नश को लगाकर काम चलाया जा सकता है,आजकल तो तंत्र के बलबूते पर डाक्टर नकली वाल्व लगाकर दस बारह साल के लिये ह्रदय को चालू कर देते है।
जिस पश्चिमी सभ्यता के पीछे आज के भारतीय लोग दौडे चले जा रहे है,उन लोगों को पता नही था कि भारत में हनुमान जी की पूजा आदि काल से की जाती रही है,वे जब भारत में घूमने के लिये आते तो वे भारत में मंगलवार के दिन हनुमान जी के मंदिर में जाकर लोगों को चिढाया करते थे,Oh ! here is monkey Go? क्या बात है यहां तो बन्दर भी भगवान हैं। जब उन्होने ही मंगल पर वाइकिंग भेजा और जब पहली मंगल की तस्वीर वाइकिंग ने भेजी तो उन्हे यह देखकर महान आश्चर्य हुआ कि जो तस्वीर बंदर के रूप में भारत में पूजी जाती है वह कोई बन्दर की तस्वीर नही होकर "Face of Mars" मंगल का चेहरा है।हमारे यहाँ हनुमान जी की पूजा का महत्व मंगलवार के दिन ही माना जाता है,और मंगल ग्रह की शांति के लिये ही हनुमानजी की पूजा की जाती है
और जब भी कोई बाधा आती है तो एक ही दोहा उनकी आराधना के लिये मसहूर माना जाता है,-"लाल देह लाली लसे,और धरि लाललंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि शूर",आज जब वैज्ञानिक इस तस्वीर को पा गये है तो उनको आश्चर्य होने लगा है कि यह चेहरा भारत में कैसे पूजा जाने लगा,भारत के लोगों को कैसे पता लगा कि मंगल का चेहरा बन्दर जैसा है,वे बिना किसी यान या विमान के वहाँ कैसे पहुंच गये,जब लोगों को पता लगा कि भारतीयों के पास तांत्रिक विद्या है और उस विद्या से वे किसी भी ग्रह की परिक्रमा आराम से कर लेते है और किसी भी विषय को तंत्र द्वारा आराम समझ सकते है तो उन्हे भारी ग्लानि हुयी,सन दो हजार में मिली फ़ेस आफ़ मार्स की फ़ोटो उन्होने दो हजार दो में इसलिये ही प्रकाशित की थी कि कहीं पूरे विश्व में ही हनुमान जी की आराधना शुरु न हो जाये और जिन लोगों की वे खिल्ली उडाया करते थे वे ही अब उनकी खिल्ली नही उडाने लगें। भारत के अन्दर जो भी संस्कृत और हिन्दी के अक्षर है उनकी कलात्मक रचना ही देवी और देवता का रूप माना गया है,छोटा "अ" अगर सजा दिया जाये तो वह धनुष बाण लेकर खडे हुये व्यक्ति का रूप बन जाता है,शनि जी का रंग काला है और शनि के मंत्र के जाप के समय "शं" बीज का उच्चारण करते है,अगर शं के रूप को सजा दिया जाये तो वह सीधा श्रीकृष्ण भगवान का रूप बन जाता है। इसी प्रकार से "शिव" शब्द को सजाने से भगवान शंकर का रूप बनता है,विष्णु शब्द को सजाने पर वह भगवान विष्णु का रूप बनता है,""क्रीं" शब्द को सजाने पर शेर पर सवार माता दुर्गा का रूप बनता है,आदि रूप आप खुद परख सकते है। जब उन्हे भारत की तंत्र क्रिया पर विश्वास हो गया तो उन्होने भारत से हिन्दी भाषा को ही भारत से गायब करवाने की सोची न रहेगा बांस और न ही बजेगी बांसुरी।