Sunday, October 31, 2010

रहस्य स्वप्न का

  • भाई साहब खाना खाने के लिये बैठे है सामने खाना है,लेकिन पता नही क्यों अचानक वे पीछे हटते है,और उनका चेहरा एक दम काला होता जा रहा है,उनके सीधी तरफ़ एक अंधेरा सा कमरा है और वे कह रहे है इस कमरे से निकल कर कोई सवार हो गया है,भाई साहब का मुंह सूखता चला जाता है,और उनकी जीभ भी बाहर की तरफ़ निकलती चली जाती है,मैं बहुत जोर लगाकर मोनू और मोनू की मम्मी को आवाज देता हूँ कि कोई जल्दी से पानी लाओ,कोई पानी लेकर नही आ रहा है,मैं दौड कर मकान के नीचे के हिस्से से पानी लेने के लिये भागता हूँ ,ध्यान से सीढियां चूक जाता हूँ और स्लिप होकर नीचे गिर पडता हूँ,मुझे कई लोगों की आवाज सुनाई देती है,लोग आकर मुझे उठा रहे है,और देखता हूँ कि किसी सफ़ेद बिस्तर पर पडा हूँ डाक्टर और नर्स काम कर रहे है,शायद अस्पताल ही है।
  • मुझे अचानक ध्यान आता है भाई साहब को पानी नही मिला है,मैं अस्पताल से भागता हूँ,रास्ते में बाजार मिलता है,मुझे मेरे पुराने मकान मालिक दिखाई देते है वे शर्बत की दुकान लगाकर बैठे है,उनके आगे कोई सब्जी बेच रहा है,उससे  मैं पालक नीबू और मिर्ची खरीदता हूँ,वह सभी सामान मेरे हाथ में ही दे देता है,मैं वहाँ से जल्दी से भागता हूँ केवल एक विचार दिमाग में चल रहा है,भाई साहब को प्यास लगी होगी,उनका हाल कैसा होगा।
  • यह ध्यान भी आता है कि उन्होने दो दिन से खाना नही खाया है,और जब वे खाना खाने बैठे तो न जाने उनके घर में कौन सी बाधा है जो उनके ऊपर सवार हो गयी है,अचानक मुझे एक रोटी की दुकान दिखाई दे रही है,उस पर एक औरत बैठी रोटी पका रही है,मैं उससे कहता हूँ कि वह मुझे चार रोटी देदे,इससे मै अपने भाई को खाना तो खिला दूँ,वह औरत मुझे रोटी नही देती है और कहती है यह चार रोटी का आटा ले जाओ और घर पर गर्म पकाकर दे देना। मैं उससे आटा लेकर और उसे दस रुपया देकर भागने लगता हूँ,देखता हूँ भाई साहब का मकान पहिचान में नही आ रहा है,मैं गली में भटकने लगता हूँ कोई बताने को तैयार नही है कि वे कहाँ रहते है।
  • मै किसी गलत गली में घुस जाता हूँ वहां पर पीले और लाल मिक्स कलर के मकान बने है और वहां पर काले काले आदमी घूम रहे है,वे पीछे की गली में जाने के लिये इशारा कर रहे है लेकिन वे क्या बोल रहे है,उनकी भाषा कुछ भी समझ में नही आ रही है,नाक में केवल चमेली की सुगंध आ रही है.
  • मैं उनकी बताई गली में जाता हूँ वहां भाई साहब का मकान दिखाई दे जाता है,और मैं सीधा मकान की सीढियां चढता हुआ छत पर ही चला जाता हूँ,वहां देखता हूँ भाई साहब छत की मुंडेर पर बैठे है,नीचे बहुत दूर लोग छोटे छोटे दिखाई दे रहे है,उनके बगल में मेरी स्वर्गीय छोटी भतीजी बैठी है,वह मुझे देखकर हँस रही है,मेरे हाथ में सामान देखकर कहती है,अंकल आज रोटी बनाकर आपको ही खिलानी पडेगी,मम्मी को तो फ़ुर्सत नही है,लेकिन क्या मजा होता कि चाची रोटी बनाती,छोटी चाची सब्जी बनाती,गुडिया परोसती,हम आप सब और दादा दादी मिलकर खाना खाते,भैया ने अपना घर हवाई जहाज के ऊपर बनाया है,दीदी ने अपना घर काले सफ़ेद रंग का बनाया है,दीदी के घर पर भी बहुत सारे प्लास्टिक के खिलौने है,लेकिन आपके घर पर जो खिलौने है वे बोलने वाले है,उनके खिलौने फ़ूलते पिचकते तो है लेकिन बोलते नही है.
  • मैं उसकी बातों को सुनता हूँ लेकिन मैं जैसे ही कुछ कहने के लिये प्रयास करता हूँ भाई साहब अपने मुंह में उंगली लगाकर इशारा करते है कि बोलना नही,इसे बोल लेने दो यह बहुत दिनो बाद बोली है,फ़िर वह कहती है कि पापा तुम्हारा चेहरा काला क्यों हो गया है,मैं उससे बताने के लिये फ़िर कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन फ़िर से भाई साहब इशारे से मुझे चुप करा देते है,वे एक तार की तरफ़ इशारा करते है वह तार हरे रंग का है और मुंडेर से नीचे की तरफ़ लटकता हुआ बहुत दूर तक चला गया है।
  • वह कहती जाती है,पता नही क्या क्या कहती है,लेकिन हर बात में कहती है,सब नन्नू की करामात है,मजे आ गये नन्नू की करतूत पर मै भाई साहब से पूंछने की कोशिश करता हूँ लेकिन वे फ़िर से मुझे चुप रहने का इशारा कर देते है.
  • एक व्यक्ति की आवाज जोर जोर से चिल्लाने की आ रही है,साथ में भाभी जी की भी आवाज आ रही है,वह कह रहा है कि मैं जनता को पानी पिलाता हूँ अपने बच्चों का पेट काटकर खर्च करता हूँ आप जो मुझसे इतने से काम के पैसे ले रही है वह आपके लिये भला नही करने वाले है यह पैसे आपकी जिन्दगी में कोहराम मचा देंगे,भाई साहब ध्यान से सुन रहे है लेकिन कुछ भी नही बोल रहे है,आवाजें धीमी होती जाती है,गाडियों का शोर सुनाई दे रहा है,लेकिन गाडी कोई दिखाई नही दे रही है।
  • अचानक मेरी भतीजी भाई साहब के गले की तरफ़ हाथ बढाती है और उन्हे धक्का देने के लिये खडी होती है,कहती जाती है दीदी के खिलौने की तरह आपको भी पिचका देती हूँ,इतने में ही भाई साहब का रूप अचानक बदल जाता है,वे मुझसे कहते है कि यह वही है जो मेरे ऊपर उस अन्धेरे कमरे से सवार हो गयी थी,अचानक मुझे भी ख्याल आता है कि यह भतीजी तो गुजर चुकी है,वह धीरे धीरे विलीन होती जाती है,और गायब हो जाती है,भाई साहब को मैं कहता हूँ कि यह सामान जो मैं लाया हूँ चलो आपको खाना बनाकर खिला देता हूँ,भाई साहब माथे पर हाथ लगाकर कहते है,क्या फ़ायदा है जो खाने वाला था वही चला गया अब मुझे खिलाने से क्या फ़ायदा,मैं उनके चेहरे की तरफ़ देखता हूँ,वे एक छोटे बच्चे की तस्वीर को हाथ में लेकर घूर रहे है,वह बच्चा मैं नही पहिचान रहा हूँ,मैने उनसे उस बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुये कहा कि यह किसका है,वे उस फ़ोटो को जेब में रखते हुये कह रहे है इससे तुम्हे कोई मतलब नही रखना चाहिये,पिताजी की यह सब करतूत है,वे अगर मेरे साथ धोखा नही करते तो मेरी यह हालत नही होती,एन वक्त पर वे अपनी बात से मुकर गये थे,और मेरी जिन्दगी में तबाही आ गयी थी.
(यह स्वप्न दिनांक 20th April 2006 को देखा था,एक डायरी में लिख कर रख लिया था,आटा सब्जी रस की दुकान अस्पताल चेहरे का काला होना ऊंची मुंडेर पर बैठना काले काले लोगों का दिखाई देना भाषा को नही पहिचानना आदि बातें पितृ तर्पण की तरफ़ जाती है,इस तर्पण वाले काम को मैने दिनांक 27th September 2010 में चार साल बाद कर दिया)

चौसठ योगिनी और उनका जीवन में योगदान

स्त्री पुरुष की सहभागिनी है,पुरुष का जन्म सकारात्मकता के लिये और स्त्री का जन्म नकारात्मकता को प्रकट करने के लिये किया जाता है। स्त्री का रूप धरती के समान है और पुरुष का रूप उस धरती पर फ़सल पैदा करने वाले किसान के समान है। स्त्रियों की शक्ति को विश्लेषण करने के लिये चौसठ योगिनी की प्रकृति को समझना जरूरी है। पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है और स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है। योगिनी की पूजा का कारण शक्ति की समस्त भावनाओं को मानसिक धारणा में समाहित करना और उनका विभिन्न अवसरों पर प्रकट करना और प्रयोग करना माना जाता है,बिना शक्ति को समझे और बिना शक्ति की उपासना किये यानी उसके प्रयोग को करने के बाद मिलने वाले फ़लों को बिना समझे शक्ति को केवल एक ही शक्ति समझना निराट दुर्बुद्धि ही मानी जायेगी,और यह काम उसी प्रकार से समझा जायेगा,जैसे एक ही विद्या का सभी कारणों में प्रयोग करना।
  1. दिव्ययोग की दिव्ययोगिनी :- योग शब्द से बनी योगिनी का मूल्य शक्ति के रूप में समय के लिये प्रतिपादित है,एक दिन और एक रात में 1440 मिनट होते है,और एक योग की योगिनी का समय 22.5 मिनट का होता है,सूर्योदय से 22.5 मिनट तक इस योग की योगिनी का रूप प्रकट होता है,यह जीवन में जन्म के समय,साल के शुरु के दिन में महिने शुरु के दिन में और दिन के शुरु में माना जाता है,इस योग की योगिनी का रूप दिव्य योग की दिव्य योगिनी के रूप में जाना जाता है,इस योगिनी के समय में जो भी समय उत्पन्न होता है वह समय सम्पूर्ण जीवन,वर्ष महिना और दिन के लिये प्रकट रूप से अपनी योग्यता को प्रकट करता है। उदयति मिहिरो विदलित तिमिरो नामक कथन के अनुसार इस योग में उत्पन्न व्यक्ति समय वस्तु नकारात्मकता को समाप्त करने के लिये योगकारक माने जाते है,इस योग में अगर किसी का जन्म होता है तो वह चाहे कितने ही गरीब परिवार में जन्म ले लेकिन अपनी योग्यता और इस योगिनी की शक्ति से अपने बाहुबल से गरीबी को अमीरी में पैदा कर देता है,इस योगिनी के समय काल के लिये कोई भी समय अकाट्य होता है।
  2. महायोग की महायोगिनी :- यह योगिनी रूपी शक्ति का रूप अपनी शक्ति से महानता के लिये माना जाता है,अगर कोई व्यक्ति इस महायोगिनी के सानिध्य में जन्म लेता है,और इस योग में जन्मी शक्ति का साथ लेकर चलता है तो वह अपने को महान बनाने के लिये उत्तम माना जाता है।
  3. सिद्ध योग की सिद्धयोगिनी:- इस योग में उत्पन्न वस्तु और व्यक्ति का साथ लेने से सिद्ध योगिनी नामक शक्ति का साथ हो जाता है,और कार्य शिक्षा और वस्तु या व्यक्ति के विश्लेषण करने के लिये उत्तम माना जाता है।
  4. महेश्वर की माहेश्वरी महाईश्वर के रूप में जन्म होता है विद्या और साधनाओं में स्थान मिलता है.
  5. पिशाच की पिशाचिनी बहता हुआ खून देखकर खुश होना और खून बहाने में रत रहना.
  6. डंक की डांकिनी बात में कार्य में व्यवहार में चुभने वाली स्थिति पैदा करना.
  7. कालधूम की कालरात्रि भ्रम की स्थिति में और अधिक भ्रम पैदा करना.
  8. निशाचर की निशाचरी रात के समय विचरण करने और कार्य करने की शक्ति देना छुपकर कार्य करना.
  9. कंकाल की कंकाली शरीर से उग्र रहना और हमेशा गुस्से से रहना,न खुद सही रहना और न रहने देना.
  10. रौद्र की रौद्री मारपीट और उत्पात करने की शक्ति समाहित करना अपने अहम को जिन्दा रखना.
  11. हुँकार की हुँकारिनी बात को अभिमान से पूर्ण रखना,अपनी उपस्थिति का आवाज से बोध करवाना.
  12. ऊर्ध्वकेश की ऊर्ध्वकेशिनी खडे बाल और चालाकी के काम करना.
  13. विरूपक्ष की विरूपक्षिनी आसपास के व्यवहार को बिगाडने में दक्ष होना.
  14. शुष्कांग की शुष्कांगिनी सूखे अंगों से युक्त मरियल जैसा रूप लेकर दया का पात्र बनना.
  15. नरभोजी की नरभोजिनी मनसा वाचा कर्मणा जिससे जुडना उसे सभी तरह चूसते रहना.
  16. फ़टकार की फ़टकारिणी बात बात में उत्तेजना में आना और आदेश देने में दुरुस्त होना.
  17. वीरभद्र की वीरभद्रिनी सहायता के कामों में आगे रहना और दूसरे की सहायता के लिये तत्पर रहना.
  18. धूम्राक्ष की धूम्राक्षिणी हमेशा अपनी औकात को छुपाना और जान पहिचान वालों के लिये मुशीबत बनना.
  19. कलह की कलहप्रिय सुबह से शाम तक किसी न किसी बात पर क्लेश करते रहना.
  20. रक्ताक्ष की रक्ताक्षिणी केवल खून खराबे पर विश्वास रखना.
  21. राक्षस की राक्षसी अमानवीय कार्यों को करते रहना और दया धर्म रीति नीति का भाव नही रखना.
  22. घोर की घोरणी गन्दे माहौल में रहना और दैनिक क्रियाओं से दूर रहना.
  23. विश्वरूप की विश्वरूपिणी अपनी पहिचान को अपनी कला कौशल से संसार में फ़ैलाते रहना.
  24. भयंकर की भयंकरी अपनी उपस्थिति को भयावह रूप में प्रस्तुत करना और डराने में कुशल होना.
  25. कामक्ष की कामाक्षी हमेशा संभोग की इच्छा रखना और मर्यादा का ख्याल नही रखना.
  26. उग्रचामुण्ड की उग्रचामुण्डी शांति में अशांति को फ़ैलाना और एक दूसरे को लडाकर दूर से मजे लेना.
  27. भीषण की भीषणी. किसी भी भयानक कार्य को करने लग जाना और बहादुरी का परिचय देना.
  28. त्रिपुरान्तक की त्रिपुरान्तकी भूत प्रेत वाली विद्याओं में निपुण होना और इन्ही कारको में व्यस्त रहना.
  29. वीरकुमार की वीरकुमारी निडर होकर अपने कार्यों को करना मान मर्यादा के लिये जीवन जीना.
  30. चण्ड की चण्डी चालाकी से अपने कार्य करना और स्वार्थ की पूर्ति के लिये कोई भी बुरा कर जाना.
  31. वाराह की वाराही पूरे परिवार के सभी कार्यों को करना संसार हित में जीवन बिताना.
  32. मुण्ड की मुण्डधारिणी जनशक्ति पर विश्वास रखना और संतान पैदा करने में अग्रणी रहना.
  33. भैरव की भैरवी तामसी भोजन में अपने मन को लगाना और सहायता करने के लिये तत्पर रहना.
  34. हस्त की हस्तिनी हमेशा भारी कार्य करना और शरीर को पनपाते रहना.
  35. क्रोध की क्रोधदुर्मुख्ययी क्रोध करने में आगे रहना लेकिन किसी का बुरा नही करना.
  36. प्रेतवाहन की प्रेतवाहिनी जन्म से लेकर बुराइयों को लेकर चलना और पीछे से कुछ नही कहना.
  37. खटवांग खटवांगदीर्घलम्बोष्ठयी जन्म से ही विकृत रूप में जन्म लेना और संतान को इसी प्रकार से जन्म देना.
  38. मलित की मालती
  39. मन्त्रयोगी की मन्त्रयोगिनी
  40. अस्थि की अस्थिरूपिणी
  41. चक्र की चक्रिणी
  42. ग्राह की ग्राहिणी
  43. भुवनेश्वर की भुवनेश्वरी
  44. कण्टक की कण्टिकिनी
  45. कारक की कारकी
  46. शुभ्र की शुभ्रणी
  47. कर्म की क्रिया
  48. दूत की दूती
  49. कराल की कराली
  50. शंख की शंखिनी
  51. पद्म की पद्मिनी
  52. क्षीर की क्षीरिणी
  53. असन्ध असिन्धनी
  54. प्रहर की प्रहारिणी
  55. लक्ष की लक्ष्मी
  56. काम की कामिनी
  57. लोल की लोलिनी
  58. काक की काकद्रिष्टि
  59. अधोमुख की अधोमुखी
  60. धूर्जट की धूर्जटी
  61. मलिन की मालिनी
  62. घोर की घोरिणी
  63. कपाल की कपाली
  64. विष की विषभोजिनी

दीपावली पूजा में दस दिक्पाल

दीपावली की पूजा में दस दिक्पालों की पूजा बहुत ही जरूरी मानी जाती है। जैसे बिना खेत की बाड के खेत की फ़सल को सुरक्षित नही रखा जा सकता है वैसे ही बिना दिक्पाल की पूजा के व्यवसाय घर और शरीर की सुरक्षा भी नही की जा सकती है। जो लोग सीधे से दीपावली पूजन के बाद लक्ष्मी को प्राप्त करने की धारणा करते है उनका हाल बाद में वही होता है कि उगी हुयी फ़सल को बिना किसी रखवाले के कोई भी बरबाद कर जाये। दस दिक्पालों का अर्थ होता है दसों दिशाओं के देवताओं की पूजा। वैसे चार दिशायें मुख्य रूप से मानी जाती है,पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर,लेकिन इन चार के बीच के कोणों के नाम भी माने जाते है यथा ईशान आग्नि नैऋत्य और वायव्य जैसे अपने चारों तरफ़ आठ दिशायें है उसी प्रकार से ऊपर और नीचे को भी दिशाओं के लिये मान्यता दी गयी है। दीपावली पूजन करने से पहले दशों दिक्पालों की पूजा करना अनिवार्य माना जाता है,इस भेद को शायद ही कहीं प्रकट किया गया है ।

पूजा स्थान में साफ़ सफ़ाई और मनपसंद रंग रोगन करने के बाद सभी प्रयोग में ली जाने वाली वस्तुओं को यथा स्थान रखने के बाद तथा नकारात्मक प्रभाव पैदा करने वाले कारकों कचडा और बेकार की टूटी फ़ूटी वस्तुओं को निवास या व्यवसाय स्थान से दूर करने के बाद दस दिक्पाल की स्थापना की जाती है,विधि और नियम शास्त्रानुसार इस प्रकार से है:-

पूर्व में इन्द्र का आवाहन और स्थापन
पूर्व दिशा में स्थान को शुद्ध करने के बाद पीले चावल हाथ किसी दोने या किसी साफ़ बर्तम में रखकर केवल स्थान में छिडकते है और चावल को छिडकते समय यह मन्त्र उच्चारित करते है:-
ऊँ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रँ हवे हवे सुहँ शूरमिन्द्रम। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रँ स्वस्ति नो मधवा धात्विन्द्र:॥
इन्द्रम सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम,आवाहवे यज्ञसिद्धयै शतयज्ञाधिपं प्रभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: इन्द्र ! इहागच्छ,इह तिष्ठ इन्द्राय नम: स्वाहा,इन्द्रमावाहयामि,स्थापयामि॥
इस मन्त्र से मानसिक रूप से पूर्व दिशा में इन्द्र का स्थापन किया जाता है,और इन्द्र के नाम से ही इन्द्र की शक्तियों का आभास होना स्वाभाविक है।
अग्नि दिशा में अग्नि का आवाहन और स्थापन
पूर्व और दक्षिण के बीच में जो स्थान होता है वह अग्नि की दिशा मानी जाती है। अग्नि का स्थान इसी दिशा में माना जाता है इसलिये ही घरों के अन्दर रसोई का और व्यापारिक स्थान में बिजली आदि की स्थापना इसी स्थान में की जाती है,इस स्थान में अग्नि के स्थापन के बाद ऊर्जा से सम्बन्धित कारक सुलभता से मिलते रहते है और शक्ति की कमी नही रहती है। सिन्दूर में चावलों को रंग कर इस स्थान में चावलो को इस मंत्र के पढते हुये छिडकना चाहिये:-
ऊँ अग्निं दूतं पुरो धधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ देवाँ आ साद्यादिह॥ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकाम। षण्नेत्रम च चतु:श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अग्ने ! इहागच्छ इह तिष्ठ अग्नये नम:,अग्निमावाहयामि,स्थापयामि॥
.दक्षिण दिशा में यम का आवाहन और स्थापना
ऊँ यमाय त्वाऽगिंरस्वते पितृमते स्वाहा ! स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्म: पित्रे॥
महामहिषमारूढं दण्डहस्तं महाबलम। यज्ञसंरक्षणार्थाय यममावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: यम ! इहागच्छ,इह तिष्ठ यमाय नम:,यममावाहयामि,स्थापयामि॥
नैऋत्य दिशा में निऋति का आवाहन और स्थापन
ऊँ असुन्वन्तमयजमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य। अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निऋते तुभ्यमस्तु॥
सर्व प्रेताधिपं देवं निऋतिं नील विग्रहम। आवाहये यज्ञसिद्धयै नरारूढं वरप्रदम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: निऋते ! इहागच्छ इह तिष्ठ निऋते नम:,निऋतिमावाहयामि,स्थापयामि॥
पश्चिम दिशा में वरुण का आवाहन और स्थापन
ऊँ तत्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशँ स मा न आयु: प्रमोषी:॥
शुद्ध स्फ़टिक संकाशं जलेशं यादसां पतिम। आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वरुण ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वरुणाय नम:,वरुणामावाहयामि स्थापयामि॥
वायव्य दिशा में वायु का आवाहन और स्थापन
ऊँ आ नो नियुद्भि: शतनीभिरध्वरँ सहस्त्रिणीभिरूप याहि यज्ञम। वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तभि: सदा न:॥
मनोजवं महातेजं सर्वतश्चारिणं शुभम। यज्ञसंरक्षणार्थाय वायुमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वायो ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वायवे नम:,वायुमावाहयामि,स्थापयामि॥
उत्तर दिशा में कुबेर का आवाहन और स्थापन
ऊँ कुविदंग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय। इहेहैषां कृणुहि भोजनानिये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति॥
उपयामगृहीतोऽस्यशिवभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण॥
एष ते योन्स्तेजसे त्वा वीर्याय त्वा बलाय त्वा॥
आवाहयामि देवेशं धनदं यक्ष पूजितम। महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: कुबेर ! इहागच्छ,इह तिष्ठ कुबेराय नम:,कुबेरमावाहयामि,स्थापयामि॥
ईशान दिशा में ईशान का आवाहन और स्थापन
ऊँ तमीशानं जगत स्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम।पूषा नो यथा वेदसामदद वृधे रक्षिता पायुरदब्ध: स्वस्तये॥
सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम। आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: ईशान ! इहागच्छ,इह तिष्ठ,ईशानाय नम:,ईशानमावाहयामि,स्थापयामि॥
ऊर्ध्व दिशा (ईशान और पूर्व के मध्य) में ब्रह्मा का आवाहन और स्थापन
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुर्तस्ताद्भि: सीमत: सुरुचो वेन आव:। स बुन्ध्या उपमा अस्य विष्ठा: सतश्च वि व:॥
पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम। आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञ संसिद्धिहेतवे॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: ब्रह्मन ! इहागच्छ,इहतिष्ठ ब्रह्मणे नम:,ब्रह्माणमावाहयामि,स्थापयामि।
अघदिशा (नैऋत्य पश्चिम के मध्य) अनन्त का आवाहन और स्थापन
ऊँ स्योना पृथवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा न: शर्म सप्रथा:।
अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरूपिणम। जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अनन्त ! इहागच्छ,इह तिष्ठ अनन्ताय नम:,अनन्तमावाहयामि स्थापयामि॥

इस प्रकार से दक्षिण दिशा के अलावा अन्य सभी स्थानों पर पीले चावलों को छिडकते हुये उपरोक्त मंत्रो का उच्चारण करते हुये मानसिक रूप से सभी दिकपालों को स्थापित करने के बाद व्यवसाय या घर में अन्य पूजा पाठ को शुरु करना ठीक रहता है। इसके बाद जो भी कार्य किया जाता है,उपरोक्त दिक्पाल अपनी अपनी अद्रश्य शक्ति से व्यवसाय और घर के कारकों को भलीभांति सुरक्षा करने के लिये अपना बल प्रदान करते रहते है।
इस पूजा के बाद -"ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम: स्वाहा" मंत्र का जाप दशों दिशाओं में फ़िर से करे,जिससे इनकी स्थापना हमेशा के लिये बनी रहे,मानसिक रूप से इन दिक्पालों से प्रीति के लिये "अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पाला: प्रीयन्ताम,न मम" मंत्र का जाप करना चाहिये,जिससे किसी भी दिक्पाल के कमजोर होने से अन्य दिक्पाल आपके व्यवसाय और घर की सुरक्षा करते रहें,और समय समय पर विभिन्न कारणों से आपको विभिन्न तरीकों से बताते रहें।

Wednesday, October 27, 2010

चौथा राहु

माता मन मकान की बाते सभी करते है और माता मन मकान से सभी का लगाव होता है। बचपन से जवानी तक माता से और जवानी से लेकर बुढापे तक मकान से तथा बुढापे से लेकर मौत आने तक मन के साथ जुडा रहना जरूरी होता है। यह बात सही है कि आदमी कहीं पर स्वतंत्र नही है लेकिन मन के साथ तो वह हमेशा ही बन्धा हुआ है,मन का स्थान कुंडली मे चौथे भाव मे होता है और चौथे भाव से मन शंकाओं से तब भर जाता है जब उसके साथ राहु का भी सम्बन्ध स्थापित हो जाये। संसार में कई लोग आपको तर्क और कुतर्क करते हुये मिल जायेंगे। जैसे चौथे भाव के राहु वाले व्यक्ति से कोई बात की जाये तो उसके अन्दर हजारों शंकाये एक बात के लिये पैदा हो जायेंगी वह उन बातों के लिये तरह तरह की जानकारिया और उन जानकारियों के पीछे और कई जानकारियां लेने की कोशिश करेगा,समझाना भारी केवल चौथे राहु वाले के लिये ही पडता है यह बहुत ही समझने वाली बात है। ज्योतिष के अनुसार राहु को रूह का दर्जा दिया गया है,राहु केवल रूह के रूप में शरीर पर हावी होता है लोग इसकी गणना कई तरह की छाया रूपी शक्ति के लिये किया करते है। गुरु के साथ राहु का साथ होना भी खतरनाक माना जाता है गुरु जीव होता है तो राहु रूह जीव के ऊपर रूह हावी हो जाये तो जीव की स्वतंत्र सत्ता रह ही नही पाती है जैसा रूह चाहती है जीव उसी प्रकार से कार्य करता है। अगर राहु के साथ मंगल स्थापित हो जाता है जीव के अन्दर नीची सोच के साथ खून की चाल धीमी हो जाती है वह जरा सी बात को सोचने लगता है और अपने ही अन्दर घूमने लगता है। अक्सर चौथा राहु स्त्री की कुंडली में बहुत बुरा प्रभाव डाला करता है। किसी महिला के दिमाग में उसके परिवार के प्रति अगर राहु नाम की रूह कोई भ्रम डाल दे और वह उस भ्रम को निकालने के लिये अपने सारे प्रयास शुरु कर देगी,और जब तक उसका जीवन है वह उसी भ्रम के अन्दर फ़ंसी रहेगी,हर रहने वाले स्थान को वह शक की नजर से देखेगी,और जो भी उसके परिवारी जन है उनके लिये उसके मन में शक की बीमारी ही रहेगी,उसके लिये कितना ही जतन किया जाये कि उसे सत्यता का पता मिल जाये लेकिन वह सत्य के अन्दर से भी असत्यता का आभास करवाने लगेगी। एक पति के लिये इससे खतरनाक बात क्या हो सकती है कि उसके सही रहने के बाद भी उसकी पत्नी उसे शाम को प्रताणित केवल इसलिये करे कि वह देर से घर आया तो जरूर उसके अन्दर कोई न कोई राज है,या गाडी रास्ते में खराब हुयी तो उसके अन्दर भी उसकी कोई चाल है,या वह खाना कम खा रहा है या वह किसी के साथ जा रहा है या कोई महिला उससे बात करने लगी है आदि बातें यह रूह बहुत बुरी तरह से प्रकट करती है। कई लोगों को देखा है कि वे अपने इसी ख्याल के कारण घंटो बाथरूम में पानी बहाया करती है कि उनका वस्त्र गंदा है उनके ब्रस को किसी ने छू लिया होगा,उनके नहाने वाले साबुन को किसी ने प्रयोग में लिया होगा या किसी ने उसकी चप्पलों को ही प्रयोग में लिया होगा। चौथा राहु सदैव कर्जा दुश्मनी और बीमारी के भाव को देखता है और जो भी बाते इन कारकों से जुडती है,वे सभी चौथे राहु के लिये मशाला बन जाती है,किसी से दुश्मनी बन जाने पर चौथा राहु वाला व्यक्ति दुश्मनी से कम अपने शक वाले ख्यालों से जल्दी मरने की कोशिश करेगा,जैसे वह रात को सो रहा है और चूहा आकर किसी प्रकार से कोई सामान को बजा दे तो वह यह नही सोचेगा कि चूहे ने उसके सामान को गिराया है वह पूरे घर के अन्दर कोहराम इसलिये मचा देगा कि कोई उसके घर में था और वह उसे मारने आया था। कारण चौथा भाव अपनी युति से अष्टम मौत के भाव को भी देखता है। इसके अलावा बाहरी आफ़तों के लिये इस भाव को भी अधिक माना जाता है किसी धर्म स्थान या किसी अस्पताली कारण को अगर वह व्यक्ति समझ गया है तो वह अपने मरीजों केवल शक के आधार पर ही दवाइयां देगा और मरीज जीने वाला भी होगा तो भी शक के आधार पर दी जाने वाली दवाइयों से वह समय से पहले ही परलोक सिधार जायेगा। अक्सर चौथे राहु वाले व्यक्ति की पहिचान यात्रा में सही रूप से की जा सकती है,इस प्रकार का व्यक्ति जब भी यात्रा करेगा अपने स्थान के अलावा भी अपने सामान को फ़ैलाने का काम करेगा,उसकी कोई वस्तु जरा सी इधर उधर हुयी और वह अपने शक वाले स्वभाव को आसपास वाले यात्रियों पर करना शुरु कर देगा,इसके अलावा वह रास्ते भर किसी से बात नही करेगा,अपने ही ख्यालों में खोया हुआ यात्रा करेगा,जहां उसे उतरना है उसके साथ वाले सहयात्री उसे उतारने की कोशिश करेंगे तो ही वह उतरेगा अन्यथा उसे ध्यान नही होगा कि उसे उतरना भी है या नही। चौथे राहु वाला व्यक्ति प्रेम करने के मामले भी शक करने वाला माना जाता है,किसी ज्योतिष जानने वाले के पास वह शादी के पहले ही जाना शुरु कर देगा और शादी से पहले ही वह पूरी जानकारी अपने पति या पत्नी के लिये करना शुरु कर देगा,यह भी देखा गया है कि इन्ही कारणों से अधिकतर इस प्रकार के लोगों की शादी या तो हो नही पाती है और हो भी जाती है तो वह वैवाहिक जीवन को सही नही चला पाते है,उनको अधिक सोचने के कारण टीबी या सांस वाले रोग पैदा हो जाते है और अस्पताल की तरह से घर का माहौल भी बन जाता है। दमा स्वांस आदि की बीमारी होने के बाद वे अधिकतर मामले में सांस की गति को सामान्य रखने के इन्हेलर आदि का प्रयोग करते हुये देखे जाते है। महिलाओं में चौथे राहु का असर एक प्रकार से और देखा जा सकता है कि वे अपने घर के फ़र्स को साफ़ से साफ़ रखना चाहती है उन्हे गंदगी बहुत जल्दी दिखाई देने लगती है,कोई जरा सा घर के अन्दर घुसा और उसके पैरों के निशान बने तो वह जल्दी से ही पौंछा लेकर उस स्थान को पोंछने का कार्य करने लगेगी,उन्हे घर के माहौल में एक अजीब सी बदबू का होना मिलेगा और वे अधिक समय घर की साफ़ सफ़ाई में ही बिताना पसंद करती है।

Tuesday, October 26, 2010

वक्र चन्द्रमहि ग्रसहि न राहू

भले का जमाना है ही नही जो टेढा है उसे सभी मानते है,अगर आपको विश्वास नही है तो जरा दूज के चन्द्रमा को ही देख लो,पूनम के चांद को सभी देखते है और रात में रोशनी देने के बाद भी उसे कोई नही मानता है। कभी कभी सत्यनारायण की कथा दिन में कर ली जाती है लेकिन रात में कोई चन्द्रमा को निहारने नही बैठता है। ईद का चन्द्रमा भी शायद दूज के चन्द्रमा को ही कहते है,मुस्लिम भाई भी इस चांद को देखने के चक्कर में पूरी दुनिया में तहलका मचा देते है,कि चांद दिखाई दे गया है ईद की छुट्टी मजे आजाते है। किया भी क्या जा सकता है,नया चन्द्रमा होता है और नयी बहू का पालागन सभी करते है। उसे देखने के लिये मोहल्ले पडौस के सभी आजाते है कोई नजराना देता है कोई बहू को जेवर और कपडे भी देता है लेकिन दो महिने बाद वही बहू जब अपने चांद जैसे मुखडे को खोलकर अपनी चाल में आजाती है तो सभी बातें बनाने लगते है,कि वह तो ऐसे चल रही थी वह तो वैसे चल रही थी। समय का तकाजा है,पूनम के चन्द्रमा को मात इसलिये मिली है कि वह आखिरी पडाव पर होता है दूसरे दिन से उसके अन्दर घटने वाली स्थिति आजाती है,लेकिन दूज के चन्द्रमा में बढने वाली स्थिति होती है इसलिये उसे लोग इज्जत से देखते है,आसमानी राहु की छाती को चीर कर बाहर निकलता दिखाई देता है उसका दिखाई देना इसलिये और सबको मजेदार लगता है जैसे निशा रानी के सीने में किसी ने चमकदार खंजर घुसेड दी हो,और निशारानी अपनी बेहोशी में पडी दिखाई देती हो। ज्योतिष के हिसाब से भी देखा तो पूनम की तो कन्या राशि आती है,उसका जीवन तो सेवा करने में ही जायेगा,लेकिन दूज की मीन राशि आती है वह अपने आप कल का जीवन अपनी गति से देखेगी। कन्या का स्वभाव सेवा वाले कामों में माना जाता है,घटता हुआ करेगा भी क्या,जब उसके पास से धीरे धीरे खर्च होगा तो वह कर्जा लेने के लिये अपनी गति को आगे करने की योजना तो बनायेगा ही,जिसने उससे पहले ले लिया है और देने का मूड अगर नही बना पा रहा है तो वह दुश्मनी तो बनायेगा ही,और अगर कोई रास्ता लेने का नही बन रहा है तो सोच सोच कर बीमार तो होना ही है,यह होता पूनम रानी के साथ,लेकिन दूज का काम ही निराला है,कुछ समय के लिये दीदार दिये और चल दिये,सारी रात तो हाजिरी बजानी नही है,केवल घंटे भर के लिये आना है और दीदार कराने के बाद अपने स्थान पर वापस आना है,जिसे गर्ज हो वह चाहे दूज के रूप में देख ले और गणेश जी की छवि को माने जिसे जरूरत हो वह ईद की तरह से देख ले और अपने नये महिने की शुरुआत कर ले,जिसकी जरूरत हो वह क्रूर कर्म करने के रूप में देख ले और अपने कर्म करना शुरु कर दे,जो होना था वह एक घंटे के अन्दर ही हो जाता है। वैसे ही मीन राशि का स्थान आराम करने वाले स्थान पर होता है,भाग्य के घर में उसका स्थान माना जाता है,किसी की भी कुंडली को देख लो भाग्य और धर्म का घर भी मीन राशि ही होती है,मित्रों के पैसे से मजे करने है तो मीन राशि में जन्म लेना हितकर होता है,जरा सा काम किया और मित्रों के वफ़ादार बन गये,बाकी की राशियां तो अपने आप आगे पीछे चलने लगती है,पूनम से दूज की दुश्मनी होती है,पूनम को रातभर जगना पडता है,और दूज को एक घंटे में आकर अपने बल को दिखाकर चला जाना होता है।