Sunday, December 19, 2010

गुरु का जन्म के शनि के साथ गोचर

गुरु जीव का कारक है और गुरु के द्वारा ही व्यक्ति की प्रोग्रेस और जीवन की गतियों के लिये ज्योतिष से देखने की प्रथा है,वैसे वैदिक ज्योतिष का फ़ार्मूला कुछ अलग ही है,और सभी ग्रहों को अपने अपने अनुसार प्रयोग में लिया जाता है। शनि कर्म का कारक ग्रह है और रहने वाले स्थान आदि के लिये भी अपना कार्य करता है,शनि की स्थिति जिस राशि नक्षत्र और उसके पाये के स्वामी के अनुसार होती है उसी प्रकार का बदलाव गुरु भी अपनी गोचर की स्थिति से करता है। जैसे शनि अगर कन्या राशि का है और वह मंगल आदि के साथ विराजमान है तो उसके लिये यह मानना जरूरी है कि जो भी कार्य उसके द्वारा किये जायेंगे वे गूढ होंगे और वह अपने लिये रहने या भोजन के साधनों को खोजने के लिये अस्पताल या किसी संस्था या भाई के प्रति समर्पित होने के लिये अपना बल देगा। गुरु का गोचर अगर तुला राशि के शनि के साथ होता है तो व्यक्ति के लिये मारकेटिंग या व्यापारिक संस्थान या कानूनी क्षेत्र मे जाने के लिये भी इंगित करता है,इसके अलावा जैसे वृश्चिक राशि का शनि है तो गुरु अपने प्रभाव से जातक को आस्तित्व हीन कार्यों के लिये जाने और गूढ तथा खोजी कार्यों के लिये भी अपना कार्य करत है। जातक के अन्दर उस बुद्धि को प्रदान करता है जिससे जातक बेकार की कबाडा वस्तुओं और बेकार के व्यक्तियों का प्रयोग अधिक से अधिक धन कमाने और अस्पताली साधन इकट्ठे करने के लिये भी अपने अनुसार फ़ल देता है। शनि अगर धनु राशि का है तो जातक के लिये न्याय वाले क्षेत्रों में जाने से लम्बी यात्राओं मे जाने का धार्मिक यात्राओं में जाने का बदलाव भी देता है,पैतृक जायदाद के मामले और कानूनी रूप से चलने वाले झगडे भी इस समय में निपटने के साधन सामने आते है।

मकर राशि का शनि रहने वाले साधन और जीवन के प्रति किये जाने वाले कार्यों के लिये भी माना जाता है और गुरु के द्वारा गोचर से भ्रमण के समय यह किसी भी कार्य को या रहने वाले स्थान में परिवर्तन देता है। इस परिवर्तन का मूल उद्देश्य भी किसी कार्य को नये सिरे से करना और नये रूप में करने से भी माना जाता है। अक्सर मकर राशि का शनि मार्गी होने पर कठोर और मेहनत वाले कार्यों के अन्दर बदलाव देता है लेकिन वक्री शनि अपने अनुसार गुरु का साथ होने से बदलाव में दिमागी प्रगति को भी देता है।

कुम्भ राशि के शनि को अगर गुरु के द्वारा गोचर से अपना बल दिया जाता है तो जातक के लिये लगातार लाभ के साधनों के लिये बदलाव माना जाता है उसके जो भी मित्र या बडे भाई बहिने अपने अनुसार जातक को फ़ायदा देने के लिये सामने आते है उनके द्वारा बदलाव भी सही दिशा को देने के लिये किया जाता है। जातक को प्रापर्टी के मामले में भी अक्सर बदलाव करने का समय माना जाता है और इस राशि का असर अगर त्रिक भाव में होता है तो व्यक्ति इन्ही कारणों से परेशान भी होने का समय माना जाता है।

गुरु का मीन राशि में शनि के साथ गोचर होने से जातक की यात्रायें लम्बी होती है और वह अपने लिये दूसरी सम्पत्ति या बडे संस्थान के लिये किये जाने वाले कार्यों का समय भी माना जाता है इसके साथ ही जातक को बडी धार्मिक यात्रायें या संस्थान सम्भालने का कार्य भी मिलता है बाहरी लोग उसकी अप्रत्याशित सहायता करने के लिये भी बराबर सामने आने लगते है।

अन्य किसी भी जानकारी के लिये आप astrobhadauria@gmail.com पर लिख सकते है.

Friday, December 17, 2010

शुभ लाभ का शाब्दिक तंत्र

शुभ और लाभ शब्द हिन्दी मे अक्सर दुकानों और संस्थानो के मुख्य द्वार पर धन रखने वाले स्थानो पर यहां तक कि लोग अपनी अपनी तिजोरियों पर और आजकल लोग अपने अपने पूजा स्थानों में भी लिखने लग गये है,इन दोनो शब्दों का मतलब साधारण भाषा में शुभ से मेहनत करने के बाद अपनी मजदूरी के बराबर लाभ से मतलब फ़ायदा लेने से होता है। लेकिन जो लोग ठाठ से दो नम्बर के काम करते है वे भी अपने अपने स्थानों पर इन दोनो शब्दों को लिखे होते है। शुभ को कई कारणों में प्रस्तुत किया जाता है,जैसे शादी के कार्ड पर भी शुभ विवाह लिखा होता है,किसी अनुष्ठान के नाम के पहले भी शुभ लिखा होता है। लेकिन इस शब्द के लिये भूतडामर तंत्र में लिखा गया है कि ’श’अक्षर कर्म से सम्बन्धित है और कार्य के देवता शनि से सम्बन्धित है,इस अक्षर पर छोटे ’उ’ की मात्रा लगाने का मतलब होता है कर्म को कर्म के अनुसार किया जाना जो कर्म का सिद्धान्त है उसे अपनाते हुये कर्म करना,इसके बाद का जो शब्द ’भ’ का प्रयोग किया है वह भरण के लिये भी प्रयोग में आता है और भ चक्र के अनुसार ज्योतिषीय गणित का भी कारक होता है,यानी जो भी कार्य किया जाये वह दूसरों की भलाई के लिये समय कुसमय का ध्यान रखकर ही किया जाये। यह बात लाभ के लिये भी बताई गयी है,’ल’अक्षर का रूप लादने से प्रयोग में लाया जाता है,किसी वस्तु नाम को अगर अक्षर से जोडा जाये तो उसके अन्दर पहले प्राप्त करने की भावना होती है,अक्षर ’भ’ का सिद्धान्त पहले बता ही दिया है। जो लिया जाये वह भरपूर और प्राप्त करने वाले लाभ का भी प्रयोग उन्ही कार्यों के लिये किया जाये जो सर्व जन हिताय के लिये काम में आते हों।

Wednesday, December 15, 2010

धन कमाने का तंत्र

धन कमाने के लिये दो और कारकों की जरूरत पडती है,एक तो साधन और दूसरा साधनों को प्रयोग में लायी जाने वाली जानकारी। तीनों कारकों के इकट्ठा हुये बिना धन की बढोत्तरी नही हो सकती है। जैसे कम्पयूटर साधन है तो उसे चलाने की कला जानकारी मानी जायेगी,कम्पयूटर पर बनाये जाने वाले प्रोग्राम ही धन के रूप में माने जायेंगे। अक्सर मन में विचार आने लगते है कि बहुत मेहनत की और मेहनत करने के बाद भी धन नही आया,चित्त में खिन्नता बढ जाती है और जो भी कार्य आगे किया जाता है उसके अन्दर भी चित्त की खिन्नता दिक्कत देती है कार्य से मन दूर हो जाता है,और जब कार्य का मूल्यांकन किया जाता है तो घटिया कार्य की बजह से धन की प्राप्ति नही होती है। जब एक मुशीबत आती है तो दूसरी भी पीछे से अपना असर देने लगती है.घरबार और जीवन के चलाने के लिये रोजाना की जरूरते भी पूरी करनी पडती है,इन जरूरतों को पूरा करने के लिये लोगों से सहायता के रूप में या अपने फ़ायनेन्स से सहायता करने वाले के आगे हाथ फ़ैलाना पडता है जब उसका भी समय पर नही पहुंचता है तो वह भी दरवाजे पर अपनी वसूली वाली नियत से आने लगता है,चित्त की खिन्नता और कार्य की कमी के कारण वह मांगने वाला भी काल जैसा लगने लगता है और कई लोग मांगने वाले से पीछा छुडाने के लिये कई बहाने बनाने चालू कर देते है,उन बहानों को बनाने के बाद जो मांगने आया था उसे कोई संतुष्टि वाला जबाब नही मिलने के कारण वह भी अपने अपने अनुसार हावी होने की कोशिश करने लगता है। यह सब एक साथ होने के कारण या तो रहने वाले स्थान को छोडने का मन करता है या फ़िर किसी प्रकार की चालाकी आदि करने के बाद और धन को कहीं से प्राप्त करने के बाद चुकाने का जी करता है,इसी बात के लिये जो आजकल बैंक आदि में खाते खोले जाते है उनके द्वारा मिलने वाले चैक आदि का प्रयोग करने के बाद लोगों से धन लिया जाता है,और चैक के साथ बन्धक पत्र या सम्पत्ति को रख दिया जाता है,भारतीय जलवायु से भी समय पर चुकाने में दिक्कत आती है,जो कार्य गर्मियों में चला करते है वे सर्दी और बरसात के असर से बन्द हो जाते है और जो कार्य सर्दी में चला करते है वे गर्मी और बरसात में बन्द हो जाते है जो भी धन उधार लिया जाता है वह समय की चलती आवक के अनुसार ही लिया जाता है और जब समय पर धन नही चुकाया जाता है तो दोहरी मार एक तो ब्याज की और दूसरी वसूली करने वाले की बदसलूकी की दिमाग को परेशान करके रख देती है,बिना किसी कारण के चुकाने की तारीख दे दी जाती है और चुकाने का दिन आने से पहले ही दिमाग खराब होना शुरु हो जाता है,रात की नींद और दिन का चैन भी खराब हो जाता है,भूख प्यास सभी बन्द हो जाती है दिल डूब सा जाता है घर परिवार की चिन्ता तो दूर की बात अपनी ही चिन्ता नही रहती है। इन सब कारणों से धन की आवक में कमी तो होती ही है अपनी बनी बनायी साख और घर परिवार की इज्जत की चिन्ता भी दिक्कत देने वाली होती है जो लोग पहले से जानते होते है उनके डर से कि कभी उनके सामने अपना रुतबा दिखाया होता है वे भी रोजाना की बदलती हुयी जिन्दगी को देखकर दूर से ही कमेन्ट पास किया करते है,यह सब केवल जीवन को और नीचे ले जाने वाली बात ही मानी जाती है।