Friday, May 11, 2012

कैसे शुभ बनाया जाता है समय ?

जीवन मे दिन रात धूप छांव सर्दी गर्मी सुख दुख सभी समान मात्रा मे आते है और अपने अपने समय मे अपना अपना असर देकर चले जाते है। समझदार अपने समय को सही रूप मे व्यतीत कर लेते है और नासमझ लोग सुख के समय मे सुखी रहकर दुख के समय मे दुखी बने रहते है। सुबह को जागने के बाद नये दिन की शुरुआत होती है। दिन की शुरुआत सही होने पर पूरा दिन सही निकलता है। दिन की शुरुआत ही खराब हो जाये तो पूरा दिन ही खराब हो जाता है।

आजकल के भागम भाग समय मे आम आदमी की नींद पूरी नही हो पाती है और वह नींद पूरी नही होने के कारण दिन भर चिढचिढापन लिये घूमता रहता है,उसे हर काम की जल्दी होती है और वह अपने काम को या तो समय से पूरा कर लेता है या फ़िर किये जाने वाले काम को झल्लाहट की बजह से काम पूरा होने से पहले ही समाप्त कर देता है। उसे अपने को चिन्ता से दूर रखने के लिये कई प्रकार के कृत्रिम साधनो का प्रयोग करना पडता है उन कारणो मे तामसी चीजो का सेवन करना अधिक परेशान होने के कारण घर से दूर रहना और अपनी इच्छाओ की तृप्ति के लिये कोई भी गलत काम कर जाना और उसकी सजा को भुगतना एक आम बात हो गयी है।

शिक्षा के समय आधुनिक एम्यूजमेंट के साधनो से मन के विचलित होने से और एक दूसरे की प्रोग्रेस को देखकर अधिक पनपने के कारणो को अपनाने से एक दूसरे के हित की बात को अनदेखा करने से यहाँ तक के अपने ही परिवार को व्यवसाय की द्रिष्टि से देखने के कारण दिमाग का उत्तेजित हो जाना और जो नही करना है उस काम को कर जाना आदि बाते मुख्य है।

जीवन के तीन मुख्य आयाम है भोजन नींद और कार्य,इन तीनो आयामो को समय से पूरा करने के लिये इनके लिये समय का विभाजन करना बहुत जरूरी होता है। भोजन से शरीर शक्ति नींद से इच्छा शक्ति और कार्य से धन शक्ति का बढना होता है,अगर इन तीनो आयामो को सही रूप से सन्तुलित मात्रा मे प्रयोग किया जाता है वही अपनी पूरी उम्र जीता भी है और सभी सुख भोगता भी है।

सुबह को जागने के बाद अपनी स्वांस पर ध्यान दीजिये,किस नासाग्र से अधिक वायु प्रवाहित हो रही है,दाहिने बहने वाली वायु स्त्रियों को सम्पूर्ण दिन की खुशी को सूचित करती है और बायें नासाग्र से बहने वाली वायु पुरुष वर्ग को पूरे दिन की खुशियों के लिये सूचित करती है। अगर विषम प्रवाह है तो उसे सम बनाने के लिये विरोधी करवट को लेकर बगल के नीचे तकिया आदि लगाकर वायु को सम किया जा सकता है।

सुबह को जागने के बाद उठने पर पहले अपने कर कमल को ध्यान से देखने पर कर्म के अधिकारी की प्रथम पूजा मान ली जाती है,दोनो हाथो को मिलाकर देखने के बाद अपने माथे से दोनो हाथो को लगाकर उठना चाहिये। जिस नासाग्र से वायु प्रवाहित हो रही है उस तरफ़ के पैर को सबसे पहले भूमि से स्पर्श करना चाहिये।

आजकल के समय मे लोग चाय को पीने के बाद ही बिस्तर को त्यागने का कार्य करते है,यह नियम जितनी जल्दी हो छोडने का क्रम अपना चाहिये कारण रात भर शरीर की तन्द्रा अवस्था मे सांस के साथ जो भी विषाणु मुंह मे आये होते है वह अगर पहले साफ़ नही किये गये तो वे वापस शरीर मे जाने के बाद खून के साथ मिलकर उत्तेजना और चिन्ता को प्रकट करने के लिये अपना काम उसी प्रकार से करने लगेंगे जैसे एक एस्प्रिन की गोली खाने के बाद कोशिकाओं का सुन्न हो जाना। जागने के बाद सुबह के क्रियाओं से निवृत होकर चाय आदि का सेवन करना ठीक होता है,सुबह की चाय जैसे भी अच्छी बने उसे बनाने की कोशिश करनी चाहिये,कहावत भी है कि "चाय खराब तो सुबह खराब और दाल खराब तो दिन खराब,पत्नी खराब तो जीवन खराब" सुबह को किसी प्रकार की लेन देन की चिन्ता नही करनी चाहिये।

भोजन आदि के मामले मे भी ध्यान रखना जरूरी है कि सुबह को अगर गरिष्ठ भोजन को कर लिया गया तला भुना या देर से पचने वाला भोजन लिया गया तो शरीर की शक्ति उसे पचाने के लिये अपना काम करने लगेगी बाकी के काम को करने के लिये आलस का सामना करना पडेगा। इसलिये बहुत ही हल्का नास्ता करने के बाद ही काम पर निकलना चाहिये। सुबह को घर के सभी सदस्यों से प्रेम से बोलना चाहिये वह चाहे निजी हो या बाहरी प्रेम से सुबह को बोलने के बाद उनके मन मे आदर का प्रभाव दिन भर भरा रहेगा और उनकी सोच भी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करती रहेगी।

Wednesday, May 9, 2012

चमत्कारी होता है गोमती चक्र

गो का रूप गाय के लिये माना जाता है और उसे गो भी कहा जाता है,गाय को लक्ष्मी के रूप मे भी देखा जाता है और शुक्र ग्रह का कारक भी माना जाता है। नदियों के किनारे पर जहां गाय पानी पीती है और उनके जुगाली करने वाले फ़ैन का कुछ भाग पानी मे बह जाता है और वह फ़ैन नदी मे पडने वाले छोटे छोटे भंवर मे जाने के बाद  गोल गोल घूमता रहता है कालान्तर मे उस घूमने वाली क्रिया मे नदी के पानी के अन्दर के पत्थरो रेत आदि के कण भी उस फ़ेन मे मिल जाते है और वह फ़ैन एक चक्र का रूप धारण कर लेता है वही चक्र पानी के अन्दर बैठ जाते है और पानी की बहाव और तल आदि आदि से धीरे धीरे खिसक कर तथा नदी का पानी सूखने के बाद यह नदी की रेत मे मिल जाते है यही गोमती चक्र के रूप मे जाने जाते है। 

गोमती चक्र को दक्षिण मे गोमथी चक्र के नाम से भी जाना जाता है और संस्कृत मे धेनुपदी के नाम से भी जाना जाता है प्राचीन काल मे गोमती चक्र का प्रयोग यज्ञ की वेदी के चारो तरफ़ लगाया जाता था,तथा राज्याभिषेख के समय इसे राजसिंहासन पर भी छत्र के ऊपरी भाग मे लगा दिया जाता था। गोमती चक्र के प्रति कहा जाता है कि किसी के पास अगर चार गोमती चक्र है तो वह किसी भी प्रकार की ऊपरी हवा से बचा रह सकता है और वास्तु वेध के लिये भी इसे चार की संख्या मे मुख्य दरवाजे के ऊपर लाल कपडे मे बांध कर रखा जाता है। इस क्रिया से आसुरी शक्तियों का घर मे रहना नही हो पाता है।

गोमती चक्र की बनावट को देखा जाये तो उसके ऊपर चिकने भाग पर हिन्दी के ७ का अंक बना मिलता है,वर्तमान के ज्योतिषियों के अनुसार यह अंक राहु का अंक कहा जाता है और पानी की वस्तु जिसे चन्द्रमा का रूप दिया जाता है उसके अन्दर इस अंक के होने से यह राहु कृत प्रभावो को दूर रखने के लिये अपनी युति को प्रदान करता है साथ ही बेकार की शंका को दूर रखने मे सहायक होता है,जिनकी कुंडली मे राहु चन्द्र की युति होती है वह इसे चांदी की अंगूठी या पेंडल मे बनवाकर धारण कर सकते है।

जो स्त्रियां नपुंसकता की श्रेणी मे आती है और सन्तान पैदा करने मे असमर्थ होती है वे कमर मे कनकती मे सात  गोमती चक्र लगवा कर धारण करने के बाद सन्तानहीनता से दूर होती देखी गयी है। ग्रामीण लोग गोमती चक्र को  दूध वाले जानवरो के गले मे लाल कपडे मे बांध कर रखते है जिससे दूध देने वाले जानवर बुरी नजर से बचे रहते है। कृषक इसे अपने खेत के चारो कोनो मे दबाकर रखते है जिससे मान्यता है कि खेत की फ़सल मे कीडा आदि नही लगता है और बीमारी आदि से बचने के बाद फ़सल अच्छी पैदा होती है.

गोमती चक्र की भस्म शहद मे मिलाकर पैरो के नाखून मे लगाने के बाद वात का दर्द दूर होता देखा गया है। साथ ही पैर के अंगूठे मे लगाने के बाद नेत्र ज्योति भी बढती देखी गयी है।

Monday, May 7, 2012

सफ़ेद कनेर और उसका तांत्रिक प्रयोग

कनेर का पेड अक्सर कम पानी वाले स्थान पर मिल जाता है यह तीन प्रकार का होता है पीला कनेर मजबूत मिट्टी मे पाया जाता है लाल कनेर पठारी भूमि मे मिलता है और सफ़ेद कनेर अधिकतर रेगिस्तानी इलाके मे मिल जाता है।

कनेर का पेड जहरीला होता है उसकी छाल फ़ल फ़ूल पत्ती आदि को तोडने पर दूध निकलता है वह दूध आक के दूध की तरह से जहरीला होता है। कनेर के पत्ते लम्बे और पतले होते है छाया वाले पेडो की जगह पर लगाया जाता है। पीले वाले कनेर के नीचे अक्सर सांप रहते है और लाल कनेर के पास मे जहरीले जानवर जैसे छिपकली बिच्छू आदि पाये जाते है। सफ़ेद कनेर के पास सफ़ेद चीटियां अधिक पायी जाती है और उनके काटने पर एलर्जी जैसे रोग हो जाते है जो खांसी जुकाम आदि लगाने के लिये माने जाते है उनका जहर काफ़ी समय तक के लिये खून के अन्दर बना रहता है और अधिक पैदा होने के कारण खून के थक्के बनाने और ह्रदय रोग का आभास करवाने लगता है,इस प्रकार के व्यक्ति के पसीने मे भयंकर बदबू आने लगती है।

आयुर्वेद मे सफ़ेद कनेर के कई आयुर्वेदिक कारण बताये गये है जैसे जलने पर उसकी हरी पत्तियों को सरसों के तेल मे जलाने के बाद ठंडा करने के बाद जले हुये स्थान पर लगाने से एक तो छाले जल्दी ठीक हो जाते है और जलने के बाद पडे हुये सफ़ेद दाग भी ठीक हो जाते है। इसी प्रकार का उपयोग सूखे छुहारे के साथ हरे पत्ते छाल फ़ूल फ़ल कुचल कर जलाने के बाद ठंडा करने के बाद लगाने से सफ़ेद दाग भी ठीक होते देखे गये है।

पालतू जानवरो मे कीडे लग जाने के कारण और त्वचा वाली बीमारियां हो जाने के बाद अरंडी के तेल मे हरे पत्तो को जलाकर उनकी राख मिलाकर लगाने से ठीक हो जाते है।

तंत्र शास्त्र मे सफ़ेद कनेर के लिये कहा जाता है कि अमावस्या की आधी रात को इस पेड के नीचे बैठ कर शिव आराधना करने से फ़लदायी होती है। इस कनेर के फ़ूलो की माला शिवजी को पहिनाने से मनोवांछित फ़ल मिलने का कारण बनता है। सफ़ेद कनेर के फ़ूलो को हल्दी के साथ पीस कर माथे पर तिलक करने से जगत वशीकरण का रूप भी माना जाता है। भगन्दर और गुदा वाली बीमारियां भी इस कनेर के रस से ठीक होती देखी जाती है।

जिस घरो में ऊपरी शक्तियों का अधिक प्रभाव होता है उनके दरवाजे पर गमले मे लगाने के बाद ऊपरी हवाये दूर रहती है। जो लोग राहु चन्द्र शनि की युति मे पैदा हुये होते है और वृश्चिक राशि का असर उनके जीवन मे होता है तो उन्हे रोजाना इस कनेर के पेड पर दूध मिला जल चढाने के बाद शान्ति मिलती देखी गयी है.