Thursday, November 22, 2012

मानसिक वासनायें और उनका विनाश

मानव शरीर मे इन्द्रिय सन्तुष्टि के लिये वासनाये बनती है। स्वाद की वासना जीभ से पनपती है,नाक से खुश्बू की वासना पैदा होती है मधुर और रसमय संगीत को सुनने की वासना कानो से पैदा होती है,खूबसूरत और विभिन्न प्रकार के उत्तेजक कारण देखने का मन करता है तो वासना आंखो से पैदा होनी मानी जाती है। कामोत्तेजक वासनायें सभी इन्द्रियों के चाहने पर ही पैदा होती है। पुरुष के लिये स्त्री के प्रति सम्बन्ध बनाने की और स्त्री के प्रति पुरुष के प्रति सम्बन्ध बनाने की वासना भी पैदा होती है। लेकिन कामोत्तेजक वासना के लिये सबसे पहला कारण होता है आंखो से द्रश्यों को देखना लेकिन आंखो की द्रश्यता तभी काम करती है जब भोजन मे तामसिक यानी शरीर मे बल प्रदान करने वाले तत्वो का अधिक लिया जाना हो,भोजन मे तत्वो का वर्गीकरण भी नाक से खुशबू लेकर कानो से उत्तेजक संगीत का सुनना तथा त्वचा से स्पर्श सुख का अनुभव करना आदि कारण एक साथ पनपते है तो ही माना जाता है। वासना के पैदा करने के लिये मानसिक सोच का सबसे बडा कारण भी माना जाता है। अगर वासना को पूरी तरह से सन्तुष्ट कर दिया जाये तो वासना देर तक पैदा नही होती है। उसी वासना को अगर देर तक दबाये रखा जाये तो वह वासना किसी भी हद तक पूरी करने का कारण बना रहता है। बल से बुद्धि से अर्थ से पराक्रम से वासना की पूर्ति का कारण देखा जाता है। लेकिन बल के काम आने का कारण तभी सफ़ल होता है जब बुद्धि भी काम कर रही हो और बुद्धि भी तभी सफ़ल हो पाती है जब अर्थ पास मे हो और अर्थ भी तभी काम कर सकता है जब पराक्रम यानी हिम्मत साथ दे रही हो। इन्ही कारणो की प्राप्ति के लिये लोग पहले शरीर को बनाते है फ़िर शिक्षा को पूरा करते है शरीर से बल और शिक्षा से बुद्धि की प्राप्ति होती है उसी बुद्धि के बल से अर्थ की प्राप्ति की जाती है और जब अर्थ प्राप्त हो जाता है तो अपनी हिम्मत को पैदा किया जाता है,हिम्मत के पैदा होने पर वासना की पूर्ति की जाती है।

सभी प्रकार की वासनाये मन पर निर्भर है,मन को मारकर किसी भी वासना को दबा भले दिया जाये लेकिन जब भी समय या कारण सामने होगा वासना अपने आप ही उदय हो जायेगी और वासना की पूर्ति के लिये मन अपना काम करना शुरु कर देगा। वासना के उदय होने का कोई समय नही होता है कोई उम्र नही होती है। चाकलेट खाने की चाहत बच्चे मे भी पैदा हो सकती है तो अस्सी साल के बुजुर्ग मे भी पैदा हो सकती है। यह स्वाद पर निर्भर है। वासना को एक रूप मे और भी पनपते देखा जा सकता है कि किसी भी वस्तु के नयापन मे भी मानसिक रूप वासना की पूर्ति के लिये देखा जाता है। कल अगर अरहर की दाल खाई गयी है तो दूसरे दिन अरहर की दाल की बजाय मूंग की दाल खाने का मन करेगा,अगर दूसरे दिन भी अरहर की दाल खिलाई जाये तो मानसिक इच्छा पूर्ण नही हो पायेगी।

वासना के उदय होने के लिये जो कारक सामने आते है वह इस प्रकार से है :-
  • मानसिक चाहत से
  • देखने से
  • सुनने से
  • इच्छा पूर्ति मे बाधा से
  • अधिक समय तक इच्छा को दबाये रहने से
इन पांच कारणो को शरीर के पंच भूतो से भी जोड कर देखा जाता है। शरीर की अग्नि भी उत्तेजक होने पर वासनाओ की उत्त्पत्ति का कारण माना जाता है,शरीर मे जल की अधिकता से भी वासना की उत्पत्ति का कारण बनता है शरीर मे भूमि तत्व की अधिकता से भी वासना की उत्पत्ति होती है,शरीर मे वायु की मात्रा बढने पर भी वासना की उत्पत्ति होती है और शरीर मे आकाश तत्व की अधिकता से भी निरंतर सोच से बाकी की वासनाओं मे वृद्धि का कारण देखा जाता है।
वासना की शांति के लिये निम्नलिखित उपाय किये जायें तो वासनाओ की अधिकता मे कमी आती है:-
  • ध्यान समाधि लगाने से मानसिक सोच की कल्पना का अन्त होता है.
  • मानसिक इच्छा से उत्पन्न वासना का जीभर कर उपभोग कर लेने से और मन की चाहत
    नही भी होने पर उस वासना की पूर्ति की जाती रहे.
  • उपवास से भोजन की वासना की चाहत पहले एक साल तक बढती है फ़िर भोजन की चाहत घटती जाती है.
  • स्वांस की गति को न्यंत्रित करने से सुगन्ध दुर्गन्ध की वासना समाप्त होती है.
  • एकान्त मे रहकर अपने अन्दर की आवाज सुनने अच्छा बुरा कठोर और मधुर आवाज की वासना समाप्त होती है.
  • तामसी भोजन से दूर रहना,लगातार कामोत्तेजक माहौल से दूर रहना सोते समय ईश्वर का ध्यान करना अपने जीवन साथी के अलावा अन्य को प्रकृति से जुडा देखना भोजन मे ठंडी तासीर वाले भोजन लेने से अधिक भोजन के त्याग से कामोत्तेजना मे शांति मिलती है.

Monday, November 12, 2012

लक्ष्मी मंत्र विभिन्न राशियों के लिये

संसार मे जन्म लेने वाले बुद्धिधारी जीवो मे मनुष्य का रूप सर्वोपरि है और बुद्धि से काम लेने के कारण मनुष्य को कोई भी शारीरिक शस्त्र जानवरो की तरह से पंजा नाखून सींग चीरने फ़ाडने वाले दांत आदि को प्रकृति ने प्रदान नही किया है। बुद्धि को ही मंत्र के रूप मे जगाया जाता है और जैसे ही बुद्धि काम करने लगती है मनुष्य अपने बल से यंत्रो का निर्माण करना शुरु कर देता है और बुद्धि तथा साधन प्राप्त होते ही मनुष्य जीवन मे अपने सुख साधनो के प्रयोग के लिये अपनी रक्षा के लिये भविष्य की समृद्धि के लिये रास्ते बनाने लगता है । बुद्धि को जागृत करने के लिये एक समय विशेष का चुनाव किया जाता है साधन बनाने के लिये भी एक समय विशेष का मूल्य होता है और साधन बनने के बाद उनसे अपने जीवन के कारको की प्राप्ति के लिये भी समय विशेष का कारण माना गया है। एक कहावत कही जाती है कि अस्पताल मे रोग के अनुसार जाना चाहिये,जैसे रोग तो ह्रदय रोग के रूप मे है और टीबी के अस्पताल मे जाया जाये तो रोग की पहिचान भी नही हो पायेगी जो दवा देनी है वह दवा नही मिलकर दूसरी दवाओ के लेने से रोग खत्म भी नही हो पायेगा और दूसरा रोग और पैदा होने की बात बन सकती है। उसी प्रकार से कहावत का दूसरा भाग बताया गया है कि मन्दिर मे भोग,यानी मन्दिर दुर्गा जी का है और वहां पर लड्डू का भोग लगाया जाये तो वह भोग लगेगा ही नही कारण दुर्गा के लिये तामसी भोग की जरूरत होती है और लड्डू तो केवल गणेश जी के लिये ही चढाने का प्रयोग है,उसी प्रकार से अगर हनुमान जी के मन्दिर मे तामसी भोग को चढाया जायेगा तो बजाय लाभ के नुकसान भी हो सकता है,कहावत का तीसरा भाग ज्योतिष मे योग के रूप मे समझना चाहिये,जब तक योग नही हो कोई काम करने से फ़ायदा नही हो पाता है,योग मे तीनो कारक बुद्धि साधन और साधनो से प्राप्त होने वाले लाभ मिलना लाजिमी होता है।
दीपावली को लक्ष्मी की आराधना का त्यौहार बताया जाता है। इस त्यौहार को वणिज कुल के लिये माना जाता है,चारो वर्णो मे तृतीय वर्ण वैश्य  वर्ण के लिये दीपावली का त्यौहार बताया गया है,जैसे क्षत्रिय के लिये दशहरा ब्राहमण के लिये रक्षाबन्धन वैश्य के लिये दीपावली और शूद्र वर्ण के लिये होली का त्यौहार बताया जाता है। अर्थ यानी धन सम्पत्ति का कारण आज के युग मे सभी के लिये जरूरी हो गया है और बिना अर्थ की प्राप्ति के शायद ही किसी का जीवन सही चल पाये,अगर बिना अर्थ के कोई भी जिन्दा रहना चाहता है तो वह या तो किसी गुफ़ा कन्दरा मे अपना जीवन निकाल रहा हो या वह सन्यासी बनकर मांग कर भोजन आदि का बन्दोबस्त अपने लिये कर रहा हो आदि कारण माने जा सकते है।

विभिन्न राशियों के लिये लक्ष्मी मंत्र का अलग अलग जाप बताया जाता है,कूर्म पुराण के अनुसार लक्ष्मी का रूप तीन प्रकार का माना जाता है सत के रूप मे अचल लक्ष्मी रज के रूप में चलित लक्ष्मी और तम के रूप मे झटति लक्ष्मी। इन तीनो प्रकार के लिये हर व्यक्ति के धन भाव के तीनो भावो को एक साथ जोडा गया है,और तीनो भावो के अनुसार सत से जोडी गयी लक्ष्मी दूसरे भाव से रज से जोडी गयी लक्ष्मी छठे भाव से और तम से जोडी गयी लक्ष्मी को द्सवे भाव से जोड कर देखा जाता है। प्रत्येक युग मे लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये चारो पुरुषार्थो का प्रयोग किया जाता रहा है। धर्म नाम का पुरुषार्थ मेष सिंह और धनु राशियों के लिये अर्थ नाम का पुरुषार्थ वृष कन्या और मकर राशियों के लिये काम नाम का पुरुषार्थ मिथुन तुला और कुम्भ राशियों के लिये तथा मोक्ष नामका पुरुषार्थ कर्क वृश्चिक और मीन राशियों के लिये माना जाता है।

मेष राशि शरीर से सम्बन्धित राशि है और इस राशि के लिये बुद्धि की दाता सिंह राशि तथा भाग्य की प्राप्ति के लिये धनु राशि का प्रयोग किया जाता है,इसे लक्ष्मी प्राप्त करने का कारण शरीर से बल से शरीर के प्रयोग से तकनीकी कारणो से और जमीनी रूप मे खुले में कार्य करने से शरीर के बल से ताकत से शरीर के तकनीकी प्रयोग से प्राप्त करने के लिये कहा जाता है। इस राशि वाले केवल अपनी बाहुबल की बुद्धि से ही लक्ष्मी को प्राप्त करने मे सफ़ल होते है। लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये के बात का और भी गौर करना जरूरी है कि लक्ष्य में जो चल रहा है जिसके सामने लक्ष्य है और वह अन्य स्थानो पर अपने मन को नही भटका रहा है वह ही लक्ष्मी को प्राप्त कर सकता है जिसका लक्ष्य नही है यानी टारगेट ही नही है वह लक्ष्मी को प्राप्त नही कर पाता है और भटकाव का रस्ता ही अपनाता रहता है आजीवन या तो गरीबी मे अपने दिन गुजार लेता है या फ़िर दूसरो के सहारे चलते हुये दरवेश के रूप मे बना रहता है। मेष राशि वालो के लिये सबसे अधिक उन्नति देने वाला और मन बुद्धि अहंकार को सही मायने मे प्रयोग मे लाने के लिये - "ऊँ ह्रां श्रां क्रां ब्रां ग्रां द्रां प्रां भ्रां स्त्रां बाहुलक्ष्मयै नम: स्वाहा" का जाप एक लाख से सवा लाख का करना श्रेष्ठ होता है। दशांश हवन के लिये जायफ़ल का हवन घी के साथ करना चाहिये,साथ मे शहद या शक्कर का प्रयोग भी कर सकते है। यह मन्त्र नाम राशि से ही फ़लदायी होता है चन्द्र राशि या जो नाम संसार मे प्रयोग मे नही लिया जाता है केवल कागजो मे या गुप्त रखा जाता है प्रयोग मे नही लेना चाहिये।

वृष राशि कालपुरुष से भी धन की राशि है और इस राशि के लिये बुद्धि की दाता कन्या राशि और भाग्य की दाता मकर राशि होती है। बुद्धि मे इस राशि वालो को सेवा वाले काम बचत वाले काम कर्जा दुश्मनी बीमारी वाले कामो से बुद्धि का जागृत होना माना जाता है और इस प्रकार की बुद्धि के लिये व्यक्ति को गूढ जानकारी जरूरी होती है वह गूढ जानकारी प्राप्त करने और अपनी बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने के लिये लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये मंत्र - "ऊँ ह्रीं श्रीं क्रीं ब्रीं ग्रीं द्रीं प्रीं भ्रीं स्त्रीं धनलक्ष्मयै नम: स्वाहा" का जाप एक लाख या सवा लाख का करना चाहिये,दशांश के हवन के लिये घी लौंग पिसी हुयी शक्कर या बूरा से करना चाहिये।

मिथुन राशि काम नाम की राशि है इस राशि के लिये बुद्धि की दाता तुला राशि तथा धर्म और भाग्य को देने वाली राशि कुम्भ होती है। इस राशि वाले जातक जितने छुपे रहेंगे उतने ही गरीब होंगे और जितने अपने को फ़ैला कर रखेंगे उतने ही अमीर होते चले जायेंगे। इस राशि वाले लोगों को बोलने से लिखने से अपने हाव भाव और फ़ैसन आदि से दिखाकर गाने बजाने अदाकारी आदि के कारणो से धन प्राप्त करने के लिये कारण बनते है लेकिन बुद्धि के लिये बेलेंस बनाने की राशि तुला का प्रयोग इन्हे करना बहुत ही जरूरी होता है और धर्म तथा भाग्य के लिये इन्हे मित्रो की तथा अपने से बडे भाई बहिनो को भी साथ लेकर चलना जरूरी होता है इस राशि वालो के लिये सबसे खतरनाक काम तथा धन से दूर जाने का कारण एक और भी माना जाता है कि अगर इस राशि के व्यक्ति किसी प्रकार से दूसरो के निजी जीवन मे झांकने की कोशिश करे या चुगली करने तथा बुराई करने की कारण पैदा करे तो यह बरबाद भी हो जाते है। इस राशि वालो के लिये लक्ष्मी प्राप्त करने का मंत्र है - "ऊँ ह्रौं श्रौं क्रौं ब्रौं ग्रौं द्रौं प्रौं भ्रौं स्त्रौं वायुलक्ष्मयै नम: स्वाहा",इस मंत्र का जाप एक लाख या सवा लाख का करना चाहिये दशांश के हवन मे अगर तगर शहद लौंग बतासे और खीर को मिलाकर करना चाहिये।

कर्क राशि मोक्ष नाम की राशि है व्यक्ति मृत्यु के बाद की गति को भोग कर नये जीवन मे कर्मगति बनाने के लिये प्रवेश करता है,इस राशि वालो को बुद्धि देने के लिये वृश्चिक राशि तथा भाग्य धर्म देने के लिये मीन राशि का फ़ेवर मे होना जरूरी होता है। बुद्धि की दाता वृश्चिक राशि इनके लिये बहुत जरूरी है अगर इस राशि के जातक वृश्चिक राशि को साथ लेकर चलने वाले होते है तो उन्हे धनी बनने से कोई रोक नही सकता है। मृत्यु के बाद की सम्पत्ति बीमा के बाद धन की प्राप्ति लोन लेकर या लोन देकर किये जाने वाले खरीद बेच करने वाले काम खनिज उत्पादनो को व्यापार मे लेकर चलने वाले काम विदेशी लोगो से प्राप्त किये गये धन और उसे प्रयोग मे लाने के काम ब्रोकर आदि के काम संस्था बनाकर किये जाने वाले काम उच्च रूप से देखे जाते है,लेकिन नीच मे रूप मे किये जाने वाले काम डर पैदा करने के बाद किये जाने वाले काम गुप्त सम्बन्ध और वासना से जुडे काम भी देखे जाते है। इस राशि वालो को लक्ष्मी को प्राप्त करने के लिये मंत्र - "ऊँ ह्रीं श्रीं क्रीं ब्रीं ग्रीं द्रीं प्रीं भ्रीं स्त्रीं भोगलक्ष्मयै नम: स्वाहा", इस मंत्र का दशांश हवन घी गुड अरंड की जड से करना चाहिये।

सिंह राशि धर्म नाम की राशि है और यह राशि कालपुरुष से बुद्धि की राशि मानी जाती है। इस राशि वालों के लिये धनु राशि बुद्धि को प्रदान करने वाली होती है और मेष राशि धर्म और भाग्य को पैदा करने वाली होती है इस राशि वाले व्यक्ति कानून राज्य पिता से जुडे काम समाज हित के काम विदेशी यात्रा और विदेश मे धन लगाकर किये जाने वाले इम्पोर्ट एक्सपोर्ट के काम हवाई यात्राओं वाले काम लोकहित के काम ऊंची शिक्षा (डिग्री देने) वाले काम आदि करने के बाद धन को आसानी से प्राप्त कर सकते है। जितना लम्बा सोचने का काम इस राशि वाले करेंगे उतने ही धनवान होते जायेंगे और जितनी कम सोच होगी उतना ही यह गरीब होते जायेंगे,इस राशि वालो को कभी भी मर्यादा और लोकसेवा के प्रति गंदी सोच नही रखनी चाहिये। अक्सर इस राशि वालो के लिये यह भी देखा गया है कि तने वाली फ़सलों से यह अच्छा लाभ उठा सकते है। इस राशि वालो के लिये धन प्रदायक लक्ष्मी का मंत्र -"ह्रौं श्रौं क्रौं ब्रौं ग्रौं द्रौं प्रौं भ्रौं स्त्रौं राज्यलक्ष्मयै नम: स्वाहा", इस राशि वालो को दशांश से हवन करने के लिये घी बतासा अगर चित्रक की छाल अरंड के तने की समिधा से हवन करना चाहिये।

कन्या राशि अर्थ से जुडी राशि है इस राशि का मूल उद्देश्य सेवा वाले कामो को करना होता है,इस राशि के लिये बुद्धि को देने वाली राशि मकर है और भाग्य को देने वाली राशि वृष है। इस राशि वालो के लिये सरकारी क्षेत्र की नौकरी जनता से जुडे काम राज्य में प्रयोग किये जाने वाले धन को संधारण करने वाले काम दवाइयों के काम पुलिस से जुडे काम साफ़ सफ़ाई वाले काम कर्जा दुश्मनी बीमारी को निपटाने के काम धन को धन से जुडे काम लोगो को अपमान मृत्यु से बचाने के काम अध्यापन के काम आदि करने से लाभ होता रहता है। इस राशि वालो को लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये मंत्र - "ह्रां श्रां क्रां ब्रां ग्रां द्रां प्रां भ्रां स्त्रां जयालक्ष्मयै नम: स्वाहा", का जाप करना चाहिये यह जाप एक लाख से सवा लाख तक किया जा सकता है दशांश से हवन करने के लिये शतावर शहद मिश्री घी गोखुरू से करना चाहिये।

अन्य राशियों के लिये ईमेल astrobhadauria@gmail.com से पूंछ सकते है.