गुरु के बारे में मैने पहले भी लिखा है,और समझाया है कि गुरु जीव का कारक है,गुरु के जिन्दा रहने पर जातक की जिन्दगी देखी जाती है और गुरु के मरने पर जातक की मृत्यु देखी जाती है,लेकिन गुरु कभी मरता भी नही है। गुरु अपने रूप को परिवर्तित करने के बाद किसी न किसी रूप में फ़िर से जीवन की गति को देने लगता है। जीव का रहना भावना पर निर्भर रहता है,जैसी जीव की आजीवन भावना रहती है जीव उसी भावना के वसीभूत होकर दूसरी योनियों में अपना जीवन धारण कर लेता है और जैसे कर्म पिछले जन्म में किये गये है उन्ही के अनुसार जीव को कर्मगति के अनुसार फ़ल मिलने लगते है। ऐसा शास्त्रों में भी लिखा है और महापुरुषों की भी यही सोच है। कई लोगों का विचार होता है कि जीव इसी जन्म में अपने कर्मों का फ़ल प्राप्त कर लेता है,यह किसी हद तक सही भी है कि जो भी भौतिक कार्य किये जाते है वे भौतिक रूप से तो फ़टाफ़ट फ़ल देने वाले होते है,लेकिन जो कार्य मानसिक रूप से सोचे जाते है,लगातार चिन्ता करने के बाद अपने ह्रदय में धारण कर लिये जाते है,वे ही अपने अपने अनुसार फ़ल देने के कारक माने जाते है। और भावना के अन्दर जो भी लगाव दिमाग में रहता है उसी भावना के अनुसार जन्म लेना पडता है,कथाओं में जड भरत की कथा इसका उदाहरण है कि पहले वे तपस्या में थे लेकिन एक हिरन के बच्चे में मोह होने के बाद उन्हे हिरन के रूप में जन्म लेना पडा और जब मोह टूटा तो वापस मनुष्य रूप में प्रकट होना पडा।
गुरु सांस का कारक है और सांस के चलने तक जीव का जिन्दा रहना माना जाता है। गुरु के स्वभाव के लिये अन्य ग्रह अपने अपने अनुसार गुरु पर प्रभाव देते है जैसे गुरु अगर डाक्टरी राशि में है तो जीव के पास चिकित्सा के कारण मिलते है और जीव अपने अन्दर चिकित्सा वाले कारण और बैंक जमा पूंजी दुश्मनी बनाने और निकालने वाले कारण रोजाना के कार्य करने के मामले बीमारी आदि के कारण जानने और निकालने की क्षमता रखता है। इसी के साथ गुरु अपने गोचर से जातक के जिस भी भाव मे गोचर करेगा वह सम्बन्धित भाव के अनुसार अपने अपने कारणों से उन्ही दोषों की वृद्धि भी करेगा और दोष निकालने की शक्ति भी देगा। प्राणवायु के रूप में वह अपनी शक्ति के अनुसार उन्ही कारकों को अपने अन्दर ले जायेगा जो जातक को शक्ति देने या शक्ति को बरबाद करने के लिये माने जा सकते है। जैसे कन्या का गुरु अगर तुला में जाता है तो वह अपने अनुसार तुला राशि के अन्दर व्याप्त रोग या तो बढायेगा या घटायेगा। वह रोग या तो शादी सम्बन्ध वाले होंगे या खुद के व्यापार करने की क्षमता वाले होंगे इसके साथ या तो साझेदार से कर्जा दुश्मनी बीमारी का कारण पैदा करेगा या इन्हे सुलझाने के लिये सहायक के रूप में अपना बल देगा। वही गुरु अगर जातक के धनु राशि वाले भाव में जायेगा तो पहले वह भाव के फ़लों में वृद्धि या कमी करेगा,उसके बाद धनु राशि के स्वभाव कार्य और अन्य कारकों के प्रति अपने अपने अनुसार फ़लो में अपना असर प्रदान करेगा,जैसे कन्या राशि का गुरु अगर धनु राशि में गोचर करेगा तो धर्म कानून विदेश यात्रा ऊपरी ताकते देवी देवताओं की स्थापना या अन्य प्रकार के विरोधी कार्य कर सकता है,या विदेश भेज सकता है या विदेश से बुला सकता है आदि बाते समझी जा सकती है उसी के अनुसार अगर गुरु जातक के दूसरे भाव है तो धन और कुटुम्ब वाली बाते तथा भाव से सम्बन्धित बातों का फ़ल प्रदान करेगा,धनु राशि है तो बाते धन और कुटुम्ब वाली कानून तकनीक और विदेश से सम्बन्धित धन ऊंची शिक्षा के लिये किये जाने वाले खर्चे या ऊंची शिक्षा के लिये किये जाने वाले खर्चे के लिये माना जा सकता है।
गुरु जब राहु के साथ आजाता है तो जीव की गति बिगडने के लिये कई तरह के कनफ़्यूजन पैदा होने लगते है,वे सभी कनफ़्यूजन अपने अपने अनुसार अलग अलग कार्यों और जातकों के प्रति अपनी अपनी सोच को लेकर होते है,जो भी साथ वाले लोगों से कार्य किये जाते है या तो वे शंका वाले होते है,या फ़िर विश्वास में कमी करने वाले होते है,या फ़िर आपसी कनफ़्यूजन के कारण उनके अन्दर कई प्रकार की शंकायें बनती रहती है। राहु के द्वारा कनफ़्यूजन आने के बाद चलने वाले रिस्ते भी बिगडने लगते है,उन रिस्तों के अन्दर कई प्रकार के भाव अपने आप प्रकट होने लगते है,राहु की सिफ़्त के अनुसार जीव के साथ कई घटनायें अपने अपने अनुसार अचानक होनी शुरु होती है,और उन घटनाओं से जीव का अगर वह संभला नही तो अन्त भी हो सकता है और वह समय के अनुसार अस्पताल या अन्य इसी प्रकार के स्थानों में अपने जीवन को निकाल सकता है। राहु के साथ गुरु होने से पुराणो और महापुरुषों के द्वारा बालारिष्ट योग की कल्पना भी की गयी है। इस कल्पना के द्वारा राहु तभी गलत फ़ल देता है जब वह या तो वृश्चिक राशि का होता है या त्रिक भावों में जन्म कुंडली में होता है अन्य स्थानों की गति के अनुसार अक्सर राहु अच्छे फ़ल ही प्रदान करता है और जातक को अचानक बचाने की और मारने की क्रिया भी करता है।
गुरु सांस का कारक है और सांस के चलने तक जीव का जिन्दा रहना माना जाता है। गुरु के स्वभाव के लिये अन्य ग्रह अपने अपने अनुसार गुरु पर प्रभाव देते है जैसे गुरु अगर डाक्टरी राशि में है तो जीव के पास चिकित्सा के कारण मिलते है और जीव अपने अन्दर चिकित्सा वाले कारण और बैंक जमा पूंजी दुश्मनी बनाने और निकालने वाले कारण रोजाना के कार्य करने के मामले बीमारी आदि के कारण जानने और निकालने की क्षमता रखता है। इसी के साथ गुरु अपने गोचर से जातक के जिस भी भाव मे गोचर करेगा वह सम्बन्धित भाव के अनुसार अपने अपने कारणों से उन्ही दोषों की वृद्धि भी करेगा और दोष निकालने की शक्ति भी देगा। प्राणवायु के रूप में वह अपनी शक्ति के अनुसार उन्ही कारकों को अपने अन्दर ले जायेगा जो जातक को शक्ति देने या शक्ति को बरबाद करने के लिये माने जा सकते है। जैसे कन्या का गुरु अगर तुला में जाता है तो वह अपने अनुसार तुला राशि के अन्दर व्याप्त रोग या तो बढायेगा या घटायेगा। वह रोग या तो शादी सम्बन्ध वाले होंगे या खुद के व्यापार करने की क्षमता वाले होंगे इसके साथ या तो साझेदार से कर्जा दुश्मनी बीमारी का कारण पैदा करेगा या इन्हे सुलझाने के लिये सहायक के रूप में अपना बल देगा। वही गुरु अगर जातक के धनु राशि वाले भाव में जायेगा तो पहले वह भाव के फ़लों में वृद्धि या कमी करेगा,उसके बाद धनु राशि के स्वभाव कार्य और अन्य कारकों के प्रति अपने अपने अनुसार फ़लो में अपना असर प्रदान करेगा,जैसे कन्या राशि का गुरु अगर धनु राशि में गोचर करेगा तो धर्म कानून विदेश यात्रा ऊपरी ताकते देवी देवताओं की स्थापना या अन्य प्रकार के विरोधी कार्य कर सकता है,या विदेश भेज सकता है या विदेश से बुला सकता है आदि बाते समझी जा सकती है उसी के अनुसार अगर गुरु जातक के दूसरे भाव है तो धन और कुटुम्ब वाली बाते तथा भाव से सम्बन्धित बातों का फ़ल प्रदान करेगा,धनु राशि है तो बाते धन और कुटुम्ब वाली कानून तकनीक और विदेश से सम्बन्धित धन ऊंची शिक्षा के लिये किये जाने वाले खर्चे या ऊंची शिक्षा के लिये किये जाने वाले खर्चे के लिये माना जा सकता है।
गुरु जब राहु के साथ आजाता है तो जीव की गति बिगडने के लिये कई तरह के कनफ़्यूजन पैदा होने लगते है,वे सभी कनफ़्यूजन अपने अपने अनुसार अलग अलग कार्यों और जातकों के प्रति अपनी अपनी सोच को लेकर होते है,जो भी साथ वाले लोगों से कार्य किये जाते है या तो वे शंका वाले होते है,या फ़िर विश्वास में कमी करने वाले होते है,या फ़िर आपसी कनफ़्यूजन के कारण उनके अन्दर कई प्रकार की शंकायें बनती रहती है। राहु के द्वारा कनफ़्यूजन आने के बाद चलने वाले रिस्ते भी बिगडने लगते है,उन रिस्तों के अन्दर कई प्रकार के भाव अपने आप प्रकट होने लगते है,राहु की सिफ़्त के अनुसार जीव के साथ कई घटनायें अपने अपने अनुसार अचानक होनी शुरु होती है,और उन घटनाओं से जीव का अगर वह संभला नही तो अन्त भी हो सकता है और वह समय के अनुसार अस्पताल या अन्य इसी प्रकार के स्थानों में अपने जीवन को निकाल सकता है। राहु के साथ गुरु होने से पुराणो और महापुरुषों के द्वारा बालारिष्ट योग की कल्पना भी की गयी है। इस कल्पना के द्वारा राहु तभी गलत फ़ल देता है जब वह या तो वृश्चिक राशि का होता है या त्रिक भावों में जन्म कुंडली में होता है अन्य स्थानों की गति के अनुसार अक्सर राहु अच्छे फ़ल ही प्रदान करता है और जातक को अचानक बचाने की और मारने की क्रिया भी करता है।