श्लोक
माँ कामाख्या नमस्तुभ्यं शैलसुता कामेश्वरी । हरप्रिया नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे॥ भुवनेश्वरी भवतारिणी मंगल मोक्ष प्रदायिणी। कामना सिद्ध कामेश्वरी शक्तिशैल समन्विता॥
अधिष्ठात्री असमदेशे आवाह्यामि सुसर्वदा। सिद्धक्षेत्र नीलांचले
शक्तिपीठ प्रतिष्ठितम॥ नमोऽस्तु कामाख्याय देवै च तेजोमयं दिव्यम। प्रणमामि सदा भक्तया माँ कामाख्या परम शुभम॥
नमोभगवती भगेश्वरी योनि मुद्रा महोदरी। शरण्ये शक्तिरुपाय देवि कल्याणी नमोऽस्तुते॥
दोहा
कामेश्वरी करुना करो गुरु गणेश परिवार। शब्द सुलभ आराधना वरणौ मति अनुसार॥ दीन हीन बलहीन हौं पर बालक हँ तेरे। हे माँ ! तू ममतामयी सब विघ्न हरु मेरे॥
चौपाई
जय जय अम्बे कामाकाली। रक्ताम्बुज नयन मतबाली॥ तव चरणन में आकर माता,खाली हाथ न कोई जाता॥
खोह खंड मह कियो निवासू,निलांचल पर्वत पर बासू॥ जननी तू जन जीवन हेतू,अखिल विश्व के तूहि चित्त चेतू॥
अविकल कला काम बहुरंगा,धरणी धाम जगपावनी गंगा,स्त्रवत सलिल सुख जग हितकारी,सेवत सकल सुकृत तनुधारी॥माया मोह मोहिनी रूपा,जग मोहिनी तव चरित अनूपा॥यंत्र तंत्र अभिमंत्र अभिषेका,भक्ति भाव जनजीव अनेका॥योग जाप भव भोग भवानी,पावत सिद्धि जो जस ज्ञानी॥
दोहा
योग भोग सिद्धि दोऊ,जो चाहे सो लेत।कामाख्या करुणा करि,मंत्र मुग्ध करि देत॥
चौपाई
ज्ञानी गुणी सिद्ध मुनि शारद,जपत निरंतर ज्ञान विशारद॥लोक परलोक त्रिभुवन माता,भक्त वत्सल जन सुखदाता॥स्वामिनी एक आस तुम्हारी,जन सुखदायक भव भय हारी॥तू माया ममता की काया,दे माँ मुझे आंचल की छाया॥छत्र छाया मह जीवन मेरा,जीवन का यह सुखद सबेरा॥शरणागत चरणों में माता,पाऊ तुझे सदा मुसुकाता॥सेवत सदा योगी मुनि ज्ञानी,पावत सकल सुकृत सेयानी॥शीतल सुभग सदा बह नीरा,कामायनी शत कल्प शरीरा॥जप तप साधन नहि कछु मोरे,है सब प्रकार अनुग्रह तोरे॥किस विधि करू आराधना देवी,हूँ मै मूरख हे सुरसेवी॥कामेश्वरी हे माँ भवानी,करहु कृपा शिवा कल्याणी॥
दोहा
भक्त करे आराधना, नहि बल बुद्धि निधान। कामरूप के महादेवी निज भक्ति देहु मोहि दान॥
आया हूँ माँ आस लिये पुत्र प्यार अभिलाषा।जीवन जगत भक्ति मुक्ति जटिल जीव जिज्ञासा॥
चौपाई
आराधना सेवा कठिनाई,बसहु ह्रदय भक्तन के माई। नहि बल पौरुष पास हमारें,सेवक सब विधि शरण तुम्हारे॥
भटक भटक जग जीवन हारा,जाऊं कहां न कोई सहारा,विकल विवस विचरौं तव द्वार,ना कोई अपना सिवा तुम्हार। अश्रु अर्घ अभिषेक भवानी,यहि जीवन की कथा पुरानी॥ हूँ अनाथ नहि सोदर भ्राता,दीन हीन हूँ बाम विधाता॥ हे माँ ! अब तुम्ही सम्भालो,अपने आंचल में ही पालो। बार बार अर्ज हे स्वामिनी,महागौरी अघोर कामिनी॥ अरजी है मरजी तुम्हारी,दया करो हे माँ अघहारी॥ विकल विवश हो एक पापी पुकारे,खडा हूँ माँ में तेरे द्वारे॥
दोहा
हूँ माँ अधम अभिमानी,माँ सुनलो पुकार। पूर्ण करहु मनोकामना पडा हूँ तेरे द्वार॥
जनम जनम के नेहिया नहि बल बुद्धि निधान। बालक पर ममता करहु भक्ति विमल यश दान॥
चौपाई
दयाकर माँ हमे अपनाना,हम पतितों को पावन बनाना। कर्म कुटिल चित चंचलताई,माँ कामाख्या होहु सहाई॥ अर्घ आचमन पान सुपारी,फ़ूल प्रसाद अर्चन तुम्हारी। नवल नारियल बलि चढावा,माँ कामाख्या के मन भावा॥ भाव सहित जो पूजा करहीं,मन वांछित फ़ल सो अनुसरहीं। विविधि वासना मन कुटिलाई,दूर करहु कामाख्या माई॥ आचमन जल पावनी गंगा,चरण सुमिरि करौ सत्संगा॥ महाशक्ति युग युग की रानी,घर घर फ़ैली अमर कहानी॥ शक्ति की अधिष्ठात्री देवी,नीलांचल के तु सुरसेवी॥ कामदेव रति महारानी,माँ कामाख्या के अनुगामी॥
दोहा
भगवती भव भामिनी,गौरी सहित महेश। सिद्ध करहु मनोकामना बसहु ह्रदय प्रदेश॥
चौपाई
रूप अनंग शिवशाप अधिकारी,अनुगृहित भय रतिपति भारी॥ देव दनुज मुनि सेवा करहीं,कामाख्या शरण अनुसरहीं॥ कृपा अमोघ सुर सिद्धि भवानी,किस विधि पाऊं मैं अधम अभिमानी॥ भक्ति भाव है नहि कछु मोरे,सबकुछ अर्पण चरण में तोरे॥ माँ महिमा का कहौ तुम्हारी,हे माया ! तू है अघहारी॥ साधन सिद्धि न कछु सतसंगा,समन सकल दुख मुनि सरभंगा॥ पूजा पाठ न जप तप नेमा,परम प्रसाद पुनीत पद प्रेमा॥ सुकृत सकल सुख सहज भवानी,दुर्लभ दर्शन पावत मुनि ज्ञानी॥ योगी यति तपसी मुनि ज्ञानी,धरत ध्यान सुकृत फ़ल जानी॥ धरनी धाम धर्म पुण्य प्रभाऊ,मिलही ने एक संग सब काऊ॥
दोहा
नहि जप तप न भक्ति कछु,देहु विमल यश सार। हाथ जोड विनती करौं चाहत माँ का प्यार॥
दुख हरहु कामेश्वरी संकट विकट पहार। नहि जानौं उपासना,सेवा योग उपहार॥
चौपाई
जीव जगत लभी तव बासा,ढूंडत फ़िरत मृग क्षुधा पिपासा॥ नहि मुण कर्म न भक्त बडभागी,अधम अधिन जग परम अभागी॥ अग जग नहि कोइ मम हितकारी,भगवती सदा शरण तुम्हारी॥ करूं परितोष कस हे कल्याणी,सब विधि विवस अधम अज्ञानी॥ सोच सकल हिय अहित असंका,मिटहहि नहि जन्म कोटि कलंका॥ अस मैं अधम सुनहु कल्याणी,जटिल जीव की यही कहानी॥ है पूत कपूत महा अभिमानी,मात कुमात न होइ भवानी॥ हिय महिं सोचु सकल जग दोषू,करहि क्षमा नहि करहहिं रोषू॥ अब मोहि भा भरोस हे माता,जन सुखदायक भाग्य विधाता॥ मुद की मंगल अमंगल हारी,सदा विराजत संग पुरारी॥
दोहा
जीवन जटिल कुटिल अति युग युग का अभिशाप। यद्यपि पूत कपूत है समन सकल मम पाप॥
चौपाई
नहि तेरा आदि अवसाना,वेद पुराण विदित जग जाना॥ कण कण में है बास तुम्हारी,माँ शक्ति अमोघ सुखकारी॥ कामरूप कामाख्या माता,करुणा कीजै जन सुखदाता॥ महा शक्ति सर्वदेवी श्यामा,तुहि एक सब पूरण कामा॥ वरनौ का तब नाम अनेका,जगन्माता सब एक ते एका॥ जो कछु बरनौ मोर ढिठाई,क्षमा करहु कामाख्या माई॥ छन्द प्रबन्ध विविधि विधि नाना,मै मूरख विधि एक नहि जाना॥ स्वारथ लागि विविधि विधाना,येहि जपतप जोग व्रत ध्याना॥ आराधना के शब्द भवानी,मातृ स्नेह तोतरी वानी॥
दोहा
अगनित नाम गुण रूप बहु कथा विधान अनेक। महाशक्ति कामाख्या महादेवी तू एक॥
आदि शक्ति विस्तारणी अगजग महा समुन्द। तू गागर में सागर है,मैं सागर का बुन्द॥
चौपाई
कहां कहां लौ नेह अरु नाता,मानिय सोइ जो तेहि भाता॥ नहि समरथ नहि बुद्धि प्रवीना,मम जीवन माँ तेहि आधीना॥ अस जिये जानि मानहु माता,तू कपूत की भाग्य विधाता॥ कुल गुरु की यह अकथ कहानी,हिये धरों श्रवणामृत जानी॥ अब मोहि भरोस हे माता,कामाख्या तु जग विख्याता॥ त्रिकोण मध्य की बिन्दु महारानी,उस बिन्दु में सिन्धु समानी॥ यह रहस्य कोइ नहि जाना,वेद पुराण में कथा बखाना॥ बहुत कहौ का तोर प्रभुताई,नारद शारद सकहिं न गाई॥ जो मै कहां बुद्धि अनुकूला,छमिय देवि गुण दोष प्रतिकूला॥ तुम्ह समान नहि कोइ है दाता,नहिं विकल्प संकल्प समाता॥
दोहा
नहि साधन गुनहीन मै,किस विधि हो निस्तार। माँ की ममता महिमामयी करेगी बेडा पार॥
चौपाई
अस विश्वास सुनहु हे माई,करहु कृपा भव आव न जाई॥ यहि कामना बसै मन मोरे,सब विधि मात अनुग्रह तोरे॥ लोक वासना बसत मन माहीं,यही सोचि मन रहो अकुलाई॥ नहि सिद्धि अरु साधन मोरे,कृपा अनुग्रह सब विधि तोरे॥ भक्ति मुक्ति जग्य योग अनूपा,साधन धन धाम के अनुरूपा॥ साधन हीन नराधम भारी,पावहि किस विधि कृपा तुम्हारी॥ ये सब कृपा कटाक्ष तुम्हारे,तू चाहे तो भव निस्तारे॥ लाख चाहे करौ चतुराई,परवश जीव स्वबश है माई॥ कामाख्या कामरूप शिवानी,नीलांचल पर्वत की रानी॥
दोहा
सब विधि शरण तुम्हारी,माँ ममता विस्तार। हे माँ ! तू करुणामयी दे आंचल की बयार॥
जाऊं कहां मै विवश हूं माँ,कछु न आन आधार। जनम जनम से मांगता केवल तेरा प्यार॥
चौपाई
प्राकृतिक सौन्दर्य निराला,निरखी परख भव भ्रम उजाला॥ नारायणी गंडकी कुमारी,विश्व मातृका भवभय हारी॥ नाम अनेक एक महामाया,देश काल भिन्न रूप बनाया॥ आराधना अनुपम मीनाक्षी,माँ कामाख्या स्वयं है साक्षी॥ युग अनुरूप जग यश देता,माया ब्रह्म जीव अभिनेता॥ नट नागर विश्वरूप प्रणेता,महाशक्ति एक चिन्मय चेता॥ जगदाधार तू धरणी धामा,जय माँ जय माँ काली कामा॥ शतक आराधना माँ निराली,चारो पदारथ देने वाली॥ जो नित पाठ करहि मन लाई,देहि सिद्धि कामाख्या माई॥ कामाख्या मैं आश्रय तोरे,सब कुछ सौपा नहि बस मोरे॥
दोहा
सिद्ध आराधना शतक भक्ति मुक्ति का द्वार। कामाख्या अर्पण तुझे शब्द सुमन का हार॥
मन पूजा अर्पित करी करि संकल्प अपार। माँ तेरी आरती करूं जन को लेहु संभारि॥
तंत्र के द्वारा व्यक्ति राष्ट्र की उन्नति होती है,आज जो भी प्रगति है वह तंत्र के कारण ही है,यथा राजतंत्र,मशीन तंत्र उर्वरक तंत्र आदि। जो कल था वह आज नही है,जो आज है वह कल नही होगा,लेकिन तंत्र कल भी था,आज भी है,और कल भी रहेगा।
Tuesday, April 6, 2010
Monday, April 5, 2010
भूत प्रेत की पहिचान
अक्सर लोगों के अन्दर भूत प्रेत घुस जाते है और वे व्यक्ति के जीवन को तबाह कर देते है,भूत-डामर तंत्र में उनकी पहिचान जिस प्रकार से बताई गयी है वह निम्न लिखित है।
भूत लगे व्यक्ति की पहिचान
जब किसी व्यक्ति को भूत लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं।
देवता लगे व्यक्ति की पहिचान
जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।
देवशत्रु लगना
देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है।उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।
गंधर्व लगना
जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.
यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है,इसी प्रकार से जब पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है,उसका दिमाग भारी हो जाता है,उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है,इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं। नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है,अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है,दूध पीने की आदत अधिक होती है,एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है,आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है,सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है,बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है,होंठ अधिक फ़टने लगते है। राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है,उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है,अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है,जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है,अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है,उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये.अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है,आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है,हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है। पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है,उसे मल को खाते तक देखा गया है,वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है,शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है,स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है,एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है,अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है,वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है,खाने से कभी मना नही करता है। सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है,उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है,सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है,आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है,अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है। कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है,मन भी स्थिर नही रहता है,शरीर दुर्बल हो जाता है,गाल धंस जाते है,स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है,नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है। डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है,आंखो में भारी दर्द रहता है,कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है,खडे होने पर शरीर कंपने लगता है,रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है,भोजन से बिलकुल जी हट जाता है। इसी प्रकार से क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है,उसे बेकार से स्वपन आने लगते है,पेट में दर्द होता रहता है,जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है। ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है,अपने को बहुत ऊंचा समझता है,उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है,रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है,डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। जो लोग अकाल मौत से मरते है उन्हे प्रेत योनि में जाना पडता है ऐसा गरुड-पुराण का मत है,इस प्रकार की आत्मायें जब किसी की देह में भरती है तो वह रोता है चीखता है चिल्लाता है,भागता है,कांपता है,सांस बहुत ही तीव्र गति से चलती है,किसी का भी किसी प्रकार से भी कहा नही मानता है,कटु वचनों के बोलने के कारण उसके परिवार या जान पहिचान वाले उससे डरने लगते है। चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है,नानवेज खाने की आदत लग जाती है,अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है,गर्भ को टिकने नही देती है,उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है। कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते है,अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है। भूत-डामर तंत्र में जो बातें लिखी गयीं है वे आज के वैज्ञानिक युग में अमाननीय है। लेकिन जब किसी व्यक्ति से इन बातों के बारे में सुना जाता है तो सुनकर यह भी मानना पडता है कि वास्तव में कुछ तो सत्यता हो सकती है,सभी बातों को झुठलाया तो नही जा सकता है।
भूत लगे व्यक्ति की पहिचान
जब किसी व्यक्ति को भूत लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं।
देवता लगे व्यक्ति की पहिचान
जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।
देवशत्रु लगना
देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है।उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।
गंधर्व लगना
जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.
यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है,इसी प्रकार से जब पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है,उसका दिमाग भारी हो जाता है,उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है,इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं। नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है,अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है,दूध पीने की आदत अधिक होती है,एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है,आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है,सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है,बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है,होंठ अधिक फ़टने लगते है। राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है,उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है,अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है,जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है,अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है,उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये.अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है,आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है,हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है। पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है,उसे मल को खाते तक देखा गया है,वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है,शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है,स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है,एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है,अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है,वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है,खाने से कभी मना नही करता है। सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है,उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है,सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है,आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है,अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है। कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है,मन भी स्थिर नही रहता है,शरीर दुर्बल हो जाता है,गाल धंस जाते है,स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है,नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है। डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है,आंखो में भारी दर्द रहता है,कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है,खडे होने पर शरीर कंपने लगता है,रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है,भोजन से बिलकुल जी हट जाता है। इसी प्रकार से क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है,उसे बेकार से स्वपन आने लगते है,पेट में दर्द होता रहता है,जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है। ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है,अपने को बहुत ऊंचा समझता है,उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है,रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है,डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। जो लोग अकाल मौत से मरते है उन्हे प्रेत योनि में जाना पडता है ऐसा गरुड-पुराण का मत है,इस प्रकार की आत्मायें जब किसी की देह में भरती है तो वह रोता है चीखता है चिल्लाता है,भागता है,कांपता है,सांस बहुत ही तीव्र गति से चलती है,किसी का भी किसी प्रकार से भी कहा नही मानता है,कटु वचनों के बोलने के कारण उसके परिवार या जान पहिचान वाले उससे डरने लगते है। चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है,नानवेज खाने की आदत लग जाती है,अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है,गर्भ को टिकने नही देती है,उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है। कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते है,अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है। भूत-डामर तंत्र में जो बातें लिखी गयीं है वे आज के वैज्ञानिक युग में अमाननीय है। लेकिन जब किसी व्यक्ति से इन बातों के बारे में सुना जाता है तो सुनकर यह भी मानना पडता है कि वास्तव में कुछ तो सत्यता हो सकती है,सभी बातों को झुठलाया तो नही जा सकता है।
सफ़ेद आक का तंत्र में महत्व
सफ़ेद आक एक जंगली पौधा है,और यह बंजर और सूखे प्रदेशों में अधिक होता है,नीले और सफ़ेद रंग के आक अक्सर भारत के शुष्क प्रदेशों में अधिक मिलते है,लेकिन भारत के राजस्थान प्रान्त में सफ़ेद आक की पैदाइस अधिक होती है। यह एक तांत्रिक पौधा भी है,इसलिये इसकी मान्यता अधिक पायी जाती है। इसके पत्ते या फ़ूल को तोडने पर खूब सारा जहरीला दूध निकलता है,वह दूध अगर आंख में चला जाये तो आंख की रोशनी खत्म हो सकती है। सफ़ेद आक के फ़ूल बिलकुल सफ़ेद रंग के होते है उन पर किसी अन्य रंग को नही देखा जाता है जिस फ़ूल पर अन्य रंग होते है वह सफ़ेद आक नही होता है। यह पौधा भगवान शिवजी पर चढाये जाने वाले फ़ूलों को देता है,इसलिये भी इस पौधे को महत्ता दी जाती है.अक्सर लोग अपने दरवाजे पर जिनके घर के दरवाजे नैऋत्य मुखी होते है,इस पौधे को लगाते है तो उनके घर के अन्दर के वास्तु दोष समाप्त हो जाते है,घर के अन्दर होने वाले भुतहा उपद्रव शान्त हो जाते है,घर के सदस्यों के अन्दर चलने वाली बुराइयां समाप्त हो जाती है ,और जिन घरों मांस मदिरा का अधिक उपयोग होता है उनमें कम हो जाता है या पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। इस पौधे को राजार्क भी कहते है,इस पौधे की जड में गणेशजी की प्रतिमा अपने आप बन जाती है,पौधा लगाने के सातवीं साल तक वह प्रतिमा बनजाती है,और तभी तक यह पौधा घर के बाहर तक रहता भी है,अगर सातवीं साल में इसकी केयर नही की जाती है तो वह पौधा सूख कर खत्म हो जाता है और जड में बनी गणेशजी की प्रतिमा भी मिट्टी हो जाती है। इस पौधे के रहने वाले स्थान पर धन की कमी नही रहती है ऐसा लोगों का विश्वास माना जाता है। जो लोग तांत्रिक कार्य करते है वे इस पौधे की तलाश में हमेशा रहते है,पूर्णिमा तिथि को सोमवार के दिन इस पौधे से फ़ूल लेकर भगवान शिव जी पर अर्पण करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है ऐसी लोगों की मान्यता है,तरुण रसायन नामक बटी को इसी आक के पेड की जड से बनाया जाता है,जिसे प्रयोग करने से शरीर के सभी प्रकार के जहरीले दुर्गुण दूर हो जाते है। इसकी जड को सोमवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करने से अला बला दूर रहती है,इसे घिस कर तिलक लगाकर भगवान भोले नाथ की पूजा करने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है,इच्छा पूर्ति के लिये इस की जड को विभिन्न दिशाओं से खोद कर उनकी विभिन्न प्रकार से पूजा की जाती है। दुर्भाग्य के लिये नाभि पर कमल का पत्ता और बायीं भुजा पर सफ़ेद आक का पत्ता बांधने पर सौभाग्य की पूर्ति होने लगती है,किसी भी प्रकार की व्याधि और अरिष्ट की आशंका के समय इस पेड की जड से बने गणपति की आराधना करना चाहिये.
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