Tuesday, April 6, 2010

माँ कामाख्या आराधना शतक

श्लोक
माँ कामाख्या नमस्तुभ्यं शैलसुता कामेश्वरी । हरप्रिया नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे॥ भुवनेश्वरी भवतारिणी मंगल मोक्ष प्रदायिणी। कामना सिद्ध कामेश्वरी शक्तिशैल समन्विता॥
अधिष्ठात्री असमदेशे आवाह्यामि सुसर्वदा। सिद्धक्षेत्र नीलांचले
शक्तिपीठ प्रतिष्ठितम॥ नमोऽस्तु कामाख्याय देवै च तेजोमयं दिव्यम। प्रणमामि सदा भक्तया माँ कामाख्या परम शुभम॥
नमोभगवती भगेश्वरी योनि मुद्रा महोदरी। शरण्ये शक्तिरुपाय देवि कल्याणी नमोऽस्तुते॥
दोहा
कामेश्वरी करुना करो गुरु गणेश परिवार। शब्द सुलभ आराधना वरणौ मति अनुसार॥ दीन हीन बलहीन हौं पर बालक हँ तेरे। हे माँ ! तू ममतामयी सब विघ्न हरु मेरे॥
चौपाई
जय जय अम्बे कामाकाली। रक्ताम्बुज नयन मतबाली॥ तव चरणन में आकर माता,खाली हाथ न कोई जाता॥
खोह खंड मह कियो निवासू,निलांचल पर्वत पर बासू॥ जननी तू जन जीवन हेतू,अखिल विश्व के तूहि चित्त चेतू॥
अविकल कला काम बहुरंगा,धरणी धाम जगपावनी गंगा,स्त्रवत सलिल सुख जग हितकारी,सेवत सकल सुकृत तनुधारी॥माया मोह मोहिनी रूपा,जग मोहिनी तव चरित अनूपा॥यंत्र तंत्र अभिमंत्र अभिषेका,भक्ति भाव जनजीव अनेका॥योग जाप भव भोग भवानी,पावत सिद्धि जो जस ज्ञानी॥
दोहा
योग भोग सिद्धि दोऊ,जो चाहे सो लेत।कामाख्या करुणा करि,मंत्र मुग्ध करि देत॥ 
चौपाई
ज्ञानी गुणी सिद्ध मुनि शारद,जपत निरंतर ज्ञान विशारद॥लोक परलोक त्रिभुवन माता,भक्त वत्सल जन सुखदाता॥स्वामिनी एक आस तुम्हारी,जन सुखदायक भव भय हारी॥तू माया ममता की काया,दे माँ मुझे आंचल की छाया॥छत्र छाया मह जीवन मेरा,जीवन का यह सुखद सबेरा॥शरणागत चरणों में माता,पाऊ तुझे सदा मुसुकाता॥सेवत सदा योगी मुनि ज्ञानी,पावत सकल सुकृत सेयानी॥शीतल सुभग सदा बह नीरा,कामायनी शत कल्प शरीरा॥जप तप साधन नहि कछु मोरे,है सब प्रकार अनुग्रह तोरे॥किस विधि करू आराधना देवी,हूँ मै मूरख हे सुरसेवी॥कामेश्वरी हे माँ भवानी,करहु कृपा शिवा कल्याणी॥
दोहा
भक्त करे आराधना, नहि बल बुद्धि निधान। कामरूप के महादेवी निज भक्ति देहु मोहि दान॥
आया हूँ माँ आस लिये पुत्र प्यार अभिलाषा।जीवन जगत भक्ति मुक्ति जटिल जीव जिज्ञासा॥
चौपाई
आराधना सेवा कठिनाई,बसहु ह्रदय भक्तन के माई। नहि बल पौरुष पास हमारें,सेवक सब विधि शरण तुम्हारे॥
भटक भटक जग जीवन हारा,जाऊं कहां न कोई सहारा,विकल विवस विचरौं तव द्वार,ना कोई अपना सिवा तुम्हार। अश्रु अर्घ अभिषेक भवानी,यहि जीवन की कथा पुरानी॥ हूँ अनाथ नहि सोदर भ्राता,दीन हीन हूँ बाम विधाता॥ हे माँ ! अब तुम्ही सम्भालो,अपने आंचल में ही पालो। बार बार अर्ज हे स्वामिनी,महागौरी अघोर कामिनी॥ अरजी है मरजी तुम्हारी,दया करो हे माँ अघहारी॥ विकल विवश हो एक पापी पुकारे,खडा हूँ माँ में तेरे द्वारे॥
दोहा
हूँ माँ अधम अभिमानी,माँ सुनलो पुकार। पूर्ण करहु मनोकामना पडा हूँ तेरे द्वार॥
जनम जनम के नेहिया नहि बल बुद्धि निधान। बालक पर ममता करहु भक्ति विमल यश दान॥
चौपाई
दयाकर माँ हमे अपनाना,हम पतितों को पावन बनाना। कर्म कुटिल चित चंचलताई,माँ कामाख्या होहु सहाई॥ अर्घ आचमन पान सुपारी,फ़ूल प्रसाद अर्चन तुम्हारी। नवल नारियल बलि चढावा,माँ कामाख्या के मन भावा॥ भाव सहित जो पूजा करहीं,मन वांछित फ़ल सो अनुसरहीं। विविधि वासना मन कुटिलाई,दूर करहु कामाख्या माई॥ आचमन जल पावनी गंगा,चरण सुमिरि करौ सत्संगा॥ महाशक्ति युग युग की रानी,घर घर फ़ैली अमर कहानी॥ शक्ति की अधिष्ठात्री देवी,नीलांचल के तु सुरसेवी॥ कामदेव रति महारानी,माँ कामाख्या के अनुगामी॥
दोहा
भगवती भव भामिनी,गौरी सहित महेश। सिद्ध करहु मनोकामना बसहु ह्रदय प्रदेश॥
चौपाई
रूप अनंग शिवशाप अधिकारी,अनुगृहित भय रतिपति भारी॥ देव दनुज मुनि सेवा करहीं,कामाख्या शरण अनुसरहीं॥ कृपा अमोघ सुर सिद्धि भवानी,किस विधि पाऊं मैं अधम अभिमानी॥ भक्ति भाव है नहि कछु मोरे,सबकुछ अर्पण चरण में तोरे॥ माँ महिमा का कहौ तुम्हारी,हे माया ! तू है अघहारी॥ साधन सिद्धि न कछु सतसंगा,समन सकल दुख मुनि सरभंगा॥  पूजा पाठ न जप तप नेमा,परम प्रसाद पुनीत पद प्रेमा॥ सुकृत सकल सुख सहज भवानी,दुर्लभ दर्शन पावत मुनि ज्ञानी॥ योगी यति तपसी मुनि ज्ञानी,धरत ध्यान सुकृत फ़ल जानी॥ धरनी धाम धर्म पुण्य प्रभाऊ,मिलही ने एक संग सब काऊ॥
दोहा
नहि जप तप न भक्ति कछु,देहु विमल यश सार। हाथ जोड विनती करौं चाहत माँ का प्यार॥
दुख हरहु कामेश्वरी संकट विकट पहार। नहि जानौं उपासना,सेवा योग उपहार॥
चौपाई
जीव जगत लभी तव बासा,ढूंडत फ़िरत मृग क्षुधा पिपासा॥ नहि मुण कर्म न भक्त बडभागी,अधम अधिन जग परम अभागी॥ अग जग नहि कोइ मम हितकारी,भगवती सदा शरण तुम्हारी॥ करूं परितोष कस हे कल्याणी,सब विधि विवस अधम अज्ञानी॥ सोच सकल हिय अहित असंका,मिटहहि नहि जन्म कोटि कलंका॥ अस मैं अधम सुनहु कल्याणी,जटिल जीव की यही कहानी॥ है पूत कपूत महा अभिमानी,मात कुमात न होइ भवानी॥ हिय महिं सोचु सकल जग दोषू,करहि क्षमा नहि करहहिं रोषू॥ अब मोहि भा भरोस हे माता,जन सुखदायक भाग्य विधाता॥ मुद की मंगल अमंगल हारी,सदा विराजत संग पुरारी॥
दोहा
जीवन जटिल कुटिल अति युग युग का अभिशाप। यद्यपि पूत कपूत है समन सकल मम पाप॥
चौपाई
नहि तेरा आदि अवसाना,वेद पुराण विदित जग जाना॥ कण कण में है बास तुम्हारी,माँ शक्ति अमोघ सुखकारी॥ कामरूप कामाख्या माता,करुणा कीजै जन सुखदाता॥ महा शक्ति सर्वदेवी श्यामा,तुहि एक सब पूरण कामा॥ वरनौ का तब नाम अनेका,जगन्माता सब एक ते एका॥ जो कछु बरनौ मोर ढिठाई,क्षमा करहु कामाख्या माई॥ छन्द प्रबन्ध विविधि विधि नाना,मै मूरख विधि एक नहि जाना॥ स्वारथ लागि विविधि विधाना,येहि जपतप जोग व्रत ध्याना॥ आराधना के शब्द भवानी,मातृ स्नेह तोतरी वानी॥
दोहा
अगनित नाम गुण रूप बहु कथा विधान अनेक। महाशक्ति कामाख्या महादेवी तू एक॥
आदि शक्ति विस्तारणी अगजग महा समुन्द। तू गागर में सागर है,मैं सागर का बुन्द॥
चौपाई
कहां कहां लौ नेह अरु नाता,मानिय सोइ जो तेहि भाता॥ नहि समरथ नहि बुद्धि प्रवीना,मम जीवन माँ तेहि आधीना॥ अस जिये जानि मानहु माता,तू कपूत की भाग्य विधाता॥ कुल गुरु की यह अकथ कहानी,हिये धरों श्रवणामृत जानी॥ अब मोहि भरोस हे माता,कामाख्या तु जग विख्याता॥ त्रिकोण मध्य की बिन्दु महारानी,उस बिन्दु में सिन्धु समानी॥ यह रहस्य कोइ नहि जाना,वेद पुराण में कथा बखाना॥ बहुत कहौ का तोर प्रभुताई,नारद शारद सकहिं न गाई॥ जो मै कहां बुद्धि अनुकूला,छमिय देवि गुण दोष प्रतिकूला॥ तुम्ह समान नहि कोइ है दाता,नहिं विकल्प संकल्प समाता॥
दोहा
नहि साधन गुनहीन मै,किस विधि हो निस्तार। माँ की ममता महिमामयी करेगी बेडा पार॥
चौपाई
अस विश्वास सुनहु हे माई,करहु कृपा भव आव न जाई॥ यहि कामना बसै मन मोरे,सब विधि मात अनुग्रह तोरे॥ लोक वासना बसत मन माहीं,यही सोचि मन रहो अकुलाई॥ नहि सिद्धि अरु साधन मोरे,कृपा अनुग्रह सब विधि तोरे॥ भक्ति मुक्ति जग्य योग अनूपा,साधन धन धाम के अनुरूपा॥ साधन हीन नराधम भारी,पावहि किस विधि कृपा तुम्हारी॥ ये सब कृपा कटाक्ष तुम्हारे,तू चाहे तो भव निस्तारे॥ लाख चाहे करौ चतुराई,परवश जीव स्वबश है माई॥ कामाख्या कामरूप शिवानी,नीलांचल पर्वत की रानी॥
दोहा
सब विधि शरण तुम्हारी,माँ ममता विस्तार। हे माँ ! तू करुणामयी दे आंचल की बयार॥
जाऊं कहां मै विवश हूं माँ,कछु न आन आधार। जनम जनम से मांगता केवल तेरा प्यार॥

चौपाई
प्राकृतिक सौन्दर्य निराला,निरखी परख भव भ्रम उजाला॥ नारायणी गंडकी कुमारी,विश्व मातृका भवभय हारी॥ नाम अनेक एक महामाया,देश काल भिन्न रूप बनाया॥ आराधना अनुपम मीनाक्षी,माँ कामाख्या स्वयं है साक्षी॥ युग अनुरूप जग यश देता,माया ब्रह्म जीव अभिनेता॥ नट नागर विश्वरूप प्रणेता,महाशक्ति एक चिन्मय चेता॥ जगदाधार तू धरणी धामा,जय माँ जय माँ काली कामा॥ शतक आराधना माँ निराली,चारो पदारथ देने वाली॥ जो नित पाठ करहि मन लाई,देहि सिद्धि कामाख्या माई॥ कामाख्या मैं आश्रय तोरे,सब कुछ सौपा नहि बस मोरे॥
दोहा
सिद्ध आराधना शतक भक्ति मुक्ति का द्वार। कामाख्या अर्पण तुझे शब्द सुमन का हार॥
मन पूजा अर्पित करी करि संकल्प अपार। माँ तेरी आरती करूं जन को लेहु संभारि॥
  

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