गुरु जीव का कारक है और गुरु के द्वारा ही व्यक्ति की प्रोग्रेस और जीवन की गतियों के लिये ज्योतिष से देखने की प्रथा है,वैसे वैदिक ज्योतिष का फ़ार्मूला कुछ अलग ही है,और सभी ग्रहों को अपने अपने अनुसार प्रयोग में लिया जाता है। शनि कर्म का कारक ग्रह है और रहने वाले स्थान आदि के लिये भी अपना कार्य करता है,शनि की स्थिति जिस राशि नक्षत्र और उसके पाये के स्वामी के अनुसार होती है उसी प्रकार का बदलाव गुरु भी अपनी गोचर की स्थिति से करता है। जैसे शनि अगर कन्या राशि का है और वह मंगल आदि के साथ विराजमान है तो उसके लिये यह मानना जरूरी है कि जो भी कार्य उसके द्वारा किये जायेंगे वे गूढ होंगे और वह अपने लिये रहने या भोजन के साधनों को खोजने के लिये अस्पताल या किसी संस्था या भाई के प्रति समर्पित होने के लिये अपना बल देगा। गुरु का गोचर अगर तुला राशि के शनि के साथ होता है तो व्यक्ति के लिये मारकेटिंग या व्यापारिक संस्थान या कानूनी क्षेत्र मे जाने के लिये भी इंगित करता है,इसके अलावा जैसे वृश्चिक राशि का शनि है तो गुरु अपने प्रभाव से जातक को आस्तित्व हीन कार्यों के लिये जाने और गूढ तथा खोजी कार्यों के लिये भी अपना कार्य करत है। जातक के अन्दर उस बुद्धि को प्रदान करता है जिससे जातक बेकार की कबाडा वस्तुओं और बेकार के व्यक्तियों का प्रयोग अधिक से अधिक धन कमाने और अस्पताली साधन इकट्ठे करने के लिये भी अपने अनुसार फ़ल देता है। शनि अगर धनु राशि का है तो जातक के लिये न्याय वाले क्षेत्रों में जाने से लम्बी यात्राओं मे जाने का धार्मिक यात्राओं में जाने का बदलाव भी देता है,पैतृक जायदाद के मामले और कानूनी रूप से चलने वाले झगडे भी इस समय में निपटने के साधन सामने आते है।
मकर राशि का शनि रहने वाले साधन और जीवन के प्रति किये जाने वाले कार्यों के लिये भी माना जाता है और गुरु के द्वारा गोचर से भ्रमण के समय यह किसी भी कार्य को या रहने वाले स्थान में परिवर्तन देता है। इस परिवर्तन का मूल उद्देश्य भी किसी कार्य को नये सिरे से करना और नये रूप में करने से भी माना जाता है। अक्सर मकर राशि का शनि मार्गी होने पर कठोर और मेहनत वाले कार्यों के अन्दर बदलाव देता है लेकिन वक्री शनि अपने अनुसार गुरु का साथ होने से बदलाव में दिमागी प्रगति को भी देता है।
कुम्भ राशि के शनि को अगर गुरु के द्वारा गोचर से अपना बल दिया जाता है तो जातक के लिये लगातार लाभ के साधनों के लिये बदलाव माना जाता है उसके जो भी मित्र या बडे भाई बहिने अपने अनुसार जातक को फ़ायदा देने के लिये सामने आते है उनके द्वारा बदलाव भी सही दिशा को देने के लिये किया जाता है। जातक को प्रापर्टी के मामले में भी अक्सर बदलाव करने का समय माना जाता है और इस राशि का असर अगर त्रिक भाव में होता है तो व्यक्ति इन्ही कारणों से परेशान भी होने का समय माना जाता है।
गुरु का मीन राशि में शनि के साथ गोचर होने से जातक की यात्रायें लम्बी होती है और वह अपने लिये दूसरी सम्पत्ति या बडे संस्थान के लिये किये जाने वाले कार्यों का समय भी माना जाता है इसके साथ ही जातक को बडी धार्मिक यात्रायें या संस्थान सम्भालने का कार्य भी मिलता है बाहरी लोग उसकी अप्रत्याशित सहायता करने के लिये भी बराबर सामने आने लगते है।
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गुरुजी क्या गोचर में द्रष्टि संबंध का भी यही फल होगा ?
ReplyDeleteसादर प्रणाम
आशुतोष जोशी