Saturday, February 2, 2013

दाहिने और बायें गणेश

जीवन के दो रूप हर किसी के सामने होते है,पहला प्राप्त करना और दूसरा देना,देना तभी होता है जब प्राप्त होता है बिना मिले दिया भी क्या जा सकता है ? जीवन के प्रति दो धारणाये आदि काल से चली आ रही है जीवन का पहला हिस्सा लेने का और दूसरा हिस्सा देने का। पहले हिस्से मे कुंडली का बायां हिस्सा आता है,और देने के लिये दाहिना हिस्सा सामने आता है। इसी प्रकार से देवी देवता की द्रिष्टि की महत्ता को भी देखा गया है। दाहिनी नजर देने वाली होती है और बायीं नजर प्राप्त करने वाली होती है। बायां हिस्सा भौतिकता की नजर से और दाहिना हिस्सा आध्यात्मिकता की नजर से देखा जाता है। विघन हर्ता गणेश को हर कार्य मे पहले स्मरण किया जाता है उनकी पूजा भूतडामर तंत्र के अनुसार प्रथम मानी जाती है और उनके अन्दर एको रूप अनेका के प्रति भी मान्यता की धारणा आदिकाल से चली आ रही है। बायें सूंड वाले गणेश जी उन लोगो के लिये फ़लीभूत होती है जो कभी कभी गणेश जी की पूजा पाठ करना जानते है और केवल मानसिक धारणा को रखकर ही चलने वाले होते है लेकिन जो लोग जगत कल्याण की भावना से काम करते है लोगो के लिये सुख और समृद्धि का रूप प्रदान करते है साधारण जीवन नही जीकर बडे और विस्तृत जनसमुदाय के प्रति अपनी भावना को रखते है उनके लिये दाहिनी सूंड वाले गणेश जी की मान्यता काफ़ी हद तक फ़लीभूत होती है।
एक दोहा प्राचीन काल से भारतीय मान्यता मे गाया जाता है :-
सदा भवानी दाहिने सन्मुख रहे गणेश। पांच देव रक्षा करें ब्रह्मा विष्णु महेश॥
इस दोहे का अर्थ है कि शक्ति रूपा माता दुर्गा हमेशा दाहिने रहे,सामने गणेश जी रहे और इन दोनो के अलावा तीनो देव ब्रह्मा (शरीर के बीच में) विष्णु (शरीर के बायें) और महेश यानी शिवजी (शरीर के दाहिने) विराजकर रक्षा करते रहे। इस दोहे के अनुसार शक्ति का रूप हमेशा दाहिने ही होता है और दाहिने हाथ से दाहिने तरफ़ के कार्यों से और दाहिनी कार्य प्रणाली से लोग अपने अपने कार्य को शीघ्र निपटाने की क्षमता रखते है,धरती की घूमने की क्रिया भी बायें से दाहिने होती है आदि बातो से दाहिनी तरफ़ का प्रकार हमेशा सही माना जाता है और सीधे उल्टे का रूप भी दाहिने और बायें से लिया जाता है। जिनका दाहिना सक्षम होता है वे दूसरो को सहायता दिया करते है और जिनका बांयां सक्षम होता है वे लोगो की सहायता लिया करते है।
गणेश जी की मान्यता के लिये मेष राशि वालो के लिये लाल रंग के दाहिने वृष राशि वालो के लिये सफ़ेद गणेश बायें मिथुन राशि के लिये हरे गणेश दाहिने कर्क राशि के लिये स्फ़टिक के गणेश बायें सिंह राशि के लिये गुलाबी गणेश दाहिने कन्या राशि के लिये मटमैले रंग के गणेश बायें तुला राशि के लिये सफ़ेद गणेश दाहिने वृश्चिक राशि के लिये कत्थई गणेश बायें धनु राशि के लिये पीले गणेश दाहिने मकर राशि के लिये काले गणेश बायें कुम्भ राशि के लिये काले सफ़ेद धारी वाले गणेश दाहिने और मीन राशि के लिये सुरमई (स्लेटी) रंग के गणेश बायें की मान्यता है जिनके पास अलावा रंगो के गणेश जी है और वे अपने अपने अनुसार प्राप्त नही कर सकते है तो गणेश जी की प्रतिमा को अपनी अपनी राशि के अनुसार पोशाक पहिनाकर बनाया जा सकता है।
दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को घर मे रखा जा सकता है लेकिन पूजा स्थान मे ही रखा जाता है लेकिन बायें सूंड वाले गणेश जी को दरवाजे तक ही सीमित रखा जाता है घर के अन्दर उनकी मान्यता नही होती है बायीं तरफ़ वाले गणेश जी को दरवेश यानी दरवाजे की रक्षा करने वाले देवता के रूप मे मानी जाती है। अक्सर वास्तु विद अपनी बुद्धि से कहने लगते है कि गणेश जी के पीछे गरीबी होती है और आगे अमीरी होती है लेकिन यह कथन वास्तव मे आस्तित्वहीन है,कारण गणेश जी सामने से विघ्न विनाशक है तो पीछे से रक्षा करने वाले है,इसलिये गणेश जी के पीछे चलने वाले लोग काफ़ी सम्पन्न और सुखी रहते है गणेश जी के आगे रहने वाले लोग हमेशा किसी न किसी बाधा से इसलिये पीडित होते है क्योंकि मानवीय शरीर के अन्दर कोई न कोई अवगुण होगा ही और उस अवगुण की प्रताणित होने वाली पीडा मे लोग आहत होते रहते है।
बायीं तरफ़ सूंड वाले गणेश जी को किसी भी समय पूजा जा सकता है और कहीं भी पूजा की जा सकती है लेकिन दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को केवल पूजा स्थान मे ही मान्यता है और उनकी पूजा गणेश जी के लिये मान्य अवसरो पर ही की जाती है। गणेश जी को भूल कर भी गीली मिठाई या शर्बत आदि नही चढाया जाता है इनके लिये बुध प्रधान होने के कारण केवल गोल और सूखी मिठाई ही चढाई जाती है। गणेशजी को लोग दूर्वा चढाने का उपक्रम भी करते है लेकिन दूर्वा को केवल गणेश जी को स्थापित करने के समय या घर मे लाने के समय प्रयोग मे लाया जाता है,इसका भी एक भेद माना जाता है कि दूर्वा गणेश जी को प्रिय नही है यह उनकी सवारी मूषकराज को पसंद है और गणेश जी को स्थान तक लाने मे उनका भी योगदान होता है। जिसके पूजा स्थान मे चूहे और चुहियाओं के द्वारा मींगणी छोड दी जाती है उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके पूजा स्थान की जगह को गणेश जी छोड चुके है,उन्हे दुवारा से गणेश की तिथि में स्थापना करने के बाद उनकी पूजा अर्चना शुरु करनी चाहिये। गणेश जी का आसन भी गोल होना चाहिये और उनके लिये पूजा मे प्रयोग करने वाले बर्तन आदि भी गोल होने चाहिये,गणेश जी को केवल उनकी पूजा की तिथियों मे ही स्नान करवना चाहिये रोजाना उन्हे स्नान नही करवाया जाता है। वस्त्र बदलने के समय भी उनके जनेऊ को कभी नही उतारना चाहिये,दशहरा के दिन उनके डंड को बदल देना चाहिये और डंड का रंग और बनावट भी बदलते रहना चाहिये। पूजा मे इन्हे रखने के लिये दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को पहले रखना चाहिये और उनका चेहरा दक्षिण दिशा को देखते हुये होना चाहिये।
(श्री गणेशाय नम:)
किसी भी जानकारी और शंका के समाधान के लिये कमेन्ट कर सकते है,आपकी कोई भी राय मेरे लिये अमूल्य होगी.

6 comments:

  1. mein ravindar dilli se
    aap ko pranam karta hun

    पूजा मे इन्हे रखने के लिये दाहिनी सूंड वाले गणेश जी को पहले रखना चाहिये और उनका चेहरा दक्षिण दिशा को देखते हुये होना चाहिये।
    (श्री गणेशाय नम:)
    is line ka arth samjh nahi aaya kirpa karke batane ki kirpa kare

    swetaark ganapti kya hai? aur kyun durlabh hai ?
    batane kirpa kare

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  2. aapne bahut dinio se koi post nahi daali.
    agr ho sake to garabh dharn ke baare me saral or aachuk upaaye batne ka kast agli post me kare.

    thankyoou

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  4. Mujhe btaye slok me 5 devo ka ulekh huaa he pr brahma, vishnu, mahesh
    3 hi he to fir 2 dev or kon he

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