नवग्रह की भावना ज्योतिष में अधिक जानी जाती है। लेकिन जब गोहाटी में नवग्रह मंदिरके बारे में सुना तो बहुत ही जिज्ञासा उसे देखने की हुयी,दिनांक १४ मार्च २०१० को वह सुनहरा अवसर आ ही गया और उस मन्दिर में स्थापित नवग्रह दर्शन करने का सौभाग्य मिल ही गया। मन्दिर ऊंची पहाडी पर बनाया गया है,इसके आलेखों और इतिहास के बारे में आपको बहुत जगह पढने को मिल जायेगा,और इसके अन्दर स्थापित किये ग्रहों के बारे में जो जानकारी एक ज्योतिषी होने के नाते मुझे मिली वह इस प्रकार से है। पूर्व मुखी इस मन्दिर के लिये पहले पूर्व से पश्चिम के लिये सीढियां बनायी गयी है,और इन सीढियों के नीचे वाहनो के आने जाने और प्रसाद आदि की दुकाने बनी है। मन्दिर में सुबह के सूर्योदय की किरणें सव प्रथम प्रवेश करती है,और जहां सूर्योदय होता है,और पहाडी से जैसे ही उसकी किरणें मन्दिर के अन्दर जाती है,पुजारी इस मंदिर के कपाट खोल देता है। मन्दिर की बनावट भी कामाख्या मन्दिर की तरह की बनी है,यानी विपरीत शिवलिंग जैसी,केवल वायु निर्मित शिवलिंग,जिसके अन्दर मानो प्रवेश करने के बाद संसार की बडी से बडी शक्ति का आभास होने लगता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर सबसे पहले दाहिने तरफ़ राहु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है,इसी प्रतिमा के नीचे रखे अगरबत्ती कुंड में लोग धूप बत्ती और अपने अपने अनुसार प्रयोग की जाने वाली धूप को जलाते है,बायीं तरफ़ केतु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। यहाँ राहु केतु की प्रतिमा को स्थापित करने का उद्देश्य केवल इतना है कि जो भी ग्रह इस मन्दिर के अन्दर स्थापित है उनकी राहु सकारात्मक और केतु नकारात्मक वृत्ति को ही मनुष्य और जीव जन्तु ग्रहण करते है। मतलब हर ग्रह की दो ही प्रकृति होती है एक अच्छा फ़ल देना और एक बुरा फ़ल देना। अच्छा और बुरा फ़ल जीव या मनुष्य की पिछले कर्मों की धारणा के अनुसार माना जाता है। मन्दिर की पहली दहलीज पार करने के बाद बायें हाथ पर गजानन गणेशजी की प्रतिमा के साथ भगवान भोले नाथ और माता पार्वती की प्रतिमा है साथ में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा है,सबसे पहले इन्ही प्रतिमाओं की पूजा करनी पडती है,और सभी ग्रहों से मंगल कामना प्राप्त करने के लिये इन्ही शक्तिओं से आज्ञा लेनी अनिवार्य मानी जाती है,यहां पर तीन दीपक जलाये जाते है,और तीनो शक्तियों से प्रार्थना करने के बाद मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार किया जाता है,जैसे ही मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार करते है,केवल एक अन्धेरी गुफ़ा जैसा द्रश्य सामने आता है,गोलाकार मन्दिर के धरातल पर नौ शिव लिंग बने है और प्रत्येक शिवलिंग की जल लहरी का मुख विभिन्न दिशाओं की तरफ़ रखा गया है। एक मुख्य शिवलिंग बीच में बना है और बाकी के आठ शिवलिंग आठों दिशाओं में बनाये गये है। बीच के शिवलिंग को सूर्य की मान्यता है और जललहरी का मुख उत्तर की तरह है,भगवान सूर्य का कल्याण कारी होना तभी सम्भव है जब वह उत्तरायण की तरफ़ अग्रेसित होते है। अन्दर जाते ही बायें हाथ की तरफ़ पहले चन्द्रमा की स्थापना है,फ़िर मंगल की उसके बाद राहु की फ़िर शनि की फ़िर केतु उसके बाद गुरु और फ़िर बुध तथा मन्दिर के अन्दर जाने के दाहिनी तरफ़ शुक्र की स्थापना है। पूजा की कामना से जाने वाले व्यक्ति को सबसे पहले बायें चन्द्रमा और दाहिने शुक्र को लेकर जाना पडता है,लेकिन पूजा करने के बाद या दर्शन करने के बाद दाहिने चन्द्रमा होता है और बायें शुक्र की स्थिति होती है इसलिये ही मन्दिर में पूजा करने के बाद पुजारी का कहना होता है कि बाहर जाते समय पीछे घूम कर नही देखना होता है,अन्यथा पूजा का उद्देश्य नही रहता है। ग्रहों की पूजा करते समय पहले भगवान सूर्य पर दीपक को अर्पित किया जाता है,फ़िर चन्द्रमा पर उसके बाद मंगल फ़िर बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु पर दीप दान किया जाता है,उसके बाद ग्रहों को वस्त्रदान करते वक्त इसी क्रम से अलग अलग रंगों के जो रंग ग्रह के होते है उसी रंग के वस्त्र दान ग्रहो के रूप में शिवलिंग पर दिये जाते है। पुजारी से पूजा करवाने पर अलग अलग ग्रह की पूजा का अलग अलग दक्षिणा है,एक ग्रह की ग्यारह सौ रुपया और सभी ग्रहों की साढे पांच हजार रुपया दक्षिणा ली जाती है,यह दक्षिणा मन्दिर के विकास और देखरेख में खर्च की जाते है।
मन्दिर के अन्दर ग्रह का मन्त्र उच्चारण करने पर जो ध्वनि भूपुर में टकराकर वापस आती है वह दिमाग को झन्झनाने वाली होती है,व्यक्ति अपने आप भी पूजा कर सकता है लेकिन पूजा का क्रम याद रखना पडता है,सभी ग्रहों की पूजा के लिये पुजारी राहु के सामने या गुरु के सामने बैठता है,किसी उद्देश्य की पूजा के लिये राहु के सामने ही बैठ कर पूजा की जाती है और पारिवारिक तथा जनकल्याण के लिये की जाने वाली पूजा गुरु के सामने बैठ कर की जाती है,सन्कल्प और पूजा की पद्धति से पूजा करवाने के बाद मन्दिर से बाहर आकर मन्दिर की परिक्रमा की जाती है,परिक्रमा मार्ग में भी विभिन्न ग्रहों के रूप में देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है,आसाम में इस मन्दिर को भविष्य मन्दिर के नाम से जाना जाता है,इस मन्दिर में एक बात और देखने को मिली कि बकरी और बन्दर एक साथ मौज से लोगों के द्वारा दिये गये प्रसात को खाते है। प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से सम्बन्धित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।
आखिर मै मन्जिल मिल ही गयी.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete