गो का रूप गाय के लिये माना जाता है और उसे गो भी कहा जाता है,गाय को लक्ष्मी के रूप मे भी देखा जाता है और शुक्र ग्रह का कारक भी माना जाता है। नदियों के किनारे पर जहां गाय पानी पीती है और उनके जुगाली करने वाले फ़ैन का कुछ भाग पानी मे बह जाता है और वह फ़ैन नदी मे पडने वाले छोटे छोटे भंवर मे जाने के बाद गोल गोल घूमता रहता है कालान्तर मे उस घूमने वाली क्रिया मे नदी के पानी के अन्दर के पत्थरो रेत आदि के कण भी उस फ़ेन मे मिल जाते है और वह फ़ैन एक चक्र का रूप धारण कर लेता है वही चक्र पानी के अन्दर बैठ जाते है और पानी की बहाव और तल आदि आदि से धीरे धीरे खिसक कर तथा नदी का पानी सूखने के बाद यह नदी की रेत मे मिल जाते है यही गोमती चक्र के रूप मे जाने जाते है।
गोमती चक्र को दक्षिण मे गोमथी चक्र के नाम से भी जाना जाता है और संस्कृत मे धेनुपदी के नाम से भी जाना जाता है प्राचीन काल मे गोमती चक्र का प्रयोग यज्ञ की वेदी के चारो तरफ़ लगाया जाता था,तथा राज्याभिषेख के समय इसे राजसिंहासन पर भी छत्र के ऊपरी भाग मे लगा दिया जाता था। गोमती चक्र के प्रति कहा जाता है कि किसी के पास अगर चार गोमती चक्र है तो वह किसी भी प्रकार की ऊपरी हवा से बचा रह सकता है और वास्तु वेध के लिये भी इसे चार की संख्या मे मुख्य दरवाजे के ऊपर लाल कपडे मे बांध कर रखा जाता है। इस क्रिया से आसुरी शक्तियों का घर मे रहना नही हो पाता है।
गोमती चक्र की बनावट को देखा जाये तो उसके ऊपर चिकने भाग पर हिन्दी के ७ का अंक बना मिलता है,वर्तमान के ज्योतिषियों के अनुसार यह अंक राहु का अंक कहा जाता है और पानी की वस्तु जिसे चन्द्रमा का रूप दिया जाता है उसके अन्दर इस अंक के होने से यह राहु कृत प्रभावो को दूर रखने के लिये अपनी युति को प्रदान करता है साथ ही बेकार की शंका को दूर रखने मे सहायक होता है,जिनकी कुंडली मे राहु चन्द्र की युति होती है वह इसे चांदी की अंगूठी या पेंडल मे बनवाकर धारण कर सकते है।
जो स्त्रियां नपुंसकता की श्रेणी मे आती है और सन्तान पैदा करने मे असमर्थ होती है वे कमर मे कनकती मे सात गोमती चक्र लगवा कर धारण करने के बाद सन्तानहीनता से दूर होती देखी गयी है। ग्रामीण लोग गोमती चक्र को दूध वाले जानवरो के गले मे लाल कपडे मे बांध कर रखते है जिससे दूध देने वाले जानवर बुरी नजर से बचे रहते है। कृषक इसे अपने खेत के चारो कोनो मे दबाकर रखते है जिससे मान्यता है कि खेत की फ़सल मे कीडा आदि नही लगता है और बीमारी आदि से बचने के बाद फ़सल अच्छी पैदा होती है.
गोमती चक्र की भस्म शहद मे मिलाकर पैरो के नाखून मे लगाने के बाद वात का दर्द दूर होता देखा गया है। साथ ही पैर के अंगूठे मे लगाने के बाद नेत्र ज्योति भी बढती देखी गयी है।
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