Friday, September 17, 2010

कुंडली से फ़लादेश करने का तरीका

भारतीय ज्योतिष में जो फ़लादेश किया जाता है उसके लिये कई तरह के तरीके अपने अपने अनुसार अपनाये जाते है,लेकिन मै जो तरीका प्रयोग में लाता हूँ वह अपने प्रकार का है.
राशि चक्र में गुरु जहाँ हो उसे लगन मानना जरूरी है
कुंडली का विश्लेषण करते वक्त गुरु जहाँ भी विराजमान हो उसे लगन मानना ठीक रहता है,कारण गुरु ही जीव का कारक है और गुरु का स्थान ही बता देता है कि व्यक्ति की औकात क्या है,इसके साथ ही गुरु की डिग्री भी देखनी जरूरी है,गुरु अगर कम या बहुत ही अधिक डिग्री का है तो उसका फ़ल अलग अलग प्रकार से होगा,उदाहरण के लिये कन्या लगन की कुण्डली है और गुर मीन राशि में सप्तम में विराजमान है तो फ़लादेश करते वक्त गुरु की मीन राशि को लगन मानकर गुरु को लगन में स्थापित कर लेंगे,और फ़लादेश गुरु की चाल के अनुसार करने लगेंगे।
ग्रहों की दिशाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है
कालचक्र के अनुसार राशियों के अनुसार दिशायें भी बताई जाती है,जैसे मेष सिंह और धनु को पूर्व दिशा की कारक और मिथुन तुला तथा कुम्भ को पश्चिम दिशा की कारक वृष कन्या और मकर को दक्षिण दिशा की कारक तथा कर्क वृश्चिक और मीन को उत्तर दिशा की कारक राशियों में माना जाता है। इन राशियों में स्थापित ग्रहों के बल और उनके द्वारा दिये गये प्रभाव को अधिक ध्यान में रखना पडेगा।
ग्रहों की द्रिष्टि का ध्यान रखना जरूरी है
ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है,यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है,साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है,लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है,इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे,लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा.
ग्रहों का कारकत्व भी समझना जरूरी है
ग्रह की परिभाषा के अनुसार तथा उसके भाव के अनुसार उसका रूप समझना बहुत जरूरी होता है,जैसे शनि वक्री होकर अगर अष्टम में अपना स्थान लेगा तो वह बजाय बुद्धू के बहुत ही चालाक हो जायेगा,और गुरु जो भाग्य का कारक है वह अगर भाग्य भाव में जाकर बक्री हो जायेगा तो वह जल्दबाजी के कारण सभी तरह के भाग्य को समाप्त कर देगा और आगे की पुत्र संतान को भी नही देगा जिससे आने वाले वंश की क्षति का कारक भी माना जायेगा.
जन्म के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनायें होती है
जन्म के समय के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनाओं को बताने के लिये माना जाता है,अगर शनि जन्म से लगन में है और गोचर से शनि कर्म भाव में आता है तो खुद के कर्मों से ही कार्यों को अन्धेरे में और ठंडे बस्ते मे लेकर चला जायेगा। इसके बाद लगन का राहु गोचर से गुरु को अष्टम में देखता है तो जीवन को बर्फ़ में लगाने के लिये मुख्य माना जायेगा,जीव का किसी न किसी प्रकार की धुंआ तो निकलना ही है।
गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है
गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। गुरु के आगे शनि जातक को जीवन जीने के लिये पहाड सा लगेगा और गुरु के पीछे शनि वाला जातक जीवन को समझ ही नही पायेगा कि जीवन कब शुरु हुआ और कब खत्म होने के लिये आगया। गुरु के आगे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता के साथ पब्लिक भी साथ देती है,और गुरु के पीछे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता और पब्लिक ही आगे बढने के लिये कहती है तथा वह अपने कामो के कारण माता से दूर और यात्रा तथा खर्चों से ही परेशान होता है। गुरु से पीछे का सूर्य जातक को पिता और राज्य से सहारा देने वाला माना जाता है,लेकिन गुरु से आगे का  सूर्य पिता और सरकारी कामों के लिये तथा भविष्य के पुत्र के पीछे पीछे दौडाने वाला माना जाता है। गुरु से बारहवां बुध जमीन होने के बाद भी उल्टे दिमाग के कारण कुछ भी करने से दूर रहता है और गुरु से आगे बुध होने पर बातों से काम चलाने वाला और बातों से ही पेट भरने वाला होता है।

6 comments:

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