गुरु जीव का कारक है और गुरु के द्वारा ही व्यक्ति की प्रोग्रेस और जीवन की गतियों के लिये ज्योतिष से देखने की प्रथा है,वैसे वैदिक ज्योतिष का फ़ार्मूला कुछ अलग ही है,और सभी ग्रहों को अपने अपने अनुसार प्रयोग में लिया जाता है। शनि कर्म का कारक ग्रह है और रहने वाले स्थान आदि के लिये भी अपना कार्य करता है,शनि की स्थिति जिस राशि नक्षत्र और उसके पाये के स्वामी के अनुसार होती है उसी प्रकार का बदलाव गुरु भी अपनी गोचर की स्थिति से करता है। जैसे शनि अगर कन्या राशि का है और वह मंगल आदि के साथ विराजमान है तो उसके लिये यह मानना जरूरी है कि जो भी कार्य उसके द्वारा किये जायेंगे वे गूढ होंगे और वह अपने लिये रहने या भोजन के साधनों को खोजने के लिये अस्पताल या किसी संस्था या भाई के प्रति समर्पित होने के लिये अपना बल देगा। गुरु का गोचर अगर तुला राशि के शनि के साथ होता है तो व्यक्ति के लिये मारकेटिंग या व्यापारिक संस्थान या कानूनी क्षेत्र मे जाने के लिये भी इंगित करता है,इसके अलावा जैसे वृश्चिक राशि का शनि है तो गुरु अपने प्रभाव से जातक को आस्तित्व हीन कार्यों के लिये जाने और गूढ तथा खोजी कार्यों के लिये भी अपना कार्य करत है। जातक के अन्दर उस बुद्धि को प्रदान करता है जिससे जातक बेकार की कबाडा वस्तुओं और बेकार के व्यक्तियों का प्रयोग अधिक से अधिक धन कमाने और अस्पताली साधन इकट्ठे करने के लिये भी अपने अनुसार फ़ल देता है। शनि अगर धनु राशि का है तो जातक के लिये न्याय वाले क्षेत्रों में जाने से लम्बी यात्राओं मे जाने का धार्मिक यात्राओं में जाने का बदलाव भी देता है,पैतृक जायदाद के मामले और कानूनी रूप से चलने वाले झगडे भी इस समय में निपटने के साधन सामने आते है।
मकर राशि का शनि रहने वाले साधन और जीवन के प्रति किये जाने वाले कार्यों के लिये भी माना जाता है और गुरु के द्वारा गोचर से भ्रमण के समय यह किसी भी कार्य को या रहने वाले स्थान में परिवर्तन देता है। इस परिवर्तन का मूल उद्देश्य भी किसी कार्य को नये सिरे से करना और नये रूप में करने से भी माना जाता है। अक्सर मकर राशि का शनि मार्गी होने पर कठोर और मेहनत वाले कार्यों के अन्दर बदलाव देता है लेकिन वक्री शनि अपने अनुसार गुरु का साथ होने से बदलाव में दिमागी प्रगति को भी देता है।
कुम्भ राशि के शनि को अगर गुरु के द्वारा गोचर से अपना बल दिया जाता है तो जातक के लिये लगातार लाभ के साधनों के लिये बदलाव माना जाता है उसके जो भी मित्र या बडे भाई बहिने अपने अनुसार जातक को फ़ायदा देने के लिये सामने आते है उनके द्वारा बदलाव भी सही दिशा को देने के लिये किया जाता है। जातक को प्रापर्टी के मामले में भी अक्सर बदलाव करने का समय माना जाता है और इस राशि का असर अगर त्रिक भाव में होता है तो व्यक्ति इन्ही कारणों से परेशान भी होने का समय माना जाता है।
गुरु का मीन राशि में शनि के साथ गोचर होने से जातक की यात्रायें लम्बी होती है और वह अपने लिये दूसरी सम्पत्ति या बडे संस्थान के लिये किये जाने वाले कार्यों का समय भी माना जाता है इसके साथ ही जातक को बडी धार्मिक यात्रायें या संस्थान सम्भालने का कार्य भी मिलता है बाहरी लोग उसकी अप्रत्याशित सहायता करने के लिये भी बराबर सामने आने लगते है।
अन्य किसी भी जानकारी के लिये आप astrobhadauria@gmail.com पर लिख सकते है.
तंत्र के द्वारा व्यक्ति राष्ट्र की उन्नति होती है,आज जो भी प्रगति है वह तंत्र के कारण ही है,यथा राजतंत्र,मशीन तंत्र उर्वरक तंत्र आदि। जो कल था वह आज नही है,जो आज है वह कल नही होगा,लेकिन तंत्र कल भी था,आज भी है,और कल भी रहेगा।
Sunday, December 19, 2010
Friday, December 17, 2010
शुभ लाभ का शाब्दिक तंत्र
शुभ और लाभ शब्द हिन्दी मे अक्सर दुकानों और संस्थानो के मुख्य द्वार पर धन रखने वाले स्थानो पर यहां तक कि लोग अपनी अपनी तिजोरियों पर और आजकल लोग अपने अपने पूजा स्थानों में भी लिखने लग गये है,इन दोनो शब्दों का मतलब साधारण भाषा में शुभ से मेहनत करने के बाद अपनी मजदूरी के बराबर लाभ से मतलब फ़ायदा लेने से होता है। लेकिन जो लोग ठाठ से दो नम्बर के काम करते है वे भी अपने अपने स्थानों पर इन दोनो शब्दों को लिखे होते है। शुभ को कई कारणों में प्रस्तुत किया जाता है,जैसे शादी के कार्ड पर भी शुभ विवाह लिखा होता है,किसी अनुष्ठान के नाम के पहले भी शुभ लिखा होता है। लेकिन इस शब्द के लिये भूतडामर तंत्र में लिखा गया है कि ’श’अक्षर कर्म से सम्बन्धित है और कार्य के देवता शनि से सम्बन्धित है,इस अक्षर पर छोटे ’उ’ की मात्रा लगाने का मतलब होता है कर्म को कर्म के अनुसार किया जाना जो कर्म का सिद्धान्त है उसे अपनाते हुये कर्म करना,इसके बाद का जो शब्द ’भ’ का प्रयोग किया है वह भरण के लिये भी प्रयोग में आता है और भ चक्र के अनुसार ज्योतिषीय गणित का भी कारक होता है,यानी जो भी कार्य किया जाये वह दूसरों की भलाई के लिये समय कुसमय का ध्यान रखकर ही किया जाये। यह बात लाभ के लिये भी बताई गयी है,’ल’अक्षर का रूप लादने से प्रयोग में लाया जाता है,किसी वस्तु नाम को अगर अक्षर से जोडा जाये तो उसके अन्दर पहले प्राप्त करने की भावना होती है,अक्षर ’भ’ का सिद्धान्त पहले बता ही दिया है। जो लिया जाये वह भरपूर और प्राप्त करने वाले लाभ का भी प्रयोग उन्ही कार्यों के लिये किया जाये जो सर्व जन हिताय के लिये काम में आते हों।
Wednesday, December 15, 2010
धन कमाने का तंत्र
धन कमाने के लिये दो और कारकों की जरूरत पडती है,एक तो साधन और दूसरा साधनों को प्रयोग में लायी जाने वाली जानकारी। तीनों कारकों के इकट्ठा हुये बिना धन की बढोत्तरी नही हो सकती है। जैसे कम्पयूटर साधन है तो उसे चलाने की कला जानकारी मानी जायेगी,कम्पयूटर पर बनाये जाने वाले प्रोग्राम ही धन के रूप में माने जायेंगे। अक्सर मन में विचार आने लगते है कि बहुत मेहनत की और मेहनत करने के बाद भी धन नही आया,चित्त में खिन्नता बढ जाती है और जो भी कार्य आगे किया जाता है उसके अन्दर भी चित्त की खिन्नता दिक्कत देती है कार्य से मन दूर हो जाता है,और जब कार्य का मूल्यांकन किया जाता है तो घटिया कार्य की बजह से धन की प्राप्ति नही होती है। जब एक मुशीबत आती है तो दूसरी भी पीछे से अपना असर देने लगती है.घरबार और जीवन के चलाने के लिये रोजाना की जरूरते भी पूरी करनी पडती है,इन जरूरतों को पूरा करने के लिये लोगों से सहायता के रूप में या अपने फ़ायनेन्स से सहायता करने वाले के आगे हाथ फ़ैलाना पडता है जब उसका भी समय पर नही पहुंचता है तो वह भी दरवाजे पर अपनी वसूली वाली नियत से आने लगता है,चित्त की खिन्नता और कार्य की कमी के कारण वह मांगने वाला भी काल जैसा लगने लगता है और कई लोग मांगने वाले से पीछा छुडाने के लिये कई बहाने बनाने चालू कर देते है,उन बहानों को बनाने के बाद जो मांगने आया था उसे कोई संतुष्टि वाला जबाब नही मिलने के कारण वह भी अपने अपने अनुसार हावी होने की कोशिश करने लगता है। यह सब एक साथ होने के कारण या तो रहने वाले स्थान को छोडने का मन करता है या फ़िर किसी प्रकार की चालाकी आदि करने के बाद और धन को कहीं से प्राप्त करने के बाद चुकाने का जी करता है,इसी बात के लिये जो आजकल बैंक आदि में खाते खोले जाते है उनके द्वारा मिलने वाले चैक आदि का प्रयोग करने के बाद लोगों से धन लिया जाता है,और चैक के साथ बन्धक पत्र या सम्पत्ति को रख दिया जाता है,भारतीय जलवायु से भी समय पर चुकाने में दिक्कत आती है,जो कार्य गर्मियों में चला करते है वे सर्दी और बरसात के असर से बन्द हो जाते है और जो कार्य सर्दी में चला करते है वे गर्मी और बरसात में बन्द हो जाते है जो भी धन उधार लिया जाता है वह समय की चलती आवक के अनुसार ही लिया जाता है और जब समय पर धन नही चुकाया जाता है तो दोहरी मार एक तो ब्याज की और दूसरी वसूली करने वाले की बदसलूकी की दिमाग को परेशान करके रख देती है,बिना किसी कारण के चुकाने की तारीख दे दी जाती है और चुकाने का दिन आने से पहले ही दिमाग खराब होना शुरु हो जाता है,रात की नींद और दिन का चैन भी खराब हो जाता है,भूख प्यास सभी बन्द हो जाती है दिल डूब सा जाता है घर परिवार की चिन्ता तो दूर की बात अपनी ही चिन्ता नही रहती है। इन सब कारणों से धन की आवक में कमी तो होती ही है अपनी बनी बनायी साख और घर परिवार की इज्जत की चिन्ता भी दिक्कत देने वाली होती है जो लोग पहले से जानते होते है उनके डर से कि कभी उनके सामने अपना रुतबा दिखाया होता है वे भी रोजाना की बदलती हुयी जिन्दगी को देखकर दूर से ही कमेन्ट पास किया करते है,यह सब केवल जीवन को और नीचे ले जाने वाली बात ही मानी जाती है।
Sunday, October 31, 2010
रहस्य स्वप्न का
- भाई साहब खाना खाने के लिये बैठे है सामने खाना है,लेकिन पता नही क्यों अचानक वे पीछे हटते है,और उनका चेहरा एक दम काला होता जा रहा है,उनके सीधी तरफ़ एक अंधेरा सा कमरा है और वे कह रहे है इस कमरे से निकल कर कोई सवार हो गया है,भाई साहब का मुंह सूखता चला जाता है,और उनकी जीभ भी बाहर की तरफ़ निकलती चली जाती है,मैं बहुत जोर लगाकर मोनू और मोनू की मम्मी को आवाज देता हूँ कि कोई जल्दी से पानी लाओ,कोई पानी लेकर नही आ रहा है,मैं दौड कर मकान के नीचे के हिस्से से पानी लेने के लिये भागता हूँ ,ध्यान से सीढियां चूक जाता हूँ और स्लिप होकर नीचे गिर पडता हूँ,मुझे कई लोगों की आवाज सुनाई देती है,लोग आकर मुझे उठा रहे है,और देखता हूँ कि किसी सफ़ेद बिस्तर पर पडा हूँ डाक्टर और नर्स काम कर रहे है,शायद अस्पताल ही है।
- मुझे अचानक ध्यान आता है भाई साहब को पानी नही मिला है,मैं अस्पताल से भागता हूँ,रास्ते में बाजार मिलता है,मुझे मेरे पुराने मकान मालिक दिखाई देते है वे शर्बत की दुकान लगाकर बैठे है,उनके आगे कोई सब्जी बेच रहा है,उससे मैं पालक नीबू और मिर्ची खरीदता हूँ,वह सभी सामान मेरे हाथ में ही दे देता है,मैं वहाँ से जल्दी से भागता हूँ केवल एक विचार दिमाग में चल रहा है,भाई साहब को प्यास लगी होगी,उनका हाल कैसा होगा।
- यह ध्यान भी आता है कि उन्होने दो दिन से खाना नही खाया है,और जब वे खाना खाने बैठे तो न जाने उनके घर में कौन सी बाधा है जो उनके ऊपर सवार हो गयी है,अचानक मुझे एक रोटी की दुकान दिखाई दे रही है,उस पर एक औरत बैठी रोटी पका रही है,मैं उससे कहता हूँ कि वह मुझे चार रोटी देदे,इससे मै अपने भाई को खाना तो खिला दूँ,वह औरत मुझे रोटी नही देती है और कहती है यह चार रोटी का आटा ले जाओ और घर पर गर्म पकाकर दे देना। मैं उससे आटा लेकर और उसे दस रुपया देकर भागने लगता हूँ,देखता हूँ भाई साहब का मकान पहिचान में नही आ रहा है,मैं गली में भटकने लगता हूँ कोई बताने को तैयार नही है कि वे कहाँ रहते है।
- मै किसी गलत गली में घुस जाता हूँ वहां पर पीले और लाल मिक्स कलर के मकान बने है और वहां पर काले काले आदमी घूम रहे है,वे पीछे की गली में जाने के लिये इशारा कर रहे है लेकिन वे क्या बोल रहे है,उनकी भाषा कुछ भी समझ में नही आ रही है,नाक में केवल चमेली की सुगंध आ रही है.
- मैं उनकी बताई गली में जाता हूँ वहां भाई साहब का मकान दिखाई दे जाता है,और मैं सीधा मकान की सीढियां चढता हुआ छत पर ही चला जाता हूँ,वहां देखता हूँ भाई साहब छत की मुंडेर पर बैठे है,नीचे बहुत दूर लोग छोटे छोटे दिखाई दे रहे है,उनके बगल में मेरी स्वर्गीय छोटी भतीजी बैठी है,वह मुझे देखकर हँस रही है,मेरे हाथ में सामान देखकर कहती है,अंकल आज रोटी बनाकर आपको ही खिलानी पडेगी,मम्मी को तो फ़ुर्सत नही है,लेकिन क्या मजा होता कि चाची रोटी बनाती,छोटी चाची सब्जी बनाती,गुडिया परोसती,हम आप सब और दादा दादी मिलकर खाना खाते,भैया ने अपना घर हवाई जहाज के ऊपर बनाया है,दीदी ने अपना घर काले सफ़ेद रंग का बनाया है,दीदी के घर पर भी बहुत सारे प्लास्टिक के खिलौने है,लेकिन आपके घर पर जो खिलौने है वे बोलने वाले है,उनके खिलौने फ़ूलते पिचकते तो है लेकिन बोलते नही है.
- मैं उसकी बातों को सुनता हूँ लेकिन मैं जैसे ही कुछ कहने के लिये प्रयास करता हूँ भाई साहब अपने मुंह में उंगली लगाकर इशारा करते है कि बोलना नही,इसे बोल लेने दो यह बहुत दिनो बाद बोली है,फ़िर वह कहती है कि पापा तुम्हारा चेहरा काला क्यों हो गया है,मैं उससे बताने के लिये फ़िर कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन फ़िर से भाई साहब इशारे से मुझे चुप करा देते है,वे एक तार की तरफ़ इशारा करते है वह तार हरे रंग का है और मुंडेर से नीचे की तरफ़ लटकता हुआ बहुत दूर तक चला गया है।
- वह कहती जाती है,पता नही क्या क्या कहती है,लेकिन हर बात में कहती है,सब नन्नू की करामात है,मजे आ गये नन्नू की करतूत पर मै भाई साहब से पूंछने की कोशिश करता हूँ लेकिन वे फ़िर से मुझे चुप रहने का इशारा कर देते है.
- एक व्यक्ति की आवाज जोर जोर से चिल्लाने की आ रही है,साथ में भाभी जी की भी आवाज आ रही है,वह कह रहा है कि मैं जनता को पानी पिलाता हूँ अपने बच्चों का पेट काटकर खर्च करता हूँ आप जो मुझसे इतने से काम के पैसे ले रही है वह आपके लिये भला नही करने वाले है यह पैसे आपकी जिन्दगी में कोहराम मचा देंगे,भाई साहब ध्यान से सुन रहे है लेकिन कुछ भी नही बोल रहे है,आवाजें धीमी होती जाती है,गाडियों का शोर सुनाई दे रहा है,लेकिन गाडी कोई दिखाई नही दे रही है।
- अचानक मेरी भतीजी भाई साहब के गले की तरफ़ हाथ बढाती है और उन्हे धक्का देने के लिये खडी होती है,कहती जाती है दीदी के खिलौने की तरह आपको भी पिचका देती हूँ,इतने में ही भाई साहब का रूप अचानक बदल जाता है,वे मुझसे कहते है कि यह वही है जो मेरे ऊपर उस अन्धेरे कमरे से सवार हो गयी थी,अचानक मुझे भी ख्याल आता है कि यह भतीजी तो गुजर चुकी है,वह धीरे धीरे विलीन होती जाती है,और गायब हो जाती है,भाई साहब को मैं कहता हूँ कि यह सामान जो मैं लाया हूँ चलो आपको खाना बनाकर खिला देता हूँ,भाई साहब माथे पर हाथ लगाकर कहते है,क्या फ़ायदा है जो खाने वाला था वही चला गया अब मुझे खिलाने से क्या फ़ायदा,मैं उनके चेहरे की तरफ़ देखता हूँ,वे एक छोटे बच्चे की तस्वीर को हाथ में लेकर घूर रहे है,वह बच्चा मैं नही पहिचान रहा हूँ,मैने उनसे उस बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुये कहा कि यह किसका है,वे उस फ़ोटो को जेब में रखते हुये कह रहे है इससे तुम्हे कोई मतलब नही रखना चाहिये,पिताजी की यह सब करतूत है,वे अगर मेरे साथ धोखा नही करते तो मेरी यह हालत नही होती,एन वक्त पर वे अपनी बात से मुकर गये थे,और मेरी जिन्दगी में तबाही आ गयी थी.
चौसठ योगिनी और उनका जीवन में योगदान
स्त्री पुरुष की सहभागिनी है,पुरुष का जन्म सकारात्मकता के लिये और स्त्री का जन्म नकारात्मकता को प्रकट करने के लिये किया जाता है। स्त्री का रूप धरती के समान है और पुरुष का रूप उस धरती पर फ़सल पैदा करने वाले किसान के समान है। स्त्रियों की शक्ति को विश्लेषण करने के लिये चौसठ योगिनी की प्रकृति को समझना जरूरी है। पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है और स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है। योगिनी की पूजा का कारण शक्ति की समस्त भावनाओं को मानसिक धारणा में समाहित करना और उनका विभिन्न अवसरों पर प्रकट करना और प्रयोग करना माना जाता है,बिना शक्ति को समझे और बिना शक्ति की उपासना किये यानी उसके प्रयोग को करने के बाद मिलने वाले फ़लों को बिना समझे शक्ति को केवल एक ही शक्ति समझना निराट दुर्बुद्धि ही मानी जायेगी,और यह काम उसी प्रकार से समझा जायेगा,जैसे एक ही विद्या का सभी कारणों में प्रयोग करना।
- दिव्ययोग की दिव्ययोगिनी :- योग शब्द से बनी योगिनी का मूल्य शक्ति के रूप में समय के लिये प्रतिपादित है,एक दिन और एक रात में 1440 मिनट होते है,और एक योग की योगिनी का समय 22.5 मिनट का होता है,सूर्योदय से 22.5 मिनट तक इस योग की योगिनी का रूप प्रकट होता है,यह जीवन में जन्म के समय,साल के शुरु के दिन में महिने शुरु के दिन में और दिन के शुरु में माना जाता है,इस योग की योगिनी का रूप दिव्य योग की दिव्य योगिनी के रूप में जाना जाता है,इस योगिनी के समय में जो भी समय उत्पन्न होता है वह समय सम्पूर्ण जीवन,वर्ष महिना और दिन के लिये प्रकट रूप से अपनी योग्यता को प्रकट करता है। उदयति मिहिरो विदलित तिमिरो नामक कथन के अनुसार इस योग में उत्पन्न व्यक्ति समय वस्तु नकारात्मकता को समाप्त करने के लिये योगकारक माने जाते है,इस योग में अगर किसी का जन्म होता है तो वह चाहे कितने ही गरीब परिवार में जन्म ले लेकिन अपनी योग्यता और इस योगिनी की शक्ति से अपने बाहुबल से गरीबी को अमीरी में पैदा कर देता है,इस योगिनी के समय काल के लिये कोई भी समय अकाट्य होता है।
- महायोग की महायोगिनी :- यह योगिनी रूपी शक्ति का रूप अपनी शक्ति से महानता के लिये माना जाता है,अगर कोई व्यक्ति इस महायोगिनी के सानिध्य में जन्म लेता है,और इस योग में जन्मी शक्ति का साथ लेकर चलता है तो वह अपने को महान बनाने के लिये उत्तम माना जाता है।
- सिद्ध योग की सिद्धयोगिनी:- इस योग में उत्पन्न वस्तु और व्यक्ति का साथ लेने से सिद्ध योगिनी नामक शक्ति का साथ हो जाता है,और कार्य शिक्षा और वस्तु या व्यक्ति के विश्लेषण करने के लिये उत्तम माना जाता है।
- महेश्वर की माहेश्वरी महाईश्वर के रूप में जन्म होता है विद्या और साधनाओं में स्थान मिलता है.
- पिशाच की पिशाचिनी बहता हुआ खून देखकर खुश होना और खून बहाने में रत रहना.
- डंक की डांकिनी बात में कार्य में व्यवहार में चुभने वाली स्थिति पैदा करना.
- कालधूम की कालरात्रि भ्रम की स्थिति में और अधिक भ्रम पैदा करना.
- निशाचर की निशाचरी रात के समय विचरण करने और कार्य करने की शक्ति देना छुपकर कार्य करना.
- कंकाल की कंकाली शरीर से उग्र रहना और हमेशा गुस्से से रहना,न खुद सही रहना और न रहने देना.
- रौद्र की रौद्री मारपीट और उत्पात करने की शक्ति समाहित करना अपने अहम को जिन्दा रखना.
- हुँकार की हुँकारिनी बात को अभिमान से पूर्ण रखना,अपनी उपस्थिति का आवाज से बोध करवाना.
- ऊर्ध्वकेश की ऊर्ध्वकेशिनी खडे बाल और चालाकी के काम करना.
- विरूपक्ष की विरूपक्षिनी आसपास के व्यवहार को बिगाडने में दक्ष होना.
- शुष्कांग की शुष्कांगिनी सूखे अंगों से युक्त मरियल जैसा रूप लेकर दया का पात्र बनना.
- नरभोजी की नरभोजिनी मनसा वाचा कर्मणा जिससे जुडना उसे सभी तरह चूसते रहना.
- फ़टकार की फ़टकारिणी बात बात में उत्तेजना में आना और आदेश देने में दुरुस्त होना.
- वीरभद्र की वीरभद्रिनी सहायता के कामों में आगे रहना और दूसरे की सहायता के लिये तत्पर रहना.
- धूम्राक्ष की धूम्राक्षिणी हमेशा अपनी औकात को छुपाना और जान पहिचान वालों के लिये मुशीबत बनना.
- कलह की कलहप्रिय सुबह से शाम तक किसी न किसी बात पर क्लेश करते रहना.
- रक्ताक्ष की रक्ताक्षिणी केवल खून खराबे पर विश्वास रखना.
- राक्षस की राक्षसी अमानवीय कार्यों को करते रहना और दया धर्म रीति नीति का भाव नही रखना.
- घोर की घोरणी गन्दे माहौल में रहना और दैनिक क्रियाओं से दूर रहना.
- विश्वरूप की विश्वरूपिणी अपनी पहिचान को अपनी कला कौशल से संसार में फ़ैलाते रहना.
- भयंकर की भयंकरी अपनी उपस्थिति को भयावह रूप में प्रस्तुत करना और डराने में कुशल होना.
- कामक्ष की कामाक्षी हमेशा संभोग की इच्छा रखना और मर्यादा का ख्याल नही रखना.
- उग्रचामुण्ड की उग्रचामुण्डी शांति में अशांति को फ़ैलाना और एक दूसरे को लडाकर दूर से मजे लेना.
- भीषण की भीषणी. किसी भी भयानक कार्य को करने लग जाना और बहादुरी का परिचय देना.
- त्रिपुरान्तक की त्रिपुरान्तकी भूत प्रेत वाली विद्याओं में निपुण होना और इन्ही कारको में व्यस्त रहना.
- वीरकुमार की वीरकुमारी निडर होकर अपने कार्यों को करना मान मर्यादा के लिये जीवन जीना.
- चण्ड की चण्डी चालाकी से अपने कार्य करना और स्वार्थ की पूर्ति के लिये कोई भी बुरा कर जाना.
- वाराह की वाराही पूरे परिवार के सभी कार्यों को करना संसार हित में जीवन बिताना.
- मुण्ड की मुण्डधारिणी जनशक्ति पर विश्वास रखना और संतान पैदा करने में अग्रणी रहना.
- भैरव की भैरवी तामसी भोजन में अपने मन को लगाना और सहायता करने के लिये तत्पर रहना.
- हस्त की हस्तिनी हमेशा भारी कार्य करना और शरीर को पनपाते रहना.
- क्रोध की क्रोधदुर्मुख्ययी क्रोध करने में आगे रहना लेकिन किसी का बुरा नही करना.
- प्रेतवाहन की प्रेतवाहिनी जन्म से लेकर बुराइयों को लेकर चलना और पीछे से कुछ नही कहना.
- खटवांग खटवांगदीर्घलम्बोष्ठयी जन्म से ही विकृत रूप में जन्म लेना और संतान को इसी प्रकार से जन्म देना.
- मलित की मालती
- मन्त्रयोगी की मन्त्रयोगिनी
- अस्थि की अस्थिरूपिणी
- चक्र की चक्रिणी
- ग्राह की ग्राहिणी
- भुवनेश्वर की भुवनेश्वरी
- कण्टक की कण्टिकिनी
- कारक की कारकी
- शुभ्र की शुभ्रणी
- कर्म की क्रिया
- दूत की दूती
- कराल की कराली
- शंख की शंखिनी
- पद्म की पद्मिनी
- क्षीर की क्षीरिणी
- असन्ध असिन्धनी
- प्रहर की प्रहारिणी
- लक्ष की लक्ष्मी
- काम की कामिनी
- लोल की लोलिनी
- काक की काकद्रिष्टि
- अधोमुख की अधोमुखी
- धूर्जट की धूर्जटी
- मलिन की मालिनी
- घोर की घोरिणी
- कपाल की कपाली
- विष की विषभोजिनी
दीपावली पूजा में दस दिक्पाल
दीपावली की पूजा में दस दिक्पालों की पूजा बहुत ही जरूरी मानी जाती है। जैसे बिना खेत की बाड के खेत की फ़सल को सुरक्षित नही रखा जा सकता है वैसे ही बिना दिक्पाल की पूजा के व्यवसाय घर और शरीर की सुरक्षा भी नही की जा सकती है। जो लोग सीधे से दीपावली पूजन के बाद लक्ष्मी को प्राप्त करने की धारणा करते है उनका हाल बाद में वही होता है कि उगी हुयी फ़सल को बिना किसी रखवाले के कोई भी बरबाद कर जाये। दस दिक्पालों का अर्थ होता है दसों दिशाओं के देवताओं की पूजा। वैसे चार दिशायें मुख्य रूप से मानी जाती है,पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर,लेकिन इन चार के बीच के कोणों के नाम भी माने जाते है यथा ईशान आग्नि नैऋत्य और वायव्य जैसे अपने चारों तरफ़ आठ दिशायें है उसी प्रकार से ऊपर और नीचे को भी दिशाओं के लिये मान्यता दी गयी है। दीपावली पूजन करने से पहले दशों दिक्पालों की पूजा करना अनिवार्य माना जाता है,इस भेद को शायद ही कहीं प्रकट किया गया है ।
पूजा स्थान में साफ़ सफ़ाई और मनपसंद रंग रोगन करने के बाद सभी प्रयोग में ली जाने वाली वस्तुओं को यथा स्थान रखने के बाद तथा नकारात्मक प्रभाव पैदा करने वाले कारकों कचडा और बेकार की टूटी फ़ूटी वस्तुओं को निवास या व्यवसाय स्थान से दूर करने के बाद दस दिक्पाल की स्थापना की जाती है,विधि और नियम शास्त्रानुसार इस प्रकार से है:-
पूर्व में इन्द्र का आवाहन और स्थापन
पूर्व दिशा में स्थान को शुद्ध करने के बाद पीले चावल हाथ किसी दोने या किसी साफ़ बर्तम में रखकर केवल स्थान में छिडकते है और चावल को छिडकते समय यह मन्त्र उच्चारित करते है:-
ऊँ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रँ हवे हवे सुहँ शूरमिन्द्रम। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रँ स्वस्ति नो मधवा धात्विन्द्र:॥
इन्द्रम सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम,आवाहवे यज्ञसिद्धयै शतयज्ञाधिपं प्रभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: इन्द्र ! इहागच्छ,इह तिष्ठ इन्द्राय नम: स्वाहा,इन्द्रमावाहयामि,स्थापयामि॥
इस मन्त्र से मानसिक रूप से पूर्व दिशा में इन्द्र का स्थापन किया जाता है,और इन्द्र के नाम से ही इन्द्र की शक्तियों का आभास होना स्वाभाविक है।
अग्नि दिशा में अग्नि का आवाहन और स्थापन
पूर्व और दक्षिण के बीच में जो स्थान होता है वह अग्नि की दिशा मानी जाती है। अग्नि का स्थान इसी दिशा में माना जाता है इसलिये ही घरों के अन्दर रसोई का और व्यापारिक स्थान में बिजली आदि की स्थापना इसी स्थान में की जाती है,इस स्थान में अग्नि के स्थापन के बाद ऊर्जा से सम्बन्धित कारक सुलभता से मिलते रहते है और शक्ति की कमी नही रहती है। सिन्दूर में चावलों को रंग कर इस स्थान में चावलो को इस मंत्र के पढते हुये छिडकना चाहिये:-
ऊँ अग्निं दूतं पुरो धधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ देवाँ आ साद्यादिह॥ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकाम। षण्नेत्रम च चतु:श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अग्ने ! इहागच्छ इह तिष्ठ अग्नये नम:,अग्निमावाहयामि,स्थापयामि॥
.दक्षिण दिशा में यम का आवाहन और स्थापना
ऊँ यमाय त्वाऽगिंरस्वते पितृमते स्वाहा ! स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्म: पित्रे॥
महामहिषमारूढं दण्डहस्तं महाबलम। यज्ञसंरक्षणार्थाय यममावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: यम ! इहागच्छ,इह तिष्ठ यमाय नम:,यममावाहयामि,स्थापयामि॥
नैऋत्य दिशा में निऋति का आवाहन और स्थापन
ऊँ असुन्वन्तमयजमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य। अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निऋते तुभ्यमस्तु॥
सर्व प्रेताधिपं देवं निऋतिं नील विग्रहम। आवाहये यज्ञसिद्धयै नरारूढं वरप्रदम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: निऋते ! इहागच्छ इह तिष्ठ निऋते नम:,निऋतिमावाहयामि,स्थापयामि॥
पश्चिम दिशा में वरुण का आवाहन और स्थापन
ऊँ तत्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशँ स मा न आयु: प्रमोषी:॥
शुद्ध स्फ़टिक संकाशं जलेशं यादसां पतिम। आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वरुण ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वरुणाय नम:,वरुणामावाहयामि स्थापयामि॥
वायव्य दिशा में वायु का आवाहन और स्थापन
ऊँ आ नो नियुद्भि: शतनीभिरध्वरँ सहस्त्रिणीभिरूप याहि यज्ञम। वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तभि: सदा न:॥
मनोजवं महातेजं सर्वतश्चारिणं शुभम। यज्ञसंरक्षणार्थाय वायुमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वायो ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वायवे नम:,वायुमावाहयामि,स्थापयामि॥
उत्तर दिशा में कुबेर का आवाहन और स्थापन
ऊँ कुविदंग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय। इहेहैषां कृणुहि भोजनानिये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति॥
उपयामगृहीतोऽस्यशिवभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण॥
एष ते योन्स्तेजसे त्वा वीर्याय त्वा बलाय त्वा॥
आवाहयामि देवेशं धनदं यक्ष पूजितम। महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: कुबेर ! इहागच्छ,इह तिष्ठ कुबेराय नम:,कुबेरमावाहयामि,स्थापयामि॥
ईशान दिशा में ईशान का आवाहन और स्थापन
ऊँ तमीशानं जगत स्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम।पूषा नो यथा वेदसामदद वृधे रक्षिता पायुरदब्ध: स्वस्तये॥
सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम। आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: ईशान ! इहागच्छ,इह तिष्ठ,ईशानाय नम:,ईशानमावाहयामि,स्थापयामि॥
ऊर्ध्व दिशा (ईशान और पूर्व के मध्य) में ब्रह्मा का आवाहन और स्थापन
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुर्तस्ताद्भि: सीमत: सुरुचो वेन आव:। स बुन्ध्या उपमा अस्य विष्ठा: सतश्च वि व:॥
पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम। आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञ संसिद्धिहेतवे॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: ब्रह्मन ! इहागच्छ,इहतिष्ठ ब्रह्मणे नम:,ब्रह्माणमावाहयामि,स्थापयामि।
अघदिशा (नैऋत्य पश्चिम के मध्य) अनन्त का आवाहन और स्थापन
ऊँ स्योना पृथवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा न: शर्म सप्रथा:।
अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरूपिणम। जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अनन्त ! इहागच्छ,इह तिष्ठ अनन्ताय नम:,अनन्तमावाहयामि स्थापयामि॥
इस प्रकार से दक्षिण दिशा के अलावा अन्य सभी स्थानों पर पीले चावलों को छिडकते हुये उपरोक्त मंत्रो का उच्चारण करते हुये मानसिक रूप से सभी दिकपालों को स्थापित करने के बाद व्यवसाय या घर में अन्य पूजा पाठ को शुरु करना ठीक रहता है। इसके बाद जो भी कार्य किया जाता है,उपरोक्त दिक्पाल अपनी अपनी अद्रश्य शक्ति से व्यवसाय और घर के कारकों को भलीभांति सुरक्षा करने के लिये अपना बल प्रदान करते रहते है।
इस पूजा के बाद -"ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम: स्वाहा" मंत्र का जाप दशों दिशाओं में फ़िर से करे,जिससे इनकी स्थापना हमेशा के लिये बनी रहे,मानसिक रूप से इन दिक्पालों से प्रीति के लिये "अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पाला: प्रीयन्ताम,न मम" मंत्र का जाप करना चाहिये,जिससे किसी भी दिक्पाल के कमजोर होने से अन्य दिक्पाल आपके व्यवसाय और घर की सुरक्षा करते रहें,और समय समय पर विभिन्न कारणों से आपको विभिन्न तरीकों से बताते रहें।
पूजा स्थान में साफ़ सफ़ाई और मनपसंद रंग रोगन करने के बाद सभी प्रयोग में ली जाने वाली वस्तुओं को यथा स्थान रखने के बाद तथा नकारात्मक प्रभाव पैदा करने वाले कारकों कचडा और बेकार की टूटी फ़ूटी वस्तुओं को निवास या व्यवसाय स्थान से दूर करने के बाद दस दिक्पाल की स्थापना की जाती है,विधि और नियम शास्त्रानुसार इस प्रकार से है:-
पूर्व में इन्द्र का आवाहन और स्थापन
पूर्व दिशा में स्थान को शुद्ध करने के बाद पीले चावल हाथ किसी दोने या किसी साफ़ बर्तम में रखकर केवल स्थान में छिडकते है और चावल को छिडकते समय यह मन्त्र उच्चारित करते है:-
ऊँ त्रातारमिन्द्रमवितारमिन्द्रँ हवे हवे सुहँ शूरमिन्द्रम। ह्वयामि शक्रं पुरुहूतमिन्द्रँ स्वस्ति नो मधवा धात्विन्द्र:॥
इन्द्रम सुरपतिश्रेष्ठं वज्रहस्तं महाबलम,आवाहवे यज्ञसिद्धयै शतयज्ञाधिपं प्रभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: इन्द्र ! इहागच्छ,इह तिष्ठ इन्द्राय नम: स्वाहा,इन्द्रमावाहयामि,स्थापयामि॥
इस मन्त्र से मानसिक रूप से पूर्व दिशा में इन्द्र का स्थापन किया जाता है,और इन्द्र के नाम से ही इन्द्र की शक्तियों का आभास होना स्वाभाविक है।
अग्नि दिशा में अग्नि का आवाहन और स्थापन
पूर्व और दक्षिण के बीच में जो स्थान होता है वह अग्नि की दिशा मानी जाती है। अग्नि का स्थान इसी दिशा में माना जाता है इसलिये ही घरों के अन्दर रसोई का और व्यापारिक स्थान में बिजली आदि की स्थापना इसी स्थान में की जाती है,इस स्थान में अग्नि के स्थापन के बाद ऊर्जा से सम्बन्धित कारक सुलभता से मिलते रहते है और शक्ति की कमी नही रहती है। सिन्दूर में चावलों को रंग कर इस स्थान में चावलो को इस मंत्र के पढते हुये छिडकना चाहिये:-
ऊँ अग्निं दूतं पुरो धधे हव्यवाहमुप ब्रुवे। देवाँ देवाँ आ साद्यादिह॥ त्रिपादं सप्तहस्तं च द्विमूर्धानं द्विनासिकाम। षण्नेत्रम च चतु:श्रोत्रमग्निमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अग्ने ! इहागच्छ इह तिष्ठ अग्नये नम:,अग्निमावाहयामि,स्थापयामि॥
.दक्षिण दिशा में यम का आवाहन और स्थापना
ऊँ यमाय त्वाऽगिंरस्वते पितृमते स्वाहा ! स्वाहा धर्माय स्वाहा धर्म: पित्रे॥
महामहिषमारूढं दण्डहस्तं महाबलम। यज्ञसंरक्षणार्थाय यममावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: यम ! इहागच्छ,इह तिष्ठ यमाय नम:,यममावाहयामि,स्थापयामि॥
नैऋत्य दिशा में निऋति का आवाहन और स्थापन
ऊँ असुन्वन्तमयजमानमिच्छ स्तेनस्येत्यामन्विहि तस्करस्य। अन्यमस्मदिच्छ सा त इत्या नमो देवि निऋते तुभ्यमस्तु॥
सर्व प्रेताधिपं देवं निऋतिं नील विग्रहम। आवाहये यज्ञसिद्धयै नरारूढं वरप्रदम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: निऋते ! इहागच्छ इह तिष्ठ निऋते नम:,निऋतिमावाहयामि,स्थापयामि॥
पश्चिम दिशा में वरुण का आवाहन और स्थापन
ऊँ तत्वा यामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदा शास्ते यजमानो हविर्भि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशँ स मा न आयु: प्रमोषी:॥
शुद्ध स्फ़टिक संकाशं जलेशं यादसां पतिम। आवाहये प्रतीचीशं वरुणं सर्वकामदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वरुण ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वरुणाय नम:,वरुणामावाहयामि स्थापयामि॥
वायव्य दिशा में वायु का आवाहन और स्थापन
ऊँ आ नो नियुद्भि: शतनीभिरध्वरँ सहस्त्रिणीभिरूप याहि यज्ञम। वायो अस्मिन्त्सवने मादयस्व यूयं पात स्वस्तभि: सदा न:॥
मनोजवं महातेजं सर्वतश्चारिणं शुभम। यज्ञसंरक्षणार्थाय वायुमावाहयाम्यहम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: वायो ! इहागच्छ,इह तिष्ठ वायवे नम:,वायुमावाहयामि,स्थापयामि॥
उत्तर दिशा में कुबेर का आवाहन और स्थापन
ऊँ कुविदंग यवमन्तो यवं चिद्यथा दान्त्यनुपूर्वं वियूय। इहेहैषां कृणुहि भोजनानिये बर्हिषो नम उक्तिं यजन्ति॥
उपयामगृहीतोऽस्यशिवभ्यां त्वा सरस्वत्यै त्वेन्द्राय त्वा सुत्राम्ण॥
एष ते योन्स्तेजसे त्वा वीर्याय त्वा बलाय त्वा॥
आवाहयामि देवेशं धनदं यक्ष पूजितम। महाबलं दिव्यदेहं नरयानगतिं विभुम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: कुबेर ! इहागच्छ,इह तिष्ठ कुबेराय नम:,कुबेरमावाहयामि,स्थापयामि॥
ईशान दिशा में ईशान का आवाहन और स्थापन
ऊँ तमीशानं जगत स्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम।पूषा नो यथा वेदसामदद वृधे रक्षिता पायुरदब्ध: स्वस्तये॥
सर्वाधिपं महादेवं भूतानां पतिमव्ययम। आवाहये तमीशानं लोकानामभयप्रदम॥
ऊँ भूभुर्व: स्व: ईशान ! इहागच्छ,इह तिष्ठ,ईशानाय नम:,ईशानमावाहयामि,स्थापयामि॥
ऊर्ध्व दिशा (ईशान और पूर्व के मध्य) में ब्रह्मा का आवाहन और स्थापन
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुर्तस्ताद्भि: सीमत: सुरुचो वेन आव:। स बुन्ध्या उपमा अस्य विष्ठा: सतश्च वि व:॥
पद्मयोनिं चतुर्मूर्तिं वेदगर्भं पितामहम। आवाहयामि ब्रह्माणं यज्ञ संसिद्धिहेतवे॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: ब्रह्मन ! इहागच्छ,इहतिष्ठ ब्रह्मणे नम:,ब्रह्माणमावाहयामि,स्थापयामि।
अघदिशा (नैऋत्य पश्चिम के मध्य) अनन्त का आवाहन और स्थापन
ऊँ स्योना पृथवि नो भवानृक्षरा निवेशनी। यच्छा न: शर्म सप्रथा:।
अनन्तं सर्वनागानामधिपं विश्वरूपिणम। जगतां शान्तिकर्तारं मण्डले स्थापयाम्यहम॥
ऊँ भूर्भुव: स्व: अनन्त ! इहागच्छ,इह तिष्ठ अनन्ताय नम:,अनन्तमावाहयामि स्थापयामि॥
इस प्रकार से दक्षिण दिशा के अलावा अन्य सभी स्थानों पर पीले चावलों को छिडकते हुये उपरोक्त मंत्रो का उच्चारण करते हुये मानसिक रूप से सभी दिकपालों को स्थापित करने के बाद व्यवसाय या घर में अन्य पूजा पाठ को शुरु करना ठीक रहता है। इसके बाद जो भी कार्य किया जाता है,उपरोक्त दिक्पाल अपनी अपनी अद्रश्य शक्ति से व्यवसाय और घर के कारकों को भलीभांति सुरक्षा करने के लिये अपना बल प्रदान करते रहते है।
इस पूजा के बाद -"ऊँ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम: स्वाहा" मंत्र का जाप दशों दिशाओं में फ़िर से करे,जिससे इनकी स्थापना हमेशा के लिये बनी रहे,मानसिक रूप से इन दिक्पालों से प्रीति के लिये "अनया पूजया इन्द्रादिदशदिक्पाला: प्रीयन्ताम,न मम" मंत्र का जाप करना चाहिये,जिससे किसी भी दिक्पाल के कमजोर होने से अन्य दिक्पाल आपके व्यवसाय और घर की सुरक्षा करते रहें,और समय समय पर विभिन्न कारणों से आपको विभिन्न तरीकों से बताते रहें।
Wednesday, October 27, 2010
चौथा राहु
माता मन मकान की बाते सभी करते है और माता मन मकान से सभी का लगाव होता है। बचपन से जवानी तक माता से और जवानी से लेकर बुढापे तक मकान से तथा बुढापे से लेकर मौत आने तक मन के साथ जुडा रहना जरूरी होता है। यह बात सही है कि आदमी कहीं पर स्वतंत्र नही है लेकिन मन के साथ तो वह हमेशा ही बन्धा हुआ है,मन का स्थान कुंडली मे चौथे भाव मे होता है और चौथे भाव से मन शंकाओं से तब भर जाता है जब उसके साथ राहु का भी सम्बन्ध स्थापित हो जाये। संसार में कई लोग आपको तर्क और कुतर्क करते हुये मिल जायेंगे। जैसे चौथे भाव के राहु वाले व्यक्ति से कोई बात की जाये तो उसके अन्दर हजारों शंकाये एक बात के लिये पैदा हो जायेंगी वह उन बातों के लिये तरह तरह की जानकारिया और उन जानकारियों के पीछे और कई जानकारियां लेने की कोशिश करेगा,समझाना भारी केवल चौथे राहु वाले के लिये ही पडता है यह बहुत ही समझने वाली बात है। ज्योतिष के अनुसार राहु को रूह का दर्जा दिया गया है,राहु केवल रूह के रूप में शरीर पर हावी होता है लोग इसकी गणना कई तरह की छाया रूपी शक्ति के लिये किया करते है। गुरु के साथ राहु का साथ होना भी खतरनाक माना जाता है गुरु जीव होता है तो राहु रूह जीव के ऊपर रूह हावी हो जाये तो जीव की स्वतंत्र सत्ता रह ही नही पाती है जैसा रूह चाहती है जीव उसी प्रकार से कार्य करता है। अगर राहु के साथ मंगल स्थापित हो जाता है जीव के अन्दर नीची सोच के साथ खून की चाल धीमी हो जाती है वह जरा सी बात को सोचने लगता है और अपने ही अन्दर घूमने लगता है। अक्सर चौथा राहु स्त्री की कुंडली में बहुत बुरा प्रभाव डाला करता है। किसी महिला के दिमाग में उसके परिवार के प्रति अगर राहु नाम की रूह कोई भ्रम डाल दे और वह उस भ्रम को निकालने के लिये अपने सारे प्रयास शुरु कर देगी,और जब तक उसका जीवन है वह उसी भ्रम के अन्दर फ़ंसी रहेगी,हर रहने वाले स्थान को वह शक की नजर से देखेगी,और जो भी उसके परिवारी जन है उनके लिये उसके मन में शक की बीमारी ही रहेगी,उसके लिये कितना ही जतन किया जाये कि उसे सत्यता का पता मिल जाये लेकिन वह सत्य के अन्दर से भी असत्यता का आभास करवाने लगेगी। एक पति के लिये इससे खतरनाक बात क्या हो सकती है कि उसके सही रहने के बाद भी उसकी पत्नी उसे शाम को प्रताणित केवल इसलिये करे कि वह देर से घर आया तो जरूर उसके अन्दर कोई न कोई राज है,या गाडी रास्ते में खराब हुयी तो उसके अन्दर भी उसकी कोई चाल है,या वह खाना कम खा रहा है या वह किसी के साथ जा रहा है या कोई महिला उससे बात करने लगी है आदि बातें यह रूह बहुत बुरी तरह से प्रकट करती है। कई लोगों को देखा है कि वे अपने इसी ख्याल के कारण घंटो बाथरूम में पानी बहाया करती है कि उनका वस्त्र गंदा है उनके ब्रस को किसी ने छू लिया होगा,उनके नहाने वाले साबुन को किसी ने प्रयोग में लिया होगा या किसी ने उसकी चप्पलों को ही प्रयोग में लिया होगा। चौथा राहु सदैव कर्जा दुश्मनी और बीमारी के भाव को देखता है और जो भी बाते इन कारकों से जुडती है,वे सभी चौथे राहु के लिये मशाला बन जाती है,किसी से दुश्मनी बन जाने पर चौथा राहु वाला व्यक्ति दुश्मनी से कम अपने शक वाले ख्यालों से जल्दी मरने की कोशिश करेगा,जैसे वह रात को सो रहा है और चूहा आकर किसी प्रकार से कोई सामान को बजा दे तो वह यह नही सोचेगा कि चूहे ने उसके सामान को गिराया है वह पूरे घर के अन्दर कोहराम इसलिये मचा देगा कि कोई उसके घर में था और वह उसे मारने आया था। कारण चौथा भाव अपनी युति से अष्टम मौत के भाव को भी देखता है। इसके अलावा बाहरी आफ़तों के लिये इस भाव को भी अधिक माना जाता है किसी धर्म स्थान या किसी अस्पताली कारण को अगर वह व्यक्ति समझ गया है तो वह अपने मरीजों केवल शक के आधार पर ही दवाइयां देगा और मरीज जीने वाला भी होगा तो भी शक के आधार पर दी जाने वाली दवाइयों से वह समय से पहले ही परलोक सिधार जायेगा। अक्सर चौथे राहु वाले व्यक्ति की पहिचान यात्रा में सही रूप से की जा सकती है,इस प्रकार का व्यक्ति जब भी यात्रा करेगा अपने स्थान के अलावा भी अपने सामान को फ़ैलाने का काम करेगा,उसकी कोई वस्तु जरा सी इधर उधर हुयी और वह अपने शक वाले स्वभाव को आसपास वाले यात्रियों पर करना शुरु कर देगा,इसके अलावा वह रास्ते भर किसी से बात नही करेगा,अपने ही ख्यालों में खोया हुआ यात्रा करेगा,जहां उसे उतरना है उसके साथ वाले सहयात्री उसे उतारने की कोशिश करेंगे तो ही वह उतरेगा अन्यथा उसे ध्यान नही होगा कि उसे उतरना भी है या नही। चौथे राहु वाला व्यक्ति प्रेम करने के मामले भी शक करने वाला माना जाता है,किसी ज्योतिष जानने वाले के पास वह शादी के पहले ही जाना शुरु कर देगा और शादी से पहले ही वह पूरी जानकारी अपने पति या पत्नी के लिये करना शुरु कर देगा,यह भी देखा गया है कि इन्ही कारणों से अधिकतर इस प्रकार के लोगों की शादी या तो हो नही पाती है और हो भी जाती है तो वह वैवाहिक जीवन को सही नही चला पाते है,उनको अधिक सोचने के कारण टीबी या सांस वाले रोग पैदा हो जाते है और अस्पताल की तरह से घर का माहौल भी बन जाता है। दमा स्वांस आदि की बीमारी होने के बाद वे अधिकतर मामले में सांस की गति को सामान्य रखने के इन्हेलर आदि का प्रयोग करते हुये देखे जाते है। महिलाओं में चौथे राहु का असर एक प्रकार से और देखा जा सकता है कि वे अपने घर के फ़र्स को साफ़ से साफ़ रखना चाहती है उन्हे गंदगी बहुत जल्दी दिखाई देने लगती है,कोई जरा सा घर के अन्दर घुसा और उसके पैरों के निशान बने तो वह जल्दी से ही पौंछा लेकर उस स्थान को पोंछने का कार्य करने लगेगी,उन्हे घर के माहौल में एक अजीब सी बदबू का होना मिलेगा और वे अधिक समय घर की साफ़ सफ़ाई में ही बिताना पसंद करती है।
Tuesday, October 26, 2010
वक्र चन्द्रमहि ग्रसहि न राहू
भले का जमाना है ही नही जो टेढा है उसे सभी मानते है,अगर आपको विश्वास नही है तो जरा दूज के चन्द्रमा को ही देख लो,पूनम के चांद को सभी देखते है और रात में रोशनी देने के बाद भी उसे कोई नही मानता है। कभी कभी सत्यनारायण की कथा दिन में कर ली जाती है लेकिन रात में कोई चन्द्रमा को निहारने नही बैठता है। ईद का चन्द्रमा भी शायद दूज के चन्द्रमा को ही कहते है,मुस्लिम भाई भी इस चांद को देखने के चक्कर में पूरी दुनिया में तहलका मचा देते है,कि चांद दिखाई दे गया है ईद की छुट्टी मजे आजाते है। किया भी क्या जा सकता है,नया चन्द्रमा होता है और नयी बहू का पालागन सभी करते है। उसे देखने के लिये मोहल्ले पडौस के सभी आजाते है कोई नजराना देता है कोई बहू को जेवर और कपडे भी देता है लेकिन दो महिने बाद वही बहू जब अपने चांद जैसे मुखडे को खोलकर अपनी चाल में आजाती है तो सभी बातें बनाने लगते है,कि वह तो ऐसे चल रही थी वह तो वैसे चल रही थी। समय का तकाजा है,पूनम के चन्द्रमा को मात इसलिये मिली है कि वह आखिरी पडाव पर होता है दूसरे दिन से उसके अन्दर घटने वाली स्थिति आजाती है,लेकिन दूज के चन्द्रमा में बढने वाली स्थिति होती है इसलिये उसे लोग इज्जत से देखते है,आसमानी राहु की छाती को चीर कर बाहर निकलता दिखाई देता है उसका दिखाई देना इसलिये और सबको मजेदार लगता है जैसे निशा रानी के सीने में किसी ने चमकदार खंजर घुसेड दी हो,और निशारानी अपनी बेहोशी में पडी दिखाई देती हो। ज्योतिष के हिसाब से भी देखा तो पूनम की तो कन्या राशि आती है,उसका जीवन तो सेवा करने में ही जायेगा,लेकिन दूज की मीन राशि आती है वह अपने आप कल का जीवन अपनी गति से देखेगी। कन्या का स्वभाव सेवा वाले कामों में माना जाता है,घटता हुआ करेगा भी क्या,जब उसके पास से धीरे धीरे खर्च होगा तो वह कर्जा लेने के लिये अपनी गति को आगे करने की योजना तो बनायेगा ही,जिसने उससे पहले ले लिया है और देने का मूड अगर नही बना पा रहा है तो वह दुश्मनी तो बनायेगा ही,और अगर कोई रास्ता लेने का नही बन रहा है तो सोच सोच कर बीमार तो होना ही है,यह होता पूनम रानी के साथ,लेकिन दूज का काम ही निराला है,कुछ समय के लिये दीदार दिये और चल दिये,सारी रात तो हाजिरी बजानी नही है,केवल घंटे भर के लिये आना है और दीदार कराने के बाद अपने स्थान पर वापस आना है,जिसे गर्ज हो वह चाहे दूज के रूप में देख ले और गणेश जी की छवि को माने जिसे जरूरत हो वह ईद की तरह से देख ले और अपने नये महिने की शुरुआत कर ले,जिसकी जरूरत हो वह क्रूर कर्म करने के रूप में देख ले और अपने कर्म करना शुरु कर दे,जो होना था वह एक घंटे के अन्दर ही हो जाता है। वैसे ही मीन राशि का स्थान आराम करने वाले स्थान पर होता है,भाग्य के घर में उसका स्थान माना जाता है,किसी की भी कुंडली को देख लो भाग्य और धर्म का घर भी मीन राशि ही होती है,मित्रों के पैसे से मजे करने है तो मीन राशि में जन्म लेना हितकर होता है,जरा सा काम किया और मित्रों के वफ़ादार बन गये,बाकी की राशियां तो अपने आप आगे पीछे चलने लगती है,पूनम से दूज की दुश्मनी होती है,पूनम को रातभर जगना पडता है,और दूज को एक घंटे में आकर अपने बल को दिखाकर चला जाना होता है।
Friday, September 17, 2010
कुंडली से फ़लादेश करने का तरीका
भारतीय ज्योतिष में जो फ़लादेश किया जाता है उसके लिये कई तरह के तरीके अपने अपने अनुसार अपनाये जाते है,लेकिन मै जो तरीका प्रयोग में लाता हूँ वह अपने प्रकार का है.
राशि चक्र में गुरु जहाँ हो उसे लगन मानना जरूरी है
कुंडली का विश्लेषण करते वक्त गुरु जहाँ भी विराजमान हो उसे लगन मानना ठीक रहता है,कारण गुरु ही जीव का कारक है और गुरु का स्थान ही बता देता है कि व्यक्ति की औकात क्या है,इसके साथ ही गुरु की डिग्री भी देखनी जरूरी है,गुरु अगर कम या बहुत ही अधिक डिग्री का है तो उसका फ़ल अलग अलग प्रकार से होगा,उदाहरण के लिये कन्या लगन की कुण्डली है और गुर मीन राशि में सप्तम में विराजमान है तो फ़लादेश करते वक्त गुरु की मीन राशि को लगन मानकर गुरु को लगन में स्थापित कर लेंगे,और फ़लादेश गुरु की चाल के अनुसार करने लगेंगे।
ग्रहों की दिशाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है
कालचक्र के अनुसार राशियों के अनुसार दिशायें भी बताई जाती है,जैसे मेष सिंह और धनु को पूर्व दिशा की कारक और मिथुन तुला तथा कुम्भ को पश्चिम दिशा की कारक वृष कन्या और मकर को दक्षिण दिशा की कारक तथा कर्क वृश्चिक और मीन को उत्तर दिशा की कारक राशियों में माना जाता है। इन राशियों में स्थापित ग्रहों के बल और उनके द्वारा दिये गये प्रभाव को अधिक ध्यान में रखना पडेगा।
ग्रहों की द्रिष्टि का ध्यान रखना जरूरी है
ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है,यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है,साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है,लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है,इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे,लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा.
ग्रहों का कारकत्व भी समझना जरूरी है
ग्रह की परिभाषा के अनुसार तथा उसके भाव के अनुसार उसका रूप समझना बहुत जरूरी होता है,जैसे शनि वक्री होकर अगर अष्टम में अपना स्थान लेगा तो वह बजाय बुद्धू के बहुत ही चालाक हो जायेगा,और गुरु जो भाग्य का कारक है वह अगर भाग्य भाव में जाकर बक्री हो जायेगा तो वह जल्दबाजी के कारण सभी तरह के भाग्य को समाप्त कर देगा और आगे की पुत्र संतान को भी नही देगा जिससे आने वाले वंश की क्षति का कारक भी माना जायेगा.
जन्म के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनायें होती है
जन्म के समय के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनाओं को बताने के लिये माना जाता है,अगर शनि जन्म से लगन में है और गोचर से शनि कर्म भाव में आता है तो खुद के कर्मों से ही कार्यों को अन्धेरे में और ठंडे बस्ते मे लेकर चला जायेगा। इसके बाद लगन का राहु गोचर से गुरु को अष्टम में देखता है तो जीवन को बर्फ़ में लगाने के लिये मुख्य माना जायेगा,जीव का किसी न किसी प्रकार की धुंआ तो निकलना ही है।
गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है
गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। गुरु के आगे शनि जातक को जीवन जीने के लिये पहाड सा लगेगा और गुरु के पीछे शनि वाला जातक जीवन को समझ ही नही पायेगा कि जीवन कब शुरु हुआ और कब खत्म होने के लिये आगया। गुरु के आगे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता के साथ पब्लिक भी साथ देती है,और गुरु के पीछे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता और पब्लिक ही आगे बढने के लिये कहती है तथा वह अपने कामो के कारण माता से दूर और यात्रा तथा खर्चों से ही परेशान होता है। गुरु से पीछे का सूर्य जातक को पिता और राज्य से सहारा देने वाला माना जाता है,लेकिन गुरु से आगे का सूर्य पिता और सरकारी कामों के लिये तथा भविष्य के पुत्र के पीछे पीछे दौडाने वाला माना जाता है। गुरु से बारहवां बुध जमीन होने के बाद भी उल्टे दिमाग के कारण कुछ भी करने से दूर रहता है और गुरु से आगे बुध होने पर बातों से काम चलाने वाला और बातों से ही पेट भरने वाला होता है।
राशि चक्र में गुरु जहाँ हो उसे लगन मानना जरूरी है
कुंडली का विश्लेषण करते वक्त गुरु जहाँ भी विराजमान हो उसे लगन मानना ठीक रहता है,कारण गुरु ही जीव का कारक है और गुरु का स्थान ही बता देता है कि व्यक्ति की औकात क्या है,इसके साथ ही गुरु की डिग्री भी देखनी जरूरी है,गुरु अगर कम या बहुत ही अधिक डिग्री का है तो उसका फ़ल अलग अलग प्रकार से होगा,उदाहरण के लिये कन्या लगन की कुण्डली है और गुर मीन राशि में सप्तम में विराजमान है तो फ़लादेश करते वक्त गुरु की मीन राशि को लगन मानकर गुरु को लगन में स्थापित कर लेंगे,और फ़लादेश गुरु की चाल के अनुसार करने लगेंगे।
ग्रहों की दिशाओं को भी ध्यान में रखना जरूरी है
कालचक्र के अनुसार राशियों के अनुसार दिशायें भी बताई जाती है,जैसे मेष सिंह और धनु को पूर्व दिशा की कारक और मिथुन तुला तथा कुम्भ को पश्चिम दिशा की कारक वृष कन्या और मकर को दक्षिण दिशा की कारक तथा कर्क वृश्चिक और मीन को उत्तर दिशा की कारक राशियों में माना जाता है। इन राशियों में स्थापित ग्रहों के बल और उनके द्वारा दिये गये प्रभाव को अधिक ध्यान में रखना पडेगा।
ग्रहों की द्रिष्टि का ध्यान रखना जरूरी है
ग्रह अपने से सप्तम स्थान को देखता है,यह सभी शास्त्रों में प्रचिलित है,साथ ग्रह अपने से चौथे भाव को अपनी द्रिष्टि से शासित रखता है और ग्रह अपने से दसवें भाव के लिये कार्य करता है,लेकिन सप्तम के भाव और ग्रह से ग्रह का जूझना जीवन भर होता है,इसके साथ ही शनि और राहु केतु के लिये बहुत जरूरी है कि वह अपने अनुसार वक्री में दिमागी बल और मार्गी में शरीर बल का प्रयोग जरूर करवायेंगे,लेकिन जन्म का वक्री गोचर में वक्री होने पर तकलीफ़ देने वाला ग्रह माना जायेगा.
ग्रहों का कारकत्व भी समझना जरूरी है
ग्रह की परिभाषा के अनुसार तथा उसके भाव के अनुसार उसका रूप समझना बहुत जरूरी होता है,जैसे शनि वक्री होकर अगर अष्टम में अपना स्थान लेगा तो वह बजाय बुद्धू के बहुत ही चालाक हो जायेगा,और गुरु जो भाग्य का कारक है वह अगर भाग्य भाव में जाकर बक्री हो जायेगा तो वह जल्दबाजी के कारण सभी तरह के भाग्य को समाप्त कर देगा और आगे की पुत्र संतान को भी नही देगा जिससे आने वाले वंश की क्षति का कारक भी माना जायेगा.
जन्म के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनायें होती है
जन्म के समय के ग्रह और गोचर के ग्रहों का आपसी तालमेल ही वर्तमान की घटनाओं को बताने के लिये माना जाता है,अगर शनि जन्म से लगन में है और गोचर से शनि कर्म भाव में आता है तो खुद के कर्मों से ही कार्यों को अन्धेरे में और ठंडे बस्ते मे लेकर चला जायेगा। इसके बाद लगन का राहु गोचर से गुरु को अष्टम में देखता है तो जीवन को बर्फ़ में लगाने के लिये मुख्य माना जायेगा,जीव का किसी न किसी प्रकार की धुंआ तो निकलना ही है।
गुरु के आगे और पीछे के ग्रह भी अपना अपना असर देते है
गुरु के पीछे के ग्रह गुरु को बल देते है और आगे के ग्रहों को गुरु बल देता है,जैसी सहायता गुरु को पीछे से मिलती है वैसी ही सहायता गुरु आगे के ग्रहो को देना शुरु कर देता है,यही हाल गोचर से भी देखा जाता है,गुरु के पीछे अगर मंगल और गुरु के आगे बुध है तो गुरु मंगल से पराक्रम लेकर बुध को देना शुरु कर देगा,अगर मंगल धर्म मय है तो बुध को धर्म की परिभाषा देना शुरु कर देगा और और अगर मंगल बद है तो गाली की भाषा देना शुरु कर देगा,गुरु के पीछे शनि है तो जातक को घर में नही रहने देगा और गुरु के आगे शनि है तो गुरु घर बाहर निकलने में ही डरेगा। गुरु के आगे शनि जातक को जीवन जीने के लिये पहाड सा लगेगा और गुरु के पीछे शनि वाला जातक जीवन को समझ ही नही पायेगा कि जीवन कब शुरु हुआ और कब खत्म होने के लिये आगया। गुरु के आगे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता के साथ पब्लिक भी साथ देती है,और गुरु के पीछे चन्द्रमा होता है तो जातक को माता और पब्लिक ही आगे बढने के लिये कहती है तथा वह अपने कामो के कारण माता से दूर और यात्रा तथा खर्चों से ही परेशान होता है। गुरु से पीछे का सूर्य जातक को पिता और राज्य से सहारा देने वाला माना जाता है,लेकिन गुरु से आगे का सूर्य पिता और सरकारी कामों के लिये तथा भविष्य के पुत्र के पीछे पीछे दौडाने वाला माना जाता है। गुरु से बारहवां बुध जमीन होने के बाद भी उल्टे दिमाग के कारण कुछ भी करने से दूर रहता है और गुरु से आगे बुध होने पर बातों से काम चलाने वाला और बातों से ही पेट भरने वाला होता है।
Wednesday, September 1, 2010
श्रीकृष्ण अष्टाक्षर महिमा
किं मंत्रैर्बहुभिर्विन्श्वर्फ़लैरायाससाधयैर्मखै:,
किंचिल्लेपविधानमात्रविफ़लै: संसारदु:खावहै।
एक: सन्तपि सर्वमंत्रफ़लदो लोपादिदोषोंझित:,
श्रीकृष्ण: शरणं ममेति परमो मन्त्रोऽयमष्टाक्षर॥
श्रीमन्यमहाप्रभु श्रीमद्वल्लभाचार्यचरण ने अपने आश्रितजनों के कल्याण के लिये अष्टाक्षर महामंत्र की दीक्षा देकर सदैव उसका जप करने के लिये आज्ञा की है। श्रीमत्प्रभुचरण श्रीगुसांई जी से प्रारम्भ कर अब तक हमारे आचार्य वंशज इस महामंत्र इस महामंत्र की दीक्षा शरणागत दैवी जीवों को देने की कृपा कर रहे है। सम्प्रदाय का प्रधान मंत्र यह अष्टाक्षरी महामंत्र है। श्रीमहाप्रभु जी द्वारा प्राप्त इस अष्टाक्षर मंत्र की वैष्णव दीक्षा लेते है,तथा इस मंत्र का नित्यप्रति जाप भी करते है। अष्टाक्षर महामंत्र की महिमा श्रीबल्लभ सम्प्रदाय में सुप्रसिद्ध है। श्रीमत्प्रभुचरण श्री बिट्ठलनाथ गुसांई जी ने अपने अष्टाक्षरार्थ निरूपण नामक ग्रंथ में यह स्पष्ट किया है। श्रीगुसांई जी आज्ञा करते हैं कि :-
श्रीकृष्ण: कृष्ण कृष्णेति कृष्ण नाम सदा जपेत।
आनन्द: परमानन्दौ बैकुंठम तस्य निश्चितम॥
जो प्राणी सदा श्रीकृष्ण भगवान के नाम का स्मरण करता है,उसको इस लोक में आनन्द तथा परमानन्द की प्राप्ति होती है। और अवश्य बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है। अष्टाक्षर में आठ अक्षर है,उनका फ़ल श्रीगुसांई जी ने इस प्रकार लिखा है:-
- श्री सौभाग्य देता है,धनवान और राजवल्लभ करता है.
- कृ यह सब प्रकार के पापों का शोषण करता है,जड से किसी भी कर्म को समाप्त करने की हिम्मत देता है.यह पैदा भी करता है और पैदा करने के बाद समाप्त भी करता है,जैसे कृषक अनाज की फ़सल को पैदा भी करता है और वही काट कर लोक पालना के लिये देता है.
- ष्ण आधि भौतिक आध्यात्मिक और आधिदैविक इन तीन प्रकार के दु:खों को हरण करने वाला है.
- श जन्म मरण का दुख दूर करता है.
- र प्रभु सम्बन्धी ज्ञान देता है
- णं प्रभु में द्रढ भक्ति को उत्पन्न करता है.
- म भगवत्सेवा के उपदेशक अपने गुरु देव से प्रीत कराता है.
- म प्रभु में सायुज्य कराता है,यानी लीन कराता है जिससे पुन: जन्म नही लेना पडे और आवागमन से मुक्ति हो.
तस्मात्सर्वात्मना नित्य: श्रीकृष्ण: शरणं मम।
वददिभरेव सततं स्थेयमित्येव मे मति:॥
सब प्रकार की चिन्ताओं से बचने के लिये सदैव सर्वात्मभाव सहित "श्रीकृष्ण: शरणं मम" कहते रहना अथवा सदैव अष्टाक्षर जप करने वाले भगवदीयों की संगति में रहना यह मेरी सम्मति है। संक्षेप में अष्टाक्षर मंत्र के जप से सब कार्य सिद्ध होते है। आधि भौतिक आध्यात्मिक आधिदैविक इन विविध दुखों में से किसी प्रकार का दु:ख प्राप्त होने पर "श्रीकृष्ण: शरणं मम" इस महामंत्र का जप उच्चार करना चाहिये।
श्रीमन्महाप्रभु जी ने वेद गीता उपनिषद एवं सभी शास्त्रों का सार समन्वय करके तथा सभी प्रकार विचार करके दैवीजीवों के उद्धार के लिये भगवान श्रीकृष्ण चन्द्र के शरणगमन पूर्वक आत्मनिवेदन करके उनकी सेवा स्मरण करते रहना यही निर्णय करके अपने अन्यायीजनों की सबसे प्रथम भगवान की शरणागति की द्रढता के लिये अष्टाक्षर मंत्र दीक्षा देकर उसका जप करने की आज्ञा दी है। इस आज्ञा का पालन करना अत्यावश्यक है। आप अष्टाक्षर मंत्र का जाप करें और अपने कुटुम्ब परिवार के साथ परिचय के वैष्णवौं को प्रेरणा देकर जपानुष्ठान में सम्मिलित होने के लिये प्रबन्ध करें.
॥श्रीकृष्ण: शरणं मम॥
Tuesday, August 31, 2010
पिता की अल्पायु तो निज पुत्र की भी अल्पायु
कितनी ही कुंडलियों में देखा है कि पिता की अल्पायु और पिता जातक की कम उम्र में गुजर चुका है तो जातक के पुत्र की अल्पायु भी होती है। इस बात की सत्यता को परखने के लिये कई कारण और निवारण शास्त्रानुसार बताये गये है। लेकिन सबसे बडा कारण जो देखने को मिला उसके अन्दर शनि और राहु के बीच में सूर्य अगर विद्यमान है तो इस प्रकार का योग देखने को मिलता है। इस योग के मिलने पर और भी कारण जो मिलते है वे इस प्रकार से है:-
- शनि राहु के बीच में सूर्य के होने से पिता और पुत्र की आयु कम होती है,इस योग को पापकर्तरी योग भी कहा जाता है.
- अधिकतर मामलों में जातक के समय ही पिता के बारे में अनिष्ट होना भांप लिया जाता है,जैसे जातक के जन्म के पहले साल में ही पिता के साथ कोई अनहोनी हो चुकी होती है.अगर इस प्रकार की अनहोनी हो चुकी है तो घर में पूजा में दुर्गा पाठ का निरंतर पाठ करना जरूरी हो जाता है.
- पितामह इस युति में बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति होते है उनकी प्रसंसा किसी भी मामले में आसपास के क्षेत्रों में सुनी जा सकती है.
- जातक को फ़िल्म में फ़ोटोग्राफ़ी में सजावटी कामों में और प्रकाश व्यवस्था का अच्छा ज्ञान होता है.
- इस योग के गोचर में आने से जातक के द्वारा किये जाने वाले काम से छुटकारा भी मिलता है.
- पिता के साधारण काम ही होते है और अधिकतर मामलो में नौकरी करना ही पाया जाता है.
- यह कारण एक पांच नौ भावों में युति मिलने से भी माना जा सकता है.
- यह युति अगर दो छ: दस भावों में मिलती है तो जातक के कुटुम्ब के अन्दर यह कारण मिलते है,यहां जातक के सरकार से सम्बन्धित भौतिक सम्पत्ति और सरकारी पद या परिवार के अन्दर किसी सरकार के काम करने वाले व्यक्ति के लिये फ़लकथन कहा जायेगा.
- इन भावों युति के लिये जातक या जातिका को चेहरे पर लगाये जाने वाले प्रसाधन के साधनो का अधिक प्रयोग करना भी माना जाता है.
- कर्जा दुशमनी बीमारी के कामो का पालना और सरकारी कानूनो का मखौल उडाना भी माना जाता है.
- सरकार के काम के विरुद्ध कोई न कोई हरकत करना कानूनी मान्यताओं को रद्द करना और उच्चपदासीन व्यकि को न्याय की प्रक्रिया से बेइज्जत करना भी माना जाता है.
Monday, August 30, 2010
दस महाविद्यायें
शक्ति ग्रंथों में दस महाविद्याओं का वर्णन मिलता है,लेकिन जन श्रुति के अनुसार इन विद्याओं का रूप अपने अपने अनुसार बताया जाता है,यह दस विद्या क्या है और किस कारण से इन विद्याओं का रूप संसार में वर्णित है,यह दस विद्यायें ही क्यों है इसके अलावा और क्यों नही इससे कम भी होनी चाहिये थी,आदि बातें जनमानस के अन्दर अपना अपना रूप दिखाकर भ्रमित करती है।
विद्या का अर्थ
आगम का आगमन निगम से हुआ है,निगम का नाम सूर्य है और आगम का नाम शनि गुरु मंगल पृथ्वी चन्द्रमा शुक्र बुध है। आगम के सभी सिद्धान्त निगम के सिद्धान्तो पर निर्भर है। जैसे निगमाचार्यों ने सैषा त्रयी विद्या इत्यादि रूप से विद्या शब्द प्रयुक्त किया है,उसी तरह से आचार्योण ने विद्यासि सा भगवती इत्यादि रूप से आगम के लिये भी विद्या शब्द का प्रयोग किया है। इस विवेचना में विद्या के शब्द का अर्थ बताने की क्रिया है।
निगम में त्रयं ब्रह्म त्रयी विद्या त्रयी वेदा: इत्यादि रूप से ब्रह्म विद्या वेद तीनों को अभिन्नार्थक माना है। परमार्थ द्रष्टि से तीनों अभिन्न है । विश्व की नजर में भी तीनो अलग अलग है। शक्ति तत्व विद्या क्या महाविद्या से शब्द से लिया गया है । इसका उत्तर इन्ही तीनों के स्वरूप ज्ञान पर निर्भर है। अनन्त ज्ञानघन क्रियाघन अर्थघन तत्वविशेष का नाम ही अक्षर है ब्रह्म है। वह सर्वज्ञान मय है सर्वक्रियामय है सर्वार्थमय है। दूसरे शब्दों में वह अक्षरतत्व मन प्राण वांगमय है जैसे क्षर पुरुष का आलम्बन अक्षर पुरुष्है,इसलिये सबका आलम्बन अक्षरपुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध अव्यय पुरुष है। वह स्वयं ज्ञान क्रिया अर्थशक्ति रूप है। अव्यय की ज्ञानशक्ति को महसूस करने वाला प्राण है। अर्थ शक्ति का महसूस करने वाला वाक यानी वाणी है। इन तीन कलाओं के अतिरिक्त आनन्द विज्ञान नाम की दो कलायें और हैं। इन पांचो कलाओं में पांचवी वाककला उपनिषदों में अन्नब्रह्म नाम से प्रसिद्ध है। तैत्तिरेय उपनिषद में इन पांचों आनन्द विज्ञान मन प्राण अन्न ब्रह्माकोषों का विस्तार से निरूपण किया गया है। आनन्दादि पुरुष की पांच कलायें है,दूसरे शब्दों में वह अव्यय पंचकल है। पंचकलात्मक वह अव्यय पुरुष स्वयं शक्ति रूप है। सामान्ये सामन्याभाव: के अनुसार आनन्द मे आनन्द नही। विज्ञान में विज्ञान नही। मन में मन नही। प्राण में प्राण नही। वाक में वाक नही । जिसके अन्दर प्राण नही है और जिसका मन भी नही है तो क्रिया नही हो सकती है,अव्यय पुरुष न करता है,न लिप्त होता है,इसी भाव का निरूपण करती हुयी श्रुति कहती है-
॥न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तस्मश्चाभ्यधिकश्व द्रश्यते,पराभ्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ॥
इन्ही कारणों से हम अव्यय पुरुश को निर्धर्मक मानने के लिये तैयार है। अव्यय पुरुष है।पुरुष चेतन है,चिदात्मा है,ज्ञानमूर्तिहै,अतएव निष्क्रिय भी है। इसलिये क्रिया सापेक्ष सक्रिय विश्व की निर्माण प्रक्रिया से बहिर्भूत है,सृष्टि संसृष्टि है। संसर्ग व्यापार है,व्यापार क्रिया है,इसका उसमें अभाव है,अतएव वह अकर्ता है।अतएव पंचकलाव्य पुरुष प्राणरूप से क्रियाशून्य नही कहा जा सकता है। परन्तु कोरी क्रिया कुछ कर भी नही सकती है। क्रिया क्रियावान कर सकता है। अव्यय क्रियावान नही क्रियास्वरूप है। क्रियावान है वही पूर्वोक्त अक्षर पुरुष। यह अक्षर पुरुष ही अव्यक्त परा प्रकृति परमब्रह्म आदि नामों से प्रसिद्ध है। वह पुरुष इस प्रकृति के साथ समन्वित होता है। तत्तु समन्वयात (शारीरिकदर्शन व्याससूत्र) के अनुसार इस प्रकृति पुरुष के समनवय से ही विश्व रचना होती है। इस समन्वय से अव्यय की शक्तियां अक्षर में संक्रांत होजाती है। उसकी शक्तियों से अक्षर शक्तिमान बन जाता है। अतएव हम अक्षर को आनन्दवान विज्ञानवान मनस्वी क्रियावान अर्थवान मानने के लिये तैयार हैं। अक्षर शक्तिमान है,सक्रिय है एक बात अरु पूर्वोक्त अव्यय कलाओं में आनन्द प्रसिद्ध है,विज्ञान चित है मन प्राण वाक की समिष्ट सत है। सत चित आनन्द की समष्टि ही सच्चिदानन्द ब्रह्म है। अक्षर तीनों से युक्त है अतएव हम इसे अवश्य ही आनन्दवान विज्ञानवान कह स्कते है। आनन्दविज्ञान मुक्तिशाक्षी अव्यय है,प्रानवाक सृष्टि साक्षी अव्यय है,मद्यपतित उभयात्मकं मन: के अनुसार दोनों ओर जाता है,मुक्ति का सम्बन्ध आनन्द विज्ञान मनसे है,सृष्टि का सम्बन्ध मन प्राण वाक से है,अतएव सृष्टि साक्षी आत्मा को स वा एष आत्मा वांगमय: प्राणमयो मनोमय: इत्यादि रूप से मन: प्राणवांगमय ही बतलाया गया है। सृष्टिसाक्षी अव्यय में हमने ज्ञानघन मन क्रियाघन प्राण अर्थघन वाक की सत्ता बतलायी है,इन तीनों में ज्ञान कला का विकास स्वयं अव्यय पुरुष है। उसमें इसी कला की प्रधानता है,क्रिया का विकास अक्षर पुरुष है,अर्थ का विकास क्षर पुरुष है,अर्थप्रधान क्षर पुरुष भी निष्क्रिय है। अक्षर पुरुष एक मात्र क्रियाशील है। क्रिर्या करना एक मात्र अक्षर का ही धर्म है,अत: हम तीनों पुरुषों में से एक मात्र अक्षर को ही सृष्टि कर्ता मान सकते है। अव्यक्त अक्षर प्रकृति ही विश्व का प्रभव प्रतिष्ठा परायण है,इसी विज्ञान को लक्ष्य मे रखकर श्रुति कहती है-
॥ यदा सुदीप्तात पावकाद्विस्फ़ुलिंगा: सह्स्त्रश: प्रभवन्ते सरूपा:,तथाक्षराद्विविधा: सोम्य भावा: प्रजायन्ते तत्र चैवापि यन्ति ॥ (मुण्डक.२/१/१)
॥अव्यक्ताद्वयक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे,रात्यागमे प्रत्नीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके॥ अव्यक्तादीन भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत,अव्यकनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥ (गीता २/२८)
माना जाता है कि प्रजापति यानी कुम्हार जमीन पर बैठकर समुदाय रूप से सर्वथा गतिशून्य अवयव रूप से सर्वथा गतिशील चक्र पर मिट्टी रखकर घडे का निर्माण किया करता है,इसी प्रकार अक्षर रूपी प्रजापति कुम्हार आनन्द विज्ञान मनोघन मुक्ति साक्षी अव्ययरूप धरातल पर बैठकर मन: प्राण वाग्घन सृष्टिसाक्षी अव्ययरूप चक्र पर क्षररूप मिट्टी से उत्तम त्रिलोकी रूप घट का निर्माण किया करता है।
विद्या का अर्थ
आगम का आगमन निगम से हुआ है,निगम का नाम सूर्य है और आगम का नाम शनि गुरु मंगल पृथ्वी चन्द्रमा शुक्र बुध है। आगम के सभी सिद्धान्त निगम के सिद्धान्तो पर निर्भर है। जैसे निगमाचार्यों ने सैषा त्रयी विद्या इत्यादि रूप से विद्या शब्द प्रयुक्त किया है,उसी तरह से आचार्योण ने विद्यासि सा भगवती इत्यादि रूप से आगम के लिये भी विद्या शब्द का प्रयोग किया है। इस विवेचना में विद्या के शब्द का अर्थ बताने की क्रिया है।
निगम में त्रयं ब्रह्म त्रयी विद्या त्रयी वेदा: इत्यादि रूप से ब्रह्म विद्या वेद तीनों को अभिन्नार्थक माना है। परमार्थ द्रष्टि से तीनों अभिन्न है । विश्व की नजर में भी तीनो अलग अलग है। शक्ति तत्व विद्या क्या महाविद्या से शब्द से लिया गया है । इसका उत्तर इन्ही तीनों के स्वरूप ज्ञान पर निर्भर है। अनन्त ज्ञानघन क्रियाघन अर्थघन तत्वविशेष का नाम ही अक्षर है ब्रह्म है। वह सर्वज्ञान मय है सर्वक्रियामय है सर्वार्थमय है। दूसरे शब्दों में वह अक्षरतत्व मन प्राण वांगमय है जैसे क्षर पुरुष का आलम्बन अक्षर पुरुष्है,इसलिये सबका आलम्बन अक्षरपुरुषोत्तम नाम से प्रसिद्ध अव्यय पुरुष है। वह स्वयं ज्ञान क्रिया अर्थशक्ति रूप है। अव्यय की ज्ञानशक्ति को महसूस करने वाला प्राण है। अर्थ शक्ति का महसूस करने वाला वाक यानी वाणी है। इन तीन कलाओं के अतिरिक्त आनन्द विज्ञान नाम की दो कलायें और हैं। इन पांचो कलाओं में पांचवी वाककला उपनिषदों में अन्नब्रह्म नाम से प्रसिद्ध है। तैत्तिरेय उपनिषद में इन पांचों आनन्द विज्ञान मन प्राण अन्न ब्रह्माकोषों का विस्तार से निरूपण किया गया है। आनन्दादि पुरुष की पांच कलायें है,दूसरे शब्दों में वह अव्यय पंचकल है। पंचकलात्मक वह अव्यय पुरुष स्वयं शक्ति रूप है। सामान्ये सामन्याभाव: के अनुसार आनन्द मे आनन्द नही। विज्ञान में विज्ञान नही। मन में मन नही। प्राण में प्राण नही। वाक में वाक नही । जिसके अन्दर प्राण नही है और जिसका मन भी नही है तो क्रिया नही हो सकती है,अव्यय पुरुष न करता है,न लिप्त होता है,इसी भाव का निरूपण करती हुयी श्रुति कहती है-
॥न तस्य कार्यं करणं च विद्यते न तस्मश्चाभ्यधिकश्व द्रश्यते,पराभ्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते स्वाभाविकी ज्ञानबलक्रिया च ॥
इन्ही कारणों से हम अव्यय पुरुश को निर्धर्मक मानने के लिये तैयार है। अव्यय पुरुष है।पुरुष चेतन है,चिदात्मा है,ज्ञानमूर्तिहै,अतएव निष्क्रिय भी है। इसलिये क्रिया सापेक्ष सक्रिय विश्व की निर्माण प्रक्रिया से बहिर्भूत है,सृष्टि संसृष्टि है। संसर्ग व्यापार है,व्यापार क्रिया है,इसका उसमें अभाव है,अतएव वह अकर्ता है।अतएव पंचकलाव्य पुरुष प्राणरूप से क्रियाशून्य नही कहा जा सकता है। परन्तु कोरी क्रिया कुछ कर भी नही सकती है। क्रिया क्रियावान कर सकता है। अव्यय क्रियावान नही क्रियास्वरूप है। क्रियावान है वही पूर्वोक्त अक्षर पुरुष। यह अक्षर पुरुष ही अव्यक्त परा प्रकृति परमब्रह्म आदि नामों से प्रसिद्ध है। वह पुरुष इस प्रकृति के साथ समन्वित होता है। तत्तु समन्वयात (शारीरिकदर्शन व्याससूत्र) के अनुसार इस प्रकृति पुरुष के समनवय से ही विश्व रचना होती है। इस समन्वय से अव्यय की शक्तियां अक्षर में संक्रांत होजाती है। उसकी शक्तियों से अक्षर शक्तिमान बन जाता है। अतएव हम अक्षर को आनन्दवान विज्ञानवान मनस्वी क्रियावान अर्थवान मानने के लिये तैयार हैं। अक्षर शक्तिमान है,सक्रिय है एक बात अरु पूर्वोक्त अव्यय कलाओं में आनन्द प्रसिद्ध है,विज्ञान चित है मन प्राण वाक की समिष्ट सत है। सत चित आनन्द की समष्टि ही सच्चिदानन्द ब्रह्म है। अक्षर तीनों से युक्त है अतएव हम इसे अवश्य ही आनन्दवान विज्ञानवान कह स्कते है। आनन्दविज्ञान मुक्तिशाक्षी अव्यय है,प्रानवाक सृष्टि साक्षी अव्यय है,मद्यपतित उभयात्मकं मन: के अनुसार दोनों ओर जाता है,मुक्ति का सम्बन्ध आनन्द विज्ञान मनसे है,सृष्टि का सम्बन्ध मन प्राण वाक से है,अतएव सृष्टि साक्षी आत्मा को स वा एष आत्मा वांगमय: प्राणमयो मनोमय: इत्यादि रूप से मन: प्राणवांगमय ही बतलाया गया है। सृष्टिसाक्षी अव्यय में हमने ज्ञानघन मन क्रियाघन प्राण अर्थघन वाक की सत्ता बतलायी है,इन तीनों में ज्ञान कला का विकास स्वयं अव्यय पुरुष है। उसमें इसी कला की प्रधानता है,क्रिया का विकास अक्षर पुरुष है,अर्थ का विकास क्षर पुरुष है,अर्थप्रधान क्षर पुरुष भी निष्क्रिय है। अक्षर पुरुष एक मात्र क्रियाशील है। क्रिर्या करना एक मात्र अक्षर का ही धर्म है,अत: हम तीनों पुरुषों में से एक मात्र अक्षर को ही सृष्टि कर्ता मान सकते है। अव्यक्त अक्षर प्रकृति ही विश्व का प्रभव प्रतिष्ठा परायण है,इसी विज्ञान को लक्ष्य मे रखकर श्रुति कहती है-
॥ यदा सुदीप्तात पावकाद्विस्फ़ुलिंगा: सह्स्त्रश: प्रभवन्ते सरूपा:,तथाक्षराद्विविधा: सोम्य भावा: प्रजायन्ते तत्र चैवापि यन्ति ॥ (मुण्डक.२/१/१)
॥अव्यक्ताद्वयक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे,रात्यागमे प्रत्नीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके॥ अव्यक्तादीन भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत,अव्यकनिधनान्येव तत्र का परिदेवना॥ (गीता २/२८)
माना जाता है कि प्रजापति यानी कुम्हार जमीन पर बैठकर समुदाय रूप से सर्वथा गतिशून्य अवयव रूप से सर्वथा गतिशील चक्र पर मिट्टी रखकर घडे का निर्माण किया करता है,इसी प्रकार अक्षर रूपी प्रजापति कुम्हार आनन्द विज्ञान मनोघन मुक्ति साक्षी अव्ययरूप धरातल पर बैठकर मन: प्राण वाग्घन सृष्टिसाक्षी अव्ययरूप चक्र पर क्षररूप मिट्टी से उत्तम त्रिलोकी रूप घट का निर्माण किया करता है।
Thursday, August 26, 2010
अहंकार से सम्बन्ध विच्छेद
वह जमाना चला गया जब बहुयें ब्यालू किया करती थी,इस कहावत का मतलब होता है कि घर की बहू का हक केवल दोपहर के भोजन तक ही सीमित है,जब ब्यालू नही करने दी जायेगी तो कलेऊ का भी कोई आस्तित्व नही है। यह बात अक्सर पुराने जमाने की सासें अपने अपने अनुसार किया करती थी,लेकिन आज के जमाने में यह बात बिलकुल पलट गयी है,अब कहा जा सकता है "वह जमाना चला गया जब सासें ब्यालू किया करती थीं",शादी के बाद कितने ही रिस्ते इस अहंकार की बली चढ गये है,और जो कुछ चल भी रहे है वे या तो परिवार की मर्यादा को रख कर चल रहे है या रिस्ते के नाम पर पक्ष और प्रतिपक्ष के परिवार रिस्तों को ढो रहे है। पति और पत्नी की विवाह के बाद की औकात कितनी रह गयी है यह अगर किसी पारिवारिक न्यायालय या अधीनस्थ न्यायालय में जाकर देखा जाये तो बहुत कुछ देखने को मिल जायेगा। पुरुष अहम कितना है इस बात के लिये हमने कितनी ही लडकियों की व्यथायें सुनी,वे अपने घरों को छोड कर न्याय की आशा में अपने अपने माता पिता के पास बैठी है,अगर माता पिता समर्थ है तो उनके भरण पोषण को कर रहे है और अगर किसी भी तरह से भरण पोषण नही कर पा रहे हैं तो लडकियां खुद ही किसी छोटे या बडे पद पर आसीन होकर अपना खर्च वहन कर रही है। शादी के बाद का जो माहौल घर के अन्दर पैदा होता है वह केवल अहम को लेकर होता है,जब दो परिवार आपस में जुडते है तो कुछ अच्छा और कुछ बुरा अनुभव तो होता ही है। अक्सर समाचार पत्रों से या वैवाहिक साइटों से जो रिस्ते बनाये जा रहे है वे किसी प्रकार से खानपान रहन सहन और भाषा से जुडे नही होते है,उनके अन्दर परिवार की कहानी मनगढंत होती है या फ़िर जिस परिवेश में वर और वधू रहे होते है उस परिवेश की भिन्नता भी अपना कारण बनाती है। बोली जाने वाली भाषा अलग होती है और देखने वाली समझ अलग होती है,किसी की तस्वीर और शिक्षा को देखकर अगर शादी की बात की जाती है और रिस्ता फ़ाइनल भी हो जाता है तो जब उस वर या वधू के रिस्तेदार आपस में मिलते है और जब कोई कार्यक्रम में शामिल होना पडता है तो अक्सर समाज की खामियां भी देखने को मिलती है,जैसे खानपान का तमाशा,रहने के स्थान का तमाशा दिखावे का तमाशा आदि करने से वर और वधू के परिवारों में किसी न किसी बात पर तकरार हो ही जाती है। और जब बहू घर आती है तो बहू पर किये गये व्यवहार के बारे में आक्षेप विक्षेप दिये जाते है,जबकि बहू का खुद का दिमाग असंतुलन में होता है वह अपने परिवार को छोड रही होती है और दूसरे परिवार में जा रही होती है,किसी अलग माहौल में जाने पर पहले उस परिवार के सदस्यों के बारे में समझना पडता है फ़िर उस परिवार के माहौल के अनुसार चलने की कोशिश की जाती है,समझदार तो कोशिश करने पर सफ़ल हो जाती है लेकिन जिनके अन्दर माता पिता का भाई का या अन्य किसी प्रकार का जैसे कि नौकरी करना आदि होता है तो वह अहम के कारण एक दम ही अपने व्यवहार को परिवर्तित कर देती है और परिवार से दूर होकर अपने को प्रताणित शो करने लगती है,परिवार के साथ उनका साथ कानून भी देता है,उसके बाद चलती है कानूनी लडाई जो अधिकतर काफ़ी समय तक चलती है,दोनो पक्ष एक दूसरे को प्रताणित करने के लिये अलग अलग धाराओं और कई प्रकार के पारिवारिक अपघात करने से नही चूकते,जो सम्बन्ध धार्मिक रूप से चलना था,पति पत्नी को सौहार्द पूर्वक रहकर अपने जीवन की मुख्य रास्ता से जुडना था,वह सब एक क्षण में समाप्त हो चुका होता है।
Tuesday, August 24, 2010
गृह क्लेश कारण और निवारण
पूर्वजों से सुनता आया हूँ कि - " जिनके पशु प्यासे बंधे,त्रियां करें क्लेश,उनकी रक्षा ना करें ब्रह्मा विष्णु महेश", अर्थात जिन व्यक्तियों ने पशुओं को पाला हुआ है और उनके पानी भोजन की व्यवस्था नही कर रहे है,और जिन व्यक्तियों के घर में स्त्रियां या स्त्री क्लेश कर रही है,उनकी रक्षा भगवान ब्रह्मा विष्णु और महेश् भी नही कर सकते है। उन व्यक्तियों को बरबाद होना ही है,वह चाहे धन से बरबाद हों या तन से या समाज से अथवा इन तीनो से उनकी बरबादी को कोई रोक नही सकता है। स्त्री का क्लेश केवल एक ही कारण से होता है,वह कारण होता है "टोटा",यानी घर की लडाई की जड टोटा,इस टोटे को समझने के लिये थोडा विस्तार से जाना पडेगा।
"बुद्धि बाहुबल खूब है,भ्रम में जायें भूल।
घर की चिन्ता न करें उचित क्लेश का मूल॥
इसका मतलब साफ़ है,काफ़ी शिक्षा प्राप्त की है,और ताकत भी खूब है,लेकिन भ्रम दिमाग में रहा कि घर को कोई तो संभाल ही लेगा,वक्त पर घर में कोई आफ़त हो गयी,खुद को पता नही है तो घर में क्लेश तो होना ही है। बुजुर्ग की सलाह भी घर के लिये लाभकारी होती है,अक्सर आज के युवा वर्ग में बुजुर्ग की सलाह लेना नही आता है,वह सोचता है कि घर के मामले भी शिक्षा और पढाई के मामलों की तरह से होंगे,लेकिन घर की स्थिति और शिक्षा तथा कार्य की स्थिति में बहुत अन्तर है। घर में क्लेश छोटी सी बात पर भी हो सकता है और घर में बडा कारण होने पर भी क्लेश नही होता है,हर क्लेश का कारण बुद्धि में भ्रम भर जाना होता है। भ्रम के बारे में कहा है:-
"ताकत नही शरीर में चले न घर में जोर।
पास पडौसी हंसत है मचो रहे जब शोर॥"
मतलब साफ़ है कि शरीर में जोर है नही और कार्य करने में दम निकलती है। फ़िर घर के अन्दर क्लेश तो होना ही है और अगर केल्श होता है तो शोर भी होगा और उस शोर को सुनकर पडौसी भी कान लगाकर सुनते है। और जब बातें अजीब सी होती है तो हंसी तो होनी ही है.
"बुद्धि बाहुबल खूब है,भ्रम में जायें भूल।
घर की चिन्ता न करें उचित क्लेश का मूल॥
इसका मतलब साफ़ है,काफ़ी शिक्षा प्राप्त की है,और ताकत भी खूब है,लेकिन भ्रम दिमाग में रहा कि घर को कोई तो संभाल ही लेगा,वक्त पर घर में कोई आफ़त हो गयी,खुद को पता नही है तो घर में क्लेश तो होना ही है। बुजुर्ग की सलाह भी घर के लिये लाभकारी होती है,अक्सर आज के युवा वर्ग में बुजुर्ग की सलाह लेना नही आता है,वह सोचता है कि घर के मामले भी शिक्षा और पढाई के मामलों की तरह से होंगे,लेकिन घर की स्थिति और शिक्षा तथा कार्य की स्थिति में बहुत अन्तर है। घर में क्लेश छोटी सी बात पर भी हो सकता है और घर में बडा कारण होने पर भी क्लेश नही होता है,हर क्लेश का कारण बुद्धि में भ्रम भर जाना होता है। भ्रम के बारे में कहा है:-
"ताकत नही शरीर में चले न घर में जोर।
पास पडौसी हंसत है मचो रहे जब शोर॥"
मतलब साफ़ है कि शरीर में जोर है नही और कार्य करने में दम निकलती है। फ़िर घर के अन्दर क्लेश तो होना ही है और अगर केल्श होता है तो शोर भी होगा और उस शोर को सुनकर पडौसी भी कान लगाकर सुनते है। और जब बातें अजीब सी होती है तो हंसी तो होनी ही है.
Tuesday, April 6, 2010
माँ कामाख्या आराधना शतक
श्लोक
माँ कामाख्या नमस्तुभ्यं शैलसुता कामेश्वरी । हरप्रिया नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे॥ भुवनेश्वरी भवतारिणी मंगल मोक्ष प्रदायिणी। कामना सिद्ध कामेश्वरी शक्तिशैल समन्विता॥
अधिष्ठात्री असमदेशे आवाह्यामि सुसर्वदा। सिद्धक्षेत्र नीलांचले
शक्तिपीठ प्रतिष्ठितम॥ नमोऽस्तु कामाख्याय देवै च तेजोमयं दिव्यम। प्रणमामि सदा भक्तया माँ कामाख्या परम शुभम॥
नमोभगवती भगेश्वरी योनि मुद्रा महोदरी। शरण्ये शक्तिरुपाय देवि कल्याणी नमोऽस्तुते॥
दोहा
कामेश्वरी करुना करो गुरु गणेश परिवार। शब्द सुलभ आराधना वरणौ मति अनुसार॥ दीन हीन बलहीन हौं पर बालक हँ तेरे। हे माँ ! तू ममतामयी सब विघ्न हरु मेरे॥
चौपाई
जय जय अम्बे कामाकाली। रक्ताम्बुज नयन मतबाली॥ तव चरणन में आकर माता,खाली हाथ न कोई जाता॥
खोह खंड मह कियो निवासू,निलांचल पर्वत पर बासू॥ जननी तू जन जीवन हेतू,अखिल विश्व के तूहि चित्त चेतू॥
अविकल कला काम बहुरंगा,धरणी धाम जगपावनी गंगा,स्त्रवत सलिल सुख जग हितकारी,सेवत सकल सुकृत तनुधारी॥माया मोह मोहिनी रूपा,जग मोहिनी तव चरित अनूपा॥यंत्र तंत्र अभिमंत्र अभिषेका,भक्ति भाव जनजीव अनेका॥योग जाप भव भोग भवानी,पावत सिद्धि जो जस ज्ञानी॥
दोहा
योग भोग सिद्धि दोऊ,जो चाहे सो लेत।कामाख्या करुणा करि,मंत्र मुग्ध करि देत॥
चौपाई
ज्ञानी गुणी सिद्ध मुनि शारद,जपत निरंतर ज्ञान विशारद॥लोक परलोक त्रिभुवन माता,भक्त वत्सल जन सुखदाता॥स्वामिनी एक आस तुम्हारी,जन सुखदायक भव भय हारी॥तू माया ममता की काया,दे माँ मुझे आंचल की छाया॥छत्र छाया मह जीवन मेरा,जीवन का यह सुखद सबेरा॥शरणागत चरणों में माता,पाऊ तुझे सदा मुसुकाता॥सेवत सदा योगी मुनि ज्ञानी,पावत सकल सुकृत सेयानी॥शीतल सुभग सदा बह नीरा,कामायनी शत कल्प शरीरा॥जप तप साधन नहि कछु मोरे,है सब प्रकार अनुग्रह तोरे॥किस विधि करू आराधना देवी,हूँ मै मूरख हे सुरसेवी॥कामेश्वरी हे माँ भवानी,करहु कृपा शिवा कल्याणी॥
दोहा
भक्त करे आराधना, नहि बल बुद्धि निधान। कामरूप के महादेवी निज भक्ति देहु मोहि दान॥
आया हूँ माँ आस लिये पुत्र प्यार अभिलाषा।जीवन जगत भक्ति मुक्ति जटिल जीव जिज्ञासा॥
चौपाई
आराधना सेवा कठिनाई,बसहु ह्रदय भक्तन के माई। नहि बल पौरुष पास हमारें,सेवक सब विधि शरण तुम्हारे॥
भटक भटक जग जीवन हारा,जाऊं कहां न कोई सहारा,विकल विवस विचरौं तव द्वार,ना कोई अपना सिवा तुम्हार। अश्रु अर्घ अभिषेक भवानी,यहि जीवन की कथा पुरानी॥ हूँ अनाथ नहि सोदर भ्राता,दीन हीन हूँ बाम विधाता॥ हे माँ ! अब तुम्ही सम्भालो,अपने आंचल में ही पालो। बार बार अर्ज हे स्वामिनी,महागौरी अघोर कामिनी॥ अरजी है मरजी तुम्हारी,दया करो हे माँ अघहारी॥ विकल विवश हो एक पापी पुकारे,खडा हूँ माँ में तेरे द्वारे॥
दोहा
हूँ माँ अधम अभिमानी,माँ सुनलो पुकार। पूर्ण करहु मनोकामना पडा हूँ तेरे द्वार॥
जनम जनम के नेहिया नहि बल बुद्धि निधान। बालक पर ममता करहु भक्ति विमल यश दान॥
चौपाई
दयाकर माँ हमे अपनाना,हम पतितों को पावन बनाना। कर्म कुटिल चित चंचलताई,माँ कामाख्या होहु सहाई॥ अर्घ आचमन पान सुपारी,फ़ूल प्रसाद अर्चन तुम्हारी। नवल नारियल बलि चढावा,माँ कामाख्या के मन भावा॥ भाव सहित जो पूजा करहीं,मन वांछित फ़ल सो अनुसरहीं। विविधि वासना मन कुटिलाई,दूर करहु कामाख्या माई॥ आचमन जल पावनी गंगा,चरण सुमिरि करौ सत्संगा॥ महाशक्ति युग युग की रानी,घर घर फ़ैली अमर कहानी॥ शक्ति की अधिष्ठात्री देवी,नीलांचल के तु सुरसेवी॥ कामदेव रति महारानी,माँ कामाख्या के अनुगामी॥
दोहा
भगवती भव भामिनी,गौरी सहित महेश। सिद्ध करहु मनोकामना बसहु ह्रदय प्रदेश॥
चौपाई
रूप अनंग शिवशाप अधिकारी,अनुगृहित भय रतिपति भारी॥ देव दनुज मुनि सेवा करहीं,कामाख्या शरण अनुसरहीं॥ कृपा अमोघ सुर सिद्धि भवानी,किस विधि पाऊं मैं अधम अभिमानी॥ भक्ति भाव है नहि कछु मोरे,सबकुछ अर्पण चरण में तोरे॥ माँ महिमा का कहौ तुम्हारी,हे माया ! तू है अघहारी॥ साधन सिद्धि न कछु सतसंगा,समन सकल दुख मुनि सरभंगा॥ पूजा पाठ न जप तप नेमा,परम प्रसाद पुनीत पद प्रेमा॥ सुकृत सकल सुख सहज भवानी,दुर्लभ दर्शन पावत मुनि ज्ञानी॥ योगी यति तपसी मुनि ज्ञानी,धरत ध्यान सुकृत फ़ल जानी॥ धरनी धाम धर्म पुण्य प्रभाऊ,मिलही ने एक संग सब काऊ॥
दोहा
नहि जप तप न भक्ति कछु,देहु विमल यश सार। हाथ जोड विनती करौं चाहत माँ का प्यार॥
दुख हरहु कामेश्वरी संकट विकट पहार। नहि जानौं उपासना,सेवा योग उपहार॥
चौपाई
जीव जगत लभी तव बासा,ढूंडत फ़िरत मृग क्षुधा पिपासा॥ नहि मुण कर्म न भक्त बडभागी,अधम अधिन जग परम अभागी॥ अग जग नहि कोइ मम हितकारी,भगवती सदा शरण तुम्हारी॥ करूं परितोष कस हे कल्याणी,सब विधि विवस अधम अज्ञानी॥ सोच सकल हिय अहित असंका,मिटहहि नहि जन्म कोटि कलंका॥ अस मैं अधम सुनहु कल्याणी,जटिल जीव की यही कहानी॥ है पूत कपूत महा अभिमानी,मात कुमात न होइ भवानी॥ हिय महिं सोचु सकल जग दोषू,करहि क्षमा नहि करहहिं रोषू॥ अब मोहि भा भरोस हे माता,जन सुखदायक भाग्य विधाता॥ मुद की मंगल अमंगल हारी,सदा विराजत संग पुरारी॥
दोहा
जीवन जटिल कुटिल अति युग युग का अभिशाप। यद्यपि पूत कपूत है समन सकल मम पाप॥
चौपाई
नहि तेरा आदि अवसाना,वेद पुराण विदित जग जाना॥ कण कण में है बास तुम्हारी,माँ शक्ति अमोघ सुखकारी॥ कामरूप कामाख्या माता,करुणा कीजै जन सुखदाता॥ महा शक्ति सर्वदेवी श्यामा,तुहि एक सब पूरण कामा॥ वरनौ का तब नाम अनेका,जगन्माता सब एक ते एका॥ जो कछु बरनौ मोर ढिठाई,क्षमा करहु कामाख्या माई॥ छन्द प्रबन्ध विविधि विधि नाना,मै मूरख विधि एक नहि जाना॥ स्वारथ लागि विविधि विधाना,येहि जपतप जोग व्रत ध्याना॥ आराधना के शब्द भवानी,मातृ स्नेह तोतरी वानी॥
दोहा
अगनित नाम गुण रूप बहु कथा विधान अनेक। महाशक्ति कामाख्या महादेवी तू एक॥
आदि शक्ति विस्तारणी अगजग महा समुन्द। तू गागर में सागर है,मैं सागर का बुन्द॥
चौपाई
कहां कहां लौ नेह अरु नाता,मानिय सोइ जो तेहि भाता॥ नहि समरथ नहि बुद्धि प्रवीना,मम जीवन माँ तेहि आधीना॥ अस जिये जानि मानहु माता,तू कपूत की भाग्य विधाता॥ कुल गुरु की यह अकथ कहानी,हिये धरों श्रवणामृत जानी॥ अब मोहि भरोस हे माता,कामाख्या तु जग विख्याता॥ त्रिकोण मध्य की बिन्दु महारानी,उस बिन्दु में सिन्धु समानी॥ यह रहस्य कोइ नहि जाना,वेद पुराण में कथा बखाना॥ बहुत कहौ का तोर प्रभुताई,नारद शारद सकहिं न गाई॥ जो मै कहां बुद्धि अनुकूला,छमिय देवि गुण दोष प्रतिकूला॥ तुम्ह समान नहि कोइ है दाता,नहिं विकल्प संकल्प समाता॥
दोहा
नहि साधन गुनहीन मै,किस विधि हो निस्तार। माँ की ममता महिमामयी करेगी बेडा पार॥
चौपाई
अस विश्वास सुनहु हे माई,करहु कृपा भव आव न जाई॥ यहि कामना बसै मन मोरे,सब विधि मात अनुग्रह तोरे॥ लोक वासना बसत मन माहीं,यही सोचि मन रहो अकुलाई॥ नहि सिद्धि अरु साधन मोरे,कृपा अनुग्रह सब विधि तोरे॥ भक्ति मुक्ति जग्य योग अनूपा,साधन धन धाम के अनुरूपा॥ साधन हीन नराधम भारी,पावहि किस विधि कृपा तुम्हारी॥ ये सब कृपा कटाक्ष तुम्हारे,तू चाहे तो भव निस्तारे॥ लाख चाहे करौ चतुराई,परवश जीव स्वबश है माई॥ कामाख्या कामरूप शिवानी,नीलांचल पर्वत की रानी॥
दोहा
सब विधि शरण तुम्हारी,माँ ममता विस्तार। हे माँ ! तू करुणामयी दे आंचल की बयार॥
जाऊं कहां मै विवश हूं माँ,कछु न आन आधार। जनम जनम से मांगता केवल तेरा प्यार॥
चौपाई
प्राकृतिक सौन्दर्य निराला,निरखी परख भव भ्रम उजाला॥ नारायणी गंडकी कुमारी,विश्व मातृका भवभय हारी॥ नाम अनेक एक महामाया,देश काल भिन्न रूप बनाया॥ आराधना अनुपम मीनाक्षी,माँ कामाख्या स्वयं है साक्षी॥ युग अनुरूप जग यश देता,माया ब्रह्म जीव अभिनेता॥ नट नागर विश्वरूप प्रणेता,महाशक्ति एक चिन्मय चेता॥ जगदाधार तू धरणी धामा,जय माँ जय माँ काली कामा॥ शतक आराधना माँ निराली,चारो पदारथ देने वाली॥ जो नित पाठ करहि मन लाई,देहि सिद्धि कामाख्या माई॥ कामाख्या मैं आश्रय तोरे,सब कुछ सौपा नहि बस मोरे॥
दोहा
सिद्ध आराधना शतक भक्ति मुक्ति का द्वार। कामाख्या अर्पण तुझे शब्द सुमन का हार॥
मन पूजा अर्पित करी करि संकल्प अपार। माँ तेरी आरती करूं जन को लेहु संभारि॥
माँ कामाख्या नमस्तुभ्यं शैलसुता कामेश्वरी । हरप्रिया नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं दया निधे॥ भुवनेश्वरी भवतारिणी मंगल मोक्ष प्रदायिणी। कामना सिद्ध कामेश्वरी शक्तिशैल समन्विता॥
अधिष्ठात्री असमदेशे आवाह्यामि सुसर्वदा। सिद्धक्षेत्र नीलांचले
शक्तिपीठ प्रतिष्ठितम॥ नमोऽस्तु कामाख्याय देवै च तेजोमयं दिव्यम। प्रणमामि सदा भक्तया माँ कामाख्या परम शुभम॥
नमोभगवती भगेश्वरी योनि मुद्रा महोदरी। शरण्ये शक्तिरुपाय देवि कल्याणी नमोऽस्तुते॥
दोहा
कामेश्वरी करुना करो गुरु गणेश परिवार। शब्द सुलभ आराधना वरणौ मति अनुसार॥ दीन हीन बलहीन हौं पर बालक हँ तेरे। हे माँ ! तू ममतामयी सब विघ्न हरु मेरे॥
चौपाई
जय जय अम्बे कामाकाली। रक्ताम्बुज नयन मतबाली॥ तव चरणन में आकर माता,खाली हाथ न कोई जाता॥
खोह खंड मह कियो निवासू,निलांचल पर्वत पर बासू॥ जननी तू जन जीवन हेतू,अखिल विश्व के तूहि चित्त चेतू॥
अविकल कला काम बहुरंगा,धरणी धाम जगपावनी गंगा,स्त्रवत सलिल सुख जग हितकारी,सेवत सकल सुकृत तनुधारी॥माया मोह मोहिनी रूपा,जग मोहिनी तव चरित अनूपा॥यंत्र तंत्र अभिमंत्र अभिषेका,भक्ति भाव जनजीव अनेका॥योग जाप भव भोग भवानी,पावत सिद्धि जो जस ज्ञानी॥
दोहा
योग भोग सिद्धि दोऊ,जो चाहे सो लेत।कामाख्या करुणा करि,मंत्र मुग्ध करि देत॥
चौपाई
ज्ञानी गुणी सिद्ध मुनि शारद,जपत निरंतर ज्ञान विशारद॥लोक परलोक त्रिभुवन माता,भक्त वत्सल जन सुखदाता॥स्वामिनी एक आस तुम्हारी,जन सुखदायक भव भय हारी॥तू माया ममता की काया,दे माँ मुझे आंचल की छाया॥छत्र छाया मह जीवन मेरा,जीवन का यह सुखद सबेरा॥शरणागत चरणों में माता,पाऊ तुझे सदा मुसुकाता॥सेवत सदा योगी मुनि ज्ञानी,पावत सकल सुकृत सेयानी॥शीतल सुभग सदा बह नीरा,कामायनी शत कल्प शरीरा॥जप तप साधन नहि कछु मोरे,है सब प्रकार अनुग्रह तोरे॥किस विधि करू आराधना देवी,हूँ मै मूरख हे सुरसेवी॥कामेश्वरी हे माँ भवानी,करहु कृपा शिवा कल्याणी॥
दोहा
भक्त करे आराधना, नहि बल बुद्धि निधान। कामरूप के महादेवी निज भक्ति देहु मोहि दान॥
आया हूँ माँ आस लिये पुत्र प्यार अभिलाषा।जीवन जगत भक्ति मुक्ति जटिल जीव जिज्ञासा॥
चौपाई
आराधना सेवा कठिनाई,बसहु ह्रदय भक्तन के माई। नहि बल पौरुष पास हमारें,सेवक सब विधि शरण तुम्हारे॥
भटक भटक जग जीवन हारा,जाऊं कहां न कोई सहारा,विकल विवस विचरौं तव द्वार,ना कोई अपना सिवा तुम्हार। अश्रु अर्घ अभिषेक भवानी,यहि जीवन की कथा पुरानी॥ हूँ अनाथ नहि सोदर भ्राता,दीन हीन हूँ बाम विधाता॥ हे माँ ! अब तुम्ही सम्भालो,अपने आंचल में ही पालो। बार बार अर्ज हे स्वामिनी,महागौरी अघोर कामिनी॥ अरजी है मरजी तुम्हारी,दया करो हे माँ अघहारी॥ विकल विवश हो एक पापी पुकारे,खडा हूँ माँ में तेरे द्वारे॥
दोहा
हूँ माँ अधम अभिमानी,माँ सुनलो पुकार। पूर्ण करहु मनोकामना पडा हूँ तेरे द्वार॥
जनम जनम के नेहिया नहि बल बुद्धि निधान। बालक पर ममता करहु भक्ति विमल यश दान॥
चौपाई
दयाकर माँ हमे अपनाना,हम पतितों को पावन बनाना। कर्म कुटिल चित चंचलताई,माँ कामाख्या होहु सहाई॥ अर्घ आचमन पान सुपारी,फ़ूल प्रसाद अर्चन तुम्हारी। नवल नारियल बलि चढावा,माँ कामाख्या के मन भावा॥ भाव सहित जो पूजा करहीं,मन वांछित फ़ल सो अनुसरहीं। विविधि वासना मन कुटिलाई,दूर करहु कामाख्या माई॥ आचमन जल पावनी गंगा,चरण सुमिरि करौ सत्संगा॥ महाशक्ति युग युग की रानी,घर घर फ़ैली अमर कहानी॥ शक्ति की अधिष्ठात्री देवी,नीलांचल के तु सुरसेवी॥ कामदेव रति महारानी,माँ कामाख्या के अनुगामी॥
दोहा
भगवती भव भामिनी,गौरी सहित महेश। सिद्ध करहु मनोकामना बसहु ह्रदय प्रदेश॥
चौपाई
रूप अनंग शिवशाप अधिकारी,अनुगृहित भय रतिपति भारी॥ देव दनुज मुनि सेवा करहीं,कामाख्या शरण अनुसरहीं॥ कृपा अमोघ सुर सिद्धि भवानी,किस विधि पाऊं मैं अधम अभिमानी॥ भक्ति भाव है नहि कछु मोरे,सबकुछ अर्पण चरण में तोरे॥ माँ महिमा का कहौ तुम्हारी,हे माया ! तू है अघहारी॥ साधन सिद्धि न कछु सतसंगा,समन सकल दुख मुनि सरभंगा॥ पूजा पाठ न जप तप नेमा,परम प्रसाद पुनीत पद प्रेमा॥ सुकृत सकल सुख सहज भवानी,दुर्लभ दर्शन पावत मुनि ज्ञानी॥ योगी यति तपसी मुनि ज्ञानी,धरत ध्यान सुकृत फ़ल जानी॥ धरनी धाम धर्म पुण्य प्रभाऊ,मिलही ने एक संग सब काऊ॥
दोहा
नहि जप तप न भक्ति कछु,देहु विमल यश सार। हाथ जोड विनती करौं चाहत माँ का प्यार॥
दुख हरहु कामेश्वरी संकट विकट पहार। नहि जानौं उपासना,सेवा योग उपहार॥
चौपाई
जीव जगत लभी तव बासा,ढूंडत फ़िरत मृग क्षुधा पिपासा॥ नहि मुण कर्म न भक्त बडभागी,अधम अधिन जग परम अभागी॥ अग जग नहि कोइ मम हितकारी,भगवती सदा शरण तुम्हारी॥ करूं परितोष कस हे कल्याणी,सब विधि विवस अधम अज्ञानी॥ सोच सकल हिय अहित असंका,मिटहहि नहि जन्म कोटि कलंका॥ अस मैं अधम सुनहु कल्याणी,जटिल जीव की यही कहानी॥ है पूत कपूत महा अभिमानी,मात कुमात न होइ भवानी॥ हिय महिं सोचु सकल जग दोषू,करहि क्षमा नहि करहहिं रोषू॥ अब मोहि भा भरोस हे माता,जन सुखदायक भाग्य विधाता॥ मुद की मंगल अमंगल हारी,सदा विराजत संग पुरारी॥
दोहा
जीवन जटिल कुटिल अति युग युग का अभिशाप। यद्यपि पूत कपूत है समन सकल मम पाप॥
चौपाई
नहि तेरा आदि अवसाना,वेद पुराण विदित जग जाना॥ कण कण में है बास तुम्हारी,माँ शक्ति अमोघ सुखकारी॥ कामरूप कामाख्या माता,करुणा कीजै जन सुखदाता॥ महा शक्ति सर्वदेवी श्यामा,तुहि एक सब पूरण कामा॥ वरनौ का तब नाम अनेका,जगन्माता सब एक ते एका॥ जो कछु बरनौ मोर ढिठाई,क्षमा करहु कामाख्या माई॥ छन्द प्रबन्ध विविधि विधि नाना,मै मूरख विधि एक नहि जाना॥ स्वारथ लागि विविधि विधाना,येहि जपतप जोग व्रत ध्याना॥ आराधना के शब्द भवानी,मातृ स्नेह तोतरी वानी॥
दोहा
अगनित नाम गुण रूप बहु कथा विधान अनेक। महाशक्ति कामाख्या महादेवी तू एक॥
आदि शक्ति विस्तारणी अगजग महा समुन्द। तू गागर में सागर है,मैं सागर का बुन्द॥
चौपाई
कहां कहां लौ नेह अरु नाता,मानिय सोइ जो तेहि भाता॥ नहि समरथ नहि बुद्धि प्रवीना,मम जीवन माँ तेहि आधीना॥ अस जिये जानि मानहु माता,तू कपूत की भाग्य विधाता॥ कुल गुरु की यह अकथ कहानी,हिये धरों श्रवणामृत जानी॥ अब मोहि भरोस हे माता,कामाख्या तु जग विख्याता॥ त्रिकोण मध्य की बिन्दु महारानी,उस बिन्दु में सिन्धु समानी॥ यह रहस्य कोइ नहि जाना,वेद पुराण में कथा बखाना॥ बहुत कहौ का तोर प्रभुताई,नारद शारद सकहिं न गाई॥ जो मै कहां बुद्धि अनुकूला,छमिय देवि गुण दोष प्रतिकूला॥ तुम्ह समान नहि कोइ है दाता,नहिं विकल्प संकल्प समाता॥
दोहा
नहि साधन गुनहीन मै,किस विधि हो निस्तार। माँ की ममता महिमामयी करेगी बेडा पार॥
चौपाई
अस विश्वास सुनहु हे माई,करहु कृपा भव आव न जाई॥ यहि कामना बसै मन मोरे,सब विधि मात अनुग्रह तोरे॥ लोक वासना बसत मन माहीं,यही सोचि मन रहो अकुलाई॥ नहि सिद्धि अरु साधन मोरे,कृपा अनुग्रह सब विधि तोरे॥ भक्ति मुक्ति जग्य योग अनूपा,साधन धन धाम के अनुरूपा॥ साधन हीन नराधम भारी,पावहि किस विधि कृपा तुम्हारी॥ ये सब कृपा कटाक्ष तुम्हारे,तू चाहे तो भव निस्तारे॥ लाख चाहे करौ चतुराई,परवश जीव स्वबश है माई॥ कामाख्या कामरूप शिवानी,नीलांचल पर्वत की रानी॥
दोहा
सब विधि शरण तुम्हारी,माँ ममता विस्तार। हे माँ ! तू करुणामयी दे आंचल की बयार॥
जाऊं कहां मै विवश हूं माँ,कछु न आन आधार। जनम जनम से मांगता केवल तेरा प्यार॥
चौपाई
प्राकृतिक सौन्दर्य निराला,निरखी परख भव भ्रम उजाला॥ नारायणी गंडकी कुमारी,विश्व मातृका भवभय हारी॥ नाम अनेक एक महामाया,देश काल भिन्न रूप बनाया॥ आराधना अनुपम मीनाक्षी,माँ कामाख्या स्वयं है साक्षी॥ युग अनुरूप जग यश देता,माया ब्रह्म जीव अभिनेता॥ नट नागर विश्वरूप प्रणेता,महाशक्ति एक चिन्मय चेता॥ जगदाधार तू धरणी धामा,जय माँ जय माँ काली कामा॥ शतक आराधना माँ निराली,चारो पदारथ देने वाली॥ जो नित पाठ करहि मन लाई,देहि सिद्धि कामाख्या माई॥ कामाख्या मैं आश्रय तोरे,सब कुछ सौपा नहि बस मोरे॥
दोहा
सिद्ध आराधना शतक भक्ति मुक्ति का द्वार। कामाख्या अर्पण तुझे शब्द सुमन का हार॥
मन पूजा अर्पित करी करि संकल्प अपार। माँ तेरी आरती करूं जन को लेहु संभारि॥
Monday, April 5, 2010
भूत प्रेत की पहिचान
अक्सर लोगों के अन्दर भूत प्रेत घुस जाते है और वे व्यक्ति के जीवन को तबाह कर देते है,भूत-डामर तंत्र में उनकी पहिचान जिस प्रकार से बताई गयी है वह निम्न लिखित है।
भूत लगे व्यक्ति की पहिचान
जब किसी व्यक्ति को भूत लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं।
देवता लगे व्यक्ति की पहिचान
जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।
देवशत्रु लगना
देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है।उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।
गंधर्व लगना
जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.
यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है,इसी प्रकार से जब पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है,उसका दिमाग भारी हो जाता है,उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है,इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं। नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है,अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है,दूध पीने की आदत अधिक होती है,एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है,आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है,सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है,बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है,होंठ अधिक फ़टने लगते है। राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है,उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है,अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है,जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है,अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है,उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये.अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है,आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है,हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है। पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है,उसे मल को खाते तक देखा गया है,वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है,शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है,स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है,एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है,अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है,वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है,खाने से कभी मना नही करता है। सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है,उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है,सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है,आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है,अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है। कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है,मन भी स्थिर नही रहता है,शरीर दुर्बल हो जाता है,गाल धंस जाते है,स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है,नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है। डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है,आंखो में भारी दर्द रहता है,कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है,खडे होने पर शरीर कंपने लगता है,रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है,भोजन से बिलकुल जी हट जाता है। इसी प्रकार से क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है,उसे बेकार से स्वपन आने लगते है,पेट में दर्द होता रहता है,जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है। ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है,अपने को बहुत ऊंचा समझता है,उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है,रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है,डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। जो लोग अकाल मौत से मरते है उन्हे प्रेत योनि में जाना पडता है ऐसा गरुड-पुराण का मत है,इस प्रकार की आत्मायें जब किसी की देह में भरती है तो वह रोता है चीखता है चिल्लाता है,भागता है,कांपता है,सांस बहुत ही तीव्र गति से चलती है,किसी का भी किसी प्रकार से भी कहा नही मानता है,कटु वचनों के बोलने के कारण उसके परिवार या जान पहिचान वाले उससे डरने लगते है। चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है,नानवेज खाने की आदत लग जाती है,अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है,गर्भ को टिकने नही देती है,उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है। कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते है,अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है। भूत-डामर तंत्र में जो बातें लिखी गयीं है वे आज के वैज्ञानिक युग में अमाननीय है। लेकिन जब किसी व्यक्ति से इन बातों के बारे में सुना जाता है तो सुनकर यह भी मानना पडता है कि वास्तव में कुछ तो सत्यता हो सकती है,सभी बातों को झुठलाया तो नही जा सकता है।
भूत लगे व्यक्ति की पहिचान
जब किसी व्यक्ति को भूत लग जाता है तो वह बहुत ही ज्ञान वाली बातें करता है,उस व्यक्ति के अन्दर इतनी शक्ति आजाती है कि दस दस आदमी अगर उसे संभालने की कोशिश करते है तो भी नही संभाल पाते हैं।
देवता लगे व्यक्ति की पहिचान
जब लोगों के अन्दर देवता लग जाते है तो वह व्यक्ति सदा पवित्र रहने की कोशिश करता है,उसे किसी से छू तक जाने में दिक्कत हो जाती है वह बार बार नहाता है,पूजा करता है आरती भजन में मन लगाता रहता है,भोजन भी कम हो जाता है नींद भी नही आती है,खुशी होता है तो लोगों को वरदान देने लगता है गुस्सा होता है तो चुपचाप हो जाता है,धूपबत्ती आदि जलाकर रखना और दीपक आदि जलाकर रखना उसकी आदत होती है,संस्कृत का उच्चारण बहुत अच्छी तरह से करता है चाहे उसने कभी संस्कृत पढी भी नही होती है।
देवशत्रु लगना
देव शत्रु लगने पर व्यक्ति को पसीना बहुत आता है,वह देवताओं की पूजा पाठ में विरोध करता है,किसी भी धर्म की आलोचना करना और अपने द्वारा किये गये काम का बखान करना उसकी आदत होती है,इस प्रकार के व्यक्ति को भूख बहुत लगती है।उसकी भूख कम नही होती है,चाहे उसे कितना ही खिला दिया जाये,देव गुरु शास्त्र धर्म परमात्मा में वह दोष ही निकाला करता है। कसाई वाले काम करने के बाद ऐसा व्यक्ति बहुत खुश होता है।
गंधर्व लगना
जब व्यक्ति के अन्दर गन्धर्व लगते है तो उसके अन्दर गाने बजाने की चाहत होती है,वह हंसी मजाक वाली बातें अचानक करने लगता है,सजने संवरने में उसकी रुचिया बढ जाती है,अक्सर इस प्रकार के लोग बहुत ही मोहक हंसी हंसते है और भोजन तथा रहन सहन में खुशबू को मान्यता देने लगते है,हल्की आवाज मे बोलने लगते है बोलने से अधिक इशारे करने की आदत हो जाती है.
यक्ष लगने पर व्यक्ति शरीर से कमजोर होने लगता है,लाल रंग की तरफ़ अधिक ध्यान जाने लगता है,चाल में तेजी आजाती है,बात करने में हकलाने लगता है,आदि बातें देखी जाती है,इसी प्रकार से जब पितर दोष लगता है तो घर का बडा बूडा या जिम्मेदार व्यक्ति एक दम शांत हो जाता है,उसका दिमाग भारी हो जाता है,उसे किसी जडी बूटी वाले या अन्य प्रकार के नशे की लग लग जाती है,इस प्रकार के व्यक्ति की एक पहिचान और की जाती है कि वह जब भी कोई कपडा पहिनेगा तो पहले बायां हिस्सा ही अपने शरीर में डालेगा,अक्सर इस प्रकार के व्यक्ति के भोजन का प्रभाव बदल जाता है वह गुड या तिल अथवा नानवेज की तरफ़ अधिक ध्यान देने लगता है। अक्सर ऐसे लोगों को खीर खाने की भी आदत हो जाती है,और खीर को बहुत ही पसंद करने लगते हैं। नाग दोष लगने पर लोग पेट के बल सोना शुरु कर देते है,अक्सर वह किसी भी चीज को खाते समय सूंघ कर खाना शुरु भी करता है,दूध पीने की आदत अधिक होती है,एकान्त जगह में पडे रहना और सोने में अधिक मन लगता है,आंख के पलक को झपकाने में देरी करता है,सांस के अन्दर गर्मी अधिक बढ जाती है,बार बार जीभ से होंठों को चाटने लगता है,होंठ अधिक फ़टने लगते है। राक्षस लगने पर भी व्यक्ति को नानवेज खाने की अधिक इच्छा होती है,उसे नानवेज खाने के पहले मदिरा की भी जरूरत पडती है,अक्सर इस प्रकार के लोग जानवर का खून भी पी सकते है,जितना अधिक किसी भी काम को रोकने की कोशिश की जाती है उतना ही अधिक वह गुस्सा होकर काम को करने की कोशिश करता है,अगर इस प्रकार के व्यक्ति को जंजीर से भी बांध दिया जाये तो वह जंजीरों को तोडने की कोशिश भी करता है अपने शरीर को लोहू लुहान करने में उसे जरा भी देर नही लगती है। वह निर्लज्ज हो जाता है,उसे ध्यान नही रहता है कि वह अपने को माता बहिन या किस प्रकार की स्त्री के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिये.अक्सर इस प्रकार के लोग अचानक बार करते है और अपने कपडे तक फ़ाडने में उनको कोई दिक्कत नही होती है,आंखे जरा सी देर में लाल हो जाती है अथवा हमेशा आंखे लाल ही रहती है,हूँ हूँ की आवाज निकालती रहती है। पिशाच लगने के समय भी व्यक्ति नंगा हो जाता है अपने मल को लोगों पर फ़ेंकना चालू कर देता है,उसे मल को खाते तक देखा गया है,वह अधिकतर एकान्त मे रहना पसंद करता है,शरीर से बहुत ही बुरी दुर्गंध आने लगती है,स्वभाव में काफ़ी चंचलता आजाती है,एकान्त में घूमने में उसे अच्छा लगता है,अक्सर इस प्रकार के लोग घर से भाग जाते है और बियावान स्थानों में पडे रहते है,वे लोग अपने साथ पता नही कितने कपडे लाद कर चलते है,सोने का रहने का स्थान कोई पता नही होता है। इस प्रकार के व्यक्ति को भी भूख बहुत लगती है,खाने से कभी मना नही करता है। सती लगने वाला व्यक्ति अक्सर स्त्री जातक ही होता है,उसे श्रंगार करने में बहुत आनन्द आता है,मेंहदी लगाना,पैरों को सजाना,आदि काम उसे बहुत भाते है,सती लगने के समय अगर पेट में गर्भ होता है तो गिर जाता है,और सन्तान उत्पत्ति में हमेशा बाधा आती रहती है,आग और आग वाले कारणों से उसे डर नही लगता है,अक्सर इस प्रकार की महिलायें जल कर मर जाती है। कामण लगने पर उस स्त्री का कंधा माथा और सिर भारी हो जाता है,मन भी स्थिर नही रहता है,शरीर दुर्बल हो जाता है,गाल धंस जाते है,स्तन और नितम्ब भी बिलकुल समाप्त से हो जाते है,नाक हाथ तथा आंखों में हमेशा जलन हुआ करती है। डाकिनी या शाकिनी लगने पर उस स्त्री के पूरे शरीर में दर्द रहता है,आंखो में भारी दर्द रहता है,कभी कभी बेहोसी के दौरे भी पडने लगते है,खडे होने पर शरीर कंपने लगता है,रोना और चिल्लाना अधिकतर सुना जा सकता है,भोजन से बिलकुल जी हट जाता है। इसी प्रकार से क्षेत्रपाल दोष लगने पर व्यक्ति को राख का तिलक लगाने की आदत हो जाती है,उसे बेकार से स्वपन आने लगते है,पेट में दर्द होता रहता है,जोडों के दर्द की दवाइयां चलती रहती है लेकिन वह ठीक नही होता है। ब्रह्मराक्षस का प्रभाव भी व्यक्ति को अथाह पीडा देता है,जो लोग पवित्र कार्य को करते है उनके बारे में गलत बोला करता है,अपने को बहुत ऊंचा समझता है,उसे टोने टोटके करने बहुत अच्छे लगते है,अक्सर इस प्रकार के लोग अपनी संतान के भी भले नही होते है,रोजाना मरने की कहते है लेकिन कई उपाय करने के बावजूद भी नही मरते है,डाक्टरों की कोई दवाई उनके लिये बेकार ही साबित होती है। जो लोग अकाल मौत से मरते है उन्हे प्रेत योनि में जाना पडता है ऐसा गरुड-पुराण का मत है,इस प्रकार की आत्मायें जब किसी की देह में भरती है तो वह रोता है चीखता है चिल्लाता है,भागता है,कांपता है,सांस बहुत ही तीव्र गति से चलती है,किसी का भी किसी प्रकार से भी कहा नही मानता है,कटु वचनों के बोलने के कारण उसके परिवार या जान पहिचान वाले उससे डरने लगते है। चुडैल अधिकतर स्त्री जातकों को ही लगती है,नानवेज खाने की आदत लग जाती है,अधिक से अधिक सम्भोग करने की आदत पड जाती है,गर्भ को टिकने नही देती है,उसे दवाइयों या बेकार के कार्यों से गिरा देती है। कच्चे कलवे भी व्यक्तियों को परेशान करते है,अक्सर भूत प्रेत पिशाच योनि में जाने वाली आत्मायें अपना परिवार बसाने के लिये किसी जिन्दा व्यक्ति की स्त्री और और पुरुष देह को चुनती है,फ़िर उन देहों में जाकर सम्भोगात्मक तरीके से नये जीव की उत्पत्ति करती है,उस व्यक्ति से जो सन्तान पैदा होती है उसे किसी न किसी प्रकार के रोग या कारण को पैदा करने के बाद खत्म कर देती है और अपने पास आत्मा के रूप में ले जाकर पालती है,जो बच्चे अकाल मौत मरते है और उनकी मौत अचानक या बिना किसी कारण के होती है अक्सर वे ही कच्चे कलवे कहलाते है। भूत-डामर तंत्र में जो बातें लिखी गयीं है वे आज के वैज्ञानिक युग में अमाननीय है। लेकिन जब किसी व्यक्ति से इन बातों के बारे में सुना जाता है तो सुनकर यह भी मानना पडता है कि वास्तव में कुछ तो सत्यता हो सकती है,सभी बातों को झुठलाया तो नही जा सकता है।
सफ़ेद आक का तंत्र में महत्व
सफ़ेद आक एक जंगली पौधा है,और यह बंजर और सूखे प्रदेशों में अधिक होता है,नीले और सफ़ेद रंग के आक अक्सर भारत के शुष्क प्रदेशों में अधिक मिलते है,लेकिन भारत के राजस्थान प्रान्त में सफ़ेद आक की पैदाइस अधिक होती है। यह एक तांत्रिक पौधा भी है,इसलिये इसकी मान्यता अधिक पायी जाती है। इसके पत्ते या फ़ूल को तोडने पर खूब सारा जहरीला दूध निकलता है,वह दूध अगर आंख में चला जाये तो आंख की रोशनी खत्म हो सकती है। सफ़ेद आक के फ़ूल बिलकुल सफ़ेद रंग के होते है उन पर किसी अन्य रंग को नही देखा जाता है जिस फ़ूल पर अन्य रंग होते है वह सफ़ेद आक नही होता है। यह पौधा भगवान शिवजी पर चढाये जाने वाले फ़ूलों को देता है,इसलिये भी इस पौधे को महत्ता दी जाती है.अक्सर लोग अपने दरवाजे पर जिनके घर के दरवाजे नैऋत्य मुखी होते है,इस पौधे को लगाते है तो उनके घर के अन्दर के वास्तु दोष समाप्त हो जाते है,घर के अन्दर होने वाले भुतहा उपद्रव शान्त हो जाते है,घर के सदस्यों के अन्दर चलने वाली बुराइयां समाप्त हो जाती है ,और जिन घरों मांस मदिरा का अधिक उपयोग होता है उनमें कम हो जाता है या पूरी तरह से समाप्त हो जाता है। इस पौधे को राजार्क भी कहते है,इस पौधे की जड में गणेशजी की प्रतिमा अपने आप बन जाती है,पौधा लगाने के सातवीं साल तक वह प्रतिमा बनजाती है,और तभी तक यह पौधा घर के बाहर तक रहता भी है,अगर सातवीं साल में इसकी केयर नही की जाती है तो वह पौधा सूख कर खत्म हो जाता है और जड में बनी गणेशजी की प्रतिमा भी मिट्टी हो जाती है। इस पौधे के रहने वाले स्थान पर धन की कमी नही रहती है ऐसा लोगों का विश्वास माना जाता है। जो लोग तांत्रिक कार्य करते है वे इस पौधे की तलाश में हमेशा रहते है,पूर्णिमा तिथि को सोमवार के दिन इस पौधे से फ़ूल लेकर भगवान शिव जी पर अर्पण करने पर इच्छित वस्तु की प्राप्ति हो जाती है ऐसी लोगों की मान्यता है,तरुण रसायन नामक बटी को इसी आक के पेड की जड से बनाया जाता है,जिसे प्रयोग करने से शरीर के सभी प्रकार के जहरीले दुर्गुण दूर हो जाते है। इसकी जड को सोमवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करने से अला बला दूर रहती है,इसे घिस कर तिलक लगाकर भगवान भोले नाथ की पूजा करने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है,इच्छा पूर्ति के लिये इस की जड को विभिन्न दिशाओं से खोद कर उनकी विभिन्न प्रकार से पूजा की जाती है। दुर्भाग्य के लिये नाभि पर कमल का पत्ता और बायीं भुजा पर सफ़ेद आक का पत्ता बांधने पर सौभाग्य की पूर्ति होने लगती है,किसी भी प्रकार की व्याधि और अरिष्ट की आशंका के समय इस पेड की जड से बने गणपति की आराधना करना चाहिये.
Saturday, March 20, 2010
शमशान में घ्रर
शमशान मनुष्य का अन्तिम स्थान होता है,यहाँ तक जीवित मनुष्य का साथ होता है और यहीं तक साथ चलती है वह देह जिसके लिये संसार में चोरी बेईमानी डकैती और जाने कौन कौन से दुष्कर्म किये जाते है,इस देह के लिये जिन्दा मार डाले जाते है और मरे हुओं को भी मारने का काम किया जाता है। अक्सर लोग इस बात को भूल जाते है कि वे जिस स्थान पर कदम रखने जा रहे है वह अन्तिम प्रयाण का रास्ता है,यहां से कोई पाप पुण्य का वास्ता नही रहता है,इसके बाद केवल जीवन में किये गये अच्छे और बुरे कर्मो का हिसाब किताब करना बाकी रह जाता है,कुछ हिसाब किताब तो जिन्दा लोग कर गये होते है और कुछ हिसाब किताब धर्मराज की डायरी में लिखे कर्म और कुकर्म अपना हिसाब किताब बताने के लिये तैयार रहते है। हम जानते हुये भी गल्ती क्यों करते है इसका एक उदाहरण आपके सामने रखते है। जब हम भीड में चलते है और भीड के द्वारा अपने कर्मों को करने का प्रयोग भीड के अनुसार करने की सोचते है तो यह सोच लेते है कि सामने वाले का होगा वह मेरा भी होगा,अगर सामने वाला ठीक रहता है तो मैं भी ठीक रहूंगा,इस प्रकार से अपने पीछे के कर्मों को भूल कर आगे के और बुरे कर्मों को बढा लेते है। आज एक प्रश्न इन्दौर से भेजा गया है,उसके अन्दर जो लिखा है वह इस प्रकार से है :- "meri birth date nahi hai isliye putr ki ditail de raha hU maine 02.04.2008 ko kacche shmshaan par bani hui colony me makan kharida hai, tatha 08.05.2008 ko makan me grah pravesh kiyaa hai tab se mai kaphi parshan hu is makan ka karja nahi utar raha, ghar ke sadsy aksar bimaar rhate hai, krpya upaay bataane ka kast kare".
इनकी बात में लिखा है कि इन्होने एक मकान कच्चे शमशान में बनी कालोनी में ले लिया है,और जब से उन्होने उस मकान में प्रवेश किया है तभी से उस घर मे कोई ना कोई बीमार रहता है,और मकान का कर्जा भी नही चुकाया जा रहा है,इस बच्चे की जन्म तारीख के द्वारा जब देखा तो कुन्डली कन्या लगन की है और लगनेश बुध के साथ मंगल शुक्र विराजमान है,यह बच्चे की कुन्डली है और मकान को पिता ने लिया है,इसलिये इस कुंडली में सूर्य को देखना है कि वह कहां है,कुंडली में सूर्य का स्थान लगन से बारहवें स्थान में शनि के साथ सिंह राशि में है,जब कुंडली में सूर्य और शनि आपस में मिल जाते है,या बुध के साथ मंगल विराजमान हो जाता है तो मंगल बद हो जाता है। नेक मंगल के स्वामी हनुमान जी होते है और बद मंगल के देवता भूत प्रेत पिशाच होते है। लेकिन मरी हुयी आत्मा का कारक राहु होता है,अगर बद मंगल से राहु की युति किसी प्रकार से मिल जाती है तो वह वास्तव में एक खतरनाक भूत का स्थान बन जाता है। जिस स्थान पर मकान बनाया गया है,उस स्थान पर गुरु जो इशारा कर रहा है वह बक्री का है,और बक्री गुरु जो भी फ़ल देता है वह जल्दी से देता है,राहु का इशारा मकर राशि का पंचम में है। इस मकान का दरवाजा दक्षिण की तरफ़ है,और दक्षिण के दरवाजे ही कितनी ही मुशीबतें एक बढिया जमीन में आती है लेकिन जब शमशान का मकान भी हो और दक्षिण का दरवाजा भी हो तो मुशीबतों का जोर कितना हो सकता है इसका अन्दाजा तो भुक्त भोगी ही लगा सकता है। इस मकान का पानी पश्चिम में है,इस मकान की रसोई उत्तर में है,इस मकान में एक बरामदा या बालकनी या खिडकी उत्तर में भी है,पूर्व वाली जमीन खाली पडी है। उत्तर से दक्षिण की एक सीमा रेखा बनी है,उस सीमा रेखा से हटकर कोई सरकारी शेड आदि बना है। इस मकान में रहने वाला कैसे सुखी रह सकता है,इसका जबाब अगर आपके पास हो तो आप भी लिखें,हम आपके जबाबों का इन्तजार करेंगे। किसी जिन्दा व्यक्ति को आराम से समझाकर घर से बाहर निकाला जा सकता है ,लेकिन जब कोई मृत्यु के बाद की आत्मा उस स्थान पर अपना वास बना गयी हो तो उसे निकालने के लिये क्या किया जा सकता है। इसका एक उपाय किया जा सकता है,जो वहां रहने वाला है उसे आदर से वहीं पर स्थापित कर दिया जाये,और साथ साथ आराम से रहा जाये। घर के उत्तर-पश्चिम कोने में एक सरकारी जगह है,उस स्थान पर कोई स्थान घर से सटाकर बना दिया जाये,जो भी घर में खाना बनता है उसे सबसे पहले एक पत्तल में निकाल कर उस स्थान पर पहुंचा दिया जाये। किसी तरह की गंदगी वहां पर नही की जाये,तीज त्यौहार को विशेष ध्यान रखा जाये। तो रहने वाली आत्मायें कुछ हद तक परेशान न करके सहारा देने की कोशिश करने लगेंगी।
Friday, March 19, 2010
यक्षिणी साधना
यक्षिणी सिद्ध होने पर कार्य बडी सुगमता से हो जाता है,बुद्धि भी सही रहती है,और कठिन से कठिन समस्या को तुरत हल किया जा सकता है। इसका एक फ़ल और मिलता है,कि कोई भी अपने मन की बात को अगर छुपाने की कोशिश करता है तो उसके हाव भाव से पहिचाना भी जा सकता है कि वह अपने मन के अन्दर क्या भेद छुपाकर रख रहा है। यक्षिणी चौदह प्रकार की बताई गयीं हैं:-
- महायक्षिणी
- सुन्दरी
- मनोहरी
- कनक यक्षिणी
- कामेश्वरी
- रतिप्रिया
- पद्मिनी
- नटी
- रागिनी
- विशाला
- चन्द्रिका
- लक्ष्मी
- शोभना
- मर्दना
महर्षि दत्तात्रेय का मत है कि आषाढ शुदी पूर्णमासी शुक्रवार के दिन पडे तो गुरुवार को ही नहा धोकर एकान्त स्थान का चुनाव कर लेना चाहिये,और पहले से ही पूजा पाठ का सभी सामान इकट्ठा करलेना चाहिये,अथवा श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन चन्द्र में बल तब साधना का उत्तम फ़ल कहा गया है।
साधना में सबसे पहले शिव जी की आराधना
साधना काल में सबसे पहले भगवान भोले नाथ की साधना करनी चाहिये,यह साधना किसी केले के अथवा बील के पेड के नीचे की जाती है। शिवजी का आराधना मंत्र इस प्रकार से है:-
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा
ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा
क्रिया
अपने चित्त को एकाग्र कर लें,और उपरोक्त मंत्रों को पांच पांच हजार मालाओं का जाप करलें। यह जाप किसी निर्जन स्थान में होना चाहिये,उसके बाद घर आकर कुंआरी कन्याओं को खीर का भोजन करवायें.दूसरी क्रिया है कि किसी वट या पीपल के पेड की जड में शिवजी की स्थापना करके जल चढाते रहें,और प्रत्येक मंत्र की पांच हजार मालायें जपें।
कस्तूरी
तंत्र प्रयोगों में कस्तूरी का एक विशेष स्थान है,और ऐसा कोई भी व्यक्ति नही होगा जो कि इसके विषय में जानता न हो,परन्तु अह असली मिलती ही नही। इसी कारण से तन्त्र प्रयोग करने पर इससे मिलने वाले लाभ प्रश्न ही बने रहते हैं। कस्तूरी प्राय: सर्वत्र उपलब्ध है और कस्तूरी कहने मात्र से पंसारी दे देता है। यह असली है या नकली यह प्रश्न बना ही रहता है,क्योकि इसके विषय में बहुत अधिक किसी को मालुम नही होता है,और कोई बताता भी नही है। कस्तूरी एक प्रकार के हिरन के कांटा आदि लगने के बाद बनने वाली गांठ के रूप में होती है,उस हिरन का खून उस गांठ में जम जाता है,और उसके अन्दर ही सूखता रहता है,जिस प्रकार से किसी सडे हुये मांस की बदबू आती है उसी प्रकार से उस हिरन के खून की बदबू इस प्रकार की होती है कि वह मनुष्यजाति को खुशबू के रूप में प्रतीत होती है। जिस हिरन से कस्तूरी मिलती है वह समुद्र तल से आठ हजार फ़ुट की ऊंचाई पर मिलता है,मुख्यत: इस प्रकार के हिरन हिमालय दार्जिलिंग नेपाल असम चीन तथा सोवियत रूस मे अधिकतर पाया जाता है,कस्तूरी केवल पुरुष जाति के हिरन में ही बनती है जो कि खुशबू देती है,मादा हिरन की कस्तूरी कुछ समय तो खुशबू देती है लेकिन शरीर से अलग होने के बाद सडने लग जाती है। दूसरे कस्तूरी प्राप्त करने के लिये कभी भी हिरन को मारना नहीं पडता है,वह गांठ जब सूख जाती है,तो पेडों के साथ हिरन के खुजलाने और चट्टानों के साथ अपने शरीर को रगडने के दौरान अपने आप गिर जाती है। इस गिरी हुई गांठ पर वन्य जीव भी अपनी नजर रखते है,और जब उनसे बच पाती है तो ही मनुष्य को मिलती है। अक्सर जो कंजर जाति के लोग कस्तूरी को बेचते है वे गीधड या सूअर के अंडकोष को सिल कर सुखा लेते है,और उनके सूखने पर उसके ऊपर कस्तूरी का नकली सेंट छिडकर बेचना शुरु कर देते है,भोले भाले लोग उनके चंगुल में आकर एक मरे हुये जानवर का अंग अपने घरों में संभाल कर रखते है और उसे बहुत ही पवित्र और उपयोगी वस्तु मानकर उसका प्रयोग करते है। नकली कस्तूरी को प्राप्त करने के और भी साधन होते है जैसे कि एक ओबीबस मस्केटस नामका सांड होता है जिसके शरीर से कस्तूरी जैसी ही सुगंध आती है,एक बत्तख भी होती है जिसे अनास मस्काटा कहते है,एक बकरा भी होता है जिसे कपरा आइनेक्स कहा जाता है,इसके खून में भी कस्तूरी जैसी सुगंध आती है,एक मगरमच्छ होता है जिसे क्रोकोवेल्गेरिस कहा जाता है,जिसके शरीर से भी कस्तूरी की तीव्र खुशबू आती है,आदि जीवों से भी कस्तूरी को विभिन्न तरीके से प्राप्त किया जाता है। बाजार में तीन प्रकार की कस्तूरी आती है,एक रूस की कस्तूरी,दूसरी कामरूप की कस्तूरी और तीसरी चीन की कस्तूरी,आप समझ गये होंगे कि किस जानवर का खून सुखाकर उसे कस्तूरी की कीमत में लोग बेच सकते होंगे।
कस्तूरी की पहिचान करने के तरीके
कस्तूरी का दाना लेकर एक कांच के गिलास में डाल दें,दाना सीधा जाकर गिलास के तल में बैठ जायेगा,वह न तो गलेगा और न ही ढीला होगा। एक अंगीठी में कोयले दहकायें उस पर कस्तूरी का दाना डालें अगर नकली होगी तो वह जल कर धुंआ बन कर खत्म हो जायेगी,और असली होगी तो काफ़ी समय तक बुलबुले पैदा करने के बाद जलती रहेगी। एक सूती धागे को हींग के पानी में भिगोकर गीला कर लें और सुई में डालकर कस्तूरी के अन्दर से निकालें,अगर असली कस्तूरी होगी तो हींग अपनी खुशबू को छोड कर धागे में कस्तूरी की खुशबू भर जायेगी,वरना हींग की महक को मारने वाला और कोई पदार्थ नही है। एक पदार्थ होता है जिसे ट्रिनीट्रोब्यूटिल टोलबल कहते है इसकी महक भी कस्तूरी की तरह से होती है और काफ़ी समय तक टिकती है,कस्तूरी भारी होती है,कस्तूरी छूने में चिकनी होती है,कस्तूरी सफ़ेद कपडे में रखने के बाद पीला हो जाता है,कस्तूरी की नाप मटर के दाने के बराबर होती है,कहीं कहीं पर यह इलायची के दाने के बराबर भी पायी जाती है। इससे बडी कस्तूरी नही मिलती है।
Wednesday, March 17, 2010
कामाख्या पहाड और तंत्र
कामाख्या (गोहाटी) जाने पर सबसे पहले कामाख्या पहाड के बारे में आप अच्छी तरह से जान लें। इस पहाड के लिये वाणासुर,नरकासुर,जयन्तिया राज के शासक और असम के शासक तथा कितनी ही जनता इस पहाड के चमत्कारिक प्रभावों को देख चुकी है,साथ अक्सर चींटियां वही पैदा होती हैं जहाँ मिठाई होती है। नमक में कभी चीटिंयां नही लगती है। इस पहाड के मामले में सुबह के सवा सात बजे का एक चित्र जो नवरात्रा के दूसरे दिन मैने अपने मोबाइल से लिया था उसे आप अपनी पारखी नजर से देखिये:-
यह चित्र आरिजनल है और इसके अन्दर किसी प्रकार का कोई बदलाव नही किया गया है,और कामाख्या पहाड के अग्नि कोण से चलने वाली अदावरी रोड से मैने खींचा है,इस चित्र में आप दाहिनी तरफ़ लाल रंग और बायीं तरफ़ नीला रंग साफ़ तरीके से देख सकते है,और वातावरण में साफ़ समझ में आता है जैसे कि पूरे वातावरण में लाल रंग घोल दिया गया हो। देखने के लिये तो लोग कहेंगे कि यह बादल होने से या किसी अन्य प्रकार की मौसमी हवा होने से हो सकता है लेकिन आप जब आसमान की तरफ़ देखें गे तो आपको साफ़ समझ में आयेगा कि आसमान कभी भी एक सीधी रेखा में साफ़ और मैला नही होता है,कहीं ना कहीं तो आडा तिरछा हो ही जाता है,यह मैया का चमत्कार ही माना जाता है,और यह तभी सम्भव है जब वहाँ पर माँ अर्धनारीश्वर के रूप में उपस्थिति है। मै भी पहले सभी पूजा पाठों के प्रति और तंत्र मंत्र के प्रति इतनी आस्था नही रखता था,मै भी राजपूत कुल में पैदा हुआ हूँ,और सभी बाते जो राजपूतों में होती है वह मेरे अन्दर भी है लेकिन अक्समात यह सब कारण देखकर ही मैने माता और ईश्वर के अन्दर आस्तित्व देखा है,तभी इनके ऊपर आस्था की जानी सम्भव हुयी है।
इस स्थान से माता कामाख्या के पहाड के पूरे दर्शन होते है,और ऊपर से नीचे आने के लिये नरकासुर का बनाया गया सिंह द्वार है जो दक्षिण की तरफ़ को खुलता है,इस द्वार से कोई भी आता जाता नही है इसका कारण एक ही बताया गया है कि इस द्वार से आने जाने वाले मौत के मुंह में चले जाते है,इस द्वार के नीचे एक बस की बाडी बनाने वाले ने अपना कारखाना बना रखा है,और ऊपर की तरफ़ जाने के बाद एक महात्मा जी का आश्रम है,इस आश्रम के अन्दर केवल वही लोग रहते है जो संसार में अपने को अकेला समझते है,लेकिन उन लोगों से भी बात करने के बाद पता चला कि वे कभी भी किसी के दरवाजे पर मांगने नही गये,पता नही कहाँ से कौन आकर उनको खाना दे जाता है,सर्दी के कपडे दे जाता है,नहाने के लिये उनको पता नही है कि उन्होने कब नहाया है,लेकिन भक्ति और ज्ञान की बातें करने पर उनके अन्दर से विद्या की वह लहर दौडती है जैसे मानो सरस्वती उन्ही के अन्दर विराजमान हो। उन्ही में एक साधु जैसे व्यक्ति ने बताया कि वह बचपन से यहीं माता की शरण में रहता आया है,उसे कभी किसी से मांग कर खाने की जरूरत नही पडी,लेकिन धीरज रखकर माता की शरण में पडा रहा। कितना ही जाडा गर्मी बरसात हो लेकिन माता उन्हे खाना किसके द्वारा कहाँ से भिजवाती है किसी को पता नही है। जिस समय मै उनसे बात कर रहा था उसी समय एक अब्दुल करीम नामका व्यक्ति साइकिल पर एक एल्म्यूनियम का भगोना रख कर आया और पत्तों की पत्तलों में रखकर दाल चावल को सभी बैठे लोगों को देने लगा,सभी ने उससे दाल चावल लिये मैने भी दाल चावल लिये और उन्हे खाया भी लेकिन जो स्वाद उन दाल चावल में मिला वह मैने जीवन में कभी पाया ही नही। जब इन मियां जी से पूंछा कि आप इनके लिये खाना कहाँ से लाये है तो वे बोले कि एक सेठ नीचे आया था वह खाना मुझे देकर गया और बोला कि सभी साधुओं को बांट देना। इसके आगे वह कुछ नही बता पाया।
यह द्वार माता कामाख्या के दर्शन करने को जाने के लिये पूर्वी द्वार है और इसी द्वार को माता के दर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है,राज्य सरकार ने अब माता के भवन तक और आगे भुवनेश्वरी तक सडक का निर्माण करवा दिया है। आराम से लोग अपने वाहन ले जासकते है,और किराये के वाहन भी चला करते है जो प्रति सवारी दस रुपया एक तरफ़ का किराया ऊपर या नीचे आने का लेते है। इस दरवाजे से जाने के बाद अगर पैदल भी जाया जाये तो कोई थकान नही मालुम होती है,मै तो माता कामाख्या तक जीप से गया था और वहां से भुवनेश्वरी तक पैदल ही गया था,बहुत से चित्र विचित्र स्थान देखने को मिले,वही अगर कार से जाते तो देखने को नही मिलते। रास्ते में किसी प्रकार का कोई भय नही मालुम चला,एक तरफ़ ब्रह्मपुत्र नदी और दूसरी तरफ़ माता का दरवार,बहुत ही मन को लुभाने वाला द्रश्य था,और इस द्रश्य को अगर सही रूप से मन के अन्दर धारण करना है तो माता कामाख्या के प्रति लालसा तो पैदा करनी ही पडेगी।
यह चित्र आरिजनल है और इसके अन्दर किसी प्रकार का कोई बदलाव नही किया गया है,और कामाख्या पहाड के अग्नि कोण से चलने वाली अदावरी रोड से मैने खींचा है,इस चित्र में आप दाहिनी तरफ़ लाल रंग और बायीं तरफ़ नीला रंग साफ़ तरीके से देख सकते है,और वातावरण में साफ़ समझ में आता है जैसे कि पूरे वातावरण में लाल रंग घोल दिया गया हो। देखने के लिये तो लोग कहेंगे कि यह बादल होने से या किसी अन्य प्रकार की मौसमी हवा होने से हो सकता है लेकिन आप जब आसमान की तरफ़ देखें गे तो आपको साफ़ समझ में आयेगा कि आसमान कभी भी एक सीधी रेखा में साफ़ और मैला नही होता है,कहीं ना कहीं तो आडा तिरछा हो ही जाता है,यह मैया का चमत्कार ही माना जाता है,और यह तभी सम्भव है जब वहाँ पर माँ अर्धनारीश्वर के रूप में उपस्थिति है। मै भी पहले सभी पूजा पाठों के प्रति और तंत्र मंत्र के प्रति इतनी आस्था नही रखता था,मै भी राजपूत कुल में पैदा हुआ हूँ,और सभी बाते जो राजपूतों में होती है वह मेरे अन्दर भी है लेकिन अक्समात यह सब कारण देखकर ही मैने माता और ईश्वर के अन्दर आस्तित्व देखा है,तभी इनके ऊपर आस्था की जानी सम्भव हुयी है।
इस स्थान से माता कामाख्या के पहाड के पूरे दर्शन होते है,और ऊपर से नीचे आने के लिये नरकासुर का बनाया गया सिंह द्वार है जो दक्षिण की तरफ़ को खुलता है,इस द्वार से कोई भी आता जाता नही है इसका कारण एक ही बताया गया है कि इस द्वार से आने जाने वाले मौत के मुंह में चले जाते है,इस द्वार के नीचे एक बस की बाडी बनाने वाले ने अपना कारखाना बना रखा है,और ऊपर की तरफ़ जाने के बाद एक महात्मा जी का आश्रम है,इस आश्रम के अन्दर केवल वही लोग रहते है जो संसार में अपने को अकेला समझते है,लेकिन उन लोगों से भी बात करने के बाद पता चला कि वे कभी भी किसी के दरवाजे पर मांगने नही गये,पता नही कहाँ से कौन आकर उनको खाना दे जाता है,सर्दी के कपडे दे जाता है,नहाने के लिये उनको पता नही है कि उन्होने कब नहाया है,लेकिन भक्ति और ज्ञान की बातें करने पर उनके अन्दर से विद्या की वह लहर दौडती है जैसे मानो सरस्वती उन्ही के अन्दर विराजमान हो। उन्ही में एक साधु जैसे व्यक्ति ने बताया कि वह बचपन से यहीं माता की शरण में रहता आया है,उसे कभी किसी से मांग कर खाने की जरूरत नही पडी,लेकिन धीरज रखकर माता की शरण में पडा रहा। कितना ही जाडा गर्मी बरसात हो लेकिन माता उन्हे खाना किसके द्वारा कहाँ से भिजवाती है किसी को पता नही है। जिस समय मै उनसे बात कर रहा था उसी समय एक अब्दुल करीम नामका व्यक्ति साइकिल पर एक एल्म्यूनियम का भगोना रख कर आया और पत्तों की पत्तलों में रखकर दाल चावल को सभी बैठे लोगों को देने लगा,सभी ने उससे दाल चावल लिये मैने भी दाल चावल लिये और उन्हे खाया भी लेकिन जो स्वाद उन दाल चावल में मिला वह मैने जीवन में कभी पाया ही नही। जब इन मियां जी से पूंछा कि आप इनके लिये खाना कहाँ से लाये है तो वे बोले कि एक सेठ नीचे आया था वह खाना मुझे देकर गया और बोला कि सभी साधुओं को बांट देना। इसके आगे वह कुछ नही बता पाया।
यह द्वार माता कामाख्या के दर्शन करने को जाने के लिये पूर्वी द्वार है और इसी द्वार को माता के दर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है,राज्य सरकार ने अब माता के भवन तक और आगे भुवनेश्वरी तक सडक का निर्माण करवा दिया है। आराम से लोग अपने वाहन ले जासकते है,और किराये के वाहन भी चला करते है जो प्रति सवारी दस रुपया एक तरफ़ का किराया ऊपर या नीचे आने का लेते है। इस दरवाजे से जाने के बाद अगर पैदल भी जाया जाये तो कोई थकान नही मालुम होती है,मै तो माता कामाख्या तक जीप से गया था और वहां से भुवनेश्वरी तक पैदल ही गया था,बहुत से चित्र विचित्र स्थान देखने को मिले,वही अगर कार से जाते तो देखने को नही मिलते। रास्ते में किसी प्रकार का कोई भय नही मालुम चला,एक तरफ़ ब्रह्मपुत्र नदी और दूसरी तरफ़ माता का दरवार,बहुत ही मन को लुभाने वाला द्रश्य था,और इस द्रश्य को अगर सही रूप से मन के अन्दर धारण करना है तो माता कामाख्या के प्रति लालसा तो पैदा करनी ही पडेगी।
Monday, March 15, 2010
गोहाटी का नवग्रह मंदिर
नवग्रह की भावना ज्योतिष में अधिक जानी जाती है। लेकिन जब गोहाटी में नवग्रह मंदिरके बारे में सुना तो बहुत ही जिज्ञासा उसे देखने की हुयी,दिनांक १४ मार्च २०१० को वह सुनहरा अवसर आ ही गया और उस मन्दिर में स्थापित नवग्रह दर्शन करने का सौभाग्य मिल ही गया। मन्दिर ऊंची पहाडी पर बनाया गया है,इसके आलेखों और इतिहास के बारे में आपको बहुत जगह पढने को मिल जायेगा,और इसके अन्दर स्थापित किये ग्रहों के बारे में जो जानकारी एक ज्योतिषी होने के नाते मुझे मिली वह इस प्रकार से है। पूर्व मुखी इस मन्दिर के लिये पहले पूर्व से पश्चिम के लिये सीढियां बनायी गयी है,और इन सीढियों के नीचे वाहनो के आने जाने और प्रसाद आदि की दुकाने बनी है। मन्दिर में सुबह के सूर्योदय की किरणें सव प्रथम प्रवेश करती है,और जहां सूर्योदय होता है,और पहाडी से जैसे ही उसकी किरणें मन्दिर के अन्दर जाती है,पुजारी इस मंदिर के कपाट खोल देता है। मन्दिर की बनावट भी कामाख्या मन्दिर की तरह की बनी है,यानी विपरीत शिवलिंग जैसी,केवल वायु निर्मित शिवलिंग,जिसके अन्दर मानो प्रवेश करने के बाद संसार की बडी से बडी शक्ति का आभास होने लगता है। मन्दिर के प्रवेश द्वार पर सबसे पहले दाहिने तरफ़ राहु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है,इसी प्रतिमा के नीचे रखे अगरबत्ती कुंड में लोग धूप बत्ती और अपने अपने अनुसार प्रयोग की जाने वाली धूप को जलाते है,बायीं तरफ़ केतु की प्रतिमा को स्थापित किया गया है। यहाँ राहु केतु की प्रतिमा को स्थापित करने का उद्देश्य केवल इतना है कि जो भी ग्रह इस मन्दिर के अन्दर स्थापित है उनकी राहु सकारात्मक और केतु नकारात्मक वृत्ति को ही मनुष्य और जीव जन्तु ग्रहण करते है। मतलब हर ग्रह की दो ही प्रकृति होती है एक अच्छा फ़ल देना और एक बुरा फ़ल देना। अच्छा और बुरा फ़ल जीव या मनुष्य की पिछले कर्मों की धारणा के अनुसार माना जाता है। मन्दिर की पहली दहलीज पार करने के बाद बायें हाथ पर गजानन गणेशजी की प्रतिमा के साथ भगवान भोले नाथ और माता पार्वती की प्रतिमा है साथ में भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा है,सबसे पहले इन्ही प्रतिमाओं की पूजा करनी पडती है,और सभी ग्रहों से मंगल कामना प्राप्त करने के लिये इन्ही शक्तिओं से आज्ञा लेनी अनिवार्य मानी जाती है,यहां पर तीन दीपक जलाये जाते है,और तीनो शक्तियों से प्रार्थना करने के बाद मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार किया जाता है,जैसे ही मन्दिर की दूसरी दहलीज को पार करते है,केवल एक अन्धेरी गुफ़ा जैसा द्रश्य सामने आता है,गोलाकार मन्दिर के धरातल पर नौ शिव लिंग बने है और प्रत्येक शिवलिंग की जल लहरी का मुख विभिन्न दिशाओं की तरफ़ रखा गया है। एक मुख्य शिवलिंग बीच में बना है और बाकी के आठ शिवलिंग आठों दिशाओं में बनाये गये है। बीच के शिवलिंग को सूर्य की मान्यता है और जललहरी का मुख उत्तर की तरह है,भगवान सूर्य का कल्याण कारी होना तभी सम्भव है जब वह उत्तरायण की तरफ़ अग्रेसित होते है। अन्दर जाते ही बायें हाथ की तरफ़ पहले चन्द्रमा की स्थापना है,फ़िर मंगल की उसके बाद राहु की फ़िर शनि की फ़िर केतु उसके बाद गुरु और फ़िर बुध तथा मन्दिर के अन्दर जाने के दाहिनी तरफ़ शुक्र की स्थापना है। पूजा की कामना से जाने वाले व्यक्ति को सबसे पहले बायें चन्द्रमा और दाहिने शुक्र को लेकर जाना पडता है,लेकिन पूजा करने के बाद या दर्शन करने के बाद दाहिने चन्द्रमा होता है और बायें शुक्र की स्थिति होती है इसलिये ही मन्दिर में पूजा करने के बाद पुजारी का कहना होता है कि बाहर जाते समय पीछे घूम कर नही देखना होता है,अन्यथा पूजा का उद्देश्य नही रहता है। ग्रहों की पूजा करते समय पहले भगवान सूर्य पर दीपक को अर्पित किया जाता है,फ़िर चन्द्रमा पर उसके बाद मंगल फ़िर बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु पर दीप दान किया जाता है,उसके बाद ग्रहों को वस्त्रदान करते वक्त इसी क्रम से अलग अलग रंगों के जो रंग ग्रह के होते है उसी रंग के वस्त्र दान ग्रहो के रूप में शिवलिंग पर दिये जाते है। पुजारी से पूजा करवाने पर अलग अलग ग्रह की पूजा का अलग अलग दक्षिणा है,एक ग्रह की ग्यारह सौ रुपया और सभी ग्रहों की साढे पांच हजार रुपया दक्षिणा ली जाती है,यह दक्षिणा मन्दिर के विकास और देखरेख में खर्च की जाते है।
मन्दिर के अन्दर ग्रह का मन्त्र उच्चारण करने पर जो ध्वनि भूपुर में टकराकर वापस आती है वह दिमाग को झन्झनाने वाली होती है,व्यक्ति अपने आप भी पूजा कर सकता है लेकिन पूजा का क्रम याद रखना पडता है,सभी ग्रहों की पूजा के लिये पुजारी राहु के सामने या गुरु के सामने बैठता है,किसी उद्देश्य की पूजा के लिये राहु के सामने ही बैठ कर पूजा की जाती है और पारिवारिक तथा जनकल्याण के लिये की जाने वाली पूजा गुरु के सामने बैठ कर की जाती है,सन्कल्प और पूजा की पद्धति से पूजा करवाने के बाद मन्दिर से बाहर आकर मन्दिर की परिक्रमा की जाती है,परिक्रमा मार्ग में भी विभिन्न ग्रहों के रूप में देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है,आसाम में इस मन्दिर को भविष्य मन्दिर के नाम से जाना जाता है,इस मन्दिर में एक बात और देखने को मिली कि बकरी और बन्दर एक साथ मौज से लोगों के द्वारा दिये गये प्रसात को खाते है। प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से सम्बन्धित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।
मन्दिर के अन्दर ग्रह का मन्त्र उच्चारण करने पर जो ध्वनि भूपुर में टकराकर वापस आती है वह दिमाग को झन्झनाने वाली होती है,व्यक्ति अपने आप भी पूजा कर सकता है लेकिन पूजा का क्रम याद रखना पडता है,सभी ग्रहों की पूजा के लिये पुजारी राहु के सामने या गुरु के सामने बैठता है,किसी उद्देश्य की पूजा के लिये राहु के सामने ही बैठ कर पूजा की जाती है और पारिवारिक तथा जनकल्याण के लिये की जाने वाली पूजा गुरु के सामने बैठ कर की जाती है,सन्कल्प और पूजा की पद्धति से पूजा करवाने के बाद मन्दिर से बाहर आकर मन्दिर की परिक्रमा की जाती है,परिक्रमा मार्ग में भी विभिन्न ग्रहों के रूप में देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित है,आसाम में इस मन्दिर को भविष्य मन्दिर के नाम से जाना जाता है,इस मन्दिर में एक बात और देखने को मिली कि बकरी और बन्दर एक साथ मौज से लोगों के द्वारा दिये गये प्रसात को खाते है। प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से सम्बन्धित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।
माँ कामाख्या और तंत्र
माँ कामाख्या के मंदिर के तंत्र को जानने के लिये पहले शिवलिंग को सकारात्मक और माता के मंदिर की बनावट को नकारात्मक रूप से देखना पडेगा। माता के मंदिर के अन्दर जाने पर जो द्रश्य सामने होता है वह इस प्रकार का होता है जैसे हम शिवलिंग के अन्दर प्रवेश कर गये हों।मंदिर की बनावट को वास्तु अनुसार बनाकर अन्दर कोई सफ़ेदी या रंग का प्रयोग नही किया गया है,अक्सर लोगों के मन में भ्रम होगा कि अन्दर कोई रंग या सफ़ेदी नही करने का उद्देश्य मन्दिर के प्रबन्धकों का यह रहा होगा कि कोई मन्दिर के अन्दर माँ की फ़ोटो नही ले ले,और अक्सर फ़ोटो उन्ही स्थानों की मिलती है,जहां कोई रूप सकारात्मक रूप से दिखाई देता है,लेकिन जो नकारात्मक रूप में शक्ति होती है उसे सकारात्मक रूप में देखने के लिये किसी भौतिक चीज को देखने की जरूरत नही पडती है,जैसे ही मन्दिर के अन्दर प्रवेश करते है अचानक दीपक की धीमी लौ के द्वारा जो रूप सामने आता है वह माता का साक्षात रूप ही माना जा सकता है। घनघोर अन्धेरा और उस अन्धेरे के अन्दर जो द्रश्य सामने होता है वह अगर आंखों को बन्द करने के बाद देखा जाये तो वही द्रश्य सामने होता है,इसे अंजवाने के लिये मन्दिर में जब सबसे नीचे जाकर माता के स्थान पर केवल बहते हुये पानी को हाथ से स्पर्श किया जाये तो उस समय आंखों को बन्द करते ही एक विचित्र सुनहली आभा लिये द्रश्यमान भगवती का चित्र एक क्षण के लिये आता है और गायब हो जाता है,वही दश्य मन में बसाने वाला होता है। अक्सर इस मन्दिर को तांत्रिक साधना का स्थान बताया गया है और कहा जाता है कि यहाँ पर मनोवांछित साधनायें पूरी होती है,लेकिन माता की साधना के लिये षोडाक्षरी मंत्र को ह्रदयंगम करने के बाद ही सम्भव है। षोशाक्षरी के लिये भी कहा गया है कि "राज्यं देहि,सिरं देहि,ना देहि षोडाक्षरी",राजपाट देदो,सिर दे दो लेकिन षोडाक्षरी मत दो,षोडाक्षरी के रहने पर राज्य और जीवन वापस मिल जायेगा लेकिन षोडाक्षरी जाने के बाद कुछ नही मिलेगा।
माता के दर्शन और स्पर्श के लिये अन्दर जाने से पहले दरवाजे के ठीक सामने बलि स्थान है,इस बलि स्थान पर कहा जाता है कि भूतकाल में यहां मनुष्यों की बलि दी जाती थी,आजकल यहाँ इस बलि स्थान के ठीक पीछे बकरों की बलि दी जाती है,तंत्र में जो बलि देने का रिवाज भूतडामर तंत्र में कहा गया है उसके अनुसार किसी जीव की बलि देना प्रकृति के अनुसार नही है। तंत्र शास्त्रों में लिखे गये बलि कारकों में उन कारकों का वर्णन किया गया है जो मानसिक धारणा से जुडॆ है। इस बलि स्थान का जो मन्दिर में स्थान बनाया गया है वह प्राचीन भवन निर्माण पद्धति से बिलकुल दक्षिण-पश्चिम कोने में बनाया गया है। प्रवेश का स्थान दक्षिण से होने के कारण जो सकारात्मक इनर्जी का मुख्य स्तोत्र है वह उत्तर की तरफ़ नीचे उतरने के लिये माना जाता है,बलि देने का मतलब यह नही होता है कि कोई मान्यता से बलि दी जाती है,यह एक कुप्रथा है और इसके पीछे जो भेद छुपा है उसके अनुसार मनुष्य के अन्दर जो लोभ मोह लालच कपट कष्ट देने की आदतें है उनकी बलि देने का रिवाज है,जैसे बकरे की बलि देने का जो कारण बताया गया है वह केवल अहम "मैं" को मारने का कारण है,लेकिन लोगों ने अपने निजी स्वार्थ को समझा नही और मैं (अहम) को न काटकर मैं मैं कहने वाले जानवर को ही काट डाला,धर्म स्थान का महत्व अघोर सिद्धि के लिये कई नही माना जाना चाहिये,जीव जीव का आहार है जरूर लेकिन बर्बरता और बिना किसी जीव को कष्ट दिये जब भोजन को धरती माता उपलब्ध करवाती है तो क्या जरूरी है कि अपने स्वार्थ और जीभ के स्वाद के लिये बलि दी जाये। मैं को काटने के लिये पहले अहम को काट दिया तो सभी सिद्धियां अपने आप सामने प्रस्तुत हो जायेंगी। माँ के दर्शन करने से पहले इसी मैं को काटने का ध्येय बताया था।
इस मन्दिर को बनाकर शैव और शक्ति के उपासकों का मुख्य उद्देश्य विपरीत कारकों से सिद्धियों को प्राप्त करना और माना जा सकता है,वास्तु का मुख्य रूप जो इस मन्दिर से मिलता है उसके अनुसार आसुरी शक्तियां जिनका निवास दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य) के कोने से मिलता है उसको भी दर्शाने का है,मुख्य मंदिर जिसके नीचे भौतिक तत्व विहीन शिव लिंग (केवल वायु निर्मित शिवलिंग) है,को समझने के लिये यह भी जाना जाता है कि जिन मकानों में उत्तर की तरफ़ अधिक ऊंचा और दक्षिण की तरफ़ अधिक नीचा होता है,अथवा उत्तर से दक्षिण की तरफ़ ढलान बनाया जाता है उन घरों के लोग केवल अघोर साधना की तरफ़ ही उन्मुक्त भाव से चले जाते है,व्यभिचार जुआ शराब मारकाट आदि बातें उन्ही घरों में मिलती है,लेकिन जब यह बात धार्मिक स्थानों में आती है तो जो भी धार्मिक स्थान दक्षिण मुखी होते है अथवा उनका उत्तर का भाग ऊंचा होता है वहां पर जो व्यक्ति के दिमाग में आसुरी वृत्तियां भरी होती है,उनका निराकरण भी इसी प्रकार के स्थानों में होता है। जैसे कि किसी भी अस्पताल को देखिये,जो दक्षिण मुखी होगा उसकी प्रसिद्धि और इलाज बहुत अच्छा होगा,और जो अन्य दिशाओं में अपनी मुखाकृति बनायें होंगे वहां अन्य प्रकार के तत्वों का विकास मिलता होगा,यही बात भोजन और इन्जीनियरिंग वाले मामलों में जानी जाती है। माता कामाख्या के और ऊपर भुवनेश्वरी माता का मन्दिर है,उस मंदिर का निर्माण भी इसी तरीके से किया जाता है लेकिन यह प्रकृति की कल्पना ही कही जाये कि जितनी भीड इस कामाख्या के मंदिर में होती है उतनी भुवनेश्वरी माता के मन्दिर में नही होती है। जो व्यक्ति अपनी कामना की सिद्धि के लिये आता है वह केवल कामाख्या को ही जानता है लेकिन जो कामनाओं की सिद्धि से भी ऊपर चला गया है वह ही भुवनेश्वरी माता के दर्शन और परसन कर पाता है। यही बात मैने खुद देखी जहां कामाख्या में पुजारी धन की मांग करते है वहीं मैने अपने आप पूजा करने के बाद भुवनेश्वरी माता के मंदिर में पुजारी को दक्षिणा देनी चाही तो उस पुजारी ने यह कह कर मना कर दिया कि "जब मैनें आपकी कोई पूजा ही नही की है तो मै दक्षिणा लेने का अधिकारी नही होता",जब मैने अधिक हठ की तो उसने कोई तर्क नही करके अपने निवास के कपाट बंद कर लिये।
माता के दर्शन और स्पर्श के लिये अन्दर जाने से पहले दरवाजे के ठीक सामने बलि स्थान है,इस बलि स्थान पर कहा जाता है कि भूतकाल में यहां मनुष्यों की बलि दी जाती थी,आजकल यहाँ इस बलि स्थान के ठीक पीछे बकरों की बलि दी जाती है,तंत्र में जो बलि देने का रिवाज भूतडामर तंत्र में कहा गया है उसके अनुसार किसी जीव की बलि देना प्रकृति के अनुसार नही है। तंत्र शास्त्रों में लिखे गये बलि कारकों में उन कारकों का वर्णन किया गया है जो मानसिक धारणा से जुडॆ है। इस बलि स्थान का जो मन्दिर में स्थान बनाया गया है वह प्राचीन भवन निर्माण पद्धति से बिलकुल दक्षिण-पश्चिम कोने में बनाया गया है। प्रवेश का स्थान दक्षिण से होने के कारण जो सकारात्मक इनर्जी का मुख्य स्तोत्र है वह उत्तर की तरफ़ नीचे उतरने के लिये माना जाता है,बलि देने का मतलब यह नही होता है कि कोई मान्यता से बलि दी जाती है,यह एक कुप्रथा है और इसके पीछे जो भेद छुपा है उसके अनुसार मनुष्य के अन्दर जो लोभ मोह लालच कपट कष्ट देने की आदतें है उनकी बलि देने का रिवाज है,जैसे बकरे की बलि देने का जो कारण बताया गया है वह केवल अहम "मैं" को मारने का कारण है,लेकिन लोगों ने अपने निजी स्वार्थ को समझा नही और मैं (अहम) को न काटकर मैं मैं कहने वाले जानवर को ही काट डाला,धर्म स्थान का महत्व अघोर सिद्धि के लिये कई नही माना जाना चाहिये,जीव जीव का आहार है जरूर लेकिन बर्बरता और बिना किसी जीव को कष्ट दिये जब भोजन को धरती माता उपलब्ध करवाती है तो क्या जरूरी है कि अपने स्वार्थ और जीभ के स्वाद के लिये बलि दी जाये। मैं को काटने के लिये पहले अहम को काट दिया तो सभी सिद्धियां अपने आप सामने प्रस्तुत हो जायेंगी। माँ के दर्शन करने से पहले इसी मैं को काटने का ध्येय बताया था।
इस मन्दिर को बनाकर शैव और शक्ति के उपासकों का मुख्य उद्देश्य विपरीत कारकों से सिद्धियों को प्राप्त करना और माना जा सकता है,वास्तु का मुख्य रूप जो इस मन्दिर से मिलता है उसके अनुसार आसुरी शक्तियां जिनका निवास दक्षिण पश्चिम (नैऋत्य) के कोने से मिलता है उसको भी दर्शाने का है,मुख्य मंदिर जिसके नीचे भौतिक तत्व विहीन शिव लिंग (केवल वायु निर्मित शिवलिंग) है,को समझने के लिये यह भी जाना जाता है कि जिन मकानों में उत्तर की तरफ़ अधिक ऊंचा और दक्षिण की तरफ़ अधिक नीचा होता है,अथवा उत्तर से दक्षिण की तरफ़ ढलान बनाया जाता है उन घरों के लोग केवल अघोर साधना की तरफ़ ही उन्मुक्त भाव से चले जाते है,व्यभिचार जुआ शराब मारकाट आदि बातें उन्ही घरों में मिलती है,लेकिन जब यह बात धार्मिक स्थानों में आती है तो जो भी धार्मिक स्थान दक्षिण मुखी होते है अथवा उनका उत्तर का भाग ऊंचा होता है वहां पर जो व्यक्ति के दिमाग में आसुरी वृत्तियां भरी होती है,उनका निराकरण भी इसी प्रकार के स्थानों में होता है। जैसे कि किसी भी अस्पताल को देखिये,जो दक्षिण मुखी होगा उसकी प्रसिद्धि और इलाज बहुत अच्छा होगा,और जो अन्य दिशाओं में अपनी मुखाकृति बनायें होंगे वहां अन्य प्रकार के तत्वों का विकास मिलता होगा,यही बात भोजन और इन्जीनियरिंग वाले मामलों में जानी जाती है। माता कामाख्या के और ऊपर भुवनेश्वरी माता का मन्दिर है,उस मंदिर का निर्माण भी इसी तरीके से किया जाता है लेकिन यह प्रकृति की कल्पना ही कही जाये कि जितनी भीड इस कामाख्या के मंदिर में होती है उतनी भुवनेश्वरी माता के मन्दिर में नही होती है। जो व्यक्ति अपनी कामना की सिद्धि के लिये आता है वह केवल कामाख्या को ही जानता है लेकिन जो कामनाओं की सिद्धि से भी ऊपर चला गया है वह ही भुवनेश्वरी माता के दर्शन और परसन कर पाता है। यही बात मैने खुद देखी जहां कामाख्या में पुजारी धन की मांग करते है वहीं मैने अपने आप पूजा करने के बाद भुवनेश्वरी माता के मंदिर में पुजारी को दक्षिणा देनी चाही तो उस पुजारी ने यह कह कर मना कर दिया कि "जब मैनें आपकी कोई पूजा ही नही की है तो मै दक्षिणा लेने का अधिकारी नही होता",जब मैने अधिक हठ की तो उसने कोई तर्क नही करके अपने निवास के कपाट बंद कर लिये।
Thursday, March 11, 2010
महिलायें और तंत्र
ज्योतिष में पुरुष को हवा और स्त्री को धरती का रूप दिया गया है। पुरुष की प्रवृत्ति होती है कि वह किसी भी दिशा में गर्मी की तरफ़ बढ लेता है और स्त्री का कार्य किसी भी वस्तु को सहेज कर रख लेने का होता है। स्त्री के अन्दर सहेज कर रखने की प्रवृत्ति अक्सर पुरुषों को समय पर काम भी देती है और जो समझदार नही होते है वे स्त्री के द्वारा सहेज कर रखने वाली वस्तु को नकारते है या बिना समझे उसका दुरुपयोग करते है। सभी स्त्रियों की प्रकृति एक समान होती है,लेकिन जिस प्रकार से एक ही तरह की मिट्टी से कई तरह के मीठे खट्टे चरपरे नमकीन स्वाद अन्य वस्तुओं के सहयोग से निकाल लिये जाते है उसी प्रकार से स्त्री भी अपने स्वभाव से सभी तरह के विषय अपने पास जमा करने के बाद समय पर उन सभी का प्रभाव अपने परिवार को देने का काम करती है। धन की कामना भी स्त्री को इसीलिये अधिक होती है कि वह सभी तरह के विषयों को अपने पास इकट्ठा कर सके। वैसे स्त्री को प्रकृति के अनुसार सोलह जगह से बांधा गया है,और जो स्त्रियां अपने बंधनो से मुक्त है तो वे किसी भी दिशा में अपने विषयों की प्राप्ति के लिये गलत या सही जैसा भी मार्ग अपना सकती हैं। स्त्री का दिमाग कभी भी एक जैसा नही होता है,वह अपने दिमाग को लाखों तरीके से प्रयोग करने की कोशिश करती है। महिलायें किस प्रकार से अपने तंत्र को प्रयोग करती है जो उन्होने प्राचीन या किसी के द्वारा प्रयोग करने के लिये दिये गये तंत्रों से समाधान मिलता है।
स्वप्न तंत्र की प्रक्रिया
सबसे पहले इस तंत्र का बखान करना इसलिये मुख्य समझा है कि यह हर किसी महिला के साथ अक्सर देखा जाता है,सुबह की चाय का स्वाद अगर अधिक मीठा या चाय में शक्कर नही है तो पहिचान लेना चाहिये कि रात को श्रीमती के द्वारा स्वप्न देखा गया है और उसी स्वप्न की उधेड बुन में चाय का स्वाद अधिक मीठा या फ़ीका रह गया है। स्वप्न की बातों का सीधा असर महिलाओं में इसलिये और अधिक जाता है कि वे केवल अपने आसपास के माहौल से काफ़ी सशंकित रहती हैं। पडौसी के घर पर क्या हो रहा है,पडौसिन ने किस से क्या बात की है,पडौसी के घर पर कौन सा नया काम हुआ है,आदि बातें केवल महिलाओं के द्वारा जल्दी से जानी जा सकती है,यह केवल प्रकृति के द्वारा दिया गया एक तोहफ़ा ही माना जायेगा जिनके प्रति हम कभी जागरूक नही होते है वह बातें महिलाओं को जल्दी पता चल जाती है। पति के प्रति अगर उन्हे संदेह होता है तो वे फ़ौरन अपने स्वप्न का अर्थ पता नही किन किन बातों से लगाना शुरु कर देती है और जब स्वप्न में उन्हे कोई अप्रिय बात देखने को मिलती है तो वे किसी ना किसी बहाने से पूंछना शुरु कर देतीं है और अगर पति उन बातों का सही उत्तर देता है तो वे अक्सर समय पर आश्वस्त नही होती है,और इन्तजार भी करती है कि आखिर में यह बात उन्होने देखी क्यों? एक महिला ने स्वप्न में देखा कि उसकी मरी हुई सास उसके आभूषणों को अन्य किसी महिला को पहिना रही है,महिला ने सुबह से ही उन आभूषणों के बारे में सोचना चालू कर दिया,पति से कई सवाल किये गये कि लाकर में जो आभूषण रखे है वे सही सलामत तो है,उन्हे निकाल कर कहीं गिरवी आदि तो नही रखा गया है,अथवा आज चल कर अपने लाकर के आभूषण चैक करने है। पति को कोई जरूरी काम है और उसने ना नुकर की तो बस घर के अन्दर क्लेश चालू हो गया,आखिर में पति महोदय उन्हे लेकर लाकर में रखे आभूषणों को दिखाने के लिये गये,सभी आभूषणों को चैक किया गया तो हार गायब था। पत्नी को शक सबसे पहले अपने पति पर गया और उनसे पूंछा कि उसकी अनुपस्थिति में लाकर को खोला था,बैंक के मैनेजर से जानकारी मांगी कि कब कब लाकर खुला है,लेकिन पता लगा कि लाकर उसकी अनुपस्थिति में खोला ही नही गया है। बहुत सोचने के बाद कि आखिर हार लाकर से कहाँ गया। पति तो अपने कामों में व्यस्त हो गये लेकिन श्रीमती जी का खाना पीना सब हराम हो गया। वे तरह से तरह से सोचने लगीं कि आखिर में हार गया कहाँ ? आखिरी बार उसे पहिना था और पहिन कर फ़लां की शादी में गये थे,उसके बाद उसे पहिना था तो दूसरे दिन ही लाकर में रख कर आ गये थे। उस हार की चिन्ता में शहर के जाने माने ज्योतिषी जी के पास वे गयीं और उनसे पूंछा,ज्योतिषी जी ने अपनी ज्योतिष से बताया कि हार उन्ही की घर की महिला के पास है। लेकिन यह पता कैसे लगे कि महिला घर की कौन है? वे चिन्ता में घर आयीं,और पलंग पर पडकर सोचने लगीं। रात को पति काम से वापस आये,अनमने ढंग से भोजन आदि दिया गया,और फ़िर पति की खोपडी खाने का समय मिला था,अचानक पति को ध्यान आया कि एक बार उनकी भाभी ने कहीं जाने के लिये गहने मांगे थे,और वे वापस भी कर गयीं थी,लेकिन यह नही देखा था कि हार उन गहनों में है या नही। उन्होने अपनी भाभी से पूंछने के लिये फ़ोन उठाया और पूंछा,-"भाभी आपने जो गहने लिये थे,उस समय हार तो आपके पास नही रह गया था,आज जब लाकर चैक किया तो हार उसके अन्दर नही मिला है",भाभी ने सीधे से उत्तर दिया कि हार वे इसलिये वापस नही कर पायीं थी कि उनकी बडी वाली लडकी पहिन कर अपने ससुराल चली गयी थी और तब से अभी तक आयी नही है,उन्होने सोचा था कि आयेगी तभी जाकर दे आयेंगी। पूरा भेद खुल गया,कि हार जो उस महिला की सास दूसरी औरत को पहिना रही थी,वह बात सही थी,इससे उन श्रीमती का विश्वास स्वप्न के प्रति पक्का हो गया था। इस प्रकार से महिलायें अपने स्वप्नो का अर्थ विभिन्न तरीकों से लगाया करती है,अक्सर उनके स्वप्नों का फ़ल भी सही ही निकलता है।
अंग फ़डकने का फ़ल
महिलाओं में रोजाना यही बात और की जाती है कि आज उनकी दाहिनी आंख फ़डक रही है,दाहिनी आंख महिलाओं की फ़डकने के से अक्सर खराब असर ही मिलते हैं। बेकार की आशंका से पीडित होने पर या घर में किसी के बीमार होने पर अथवा किसी नये किये जाने वाले काम के प्रति आशंकायें की जाती है,घर का कोई सदस्य बाहर होता है तो उसके बारे में अच्छे बुरे विचार किये जाते है,और जब कोई आसपास के लोगों में या परिवार में कोई दुर्घटना घट जाती है तो वह आंख भी फ़डकना बंद हो जाता है,और इस प्रकार से अंग फ़डकने की क्रिया को भी अक्सर महिलाओं में सत्य माना जाने लगता है।
स्वप्न तंत्र की प्रक्रिया
सबसे पहले इस तंत्र का बखान करना इसलिये मुख्य समझा है कि यह हर किसी महिला के साथ अक्सर देखा जाता है,सुबह की चाय का स्वाद अगर अधिक मीठा या चाय में शक्कर नही है तो पहिचान लेना चाहिये कि रात को श्रीमती के द्वारा स्वप्न देखा गया है और उसी स्वप्न की उधेड बुन में चाय का स्वाद अधिक मीठा या फ़ीका रह गया है। स्वप्न की बातों का सीधा असर महिलाओं में इसलिये और अधिक जाता है कि वे केवल अपने आसपास के माहौल से काफ़ी सशंकित रहती हैं। पडौसी के घर पर क्या हो रहा है,पडौसिन ने किस से क्या बात की है,पडौसी के घर पर कौन सा नया काम हुआ है,आदि बातें केवल महिलाओं के द्वारा जल्दी से जानी जा सकती है,यह केवल प्रकृति के द्वारा दिया गया एक तोहफ़ा ही माना जायेगा जिनके प्रति हम कभी जागरूक नही होते है वह बातें महिलाओं को जल्दी पता चल जाती है। पति के प्रति अगर उन्हे संदेह होता है तो वे फ़ौरन अपने स्वप्न का अर्थ पता नही किन किन बातों से लगाना शुरु कर देती है और जब स्वप्न में उन्हे कोई अप्रिय बात देखने को मिलती है तो वे किसी ना किसी बहाने से पूंछना शुरु कर देतीं है और अगर पति उन बातों का सही उत्तर देता है तो वे अक्सर समय पर आश्वस्त नही होती है,और इन्तजार भी करती है कि आखिर में यह बात उन्होने देखी क्यों? एक महिला ने स्वप्न में देखा कि उसकी मरी हुई सास उसके आभूषणों को अन्य किसी महिला को पहिना रही है,महिला ने सुबह से ही उन आभूषणों के बारे में सोचना चालू कर दिया,पति से कई सवाल किये गये कि लाकर में जो आभूषण रखे है वे सही सलामत तो है,उन्हे निकाल कर कहीं गिरवी आदि तो नही रखा गया है,अथवा आज चल कर अपने लाकर के आभूषण चैक करने है। पति को कोई जरूरी काम है और उसने ना नुकर की तो बस घर के अन्दर क्लेश चालू हो गया,आखिर में पति महोदय उन्हे लेकर लाकर में रखे आभूषणों को दिखाने के लिये गये,सभी आभूषणों को चैक किया गया तो हार गायब था। पत्नी को शक सबसे पहले अपने पति पर गया और उनसे पूंछा कि उसकी अनुपस्थिति में लाकर को खोला था,बैंक के मैनेजर से जानकारी मांगी कि कब कब लाकर खुला है,लेकिन पता लगा कि लाकर उसकी अनुपस्थिति में खोला ही नही गया है। बहुत सोचने के बाद कि आखिर हार लाकर से कहाँ गया। पति तो अपने कामों में व्यस्त हो गये लेकिन श्रीमती जी का खाना पीना सब हराम हो गया। वे तरह से तरह से सोचने लगीं कि आखिर में हार गया कहाँ ? आखिरी बार उसे पहिना था और पहिन कर फ़लां की शादी में गये थे,उसके बाद उसे पहिना था तो दूसरे दिन ही लाकर में रख कर आ गये थे। उस हार की चिन्ता में शहर के जाने माने ज्योतिषी जी के पास वे गयीं और उनसे पूंछा,ज्योतिषी जी ने अपनी ज्योतिष से बताया कि हार उन्ही की घर की महिला के पास है। लेकिन यह पता कैसे लगे कि महिला घर की कौन है? वे चिन्ता में घर आयीं,और पलंग पर पडकर सोचने लगीं। रात को पति काम से वापस आये,अनमने ढंग से भोजन आदि दिया गया,और फ़िर पति की खोपडी खाने का समय मिला था,अचानक पति को ध्यान आया कि एक बार उनकी भाभी ने कहीं जाने के लिये गहने मांगे थे,और वे वापस भी कर गयीं थी,लेकिन यह नही देखा था कि हार उन गहनों में है या नही। उन्होने अपनी भाभी से पूंछने के लिये फ़ोन उठाया और पूंछा,-"भाभी आपने जो गहने लिये थे,उस समय हार तो आपके पास नही रह गया था,आज जब लाकर चैक किया तो हार उसके अन्दर नही मिला है",भाभी ने सीधे से उत्तर दिया कि हार वे इसलिये वापस नही कर पायीं थी कि उनकी बडी वाली लडकी पहिन कर अपने ससुराल चली गयी थी और तब से अभी तक आयी नही है,उन्होने सोचा था कि आयेगी तभी जाकर दे आयेंगी। पूरा भेद खुल गया,कि हार जो उस महिला की सास दूसरी औरत को पहिना रही थी,वह बात सही थी,इससे उन श्रीमती का विश्वास स्वप्न के प्रति पक्का हो गया था। इस प्रकार से महिलायें अपने स्वप्नो का अर्थ विभिन्न तरीकों से लगाया करती है,अक्सर उनके स्वप्नों का फ़ल भी सही ही निकलता है।
अंग फ़डकने का फ़ल
महिलाओं में रोजाना यही बात और की जाती है कि आज उनकी दाहिनी आंख फ़डक रही है,दाहिनी आंख महिलाओं की फ़डकने के से अक्सर खराब असर ही मिलते हैं। बेकार की आशंका से पीडित होने पर या घर में किसी के बीमार होने पर अथवा किसी नये किये जाने वाले काम के प्रति आशंकायें की जाती है,घर का कोई सदस्य बाहर होता है तो उसके बारे में अच्छे बुरे विचार किये जाते है,और जब कोई आसपास के लोगों में या परिवार में कोई दुर्घटना घट जाती है तो वह आंख भी फ़डकना बंद हो जाता है,और इस प्रकार से अंग फ़डकने की क्रिया को भी अक्सर महिलाओं में सत्य माना जाने लगता है।
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