Thursday, August 26, 2010

अहंकार से सम्बन्ध विच्छेद

वह जमाना चला गया जब बहुयें ब्यालू किया करती थी,इस कहावत का मतलब होता है कि घर की बहू का हक केवल दोपहर के भोजन तक ही सीमित है,जब ब्यालू नही करने दी जायेगी तो कलेऊ का भी कोई आस्तित्व नही है। यह बात अक्सर पुराने जमाने की सासें अपने अपने अनुसार किया करती थी,लेकिन आज के जमाने में यह बात बिलकुल पलट गयी है,अब कहा जा सकता है "वह जमाना चला गया जब सासें ब्यालू किया करती थीं",शादी के बाद कितने ही रिस्ते इस अहंकार की बली चढ गये है,और जो कुछ चल भी रहे है वे या तो परिवार की मर्यादा को रख कर चल रहे है या रिस्ते के नाम पर पक्ष और प्रतिपक्ष के परिवार रिस्तों को ढो रहे है। पति और पत्नी की विवाह के बाद की औकात कितनी रह गयी है यह अगर किसी पारिवारिक न्यायालय या अधीनस्थ न्यायालय में जाकर देखा जाये तो बहुत कुछ देखने को मिल जायेगा। पुरुष अहम कितना है इस बात के लिये हमने कितनी ही लडकियों की व्यथायें सुनी,वे अपने घरों को छोड कर न्याय की आशा में अपने अपने माता पिता के पास बैठी है,अगर माता पिता समर्थ है तो उनके भरण पोषण को कर रहे है और अगर किसी भी तरह से भरण पोषण नही कर पा रहे हैं तो लडकियां खुद ही किसी छोटे या बडे पद पर आसीन होकर अपना खर्च वहन कर रही है। शादी के बाद का जो माहौल घर के अन्दर पैदा होता है वह केवल अहम को लेकर होता है,जब दो परिवार आपस में जुडते है तो कुछ अच्छा और कुछ बुरा अनुभव तो होता ही है। अक्सर समाचार पत्रों से या वैवाहिक साइटों से जो रिस्ते बनाये जा रहे है वे किसी प्रकार से खानपान रहन सहन और भाषा से जुडे नही होते है,उनके अन्दर परिवार की कहानी मनगढंत होती है या फ़िर जिस परिवेश में वर और वधू रहे होते है उस परिवेश की भिन्नता भी अपना कारण बनाती है। बोली जाने वाली भाषा अलग होती है और देखने वाली समझ अलग होती है,किसी की तस्वीर और शिक्षा को देखकर अगर शादी की बात की जाती है और रिस्ता फ़ाइनल भी हो जाता है तो जब उस वर या वधू के रिस्तेदार आपस में मिलते है और जब कोई कार्यक्रम में शामिल होना पडता है तो अक्सर समाज की खामियां भी देखने को मिलती है,जैसे खानपान का तमाशा,रहने के स्थान का तमाशा दिखावे का तमाशा आदि करने से वर और वधू के परिवारों में किसी न किसी बात पर तकरार हो ही जाती है। और जब बहू घर आती है तो बहू पर किये गये व्यवहार के बारे में आक्षेप विक्षेप दिये जाते है,जबकि बहू का खुद का दिमाग असंतुलन में होता है वह अपने परिवार को छोड रही होती है और दूसरे परिवार में जा रही होती है,किसी अलग माहौल में जाने पर पहले उस परिवार के सदस्यों के बारे में समझना पडता है फ़िर उस परिवार के माहौल के अनुसार चलने की कोशिश की जाती है,समझदार तो कोशिश करने पर सफ़ल हो जाती है लेकिन जिनके अन्दर माता पिता का भाई का या अन्य किसी प्रकार का जैसे कि नौकरी करना आदि होता है तो वह अहम के कारण एक दम ही अपने व्यवहार को परिवर्तित कर देती है और परिवार से दूर होकर अपने को प्रताणित शो करने लगती है,परिवार के साथ उनका साथ कानून भी देता है,उसके बाद चलती है कानूनी लडाई जो अधिकतर काफ़ी समय तक चलती है,दोनो पक्ष एक दूसरे को प्रताणित करने के लिये अलग अलग धाराओं और कई प्रकार के पारिवारिक अपघात करने से नही चूकते,जो सम्बन्ध धार्मिक रूप से चलना था,पति पत्नी को सौहार्द पूर्वक रहकर अपने जीवन की मुख्य रास्ता से जुडना था,वह सब एक क्षण में समाप्त हो चुका होता है।

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