Sunday, October 31, 2010

रहस्य स्वप्न का

  • भाई साहब खाना खाने के लिये बैठे है सामने खाना है,लेकिन पता नही क्यों अचानक वे पीछे हटते है,और उनका चेहरा एक दम काला होता जा रहा है,उनके सीधी तरफ़ एक अंधेरा सा कमरा है और वे कह रहे है इस कमरे से निकल कर कोई सवार हो गया है,भाई साहब का मुंह सूखता चला जाता है,और उनकी जीभ भी बाहर की तरफ़ निकलती चली जाती है,मैं बहुत जोर लगाकर मोनू और मोनू की मम्मी को आवाज देता हूँ कि कोई जल्दी से पानी लाओ,कोई पानी लेकर नही आ रहा है,मैं दौड कर मकान के नीचे के हिस्से से पानी लेने के लिये भागता हूँ ,ध्यान से सीढियां चूक जाता हूँ और स्लिप होकर नीचे गिर पडता हूँ,मुझे कई लोगों की आवाज सुनाई देती है,लोग आकर मुझे उठा रहे है,और देखता हूँ कि किसी सफ़ेद बिस्तर पर पडा हूँ डाक्टर और नर्स काम कर रहे है,शायद अस्पताल ही है।
  • मुझे अचानक ध्यान आता है भाई साहब को पानी नही मिला है,मैं अस्पताल से भागता हूँ,रास्ते में बाजार मिलता है,मुझे मेरे पुराने मकान मालिक दिखाई देते है वे शर्बत की दुकान लगाकर बैठे है,उनके आगे कोई सब्जी बेच रहा है,उससे  मैं पालक नीबू और मिर्ची खरीदता हूँ,वह सभी सामान मेरे हाथ में ही दे देता है,मैं वहाँ से जल्दी से भागता हूँ केवल एक विचार दिमाग में चल रहा है,भाई साहब को प्यास लगी होगी,उनका हाल कैसा होगा।
  • यह ध्यान भी आता है कि उन्होने दो दिन से खाना नही खाया है,और जब वे खाना खाने बैठे तो न जाने उनके घर में कौन सी बाधा है जो उनके ऊपर सवार हो गयी है,अचानक मुझे एक रोटी की दुकान दिखाई दे रही है,उस पर एक औरत बैठी रोटी पका रही है,मैं उससे कहता हूँ कि वह मुझे चार रोटी देदे,इससे मै अपने भाई को खाना तो खिला दूँ,वह औरत मुझे रोटी नही देती है और कहती है यह चार रोटी का आटा ले जाओ और घर पर गर्म पकाकर दे देना। मैं उससे आटा लेकर और उसे दस रुपया देकर भागने लगता हूँ,देखता हूँ भाई साहब का मकान पहिचान में नही आ रहा है,मैं गली में भटकने लगता हूँ कोई बताने को तैयार नही है कि वे कहाँ रहते है।
  • मै किसी गलत गली में घुस जाता हूँ वहां पर पीले और लाल मिक्स कलर के मकान बने है और वहां पर काले काले आदमी घूम रहे है,वे पीछे की गली में जाने के लिये इशारा कर रहे है लेकिन वे क्या बोल रहे है,उनकी भाषा कुछ भी समझ में नही आ रही है,नाक में केवल चमेली की सुगंध आ रही है.
  • मैं उनकी बताई गली में जाता हूँ वहां भाई साहब का मकान दिखाई दे जाता है,और मैं सीधा मकान की सीढियां चढता हुआ छत पर ही चला जाता हूँ,वहां देखता हूँ भाई साहब छत की मुंडेर पर बैठे है,नीचे बहुत दूर लोग छोटे छोटे दिखाई दे रहे है,उनके बगल में मेरी स्वर्गीय छोटी भतीजी बैठी है,वह मुझे देखकर हँस रही है,मेरे हाथ में सामान देखकर कहती है,अंकल आज रोटी बनाकर आपको ही खिलानी पडेगी,मम्मी को तो फ़ुर्सत नही है,लेकिन क्या मजा होता कि चाची रोटी बनाती,छोटी चाची सब्जी बनाती,गुडिया परोसती,हम आप सब और दादा दादी मिलकर खाना खाते,भैया ने अपना घर हवाई जहाज के ऊपर बनाया है,दीदी ने अपना घर काले सफ़ेद रंग का बनाया है,दीदी के घर पर भी बहुत सारे प्लास्टिक के खिलौने है,लेकिन आपके घर पर जो खिलौने है वे बोलने वाले है,उनके खिलौने फ़ूलते पिचकते तो है लेकिन बोलते नही है.
  • मैं उसकी बातों को सुनता हूँ लेकिन मैं जैसे ही कुछ कहने के लिये प्रयास करता हूँ भाई साहब अपने मुंह में उंगली लगाकर इशारा करते है कि बोलना नही,इसे बोल लेने दो यह बहुत दिनो बाद बोली है,फ़िर वह कहती है कि पापा तुम्हारा चेहरा काला क्यों हो गया है,मैं उससे बताने के लिये फ़िर कुछ कहना चाहता हूँ लेकिन फ़िर से भाई साहब इशारे से मुझे चुप करा देते है,वे एक तार की तरफ़ इशारा करते है वह तार हरे रंग का है और मुंडेर से नीचे की तरफ़ लटकता हुआ बहुत दूर तक चला गया है।
  • वह कहती जाती है,पता नही क्या क्या कहती है,लेकिन हर बात में कहती है,सब नन्नू की करामात है,मजे आ गये नन्नू की करतूत पर मै भाई साहब से पूंछने की कोशिश करता हूँ लेकिन वे फ़िर से मुझे चुप रहने का इशारा कर देते है.
  • एक व्यक्ति की आवाज जोर जोर से चिल्लाने की आ रही है,साथ में भाभी जी की भी आवाज आ रही है,वह कह रहा है कि मैं जनता को पानी पिलाता हूँ अपने बच्चों का पेट काटकर खर्च करता हूँ आप जो मुझसे इतने से काम के पैसे ले रही है वह आपके लिये भला नही करने वाले है यह पैसे आपकी जिन्दगी में कोहराम मचा देंगे,भाई साहब ध्यान से सुन रहे है लेकिन कुछ भी नही बोल रहे है,आवाजें धीमी होती जाती है,गाडियों का शोर सुनाई दे रहा है,लेकिन गाडी कोई दिखाई नही दे रही है।
  • अचानक मेरी भतीजी भाई साहब के गले की तरफ़ हाथ बढाती है और उन्हे धक्का देने के लिये खडी होती है,कहती जाती है दीदी के खिलौने की तरह आपको भी पिचका देती हूँ,इतने में ही भाई साहब का रूप अचानक बदल जाता है,वे मुझसे कहते है कि यह वही है जो मेरे ऊपर उस अन्धेरे कमरे से सवार हो गयी थी,अचानक मुझे भी ख्याल आता है कि यह भतीजी तो गुजर चुकी है,वह धीरे धीरे विलीन होती जाती है,और गायब हो जाती है,भाई साहब को मैं कहता हूँ कि यह सामान जो मैं लाया हूँ चलो आपको खाना बनाकर खिला देता हूँ,भाई साहब माथे पर हाथ लगाकर कहते है,क्या फ़ायदा है जो खाने वाला था वही चला गया अब मुझे खिलाने से क्या फ़ायदा,मैं उनके चेहरे की तरफ़ देखता हूँ,वे एक छोटे बच्चे की तस्वीर को हाथ में लेकर घूर रहे है,वह बच्चा मैं नही पहिचान रहा हूँ,मैने उनसे उस बच्चे की तरफ़ इशारा करते हुये कहा कि यह किसका है,वे उस फ़ोटो को जेब में रखते हुये कह रहे है इससे तुम्हे कोई मतलब नही रखना चाहिये,पिताजी की यह सब करतूत है,वे अगर मेरे साथ धोखा नही करते तो मेरी यह हालत नही होती,एन वक्त पर वे अपनी बात से मुकर गये थे,और मेरी जिन्दगी में तबाही आ गयी थी.
(यह स्वप्न दिनांक 20th April 2006 को देखा था,एक डायरी में लिख कर रख लिया था,आटा सब्जी रस की दुकान अस्पताल चेहरे का काला होना ऊंची मुंडेर पर बैठना काले काले लोगों का दिखाई देना भाषा को नही पहिचानना आदि बातें पितृ तर्पण की तरफ़ जाती है,इस तर्पण वाले काम को मैने दिनांक 27th September 2010 में चार साल बाद कर दिया)

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