तंत्र के द्वारा व्यक्ति राष्ट्र की उन्नति होती है,आज जो भी प्रगति है वह तंत्र के कारण ही है,यथा राजतंत्र,मशीन तंत्र उर्वरक तंत्र आदि। जो कल था वह आज नही है,जो आज है वह कल नही होगा,लेकिन तंत्र कल भी था,आज भी है,और कल भी रहेगा।
Friday, December 17, 2010
शुभ लाभ का शाब्दिक तंत्र
शुभ और लाभ शब्द हिन्दी मे अक्सर दुकानों और संस्थानो के मुख्य द्वार पर धन रखने वाले स्थानो पर यहां तक कि लोग अपनी अपनी तिजोरियों पर और आजकल लोग अपने अपने पूजा स्थानों में भी लिखने लग गये है,इन दोनो शब्दों का मतलब साधारण भाषा में शुभ से मेहनत करने के बाद अपनी मजदूरी के बराबर लाभ से मतलब फ़ायदा लेने से होता है। लेकिन जो लोग ठाठ से दो नम्बर के काम करते है वे भी अपने अपने स्थानों पर इन दोनो शब्दों को लिखे होते है। शुभ को कई कारणों में प्रस्तुत किया जाता है,जैसे शादी के कार्ड पर भी शुभ विवाह लिखा होता है,किसी अनुष्ठान के नाम के पहले भी शुभ लिखा होता है। लेकिन इस शब्द के लिये भूतडामर तंत्र में लिखा गया है कि ’श’अक्षर कर्म से सम्बन्धित है और कार्य के देवता शनि से सम्बन्धित है,इस अक्षर पर छोटे ’उ’ की मात्रा लगाने का मतलब होता है कर्म को कर्म के अनुसार किया जाना जो कर्म का सिद्धान्त है उसे अपनाते हुये कर्म करना,इसके बाद का जो शब्द ’भ’ का प्रयोग किया है वह भरण के लिये भी प्रयोग में आता है और भ चक्र के अनुसार ज्योतिषीय गणित का भी कारक होता है,यानी जो भी कार्य किया जाये वह दूसरों की भलाई के लिये समय कुसमय का ध्यान रखकर ही किया जाये। यह बात लाभ के लिये भी बताई गयी है,’ल’अक्षर का रूप लादने से प्रयोग में लाया जाता है,किसी वस्तु नाम को अगर अक्षर से जोडा जाये तो उसके अन्दर पहले प्राप्त करने की भावना होती है,अक्षर ’भ’ का सिद्धान्त पहले बता ही दिया है। जो लिया जाये वह भरपूर और प्राप्त करने वाले लाभ का भी प्रयोग उन्ही कार्यों के लिये किया जाये जो सर्व जन हिताय के लिये काम में आते हों।
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