Wednesday, March 17, 2010

कामाख्या पहाड और तंत्र

कामाख्या (गोहाटी) जाने पर सबसे पहले कामाख्या पहाड के बारे में आप अच्छी तरह से जान लें। इस पहाड के लिये वाणासुर,नरकासुर,जयन्तिया राज के शासक और असम के शासक तथा कितनी ही जनता इस पहाड के चमत्कारिक प्रभावों को देख चुकी है,साथ अक्सर चींटियां वही पैदा होती हैं जहाँ मिठाई होती है। नमक में कभी चीटिंयां नही लगती है। इस पहाड के मामले में सुबह के सवा सात बजे का एक चित्र जो नवरात्रा के दूसरे दिन मैने अपने मोबाइल से लिया था उसे आप अपनी पारखी नजर से देखिये:-
यह चित्र आरिजनल है और इसके अन्दर किसी प्रकार का कोई बदलाव नही किया गया है,और कामाख्या पहाड के अग्नि कोण से चलने वाली अदावरी रोड से मैने खींचा है,इस चित्र में आप दाहिनी तरफ़ लाल रंग और बायीं तरफ़ नीला रंग साफ़ तरीके से देख सकते है,और वातावरण में साफ़ समझ में आता है जैसे कि पूरे वातावरण में लाल रंग घोल दिया गया हो। देखने के लिये तो लोग कहेंगे कि यह बादल होने से या किसी अन्य प्रकार की मौसमी हवा होने से हो सकता है लेकिन आप जब आसमान की तरफ़ देखें गे तो आपको साफ़ समझ में आयेगा कि आसमान कभी भी एक सीधी रेखा में साफ़ और मैला नही होता है,कहीं ना कहीं तो आडा तिरछा हो ही जाता है,यह मैया का चमत्कार ही माना जाता है,और यह तभी सम्भव है जब वहाँ पर माँ अर्धनारीश्वर के रूप में उपस्थिति है। मै भी पहले सभी पूजा पाठों के प्रति और तंत्र मंत्र के प्रति इतनी आस्था नही रखता था,मै भी राजपूत कुल में पैदा हुआ हूँ,और सभी बाते जो राजपूतों में होती है वह मेरे अन्दर भी है लेकिन अक्समात यह सब कारण देखकर ही मैने माता और ईश्वर के अन्दर आस्तित्व देखा है,तभी इनके ऊपर आस्था की जानी सम्भव हुयी है।
इस स्थान से माता कामाख्या के पहाड के पूरे दर्शन होते है,और ऊपर से नीचे आने के लिये नरकासुर का बनाया गया सिंह द्वार है जो दक्षिण की तरफ़ को खुलता है,इस द्वार से कोई भी आता जाता नही है इसका कारण एक ही बताया गया है कि इस द्वार से आने जाने वाले मौत के मुंह में चले जाते है,इस द्वार के नीचे एक बस की बाडी बनाने वाले ने अपना कारखाना बना रखा है,और ऊपर की तरफ़ जाने के बाद एक महात्मा जी का आश्रम है,इस आश्रम के अन्दर केवल वही लोग रहते है जो संसार में अपने को अकेला समझते है,लेकिन उन लोगों से भी बात करने के बाद पता चला कि वे कभी भी किसी के दरवाजे पर मांगने नही गये,पता नही कहाँ से कौन आकर उनको खाना दे जाता है,सर्दी के कपडे दे जाता है,नहाने के लिये उनको पता नही है कि उन्होने कब नहाया है,लेकिन भक्ति और ज्ञान की बातें करने पर उनके अन्दर से विद्या की वह लहर दौडती है जैसे मानो सरस्वती उन्ही के अन्दर विराजमान हो। उन्ही में एक साधु जैसे व्यक्ति ने बताया कि वह बचपन से यहीं माता की शरण में रहता आया है,उसे कभी किसी से मांग कर खाने की जरूरत नही पडी,लेकिन धीरज रखकर माता की शरण में पडा रहा। कितना ही जाडा गर्मी बरसात हो लेकिन माता उन्हे खाना किसके द्वारा कहाँ से भिजवाती है किसी को पता नही है। जिस समय मै उनसे बात कर रहा था उसी समय एक अब्दुल करीम नामका व्यक्ति साइकिल पर एक एल्म्यूनियम का भगोना रख कर आया और पत्तों की पत्तलों में रखकर दाल चावल को सभी बैठे लोगों को देने लगा,सभी ने उससे दाल चावल लिये मैने भी दाल चावल लिये और उन्हे खाया भी लेकिन जो स्वाद उन दाल चावल में मिला वह मैने जीवन में कभी पाया ही नही। जब इन मियां जी से पूंछा कि आप इनके लिये खाना कहाँ से लाये है तो वे बोले कि एक सेठ नीचे आया था वह खाना मुझे देकर गया और बोला कि सभी साधुओं को बांट देना। इसके आगे वह कुछ नही बता पाया।
यह द्वार माता कामाख्या के दर्शन करने को जाने के लिये पूर्वी द्वार है और इसी द्वार को माता के दर्शन के लिये प्रयोग किया जाता है,राज्य सरकार ने अब माता के भवन तक और आगे भुवनेश्वरी तक सडक का निर्माण करवा दिया है। आराम से लोग अपने वाहन ले जासकते है,और किराये के वाहन भी चला करते है जो प्रति सवारी दस रुपया एक तरफ़ का किराया ऊपर या नीचे आने का लेते है। इस दरवाजे से जाने के बाद अगर पैदल भी जाया जाये तो कोई थकान नही मालुम होती है,मै तो माता कामाख्या तक जीप से गया था और वहां से भुवनेश्वरी तक पैदल ही गया था,बहुत से चित्र विचित्र स्थान देखने को मिले,वही अगर कार से जाते तो देखने को नही मिलते। रास्ते में किसी प्रकार का कोई भय नही मालुम चला,एक तरफ़ ब्रह्मपुत्र नदी और दूसरी तरफ़ माता का दरवार,बहुत ही मन को लुभाने वाला द्रश्य था,और इस द्रश्य को अगर सही रूप से मन के अन्दर धारण करना है तो माता कामाख्या के प्रति लालसा तो पैदा करनी ही पडेगी।

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