Friday, March 19, 2010

यक्षिणी साधना


यक्षिणी सिद्ध होने पर कार्य बडी सुगमता से हो जाता है,बुद्धि भी सही रहती है,और कठिन से कठिन समस्या को तुरत हल किया जा सकता है। इसका एक फ़ल और मिलता है,कि कोई भी अपने मन की बात को अगर छुपाने की कोशिश करता है तो उसके हाव भाव से पहिचाना भी जा सकता है कि वह अपने मन के अन्दर क्या भेद छुपाकर रख रहा है। यक्षिणी चौदह प्रकार की बताई गयीं हैं:-
  1. महायक्षिणी
  2. सुन्दरी
  3. मनोहरी
  4. कनक यक्षिणी
  5. कामेश्वरी
  6. रतिप्रिया
  7. पद्मिनी
  8. नटी
  9. रागिनी
  10. विशाला
  11. चन्द्रिका
  12. लक्ष्मी
  13. शोभना 
  14. मर्दना
यक्षिणी सिद्ध करने का समय
महर्षि दत्तात्रेय का मत है कि आषाढ शुदी पूर्णमासी शुक्रवार के दिन पडे तो गुरुवार को ही नहा धोकर एकान्त स्थान का चुनाव कर लेना चाहिये,और पहले से ही पूजा पाठ का सभी सामान इकट्ठा करलेना चाहिये,अथवा श्रावण कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन चन्द्र में बल तब साधना का उत्तम फ़ल कहा गया है।
साधना में सबसे पहले शिव जी की आराधना
साधना काल में सबसे पहले भगवान भोले नाथ की साधना करनी चाहिये,यह साधना किसी केले के अथवा बील के पेड के नीचे की जाती है। शिवजी का आराधना मंत्र इस प्रकार से है:-
ऊँ रुद्राय नम: स्वाहा
ऊँ त्रयम्बकाय नम: स्वाहा
ऊँ यक्षराजाय स्वाहा
ऊँ त्रयलोचनाय स्वाहा

क्रिया

अपने चित्त को एकाग्र कर लें,और उपरोक्त मंत्रों को पांच पांच हजार मालाओं का जाप करलें। यह जाप किसी निर्जन स्थान में होना चाहिये,उसके बाद घर आकर कुंआरी कन्याओं को खीर का भोजन करवायें.दूसरी क्रिया है कि किसी वट या पीपल के पेड की जड में शिवजी की स्थापना करके जल चढाते रहें,और प्रत्येक मंत्र की पांच हजार मालायें जपें।

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